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प्रसिद्ध कवि, दार्शनिक और शिक्षक रबिन्द्रनाथ टैगोर ने पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में न केवल स्कूल और विश्वविद्यालय की स्थापना की, बल्कि उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी अमिट छाप छोड़ी। दिलचस्प बात यह है कि टैगोर ने खुद कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं की थी, फिर भी वह भारतीय शिक्षा प्रणाली को आकार देने वाले सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक बन गए। चलिए आज गुरु रबिन्द्रनाथ जयंती के इस शुभ अवसर पर, टैगोर के शैक्षिक दर्शन में गहराई से उतरें और आदर्श विद्यालय तथा आदर्श शिक्षक के प्रति उनके दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करते थें! साथ ही आज हम यह भी जानेंगे कि उन्होंने सीखने के क्षेत्र में संस्कृति और प्रकृति को कैसे खूबसूरती से जोड़ा।
महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में, रबिन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में अपने शैक्षिक प्रयोग की तुलना, “जीवन का सबसे कीमती माल ले जाने वाले जहाज” से की।
उन्होंने अपने जीवन के चालीस साल विश्व-भारती के निर्माण के लिए समर्पित कर दिए! विश्व-भारती एक अद्वितीय शैक्षणिक संस्थान था, जो एक व्यक्ति की समग्र शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करता था। इस संस्था का यूरोप, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी व्यापक प्रभाव था।
टैगोर उन चुनिंदा लोगों में से एक थे जिन्होंने वैश्विक समुदाय के उदय और एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता को पहचाना, जहां छात्र न केवल अपनी संस्कृति की सराहना करना सीख सकते हैं, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को भी ठीक से समझते हैं और उनका सम्मान करते हैं।
टैगोर के समग्र शिक्षा के विचार ने विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों में नई रुचि पैदा की है। वह एक ऐसे शैक्षिक मॉडल पर जोर दे रहे थे, जो विभिन्न संस्कृतियों के बीच समझ को बढ़ावा देता है।
दुर्भाग्य से, आधुनिक भारत में टैगोर के शैक्षिक विचारों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। आज के समय में कई निजी शैक्षणिक संस्थान ऐसे भी हैं जो छात्रों को सहानुभूति, सम्मान और आपसी समझ पर आधारित दुनिया बनाने की शिक्षा देने के बजाय, केवल आर्थिक लाभ पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
प्रौद्योगिकी-संचालित इस युग में, कई भारतीय शैक्षणिक संस्थान समग्र शिक्षा के बजाय केवल कौशल-आधारित शिक्षा प्रदान करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इन संस्थानों से हर साल कई छात्र स्नातक होते हैं जो भले ही रोजगार पा लेते हैं, लेकिन उन्हें हमारी दुनिया की विविधता की सराहना करने वाले नैतिक नागरिक बनने का कोई भी औपचारिक प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। कौशल-आधारित शिक्षा की इस दौड़ में, हम उस शिक्षा के मूल्य को भूल गए हैं जो "आत्मा" का पोषण करती है, जहां प्रत्येक व्यक्ति समृद्ध, सूक्ष्म और जटिल तरीकों से दुनिया से जुड़ना सीखता है।
यहाँ, "आत्मा" शब्द का तात्पर्य हमारी सोचने और कल्पना करने की क्षमता से है, जो हमें सभी रूपों में एक आदर्श इंसान बनाती है। टैगोर के लिए, वास्तविक शिक्षा का अर्थ छात्रों को वास्तविक संवाद के माध्यम से वह जानने में मदद करना था, जिसे वे पहले से जानते तो हैं, लेकिन समझते नहीं हैं। इसलिए, टैगोर की शिक्षण पद्धति मुख्य रूप से सुकराती (Socratic) मानी जाती थी।
टैगोर की शिक्षण पद्दति में शिक्षकों ने विद्यार्थियों को केवल व्याख्यान देने के बजाय उनकी प्रतिक्रियाएँ जानने के लिए उनसे प्रश्न पूछे, ताकि वे बिना क़िसी शंका के उन्हें आत्मसात कर सकें। साथ इस पद्दति में छात्रों को अपने जीवन के निर्णयों के बारे में सोचने और बैठकें आयोजित करने में पहल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
टैगोर ने छात्रों को बौद्धिक स्वतंत्रता पाने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका मानना था कि सच्ची स्वतंत्रता केवल दूसरे लोगों के विचारों को अपनाने से नहीं, बल्कि निर्णय के अपने मानक बनाने और अपने खुद के विचारों का उत्पादन करने से प्राप्त की जा सकती है।
टैगोर ने ऐसी शिक्षा की वकालत की जो छात्रों को प्रकृति का प्रत्यक्ष अनुभव करके संवेदनशीलता विकसित करने में मदद करे। प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध को बढ़ावा देकर, छात्रों को एहसास होगा कि उनके जीवन और प्रकृति के बीच कोई भी दीवार या बाधा नहीं है। प्रकृति के साथ एकता की यह भावना अंततः सहानुभूति और बाहरी दुनिया से जुड़ने की क्षमता विकसित करने में मदद करेगी।
टैगोर का दृढ़ विश्वास था कि एक उत्तम विद्यालय प्रकृति से घिरा होना चाहिए। इसीलिए गुरुकुलों की भांति शांतिनिकेतन में भी अधिकांश पाठ पेड़ों की ठंडी छाया के नीचे आयोजित किए जाते हैं। ठंडी जलवायु वाले स्कूलों में स्कूल का कम से कम एक दिन पूरी तरह से बाहर बिताया जाना चाहिए। शांतिनिकेतन के स्कूल सादगी को भी बढ़ावा देते हैं और बच्चों को आधुनिक दुनिया के अत्यधिक प्रभावों (जैसे अत्यधिक मनोरंजन, बाज़ार में उपलब्ध तैयार सामान और विलासिता) और उनके माता-पिता की सीमित महत्वाकांक्षाओं से बचाते हैं। टैगोर सादगी को महत्व देते थे, क्योंकि उनका मानना था कि बहुत अधिक भौतिक संपत्ति दुनिया के प्रत्यक्ष अनुभव को सीमित कर सकती है, अहंकार को बढ़ा सकती है और सच्चे विकास में बाधा बन सकती है।
माता-पिता को भी सावधान रहना चाहिए कि वे अपनी भौतिकवादी और उद्देश्यपूर्ण इच्छाओं को अपने बच्चों और उनकी सरल जरूरतों पर न थोपें! परिजन अपने बच्चों को लाड़-प्यार देकर या उन्हें केवल "पैसे कमाने के यंत्र" में बदलने की कोशिश न करें। टैगोर बच्चों को प्रकृति का सीधे खुला अनुभव करने के महत्व पर जोर देते हैं, और मानते थे कि तैयार उत्पादों और उपकरणों की अनुपस्थिति में ही बच्चे अपनी रचनात्मकता और जिम्मेदारी विकसित करते हैं। उनका तर्क था: "असली राजा वह है जो अपना राज्य ख़ुद बनाने में सक्षम है।"
रबिन्द्रनाथ टैगोर एक बच्चे की प्राकृतिक जिज्ञासा और कल्पना को बढ़ावा देने के लिए प्रकृति की शक्ति का प्रयोग करने में दृढ़ विश्वास रखते थे। उन्होंने शिक्षण का एक नया तरीका पेश किया जिसमें केवल तथ्यों को याद रखने के बजाय वास्तविक जीवन के अनुभवों से सीखने पर जोर दिया गया। आज के शिक्षक और बाल विशेषज्ञ भी प्राकृतिक परिवेश में सीखने के इस विचार का समर्थन करते हैं। वे अक्सर इस बारे में बात करते थे कि प्रकृति के बीच में रहकर सीखना छात्रों के समग्र विकास और खुशी को कैसे बढ़ावा दे सकता है। आधुनिक बाल विशेषज्ञ भी स्वीकार करते हैं कि बच्चों को प्रकृति में खुला छोड़कर भी उन्हें बहुत कुछ सिखाया जा सकता है। टैगोर के अनुसार, प्रकृति के करीब रहना, जिसे उन्होंने "जीवन की पुस्तक" कहा है, रचनात्मकता, जिज्ञासा, समस्या-समाधान कौशल, शारीरिक विकास और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5n6hz4us
https://tinyurl.com/bp9s6yh6
https://tinyurl.com/342ejn9s
चित्र संदर्भ
1. रबिन्द्रनाथ टैगोर और शांतिनिकेतन संदर्भित करता एक चित्रण (Picryl, flickr)
2. रबिन्द्रनाथ टैगोर की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. रबिन्द्रनाथ टैगोर की छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गांधीजी के साथ बैठे रबिन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
5. शांतिनिकेतन में महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के साथ रबिन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक कक्षा में बच्चों दर्शाता एक चित्रण (Freerange Stock)
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