श्वेतग्रीवा किलकिला यह बहुतायता से पेड़ों का रहिवासी पक्षी है जो अपने कुटुंब के अन्य पक्षियों की तरह नदी अथवा ताल तल्लैयों के किनारों के पास नहीं भी रहा तो उसे ज्यादा फरक नहीं पड़ता सिर्फ उसे खाने के लिए बहुत सा अन्न, जैसे कीड़े मकोड़े, केकड़े और छोटे चूहे मिल जाएं।
यह ज्यादातर खेत-खलियान, जंगल, बाग़-बगीचे तथा मीठा पानी और तटीय आर्द्रभूमि के पास दिखता है। यह जंतु जगत के कोर्डेटा (Chordata) संघ का जीव है जो अल्सिडीनिड़े (Alcedinidae) कुटुंब से है। इसका वैज्ञानिक नाम है हाल्सियोन स्मिरनेन्सिस (Halcyon Smyrnensis)। हाल्सियोन यह नाम यूनानी पुराण में किलकिले जैसे पक्षी का था।
इसके गले और छाती का भाग सफ़ेद रहता है इसीलिए इसे श्वेतग्रीवा कहते हैं। इसका सर भूरे रंग का होता है तथा पंख फ़िरोज़ा रंग के होते हैं। इसके अंडे देने का समय मार्च से जून तक रहता है। एक बार में वे 4-7 अंडे देते हैं। इनका घोंसला एक सुरंग जैसा होता है। श्वेतग्रीवा किलकिला बहुत ही शोर मचाता है और समागम के समय भी यह ज्यादा बोलता है तथा तब इसकी आवाज़ मधुर हो जाती है।
पश्चिम बंगाल के इस राज्य पक्षी का पहले उसके पंखों के लिए शिकार किया जाता था। श्वेतग्रीवा किलकिला बड़े पैमाने पर भारत के बहुत से हिस्सों में दिखता है। प्रस्तुत चित्र रामपुर में मिलने वाले श्वेतग्रीवा किलकिले की है जिसे कोठी ख़ास बाग़ में खीचा गया था।
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4. https://en.wikipedia.org/wiki/White-throated_kingfisher
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