रामपुर की स्वतंत्रता के प्रति उदासीनता और मुरादाबाद पर अंग्रेजों का अधिकार होने के पश्चात रूहेलखंड पर अधिकार करने का रास्ता खुल गया था। अंग्रेज इसी प्रकार की घटना की अपेक्षा कर रहे थे और उन्होंने अपनी कूटनीति से पूरे स्वतंत्रता संग्राम समर को सफलता पूर्ण तरीके से अंजाम दिया। इस कारण नैनीताल में शरण लिए सभी अंग्रेज मैदान में उतर गए थे। रामपुर के नवाब युसुफ अली खान ने रामपुर के उत्तराधिकारी कल्बे अली खान को कालाढोंगी भेजा जहाँ पर अंग्रेज रुके हुए थे। कल्बे अली खान अपनी सेना लेकर वहां पहुंचे और वहां से सारे अंग्रेज रामपुर रियासत की सेना की सुरक्षा में मुरादाबाद के लिए निकले बाद में सेना में नवाब खुद भी शामिल हुए और उन सबने अंग्रेजों को सुरक्षित रामपुर पंहुचा दिया।
इस कृत्य के लिए अंग्रेजों ने नवाब पर खुल के मेहरबानियाँ की। गवर्नर जनरल ने बीस हजार रूपए का पुरस्कार प्रदान किया और जहाँ अभी तक रामपुर 11 तोपों की सलामी तक सीमित था को बाधा कर 13 तोपों की सलामी निश्चित कर दिया।
146 गावों जिनकी आय 5,27,281 रूपए चार आने थी, की जागीर “फरजंद-ए-दिल पजीर” की तहसील शाहबाद, मिलक, तथा बिलासपुर में शामिल हो गयी। इतना ही नहीं अपितु मुरादाबाद की मालगुजारी की जो रकम नवाब रामपुर के कब्जे में थी उसे भी अंग्रेजों ने नहीं वापस लिया। इस प्रकार से रामपुर व रूहेलखंड पर अंग्रेजों की वापसी हो गयी जो फिर 1947 में ही हटी।
1. रूहेलखंड 1857 में, ज़ेबा लतीफ़
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