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जानते हैं मध्यकालीन कश्मीर में लोहरा शासन से लेकर शाह मीर शासन में कैसे परिवर्तन आए

रामपुर

 22-07-2024 09:38 AM
मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक

क्या आप जानते हैं कि कश्मीर में हिंदू धर्म का एक लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है! कश्मीर में सूर्य देवता को समर्पित मार्तंड सूर्य मंदिर और भगवान शिव को समर्पित शंकराचार्य मंदिर जैसे धार्मिक स्थल यहाँ पर हिंदू साम्राज्यों के वैभव का बखान करते हैं। कश्मीर पर शासन करने वाले कई हिंदू राजवंशो में से एक लोहारा राजवंश भी था। इन शासकों ने कश्मीर में मंदिरों के निर्माण और हिंदू संस्कृति और शिक्षा को बढ़ावा देने में बहुत बड़ा योगदान दिया। लेकिन इसी राजवंश के शासकों ने कुछ ऐसी गलतियाँ भी की जिनकी वजह से कश्मीर से हिंदू राजवंश ही विलुप्त हो गया!
लोहारा राजवंश, खासा जनजाति के हिंदू शासक थे, जिन्होंने 1003 से लेकर 1320 ई. तक भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में कश्मीर पर शासन किया था। लोहारा परिवार की राजकुमारी और राजा सिंहराज की बेटी दिद्दा ने कश्मीर के राजा क्षेमगुप्त से विवाह किया था। इसके बाद उन दोनों द्वारा शासित क्षेत्र एक हो गए। संग्रामराज को लोहारा राजवंश का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने महमूद ग़ज़नी के कई हमलों से कश्मीर की रक्षा की और शासक त्रिलोचनपाल को मुस्लिम आक्रमणों से लड़ने में मदद की।
सामग्रराज के बेटे जयसिंह 1128 में विद्रोह के बाद राजा बने। जयसिंह बहुत शक्तिशाली नहीं थे, लेकिन उन्होंने 1155 तक अपने शासनकाल के दौरान शांति और कुछ आर्थिक सुधार भी किये। उनके शासन काल में उनके समक्ष कई चुनौतियाँ थी, लेकिन वे कूटनीति और चलाकी से इन चुनौतियों से निपटने में कामयाब रहे। उन्होंने युद्धों में नष्ट हुए कई मंदिरों का पुनर्निर्माण किया, जिस कारण उन्हें "कश्मीर का अंतिम महान हिंदू शासक" कहा जाने लगा।
जयसिंह के पुत्र परमानुका और पोते वन्तिदेव (1165-72 तक शासन किया) ने उनके कदमों का अनुसरण किया। वन्तिदेव को लोहारा राजवंश का अंतिम शासक माना जाता है।
लोहारा राजवंश की कुछ प्रमुख उपलब्धियां निम्नवत दी गई हैं:
1. कश्मीर में लोहारा वंश के शासनकाल के दौरान कई मंदिर और मठ बनाए गए। इस राजवंश में बौद्ध और हिंदू दोनों धर्मों का पालन किया जाता था।
3. 1033 ई. में रानी दिद्दा की मृत्यु के बाद, उनके भाई के बेटे, राजा संग्रामराज लोहारा राजवंश के शासक बने।
4. लोहारा का किला, जिसे अपनी ऊंचाई और ताकत के लिए जाना जाता है, ने हमेशा मुस्लिम आक्रमणों से राज्य की रक्षा की।
5. कश्मीर के इतिहास में राजा हर्ष को एक महत्वपूर्ण और बहादुर राजा माना जाता है। वे विदेशी भाषाओं में निपुण, एक अच्छे कवि और संगीत और विलासिता के प्रेमी थे। उन्होंने कश्मीरी लोगों को नए फैशन, आभूषण और कपडो से परिचित कराया। हालाँकि, बाद में राजा हर्ष अपने ही बड़े भाई के साथ संघर्ष के कारण मारे गए।
6. राजा हर्ष के बाद जयसिंह (1128-55 ई.) शासक बने। चल रहे गृहयुद्ध के कारण उन्हें भी शांति स्थापित करने में कठिनाई हुई। उन्होंने लगभग 27 वर्षों तक शासन किया और मंदिरों और अन्य स्मारकों की मरम्मत की।
7. उनके बाद (1155 - 1339 ई.) कश्मीर राज्य पर कमज़ोर राजाओं का शासन रहा। अंततः 14वीं शताब्दी ई. में मंगोलों ने घाटी पर आक्रमण किया और राज्य का आकार छोटा हो गया।
8. गृहयुद्ध और फूट ने हिंदुओं को कमज़ोर कर दिया और राज्य की सीमाएँ और भी कम हो गईं और इस प्रकार अंततः कश्मीर से हिंदू शासकों का अस्तित्व ही मिट गया।
इसके बाद स्वात (आदिवासी) क्षेत्र से आने वाले शाह मीर ने कश्मीर पर विजय प्राप्त की और घाटी पर शासन किया। इतिहासकारों के अनुसार, कश्मीर में शाह मीर ने शाह मीर वंश की स्थापना की। हालांकि कुछ फ़ारसी इतिहास शाह मीर को स्वात के शासकों के वंशज के रूप में वर्णित करते हैं। लेकिन, 15वीं शताब्दी के कश्मीरी इतिहासकार जोनराजा, जिन्होंने शाह मीर के वंशज बुद्धशाह के शासन के दौरान लिखा था, कहते हैं कि शम्सुद्दीन शाह मीर अपने कबीले के साथ पंचगहवारा नामक स्थान से कश्मीर आए थे।
शम्सुद्दीन शाह मीर ने 1339 में कश्मीर में एक राजवंश की स्थापना की जो 225 वर्षों से अधिक समय तक चला। उनके शासनकाल के दौरान कश्मीर में इस्लाम एक प्रमुख धर्म बन गया।
शाह मीर वंश ने बड़ी ही तीव्र गीत से अपनी शक्ति में वृद्धि की। शाह मीर ने एक स्थायी सेना और एक मानक कर प्रणाली जैसे महत्वपूर्ण तत्वों की शुरुआत की।
सबसे उल्लेखनीय शासकों में से एक ज़ैनुल आबिदीन थे, जिन्हें अपने सुशासन और न्याय की भावना के लिए जाना जाता है। उनके शासन के दौरान, कश्मीर में वास्तुकला, शिल्प, व्यापार और कला, विशेष रूप से संगीत जैसी कलाएं खूब फली फूली।
शाह मीर वंश के कुछ महत्वपूर्ण शासकों एवं उनकी उपलब्धियों की सूची निम्नवत दी गई है:
शम्सुद्दीन शाह मीर (1339 - 1342 ई.): शम्सुद्दीन शाह मीर, शाह मीर राजवंश के संस्थापक और कश्मीर के शासक थे। वे राजा सुहादेव (1301-1320) के समय कश्मीर आए थे। सुहादेव और उनके भाई उदयनदेव की मृत्यु के बाद, शाह मीर कोटा रानी से विवाह करना चाहते थे, लेकिन रानी ने मना कर दिया। वे 1339 तक पाँच महीने तक शासन करती रहीं। कोटा रानी की मृत्यु के बाद, शाह मीर राजा बने और शाह मीर राजवंश की शुरुआत की, जो 1561 तक चला।
सुल्तान शिहाब-उद-दीन (1354 - 1373 ई.): सुल्तान शिहाब-उद-दीन 1354 से 1373 ई. तक शाह मीर राजवंश के एक अच्छे शासक रहे। उन्होंने अपने राज्य को और मज़बूत बनाया। उन्हें "मध्यकालीन कश्मीर का ललितादित्य" कहा जाता है। उन्होंने कई अभियानों का नेतृत्व किया और सिंध, काबुल, ग़ज़नी, दर्दिस्तान, गिलगित, बलूचिस्तान और लद्दाख सहित कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
सिकंदर शाह (1389 - 1413 ई.): सिकंदर शाह अन्य धर्मों के प्रति दयालु नहीं थे । उन्होनें गैर-मुसलमानों पर कर लगाया और हिंदुओं तथा अन्य धर्म के लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया। उन्हें "बुत-शिकन" कहा जाता था क्योंकि उन्होनें मूर्तियों को नष्ट किया था। सुल्तान ने आदेश दिया कि सभी हिंदू, खासकर ब्राह्मण, मुसलमान बन जाएँ या उसका राज्य छोड़ दें। सिकंदर शाह की मृत्यु के बाद, उनके बेटे अली शाह (1413-1419 ई.) राजा बने। फिर सिकंदर शाह के भाई, शाह खान, "ज़ैनुल अबिदीन" के रूप में राजा बने।
ज़ैनुल अबिदीन (1420 - 1470 ई.): कश्मीरी ज़ैन-उल-अबिदीन को "बुद शाह" कहते हैं, जिसका अर्थ महान सुल्तान होता है। वह एक दयालु, खुले विचारों वाले और बुद्धिमान शासक था। उन्होंने उन सभी लोगों को भी अनुमति दी जिन्हें मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया गया था कि वे फिर से हिंदू बन जाएँ। उन्होंने हिंदुओं के पुस्तकालय और ज़मीन भी वापस कर दीं । हिंदुओं का सम्मान करने के लिए, उन्होंने उन पर कर एवं , गायों की हत्या बंद कर दी और सती (विधवा को जलाना) को फिर से जीवन जीने की अनुमति दे दी।
सुल्तान बहुत बड़े विद्वान थे। वह फ़ारसी, कश्मीरी, संस्कृत और तिब्बती बोल सकते थे । उन्होंने संस्कृत और फ़ारसी विद्वानों का समर्थन किया और उसने महाभारत और कल्हण की राजतरंगिणी का फ़ारसी में अनुवाद किया। ज़ैनुल अबिदीन को कश्मीर की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने की बहुत परवाह थी। उन्होंने वुलर झील में ज़ैना लंक नामक एक कृत्रिम द्वीप बनाया, जहाँ उन्होंने अपना महल और मस्जिद बनाई। उन्होंने ज़ैनापुर, ज़ैनाकुट और ज़ैनागीर शहरों की भी शुरुआत की। उन्होंने श्रीनगर में पहला लकड़ी का पुल भी बनाया, जिसे ज़ैना कदल कहा जाता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/264qrdrh
https://tinyurl.com/26j99kst
https://tinyurl.com/29u7ws68

चित्र संदर्भ
1. लोहारा वंश के समय गरुड़ ऊपर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की 11 वीं शताब्दी की प्रतिमा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. 10वीं सदी का अंत और 11वीं सदी की शुरुआत में लोहारा राजवंश द्वारा निर्मित बोधिसत्व सुगतिसमदर्शन-लोकेश्वर प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. हर्षदेव के शासनकाल में निर्मित सिक्के को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. शाह मीर की कब्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. श्रीनगर में ज़ैन-उल-अबिदीन की माँ के मकबरा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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