मानचित्र बयां करते हैं, गंगा नदी और उत्तर प्रदेश से जुड़े दिलचस्प ऐतिहासिक क़िस्से

अवधारणा I - मापन उपकरण (कागज़/घड़ी)
04-05-2024 10:17 AM
Post Viewership from Post Date to 04- Jun-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2247 73 0 2320
* Please see metrics definition on bottom of this page.
मानचित्र बयां करते हैं, गंगा नदी और उत्तर प्रदेश से जुड़े दिलचस्प ऐतिहासिक क़िस्से

मानचित्रण के शुरुआती दिनों में आज की तरह आसमान से धरती को देखते हुए, इसका सटीक मानचित्र बनाना संभव न था, उस समय के मानचित्रों को अनुमानों, कही सुनी बातों के आधार पर बनाया जाता था। हालाँकि, जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, वैसे-वैसे भूमि माप भी संभव हो गई। 19वीं सदी के मध्य तक, दुनिया के एक बड़े हिस्से का उचित सटीकता के साथ मानचित्रण किया जा चुका था। मानचित्रण के इन प्रयासों में नदियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज, हम गंगा के स्रोत की खोज करने में मानचित्रकारों की जिज्ञासा के बारे में जानेंगे। इसके अतिरिक्त, आज हम उत्तर प्रदेश के सबसे पुराने और सबसे प्राचीन मानचित्र को भी खोजेंगे। पहले के समय में मानचित्र निर्माताओं के पास किसी क्षेत्र से संबंधित बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती थी। इसलिए मानचित्र निर्माता इन रिक्त स्थानों को उन पौराणिक किवदंतियों के आधार पर भर देते थे, जिन्हें उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना था। उदाहरण के लिए, सनातन धर्म में पवित्र गंगा नदी ने मानचित्रों में रिक्त स्थानों को चित्रित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। मानचित्र निर्माता वास्तव में गंगा नदी के उद्गम स्थल को लेकर बेहद उत्सुक रहते थे। इसलिए, उन्होने वहां गए हुए यात्रियों से सुनी कहानियों और पुराने भौगोलिक अभिलेखों के आधार पर, अपने नक़्शे बनाए और उनमें दिखाया कि गंगा और दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की अन्य प्रमुख नदियाँ बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पूर्व में स्थित चियामे नामक झील से शुरू होती है। इसे जॉन स्पीड (John Speed’s) द्वारा 1676 में निर्मित 'ए न्यू मैप ऑफ ईस्ट एशिया (A New Map of East India)' में देखा जा सकता है। लेकिन इस झील का वास्तव में कोई भी अस्तित्व नहीं है। इसके बावजूद यह काल्पनिक झील लंबे समय तक कई मानचित्रों पर दिखाई देती रही।
ऊपर दिया गया मानचित्र हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के इतिहास की महत्वपूर्ण झलकियां प्रदान करता है। 18वीं शताब्दी तक, मुगल साम्राज्य, जो एक समय में बहुत शक्तिशाली हुआ करता था, वह भी आंतरिक फूट और दक्कन से मराठों, बंगाल से अंग्रेज़ों और अफगानिस्तान में अफगानों से विरोध झेलने के कारण बिखरना शुरू हो गया। लगभग इसी समय,हमारा उत्तर प्रदेश भी कई राज्यों के बीच विभाजित हो गया था। मध्य और पूर्वी भागों में स्थित अवध में एक नवाब का शासन था, जो तकनीकी रूप से मुगल सम्राट के अधीन था, लेकिन व्यावहारिक रूप से स्वतंत्र था। उत्तर में स्थित रोहिलखंड क्षेत्र, अफगान शासन के अधीन था।
वहीँ दक्षिण में मराठों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र को नियंत्रित कर लिया। 1765 में, अवध और मुगल सम्राट की सेनाओं ने बक्सर में अंग्रेज़ों से लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में अंग्रेज़ जीत गए, लेकिन उन्होंने किसी ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने पूरा अवध नवाब को वापस दे दिया, और मुगल बादशाह शाह आलम को इलाहाबाद के किले में तैनात एक ब्रिटिश सेना के साथ, निचले दोआब में इलाहाबाद और कोरा के सूबे वापस मिल गए। बाद में, गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) ने रोहिल्ला युद्ध में रोहिलखंड को जीतने के लिए नवाब को एक ब्रिटिश सेना देकर और अवध को इलाहाबाद तथा कोरा देकर अवध के क्षेत्र का विस्तार किया। इसी समय अंग्रेज़ों को अवध से बनारस प्रांत मिल गया। इस बंटवारे में लॉर्ड वेलेस्ली (Lord Wellesley) (1797-1805 तक गवर्नर-जनरल) के आगमन तक कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ। बाद में लॉर्ड वेलेस्ली जब सत्ता में आये तो उन्होंने दो चरणों में क्षेत्र का उल्लेखनीय विस्तार किया। 1801 में, उन्होंने अवध के नवाब को रोहिलखंड, निचला दोआब और गोरखपुर डिवीजन छोड़ने के लिए कहा, जिससे उत्तर को छोड़कर अवध को सभी तरफ से प्रभावी ढंग से नवाब को घेर लिया गया।
फिर 1804 में, द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध में लॉर्ड लेक (Lord Lake) की जीत की बदौलत, अंग्रेज़ों ने बुन्देलखण्ड के कुछ हिस्से और आगरा सहित दोआब के बाकी हिस्सों पर नियंत्रण हासिल कर लिया। उन्होंने दिल्ली में बुजुर्ग और अंधे सम्राट शाह आलम की संरक्षकता भी संभाली।
1815 में गोरखा युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने कुमाऊं मंडल का अधिग्रहण कर लिया। दो साल बाद, 1817 में, उन्होंने मराठा पेशवा से बुन्देलखण्ड का अधिकांश भाग अपने अधिकार में ले लिया। 1877 में, उत्तर-पश्चिमी प्रांत के लेफ्टिनेंट-गवर्नर और अवध के मुख्य आयुक्त की भूमिकाएँ एक ही व्यक्ति सँभालने लगा। 1902 में, जब आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत का नया नाम पेश किया गया, तो मुख्य आयुक्त का पद हटा दिया गया। 1935 में प्रांत का नाम छोटा करके संयुक्त प्रांत कर दिया गया। 26 जनवरी 1950 को भारत की आज़ादी के बाद संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश राज्य बन गया। ऊपर दिया गया मानचित्र 1908 का एक मूल प्राचीन मानचित्र संयुक्त प्रांत को दर्शाता है, जो भारत (विशेष रूप से आगरा और अवध के डिवीजनों) में मूल राज्यों, रेलवे तथा नहरों को उजागर करता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4p6cvpxs
https://tinyurl.com/yc4czxyf
https://tinyurl.com/mryhpyjy

चित्र संदर्भ
1. 1903 के संयुक्त प्रांत के मानचित्र, को संदर्भित करता एक चित्रण (academic)
2. सबसे पुराना जीवित नक्शा संभवतः इस विशाल दांत पर उकेरा गया है, जो 25,000 ईसा पूर्व का है, जिसे चेक गणराज्य के पावलोव में खोजा गया था। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जॉन स्पीड (John Speed’s) द्वारा 1676 में निर्मित 'ए न्यू मैप ऑफ ईस्ट एशिया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 1903 के संयुक्त प्रांत के मानचित्र, को संदर्भित करता एक चित्रण (academic)
5. 1908 के संयुक्त प्रांत के मूल प्राचीन मानचित्र जिसमें मूल राज्यों, रेलवे और नहरों को दिखाया गया है, को संदर्भित करता एक चित्रण (Etsy)