मिनी बंगाल कहे जाने वाले हमारे रामपुर के मछली पालकों का भाग्य कैसे चमक सकता है?

मछलियाँ और उभयचर
12-07-2024 09:53 AM
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मिनी बंगाल कहे जाने वाले हमारे रामपुर के मछली पालकों का भाग्य कैसे चमक सकता है?

क्या आप जानते हैं कि गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में घोल फिश (Ghost Fish) नामक एक ऐसी दुर्लभ मछली पाई जाती है, जिसकी कीमत 25000 रुपए प्रति किलो तक जा सकती है। यह गुजरात की राज्य मछली भी है। हालांकि इसके अलावा भी भारत में कई देशी-विदेशी मछलियां हैं, जिन्हें बेचकर मछली पालक सालाना लाखों कमा सकते हैं। इससे एक बात और स्पष्ट हो जाती है, कि उचित तौर तरीकों और सही दिशा निर्देशों का पालन करके किया गया मछली पालन, मछली पालकों का भाग्य चमका सकता है। चलिए जानते हैं, कैसे?


मछली पालन एक प्रकार की जलीय कृषि (Aquaculture) है, जिसके तहत मछलियों को खाद्य के रूप में बेचने हेतु सीमित क्षेत्रों में पाला जाता है। मछली पालन, पशु खाद्य उत्पादन का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है। आज, दुनिया भर में खपत की जाने वाली मछलियों में से लगभग आधी मछलियाँ ऐसे ही कृत्रिम वातावरणों में पाली जाती हैं। पाली जाने वाली कुछ सामान्य मछली प्रजातियों में सैल्मन (Salmon), टूना (Tuna), कॉड (Cod), ट्राउट (Trout) और हलिबेट (Halibut) शामिल हैं।
जलीय खेती दुनिया भर की संस्कृतियों द्वारा बहुत लंबे समय से की जा रही है। हालाँकि, जैसे-जैसे दुनिया में जंगली मछलियों की आबादी घटती जा रही है, और भूमि-आधारित पशुपालन के नकारात्मक प्रभाव अधिक स्पष्ट होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे बढ़ती वैश्विक आबादी का पेट भरने के लिए जलीय कृषि को एक स्थायी समाधान के रूप में देखा जा रहा है। जलीय कृषि के समर्थकों का तर्क है कि "नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy)" वैश्विक खाद्य प्रणाली को बदलकर रख देगी। वास्तव में, जलीय जीवों की खेती या पालन संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया भर में कृषि के संदर्भ में सबसे तेज गति से बढ़ने वाला क्षेत्र है। पिछले 20 वर्षों में वैश्विक स्तर पर जलीय खाद्य (जिसमें मछली और झींगे जैसे कई जलीय जीव शामिल हैं!) का उत्पादन तीन गुना तक बढ़ गया है। हालांकि इस तीव्र वृद्धि के बावजूद, जलकृषि उद्योग से जुड़े महत्वपूर्ण पशु कल्याण और पर्यावरणीय मुद्दों को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया जा रहा है।

2018 में, भारत में कुल मछली उत्पादन 6.24 मिलियन मीट्रिक टन (Mmt) होने का अनुमान लगाया गया था। भारत में मछली पालन में यह वृद्धि मुख्य रूप से मीठे पानी के जलीय कृषि क्षेत्र में हुई वृद्धि के कारण हुई है। भारत के कुल पशु प्रोटीन का लगभग 12.8% हिस्सा, मीठे पानी की मछलियों से ही प्राप्त किया जाता है।


पहले के समय में, भारत में मीठे पानी की मछली पालन के तहत बहु-प्रजाति प्रणाली (Polyculture) का उपयोग किया जाता था। मछली जैसे खाद्य जीवों को विकसित करने के लिए पानी में जैविक और अकार्बनिक उर्वरक मिलाए जाते थे। उस समय खेती के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य मछली प्रजातियाँ भारतीय कार्प (Indian Carp), कतला, रोहू और मृगला ​​का संयोजन थीं। पहले कुछ चीनी कार्प प्रजातियों जैसे कि सिल्वर कार्प (Silver Carp), ग्रास कार्प (Grass Carp) और कभी-कभी कॉमन कार्प (Common Carp) का भी उपयोग किया जाता था। आज भारत ने इन कार्प प्रजातियों का कृत्रिम रूप से प्रजनन करने के लिए बहुत उच्च स्तर की तकनीक विकसित कर ली है। पूरक आहार के रूप में उपयोग किए जाने वाले कृषि उपोत्पादों की प्रचुरता ने भी हमारे देश में मीठे पानी की जलीय कृषि के तेजी से विकास में मदद की। लंबे समय तक, भारतीय मछली पालन इस पारंपरिक प्रणाली से बहुत अधिक नहीं बदला। मछलियों को पोषण की दृष्टि से खराब फ़ीड सामग्री खिलाई जाती थी, जिसे या तो फ़ीड बैग (Feed Bag) में डाल दिया जाता था या सीधे तालाबों में बिखेर दिया जाता था। इस प्रकार की फीडिंग प्रणाली (Feeding System) में, 1 किलो मछली का उत्पादन करने के लिए 3 से 4 किलोग्राम फ़ीड की आवश्यकता होती है। आमतौर पर मछलियों को तब पकड़ा जाता है जब उनका शरीर का वजन 8 से 10 महीने बाद 1 से 1.2 किलोग्राम हो जाता है। फिर उन्हें बर्फ में लपेटकर सड़क मार्ग से 24 से 48 घंटे की दूरी पर स्थित बाजारों में ले जाया जाता है।


मछलियों को घरेलू स्तर पर भी पाला जाता है और सीधे समुद्र से भी प्राप्त किया जा सकता है। हालाँकि दोनों तरह से हासिल किया गया जलीय भोजन (जिसमें मछलियां या अन्य जलीय जीव शामिल हैं!) हमारे पर्यावरण को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है।

उदाहरण के तौर पर घरेलू स्तर पर क्लैम (Clams) और मसल्स (Mussels) जैसी शेलफिश (Shellfish) को आम तौर पर दो मुख्य तरीकों का उपयोग करके उगाया जाता है:

बॉटम कल्चर (Bottom Culture): इसके तहत समुद्र तल पर एक कंटेनमेंट स्ट्रक्चर (Containment Structure) बनाया जाता है, और शेलफिश को वहां बढ़ने दिया जाता है।

ऑफ-बॉटम कल्चर (Off-Bottom Culture): इसके तहत एंकर या बोया का उपयोग करके पानी में बड़ी रस्सियों या कंटेनरों को लटकाया जाता है, और शेलफिश को समुद्र तल को छुए बिना उगाया जाता है। जब शेलफिश उचित आकार में पहुँच जाती हैं, तो उन्हें हाथ से काटा जाता है। इन दो तरीकों का उपयोग करके समुद्री शैवाल की खेती भी की जा सकती है।

इसके अलावा तिलापिया (Tilapia), सैल्मन और ट्राउट (Trout) जैसी मछलियों (जिन्हें अधिक स्थान की आवश्यकता होती है!) को निम्नलिखित निकायों में पाला जाता है:

  1. पेन (Pens): ये पूरी तरह से बंद होते हैं और अपतटीय समुद्री जल में डूबे होते हैं, जिससे पानी उनके माध्यम से स्वतंत्र रूप से बह सकता है।
  2. तालाब (Ponds): ये उथले, मानव निर्मित जल निकाय होते हैं, जिनका उपयोग मछली पालने के लिए किया जाता है।
  3. रेसवे (Raceways): ये लंबी, रैखिक कंटेनमेंट संरचनाएँ (Containment Structures) होती हैं, जहाँ तिलापिया और रेनबो ट्राउट (Rainbow Trout) जैसी मछलियों को स्वच्छ, नियंत्रित जलमार्गों में पाला जाता है।
  4. रीसर्क्युलेटिंग टैंक (Recirculating Tanks): ये ऐसे टैंक होते हैं, जहाँ पानी को लगातार फ़िल्टर किया जाता है और इसका बार-बार इस्तेमाल किया जाता है, जिससे ज़्यादा नियंत्रित वातावरण मिलता है।


घरेलू स्तर पर मछली पालन की ये रणनीतियाँ समुद्री जीवन की आबादी को नियंत्रित करने और संवेदनशील आवासों को नुकसान या बाईकैच से बचाने में मदद करती हैं।

हालांकि इसके विपरीत यदि हम सीधे समुद्र से मछलियों को हासिल करते हैं, तो उसके भी हमारे पर्यावरण पर अलग प्रभाव पड़ सकते हैं!

समुद्री खाद्य प्राप्त करने के दौरान प्रयोग किए जाने वाले बड़े जालों को समुद्र तल पर घसीटा जाता है, जिस कारण यह समुद्र तल पर सीन (Seine), ट्रॉल (Trawl), ड्रेज और गिलनेट (Gillnet) आदि के संवेदनशील आवासों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा इनमें अनपेक्षित समुद्री प्रजातियां (बायकैच) भी फंस सकती हैं। इस नुकसान को कम करने के लिए, इन घातक जालों के अलावा पिंगर्स (Pingers) जैसे विशेष उपकरणों के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।


अधिकांश पंजीकृत आहार पोषण विशेषज्ञ यह सुझाव देते हैं कि सबसे स्वस्थ प्रकार के समुद्री भोजन वे हैं जिन्हें हैंडलाइन (Handline), जिग्स (Jigs), पोल-एंड-लाइन (Pole-And-Line) और ट्रोलिंग लाइन (Trolling Line) जैसी विधियों का उपयोग करके पकड़ा जाता है। ये विधियाँ पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल होती हैं, क्योंकि वे बायकैच और आवास क्षति के जोखिम को कम कर देती हैं। इसके अतिरिक्त, इन लाइन-आधारित विधियों के साथ, गलती से पकड़े गए जानवरों को अक्सर सुरक्षित रूप से समुद्र में वापस पहुचाया जा सकता है। हाल के वर्षों में मछली पालन का व्यवसाय रामपुर की नई पहचान बनकर उभरा है। मछली पालन से संबंधित योजना में विशेष तौर पर महिलाओं को भी शामिल किया जा रहा है।  आज मछली पालन के सन्दर्भ में रामपुर को मिनी बंगाल (Mini Bengal) माना जाता है। रामपुर में तैयार मछली के  बीज को कई प्रदेशों को  निर्यात किया जाता है। इसके अलावा रामपुर में मछली पालन से किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो रहा है। साल 2020-21 तथा 2021-22 के बीच प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत विभिन्न परियोजनाओं में 38.14 लाख रुपये डीबीटी के माध्यम से  20 मत्स्य पालकों के खातों में भेजा गया। इसके अलावा मत्स्य पालन के लिए किसान क्रेडिट कार्ड योजना में लघु एवं सीमांत मत्स्य पालकों को बैंकों से ऋण भी उपलब्ध कराया जा रहा है।


चित्र संदर्भ

1. मछली पालन की तकनीक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

2. फिश फार्मिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

3. मछलियों को दाना डालने के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

4. समुद्र के तल में मछली को संदर्भित करता एक चित्रण (Animalia Bio)

5. फिलीपीन शैली में मछली पकड़ने के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

6. मछलियों के विक्रेता' को दर्शाता चित्रण (flickr)