Post Viewership from Post Date to 01-Sep-2024 (31st) day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1764 82 1846

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

जानें भारत में उगने वाले कुछ सबसे महत्वपूर्ण व मददगार मशरूमों के बारे में

रामपुर

 01-08-2024 09:21 AM
फंफूद, कुकुरमुत्ता

हाल के वर्षों में, मशरूम और इनके व्यंजनों की लोकप्रियता उत्तर भारत, विशेषकर हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में बढ़ी है। चाहे वह लखनऊ हो, आगरा हो या कानपुर, आपको ऐसे रेस्तरां और भोजनालय मिल ही जाएंगे, जो मशरूम से संबंधित भोजन में उत्कृष्ट हैं। लेकिन, रामपुर वासियों, क्या आप जानते हैं कि, मशरूम वास्तव में एक कवक है, जो बेसिडिओमाइकोटा (Basidiomycota) संघ से संबंधित है। आज, हम मशरूम के बारे में और अधिक समझेंगे। साथ ही हम जानेंगे कि, वे कैसे प्रजनन करते हैं और बेसिडिओमाइकोटा कवक संघ की विशेषताएं क्या हैं। अंत में, हम मशरूम के पारिस्थितिक महत्व और भारत में उगने वाले कुछ सबसे महत्वपूर्ण मशरूमों के बारे में भी चर्चा करेंगे।
बेसिडिओमाइकोटा की विशेषता कोशिकायुक्त हाइपे(Hyphae) की उपस्थिति है। अधिकांश प्रजातियां बेसिडिया(Basidia) नामक, एक बीजाणु(Spore) बनाने वाले अंग के साथ यौन रूप से प्रजनन करती हैं। बेसिडिया आम तौर पर चार बीजाणु पैदा करती है, जिन्हें बेसिडियोस्पोर(Basidiospores) के रूप में जाना जाता है। ये बेसिडियोस्पोर फलों के समान, बड़े निकायों पर उत्पन्न होते हैं, जिन्हें बेसिडियोकार्प्स(Basidiocarps) के रूप में जाना जाता है। और, इन्हीं बेसिडियोकार्प्स को आमतौर पर, हम मशरूम के रूप में जानते हैं । कवक के लिए मशरूम, प्रजनन अंग के रूप में कार्य करते हैं, जबकि, कवक का मुख्य शरीर भूमिगत हाइपे के रूप में मौजूद होता है। एक विशिष्ट मशरूम एक टोपीनुमा ऊपरी संरचना से बना होता है, जिसमें अलग-अलग बनावट या रंगीन क्षेत्र हो सकते हैं। इस ऊपरी संरचना के नीचे उभरी हुई नलिकारूपी लंबरूप संरचनाएं होती हैं, जो प्रजनन बीजाणुओं को पकड़कर रखती हैं।
अधिकांश ज्ञात मशरूमों में, बीजाणु नलिकाओं पर उत्पन्न होते हैं। अक्सर एक ही मशरूम हज़ारों बीजाणु पैदा कर सकता है, जो हवा में बहते हैं या ज़मीन पर गिरते हैं। क्लैथ्रस रूबर(Clathrus ruber) जैसे कुछ मशरूम अपने बीजाणुओं को फैलाने के लिए, कीड़ों की मदद लेते हैं।
मशरूमों के प्रजनन का समय, शरद ऋतु और सर्दियों के बीच होता है। आमतौर पर, एक बीजाणु अन्य आनुवंशिक रूप से संगत बीजाणु ढूंढता हैं, और उसके साथ जुड़ जाता है। जब ऐसा होता है, तो वे अधिक आनुवंशिक परिवर्तनशीलता सुनिश्चित करते हैं, और उनके लंबे समय तक जीवित रहने की संभावना अधिक होती है।
यद्यपि बीजाणु सूक्ष्मदर्शी हैं, परंतु, उनका जमाव हमारी आंखों से दिखाई देता है। इसे ‘बीजाणु प्रिंट’ के रूप में जाना जाता है। यह विशेषता, विभिन्न प्रजातियों की पहचान करने में बहुत उपयोगी है।
मशरूम का पारिस्थितिक महत्व भी, प्रशंसनीय हैं। आइए, जानते हैं। 1.) सहजीवन:वन भूमि पर उगने वाले अधिकांश मशरूम, सहजीवन द्वारा पेड़ों से जुड़े होते हैं। यह संबंध, जिसे माइकोराइज़ा (Mycorrhiza) कहा जाता है, किसी पेड़ की जड़ और मशरूम की वनस्पति प्रणाली के बीच होता है। ऐसे सहजीवन से, दोनों जीवों को लाभ पहुंचता है, क्योंकि, इससे पोषक तत्वों का आदान-प्रदान होता है। सामान्य तौर पर, मशरूम पेड़ को मिट्टी से खनिज और पानी अवशोषित करने में मदद करते हैं और, बदले में, पेड़ मशरूम को शर्करा यौगिक (कार्बोहाइड्रेट) प्रदान करते हैं।
2.) सैप्रोफाइटिज्म(Saprophytism): सैप्रोफाइटिज्म उन प्रजातियों के लिए महत्त्वपूर्ण है, जो मृत जीव, सड़ती लकड़ी या मलमूत्र पर उगते हैं। यहां मशरूम की भूमिका अपघटन की होती है। ये कार्बनिक पदार्थों को पचाकर अपना पोषण करते हैं, और साथ ही मिट्टी में पोषक तत्व लौटाते हैं । 3.) परजीविता: कुछ मशरूम परजीवी होते हैं। कुछ प्रजातियां किसी स्वस्थ मेज़बान (पेड़, पौधे या कीट) पर हमला करती हैं, और उसे मारे बिना उस पर निर्वाह करती हैं। जबकि, कुछ प्रजातियां केवल अस्वस्थ मेज़बानों पर हमला करती हैं, जिससे मेज़बान की मृत्यु हो जाती है।
4.) प्रकृति का सफ़ाईकार: मशरूम बैक्टीरिया व अन्य जीवाणुओं को खाकर, अतिरिक्त पोषक तत्वों को विघटित करके और नए पोषक तत्वों का उत्पादन करके, प्रकृति के सफ़ाईकार के रूप में काम करते हैं।
इसी कारण, मशरूम महत्वपूर्ण हो जाते हैं। भारत में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण मशरूम प्रजातियां निम्नलिखित हैं: 1.) बटन मशरूम (एगारिकस बिस्पोरस – Agaricus bisporus): बटन मशरूम, खाद्य मशरूम की दुनिया में काफ़ी प्रसिद्ध है। भारत में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। स्वास्थ्य के साथ-साथ, आर्थिक पहलू में भी बटन मशरूम को भारत में सबसे अच्छे मशरूमों में से एक माना जाता है। ये छोटे, सफेद या क्रीम रंग के होते हैं, और इनकी ऊपरी संरचना छोटी होती है। इनमें नरम बनावट और हल्का स्वाद होता है। स्वास्थ्य और स्वाद को एक साथ जोड़ने की इनकी क्षमता के कारण, ये कई व्यंजनों में एक आकर्षक घटक बन गए हैं। 2.) ऑयस्टर मशरूम (प्लुरोटस एसपीपी – Pleurotus spp.): इन मशरूमों को, सीप के खोल की संरचनात्मक समानता के कारण, ऑयस्टर मशरूम(Oyster Mushroom) कहा जाता है। ये भारत में मशरूम की एक महत्वपूर्ण किस्म हैं। इन्हें सीप जैसा स्वाद रखने के लिए भी जाना जाता है। ये सफ़ेद, भूरे, गुलाबी और पीले आदि विभिन्न रंगों में पाए जाते हैं। इनमें मखमली बनावट के साथ, पंखे के आकार की संरचना होती है। पकाने के दौरान इनसे एक नाज़ुक सुगंध पैदा होती है। भारत में, ढिंगरी अर्थात प्लुरोटस ओस्ट्रीटस(Pleurotus ostreatus), एक खाद्य कृषि मशरूम है, और इसे भारत में सबसे अच्छे मशरूम में से एक माना जाता है। इनका अनूठा स्वाद इन्हें विभिन्न व्यंजनों में एक पसंदीदा घटक बनाता है, और शाकाहारियों के बीच भी लोकप्रिय है। 3.) शिटाके मशरूम (लेंटिनुला एडोड्स – Lentinula edodes): शिटाके मशरूम भारत में एक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण विदेशी किस्म है। जापानी और चीनी व्यंजनों में इनका बहुतायत से उपयोग किया जाता है। ये आमतौर पर, ओक और चौड़ी पत्ती वाले अन्य समान पेड़ों की मृत और सड़ती हुई लकड़ी पर देखे जाते हैं। व्यावसायिक खेती के लिए, इन्हें लट्ठों या चूरे के खंडों पर उगाया जा सकता है। लाल-भूरे रंग के होते हैं। इन्हें विशिष्ट स्वाद के साथ, मांसल बनावट के लिए जाना जाता है। 4.) एनोकी मशरूम ( फ़्लैमुलीना फ़िलिफ़ॉर्मिस – Flammulina filiformis): भारत में यह मशरूम भी एक विदेशी किस्म का है। यह चीन, जापान और कोरिया में भी अत्यधिक लोकप्रिय है। इनके अद्वितीय, सौंदर्यपूर्ण स्वरूप के कारण, इन्हें गोल्डन निडल मशरूम(Golden needle mushroom) या लिली मशरूम(Lilly mushrooms) भी कहा जाता है। ये पतझड़ और वसंत ऋतु के दौरान, प्राकृतिक रूप से पेड़ के तनों पर उगाए जाते हैं। अब इस मशरूम का उपयोग भारतीय व्यंजनों में भी किया जा रहा है।
एनोकी मशरूम में एक लंबा व पतला डंठल होता है, और आम तौर पर, ये सफ़ेद होते हैं। इनकी ऊपरी संरचना छोटी व गोल होती है। इनमें हल्का स्वाद और कुरकुरी बनावट है, जो उन्हें जापानी और चीनी व्यंजनों के लिए उपयुक्त बनाती है। 5.) रीशी मशरूम (गैनोडर्मा ल्यूसिडम – Ganoderma lucidum): रीशी मशरूम, जिसे लिंग्ज़ी मशरूम(Lingzhi mushrooms) भी कहा जाता है, भारत में औषधीय गुणों वाले मशरूम के प्रकारों में से एक है। उनके अविश्वसनीय औषधीय और पौष्टिक गुणों के कारण, उन्हें ‘अमरता का मशरूम’ की उपाधि प्रदान की गई है। भारत और अन्य एशियाई क्षेत्रों में, इस प्रकार के मशरूम को उनके आहार संबंधी अनुप्रयोगों के बजाय मुख्य रूप से उनके औषधीय गुणों के लिए ही सराहा जाता है। वे मुख्य रूप से मेपल जैसे पर्णपाती पेड़ों की तलहटी में देखे जाते हैं। डंठल और गुर्दे के आकार की ऊपरी संरचना के कारण, उनका स्वरूप पंखे के आकार का होता है और वे लाल-भूरे रंग के होते हैं। इनकी बनावट मुलायम होती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/mrxkdnre
https://tinyurl.com/2fc2ccss
https://tinyurl.com/yc24ebuv
https://tinyurl.com/39cvvc9p
https://tinyurl.com/yp8a3fzt

चित्र संदर्भ
1. नमी युक्त स्थान पर उगी मशरूम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. बेसिडिओमाइकोटा संघ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. सहजीवन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. परजीविता को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बटन मशरूम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. ऑयस्टर मशरूम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. शिटाके मशरूम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. एनोकी मशरूम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. रीशी मशरूम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • मेहरगढ़: दक्षिण एशियाई सभ्यता और कृषि नवाचार का उद्गम स्थल
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:26 AM


  • बरोट घाटी: प्रकृति का एक ऐसा उपहार, जो आज भी अनछुआ है
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, रोडिन द्वारा बनाई गई संगमरमर की मूर्ति में छिपी ऑर्फ़ियस की दुखभरी प्रेम कहानी
    म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

     19-11-2024 09:20 AM


  • ऐतिहासिक तौर पर, व्यापार का केंद्र रहा है, बलिया ज़िला
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:28 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर चलें, ऑक्सफ़र्ड और स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालयों के दौरे पर
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, विभिन्न पालतू और जंगली जानवर, कैसे शोक मनाते हैं
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:15 AM


  • जन्मसाखियाँ: गुरुनानक की जीवनी, शिक्षाओं और मूल्यवान संदेशों का निचोड़
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:22 AM


  • जानें क्यों, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में संतुलन है महत्वपूर्ण
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, जूट के कचरे के उपयोग और फ़ायदों के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:20 AM


  • कोर अभिवृद्धि सिद्धांत के अनुसार, मंगल ग्रह का निर्माण रहा है, काफ़ी विशिष्ट
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:27 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id