रामपुर - गंगा जमुना तहज़ीब की राजधानी












कैसे रामपुर के पीपल के पेड़ हमारे शहर की आब-ओ-हवा को सुखद और हमें स्वस्थ रख रहे हैं
व्यवहारिक
By Behaviour
08-05-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के नागरिकों, पीपल का पेड़ अपनी मज़बूत जड़ों और हरी-भरी पत्तियों के लिए जाना जाता है, और इसमें ऑस्मोसिस की बहुत अहम भूमिका होती है। ऑस्मोसिस के ज़रिए पीपल के पेड़ की जड़ें मिट्टी से पानी और पोषक तत्व सोखती हैं, जो फिर शाखाओं और पत्तियों तक जाते हैं। यह प्रक्रिया पेड़ को हाइड्रेटेड रखती है और सूखे जैसे हालात में भी इसे ज़िंदा रहने में मदद करती है। पीपल के पेड़ की फैली हुई जड़ें नमी खींचने में बहुत असरदार होती हैं, जिससे यह विभिन्न वातावरणों में अच्छे से बढ़ता है।
आज हम पीपल के पेड़ के बारे में बात करेंगे, जो अपनी ख़ासियतों के लिए प्रसिद्ध है। हम यह जानेंगे कि यह पेड़ पक्षियों, जानवरों और कीड़ों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, और यह जैव विविधता को बनाए रखने में कैसे मदद करता है। फिर हम पीपल के पेड़ के पर्यावरणीय महत्व पर चर्चा करेंगे, और आखिर में इस पेड़ के औषधीय लाभों के बारे में भी बात करेंगे।
पीपल का पेड़ जिसे (फाइकस रिलिजियोसा) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में एक पवित्र पेड़ है और इसके आध्यात्मिक और औषधीय गुणों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यह मौरासी परिवार से संबंधित है और भारत, नेपाल और दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों में आमतौर पर पाया जाता है। इस पेड़ का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है और इसे कई पौराणिक और आध्यात्मिक विश्वासों से जोड़ा जाता है। इसे बोधि वृक्ष भी कहा जाता है और बौद्ध धर्म में इसे ज्ञान का प्रतीक मानकर पूजा जाता है।
अपने सांस्कृतिक महत्व के अलावा, पीपल का पेड़ कई पारिस्थितिकी लाभों के लिए भी जाना जाता है। यह एक पतझड़ी पेड़ है, जो 30 मीटर तक ऊंचा बढ़ सकता है और इसका फैलाव बहुत बड़ा होता है, जिससे यह विभिन्न प्रजातियों के लिए छांव और आश्रय प्रदान करता है। इस पेड़ की जड़ें गहरी और विस्तृत होती हैं, जो मृदा कटाव को रोकने में मदद करती हैं और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं। इसके अलावा, पीपल का पेड़ वायु से प्रदूषकों को अवशोषित करने और उसके आसपास की वायु गुणवत्ता को सुधारने में भी सक्षम होता है।
पक्षियों, जानवरों और कीड़ों के लिए महत्व
पीपल का पेड़ कई पक्षियों, जैसे कि तोते, बुलबुल और मैना के लिए भोजन और आश्रय का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह कई प्रजातियों के बंदरों, चमगादड़ों और गिलहरी के लिए भी एक अहम निवास स्थान है। कीड़े, जैसे कि मधुमक्खियाँ और तितलियाँ, इस पेड़ के मीठे अमृत से आकर्षित होती हैं और इस पेड़ के फूलों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
पीपल के पेड़ का पारिस्थितिकीय महत्व
संधारणीयता का प्रतीक - पीपल का पेड़ पर्यावरण के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसका गहरा और मज़बूत जड़ तंत्र मिट्टी के कटाव को रोकने और मिट्टी की रक्षा करने में मदद करता है। पीपल का पेड़ उन मुश्किल परिस्थितियों में भी पनपने की क्षमता रखता है, जहां पर्यावरणीय समस्याएं और जलवायु परिवर्तन गंभीर हो रहे हैं, इसलिए यह सततता का प्रतीक बन गया है। यह पेड़ जैव विविधता को बनाए रखने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पीपल का पेड़ कई पारिस्थितिकी तंत्रों का अहम हिस्सा है और पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए ऑक्सीजन का उत्पादन करता है।
ऑक्सीजन उत्पादन करने वाला सबसे महत्वपूर्ण पेड़ - पीपल का पेड़ ऑक्सीजन उत्पादन करने वाले सबसे महत्वपूर्ण पेड़ों में से एक है। एक परिपक्व पीपल का पेड़ एक दिन में 9-10 लोगों के लिए ऑक्सीजन उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा, पीपल का पेड़ हवा से प्रदूषकों को सोखकर वायु प्रदूषण को कम करने में भी मदद करता है। अंत में, पीपल का पेड़ आध्यात्मिक और पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यधिक महत्व रखता है, और इसे पवित्र पेड़ के रूप में पूजा जाता है। पीपल का पेड़ एक सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है और यह दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण पेड़ों में से एक है।
पीपल के पेड़ के फायदे
श्वसन स्वास्थ्य: पीपल के पत्ते पारंपरिक रूप से आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में श्वसन समस्याओं जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और खांसी को दूर करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन पत्तियों में ऐसे तत्व होते हैं जिनके कारण श्वसन मार्ग साफ़ होते हैं और सांस लेने में आसानी होती है।
पाचन सहायता: पीपल का पेड़ पाचन के लिए भी लाभकारी होता है। पीपल के पत्तों या छाल के अर्क का सेवन पाचन में मदद करता है, क़ब्ज़ को दूर करता है और आंतों से जुड़ी समस्याओं जैसे दस्त और पेचिश को ठीक करने में सहायक होता है।
यकृत स्वास्थ्य: पीपल का पेड़ यकृत के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। पीपल के पत्तों का अर्क या काढ़ा यकृत को डिटॉक्सिफाई करने, यकृत के कार्य में सुधार करने और उसे विषाक्त पदार्थों और मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है।
घावों की भराई: पीपल के पेड़ का लेटेक्स पारंपरिक रूप से घावों को भरने के लिए एक प्राकृतिक उपाय के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके एंटीमाइक्रोबियल गुण, संक्रमण को रोकने में मदद करती हैं, जबकि इसकी संकोचक गुणों से ऊतकों के संकुचन में मदद मिलती है, जिससे घाव जल्दी भरते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में लाओस में मेकांग नदी के कीचड़ भरे पानी में डूबा हुआ पीपल के पेड़ का तना | स्रोत : Wikimedia
रामपुर और देश के सभी बच्चों को इंटरनेट के हानिकारक कंटेंट से कैसे रखें सुरक्षित ?
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
07-05-2025 09:28 AM
Rampur-Hindi

क्या आप लोग जानते हैं कि, 4चैन (4chan) नामक वेबसाइट ने अपने विवादास्पद और हानिकारक कंटेंट के कारण दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है? यह मूल रूप से अज्ञात चर्चाओं के लिए, एक मंच के रूप में बनाया गया है। लेकिन आज यह एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म बन चुका है, जहां अनियंत्रित रूप से गलत सूचना, चरमपंथी विचारधाराएं और हानिकारक मानसिकताएँ फ़ैल सकती हैं। 4चैन के कई तंत्रों को साइबर बदमाशी (Cyberbullying), अभद्र भाषा और अवैध गतिविधियों के लिए जाना जाता है। चूंकि, यह प्लेटफ़ॉर्म नाम गुप्तता की अनुमति देती है, इसलिए इसे ऑनलाइन उत्पीड़न, कट्टरपंथीकरण और यहां तक कि वास्तविक दुनिया की हिंसा से जोड़ा गया है। विशेष रूप से युवा उपयोगकर्ताओं एवं अन्य लोगों को भी इससे सतर्क रहना चाहिए। हमें ऐसे प्लेटफ़ॉर्म से बचना चाहिए, क्योंकि वे हमारे विचारों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं; खतरनाक व्यवहार को बढ़ावा दे सकते हैं; और उपयोगकर्ताओं को असुरक्षित कंटेंट के प्रति उजागर कर सकते हैं। आज, हम 4चैन वेबसाइट का पता लगाएंगे, जो अपनी अप्रतिबंधित चर्चाओं के लिए जानी जाती है। फिर हम जांच करेंगे कि, क्या यह साइट युवाओं के लिए सुरक्षित है; इसमें क्या जोखिम है; और यह वर्षों से विवाद का कारण क्यों रही है। अंत में, हम चर्चा करेंगे कि, कैसे माता-पिता अपने बच्चों को इस साइट पर मौजूद हानिकारक कंटेंट से बचा सकते हैं।
4चैन वेबसाइट क्या है?
4चैन एक वेबसाइट है, जिसे 2003 में क्रिस्टोफ़र पूले (Christopher Poole) नामक एक 15 वर्षीय छात्र द्वारा बनाया गया था। इस वेबसाइट को मूल रूप से, एक छवि बोर्ड के रूप में डिज़ाइन किया गया था, जहां उपयोगकर्ता चित्र साझा कर सकते हैं, और विभिन्न विषयों पर गुप्त रूप से चर्चा कर सकते हैं। इसे शुरू में जापानी एनीमे (Japanese anime) के प्रशंसकों के लिए, एक मंच के रूप में बनाया गया था, ताकि कंटेंट को इकट्ठा किया जा सके और साझा किया जा सके। लेकिन, यह साइट जल्द ही लोकप्रिय हुई और विभिन्न विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल करने के लिए विस्तारित हुई।
साइट की लोकप्रियता, काफ़ी हद तक इसकी अनूठी पोस्टिंग सिस्टम(Posting system) के कारण है, जो उपयोगकर्ताओं को अपनी पहचान को प्रकट किए बिना ही, पोस्ट करने की अनुमति देती है। इस गुप्तता ने, इस साइट को उन व्यक्तियों के लिए आकर्षक बना दिया है, जो प्रतिशोध या परिणामों के डर के बिना, अपने विचारों को साझा करना चाहते हैं। हालांकि, इस सहूलियत ने साइट पर कंटेंट को विनियमित करना भी मुश्किल बना दिया है। परिणामस्वरूप गलत सूचना, घृणित संदेश और यहां तक कि हिंसा के खतरों का भी प्रसार हुआ है।
क्या युवाओं के लिए 4चैन का उपयोग करना, सुरक्षित है?
4चैन साइट 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के उपयोगकर्ताओं के लिए ही उपयुक्त है, क्योंकि यहां आसानी से उपलब्ध अनुचित कंटेंट, बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए खतरा निर्माण करता है। हालांकि, इस साइट में प्रत्येक बोर्ड के लिए नियम हैं। वास्तव में, यह अश्लील और विकृत कंटेंट के साथ, नस्लवाद और ट्रांसफ़ोबिया (Transphobia) जैसे द्वेषपूर्ण भाषण की अनुमति देती है। साइट के नियम बताते हैं कि, ऐसी सामग्री को इसके ‘/b/’ बोर्ड के बाहर अनुमति नहीं है।
एक तरफ़, कुछ बोर्डों को “वर्कसेफ़ (Worksafe)” के रूप में चिह्नित किया गया है, जिसका अर्थ है कि – अनुचित कंटेंट नियमों के खिलाफ़ है। 4चैन में किसी भी प्रकार के अभिभावक नियंत्रण या गोपनीयता सेटिंग्स नहीं हैं। उपयोगकर्ता अज्ञात होना चुन सकते हैं, और किसी भी बोर्ड तक पहुंच सकते हैं। हालांकि, आप ब्रॉडबैंड और मोबाइल नेटवर्क पर अभिभावक नियंत्रण सेट कर सकते हैं, जो किशोरों की पहुंच को सीमित कर सकते हैं।
एक तरफ़, 8कुन (8kun) और 16चैन (16chan) जैसी अन्य साइटें भी मौजूद हैं। 8कुन का कंटेंट, 4चैन की तुलना में कम संचालित है, और इसलिए यह किशोरों के लिए कम सुरक्षित है। एक तरफ़, 16चैन डार्क वेब (Dark web) पर अज्ञात रूप से मौजूद है, और इसमें ऐसा कंटेंट है, जो अवैध और असंचालित है।
4चैन विवादास्पद क्यों है?
इसकी छवि बोर्ड पर पाई जाने वाले कंटेंट के कारण, 4चैन कई विवादों के केंद्र में है। उल्लेखनीय विवादों में गेमरगेट (Gamergate), विभिन्न साइबर हमले, हिंसा के खतरे और बाल अश्लीलता शामिल हैं। इस साइट पर गलतफ़हमी और हिंसा को बढ़ावा देने के बारे में भी काफ़ी चिंताएं हैं। ऑनलाइन सुरक्षा के लिए इन खतरों के बावजूद, कई किशोर फिर भी साइट का उपयोग कर सकते हैं।
आप अपने बच्चों को 4चैन से कैसे दूर रख सकते हैं?
•मुक्त संवाद:
बच्चों के साथ मुक्त तौर पर संवाद करना महत्वपूर्ण है। यह न केवल आपके एवं उनके बीच एक बंधन का निर्माण करेगा, बल्कि वे अपने ऑनलाइन-उपयोग के अनुभव के बारे में बातें साझा करने के लिए, आप पर भरोसा भी करेंगे।
•ऑनलाइन जोखिम जागरूकता:
आपको बच्चों को इस बात से अवगत कराना होगा कि, ये वयस्क साइटें कैसे काम करती हैं, और वे किन तरीकों से हमें नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। इस तरह, उनको अपनी ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करना सिखाएं।
•ऑनलाइन व्यवहार सिखाएं:
बच्चों को पता होना चाहिए कि, जब वे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म (Platform) पर होते हैं, तो कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Pexels
विश्व अस्थमा दिवस पर जानें, फेफड़ों की देखभाल और टी बी से बचाव के उपाय!
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
06-05-2025 09:28 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के नागरिकों, तपेदिक/टी बी (Tuberclosis) एक गंभीर लेकिन इलाज़ योग्य बीमारी है,| यह एक संक्रामक रोग है , जो एक विशेष प्रकार के बैक्टीरिया से होती है| यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है। टी बी के लक्षणों में लगातार खांसी, सीने में दर्द, बुखार, रात को पसीना आना और वज़न घटना शामिल हैं। यह हवा के जरिए संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से फैल सकता है।
अगर टी बी का समय पर पता चल जाए, तो इसे दवाओं से ठीक किया जा सकता है। सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं के तहत मुफ़्त इलाज और एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं, जिनका पूरा कोर्स करना बहुत ज़रूरी होता है। साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखना, पौष्टिक भोजन खाना और पूरी दवा लेना इस बीमारी को फैलने से रोकने में मदद करता है।
आज हम जानेंगे कि टी बी क्या होती है। फिर इसके सामान्य लक्षणों के बारे में समझेंगे, ताकि इसका समय पर इलाज हो सके। इसके बाद भारत में टी बी की स्थिति पर नज़र डालेंगे और अंत में इसके इलाज के बारे में बात करेंगे।
टी बी क्या होती है?
जब टी बी के बैक्टीरिया आपके फेफड़ों में पहुंच जाते हैं, तो यह संक्रमण फैलाकर टी बी बीमारी का कारण बनते हैं। यह बीमारी आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन यह रीढ़, दिमाग और किडनी जैसे शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकती है।
हर कोई जो टी बी के बैक्टीरिया से संक्रमित होता है, बीमार नहीं पड़ता। अगर किसी को टी बी का संक्रमण है लेकिन कोई लक्षण नहीं हैं, तो इसे “निष्क्रिय टी बी” या “सुप्त टी बी” कहा जाता है। इसका मतलब है कि टी बी के बैक्टीरिया शरीर में होते हैं लेकिन सक्रिय नहीं होते। अमेरिका में करीब 1.3 करोड़ लोग सुप्त टी बी से सक्रमित है। कुछ लोग जीवनभर सुप्त टी बी के साथ रह सकते हैं, बिना कोई लक्षण महसूस किए।
लेकिन अगर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immune system) कमज़ोर हो जाए, तो टी बी सक्रिय हो सकती है। जब प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है, तो यह बैक्टीरिया को बढ़ने से रोक नहीं होती, जिससे बीमारी फैलने लगती है।
टी बी के सामान्य लक्षण
टी बी के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि यह शरीर के किस हिस्से को प्रभावित कर रही है। हालांकि, कुछ सामान्य लक्षण किसी भी प्रकार की टी बी में दिखाई दे सकते हैं:
- बुखार
- रात में पसीना आना
- वज़न कम होना
- भूख न लगना
- कमज़ोरी महसूस होना या थकावट
फेफड़ों से जुड़ी पल्मोनरी टी बी (Pulmonary TB) के लक्षण
टी बी सबसे ज़्यादा फेफड़ों को प्रभावित करती है, जिसे पल्मोनरी टी बी कहा जाता है। टी बी के अधिकतर मामले इसी प्रकार के होते हैं। इसके लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
- लगातार खांसी रहना (तीन हफ़्ते या उससे ज़्यादा)
- खांसी में खून आना
- सीने में दर्द महसूस होना
- सांस लेने में दिक्कत
भारत में टी बी की स्थिति – 2024 रिपोर्ट के अनुसार
हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भारत टी बी रिपोर्ट 2024 जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार, टी बी से होने वाली मृत्यु दर 2015 में 28 प्रति लाख थी, जो 2022 में घटकर 23 प्रति लाख रह गई है।
रिपोर्ट की प्रमुख बातें
टी बी के मामलों और मौतों की स्थिति
भारत में टी बी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है, लेकिन सरकार इसके उन्मूलन के लिए लगातार प्रयास कर रही है। हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने “भारत टी बी रिपोर्ट 2024” जारी की, जिसमें बताया गया कि टी बी से होने वाली मौतों में कमी आई है। 2015 में हर 10 लाख लोगों में 28 लोग टी बी से प्रभावित होकर अपनी जान गंवा रहे थे, जबकि 2022 में यह संख्या घटकर 23 प्रति 10 लाख हो गई। 2021 में भारत में 4.94 लाख लोगों की मौत टी बी से हुई थी, लेकिन 2022 में यह घटकर 3.31 लाख रह गई, जो एक सकारात्मक संकेत है।
टी बी के मामलों में भी बदलाव देखा गया है। 2023 में भारत में 27.8 लाख नए मामले दर्ज किए गए, जो 2022 के 27.4 लाख मामलों से थोड़ा अधिक थे। 2023 में 25.5 लाख मामलों की पुष्टि हुई, जिनमें से 8.4 लाख यानी 33% मामले निजी अस्पतालों और डॉक्टरों द्वारा रिपोर्ट किए गए। 2015 में केवल 1.9 लाख मामले निजी क्षेत्र से रिपोर्ट हुए थे, लेकिन अब इसमें बढ़ोतरी हुई है।
इलाज के मामले में भी भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। 2023 में सरकार ने 95% टी बी रोगियों का इलाज शुरू करने का लक्ष्य पूरा कर लिया। सरकारी अस्पतालों में टी बी का इलाज और दवाइयाँ मुफ़्त दी जा रही हैं। मरीजों को पोषण सहायता योजना के तहत आर्थिक मदद भी दी जा रही है, ताकि वे उचित आहार ले सकें और जल्दी ठीक हो सकें।
भारत सरकार टी बी को खत्म करने के लिए कई कदम उठा रही है। राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के तहत 2025 तक टी बी को पूरी तरह मिटाने का लक्ष्य रखा गया है। निजी डॉक्टरों और अस्पतालों को भी जागरूक किया जा रहा है, ताकि वे टी बी के मरीजों की सही रिपोर्टिंग करें और उन्हें उचित इलाज मिले। सरकारी सेवाओं के ज़रिए टी बी की मुफ़्त जाँच और इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। जागरूकता बढ़ाने के लिए कई अभियान भी चलाए जा रहे हैं, ताकि लोग समय पर अपनी जाँच करा सकें और इस बीमारी से बचाव कर सकें।
टी बी के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे इन प्रयासों से इसके मामलों और मौतों में कमी आई है, लेकिन संक्रमण अभी भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। अगर किसी को लगातार खाँसी, बुखार, रात में पसीना आना या वज़न कम होने जैसी समस्याएँ हों, तो उसे तुरंत डॉक्टर से जाँच करानी चाहिए। सही समय पर इलाज मिलने से यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है और इसके फैलने से भी रोका जा सकता है।
टी बी का इलाज –
सक्रिय टी बी (Active TB) का इलाज आमतौर पर चार, छह या नौ महीने तक किया जाता है। टी बी विशेषज्ञ यह तय करते हैं कि मरीज़ के लिए कौन-सी दवाइयाँ सबसे उपयुक्त होंगी। यह बहुत ज़रूरी है कि मरीज़ हर खुराक सही समय पर ले और पूरा कोर्स पूरा करे। इससे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म हो जाते हैं और दवाइयों के प्रति प्रतिरोधी (Drug-Resistant) नए बैक्टीरिया बनने से रोका जा सकता है।
स्वास्थ्य विभाग कई बार डायरेक्टली ऑब्ज़र्व्ड थेरेपी (Directly Observed Therapy) नामक कार्यक्रम का उपयोग करता है। इस पद्धति में एक स्वास्थ्यकर्मी मरीज़ के घर जाकर उसे दवाइयाँ लेने के लिए प्रेरित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि मरीज़ सही तरीके से दवा ले रहा है।
टी बी के इलाज में उपयोग होने वाली आम दवाइयाँ –
यदि मरीज़ को लेटेंट टी बी (Latent TB) है, तो उसे एक या दो प्रकार की दवाइयाँ लेने की ज़रूरत पड़ सकती है। लेकिन सक्रिय टी बी के इलाज के लिए कई दवाइयों का सेवन करना ज़रूरी होता है। टी बी के इलाज में आमतौर पर उपयोग होने वाली दवाइयाँ इस प्रकार हैं –
- आइसोनियाज़िड (Isoniazid)
- रिफैम्पिन (Rifampin - Rimactane)
- रिफाब्यूटिन (Rifabutin - Mycobutin)
- रिफापेंटाइन (Rifapentine - Priftin)
- पाइराज़िनामाइड (Pyrazinamide)
- एथैम्बूटोल (Ethambutol - Myambutol)
अगर मरीज़ को ड्रग-रेसिस्टेंट टी बी (Drug-Resistant TB) या किसी अन्य जटिलता से ग्रस्त टी बी है, तो डॉक्टर अन्य दवाइयाँ भी लिख सकते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में तपेदिक रोगी का स्रोत : Wikimedia
शेर-ओ-शायरी के शौक़ीन रामपुर वासियों के लिए अमीर ख़ुसरो ने छोड़ी अनमोल विरासत!
मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक
Early Medieval:1000 CE to 1450 CE
05-05-2025 09:25 AM
Rampur-Hindi

रामपुर की गलियों में गूंजते शेर-ओ-शायरी के तराने इसकी काव्यात्मक विरासत की झलक पेश करते हैं। यह वह सरज़मीं है, जहां निज़ाम रामपुरी, क़ाएम चाँदपुरी, मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल, जावेद कमाल रामपुरी, क़ाबिल अजमेरी, रसा रामपुरी, शाद आरफ़ी, रशीद रामपुरी, सौलत अली ख़ाँ रामपुरी और सीन शीन आलम जैसे बेहतरीन शायरों ने अपने लफ़्ज़ों से इतिहास को सजाया। नवाब रज़ा अली ख़ान न सिर्फ़ रामपुर के शासक थे, बल्कि ख़ुद भी एक उम्दा कवि और कलाकार थे। मिर्ज़ा ग़ालिब के नवाबों से क़रीबी रिश्ते थे और वे लंबे समय तक रामपुर में रहे। यही वजह थी कि यह इलाक़ा धीरे-धीरे विद्वानों, बुद्धिजीवियों और महान कवियों का केंद्र बन गया।
लेकिन इस समृद्ध शायरी की रवायत में अमीर ख़ुसरो का नाम सबसे पहले गूंजता है। उनकी रचनाएँ रामपुर की हवाओं में आज भी महसूस की जा सकती हैं। वे केवल एक कवि नहीं, बल्कि शब्दों के ऐसे जादूगर थे, जिन्होंने साहित्य को नई ऊँचाइयाँ दीं। फ़ारसी, हिंदवी और अरबी जैसी भाषाओं में उन्होंने प्रेम, भक्ति और जीवन के गहरे भावों को सरल लेकिन प्रभावी अंदाज़ में व्यक्त किया। ग़ज़ल और ख़याल जैसी काव्य शैलियों को जन्म देकर उन्होंने कविता की दुनिया में एक नया अध्याय जोड़ा।
उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ—तुफ़हत-उल-सिग़र, वस्त-उल-हयात, नुह-सिपिह़र और ख़ज़ाइन-उल-फुतूह—आज भी साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं। इसलिए आज के इस लेख में हम जानेंगे कि अमीर ख़ुसरो ने भारतीय फ़ारसी साहित्य को कैसे समृद्ध किया और उनकी कविताओं व गद्य पर उनकी छाप कैसी रही। फिर हम उनकी प्रसिद्ध कृति नुह-सिपिह़र की गहराइयों में उतरेंगे और इसके विषयों व सांस्कृतिक महत्व को समझेंगे। अंत में, हम उनकी प्रमुख पुस्तकों पर एक नज़र डालेंगे और देखेंगे कि उनकी लेखनी आज भी साहित्यिक जगत में कैसे जीवंत बनी हुई है।
1253 में पटियाली (ज़िला कासगंज, उत्तर प्रदेश) की ज़मीन पर अमीर ख़ुसरो नाम का एक ऐसा सितारा जन्मा, जिसने साहित्य और संगीत की दुनिया को नई रोशनी दी। उनके पिता दिल्ली सल्तनत में एक तुर्की अधिकारी थे, जिन्होंने उन्हें धर्मशास्त्र, फ़ारसी भाषा और क़ुरान की गहरी शिक्षा दिलाई, जबकि उनकी माँ हिंदुस्तानी मूल की थीं। इस दोहरी सांस्कृतिक विरासत ने ख़ुसरो को भारतीय लोकभाषाओं और परंपराओं के प्रति गहरा लगाव दिया, जिसने उनकी लेखनी को एक अनूठी पहचान दी।
अमीर ख़ुसरो भारतीय फ़ारसी साहित्य के सबसे प्रभावशाली स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनकी रचनाएँ केवल साहित्यिक धरोहर नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का अनमोल हिस्सा हैं। वे न केवल एक महान कवि थे, बल्कि एक संगीतकार और विद्वान भी थे, जिन्होंने फ़ारसी साहित्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनकी लेखनी ने फ़ारसी भाषा को नई ऊँचाइयाँ दीं और भारतीय उपमहाद्वीप में इसके विकास को गति प्रदान की।
ख़ुसरो की कविताएँ उनकी गहरी सोच, वाक्पटुता और साहित्यिक कौशल की गवाही देती हैं। वे केवल शब्दों के जादूगर नहीं थे, बल्कि उन्होंने फ़ारसी भाषा को नए आयाम दिए, जिसे आने वाली पीढ़ियों ने संजोकर रखा। उनकी रचनाएँ सदियों से गूंज रही हैं! भारतीय फ़ारसी साहित्य को नया स्वरूप देने में उन्होंने क्रांतिकारी भूमिका निभाई।
अमीर ख़ुसरो केवल कवि नहीं थे, वे कविता, संगीत, रहस्यवाद और विद्वत्ता का संगम थे। उनका प्रभाव दक्षिण एशिया की सांस्कृतिक विरासत पर अमिट है। तेरहवीं सदी के इस महान साहित्यकार की विरासत आज भी न केवल जीवंत है, बल्कि भारतीय कला, साहित्य और संगीत को दिशा देने का काम कर रही है।
आइए अब विभिन्न क्षेत्रों में अमीर ख़ुसरो के बहुमूल्य योगदान पर एक नज़र डालते हैं:
- कविता और साहित्य: अमीर ख़ुसरो की लेखनी को फ़ारसी और हिंदवी (जो बाद में हिंदी के रूप में विकसित हुई) दोनों भाषाओं में एक अमूल्य धरोहर माना जाता है। उनकी "ख़मसा"—पाँच महाकाव्यों का संग्रह—उनकी कहानी कहने की विलक्षण कला को दर्शाता है। उनकी ग़ज़लें और क़व्वालियाँ केवल साहित्यिक धरोहर नहीं, बल्कि संगीत और भक्ति परंपरा में भी विशेष स्थान रखती हैं। उनकी रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रभावशाली हैं, जितनी उनके समय में थीं।
- सांस्कृतिक सेतु: अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ भाषाई और सांस्कृतिक सीमाओं से परे जाकर एक अनूठी विरासत स्थापित करती हैं। उन्होंने फ़ारसी और भारतीय परंपराओं को इस तरह पिरोया कि उनकी कृतियाँ हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदायों को समान रूप से प्रेरित कर सकीं। उनकी कविताओं में न केवल प्रेम और भक्ति की गहराई थी, बल्कि उन्होंने समाज को जोड़ने का काम भी किया।
- "नुह-सिपिह़र"—अमीर ख़ुसरो का ज्ञानकोश: 1318 में लिखी गई "नुह-सिपिह़र", जिसका अर्थ "नौ स्वर्ग" होता है, अमीर ख़ुसरो की परिपक्वता और गहरी अंतर्दृष्टि का प्रमाण है। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में लिखी गई इस रचना में उन्होंने क़ुतुबुद्दीन मुबारक शाह के शासनकाल का विस्तृत वर्णन किया है, जिसे उन्होंने स्वयं नज़दीक से देखा था।
इस ग्रंथ को एक विश्वकोश की तरह देखा जाता है, जिसमें उस समय के भारत का व्यापक चित्रण मिलता है। इसमें अमीर ख़ुसरो ने पक्षियों, जानवरों, फूलों, पेड़ों, लोगों, संस्कृति, धर्म, भाषाओं और रीति-रिवाजों के बारे में विस्तार से लिखा है। उनके सूफ़ी दृष्टिकोण ने उन्हें भारत के हर पहलू को गहराई से समझने और सराहने की प्रेरणा दी। यही कारण है कि उन्होंने हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं की भी सराहना की।
इस किताब का अंग्रेज़ी अनुवाद आर. नाथ और फ़ैज़ 'ग्वालियरी' ने किया है, जिसका शीर्षक "इंडिया ऐज़ सीन बाय अमीर ख़ुसरो (India as Seen by Amir Khusro)" है।
- अमीर ख़ुसरो की प्रमुख रचनाएँ:
- क़िरान-उस-सादैन – ऐतिहासिक मसनवी
- दीवान-उल-फुतुह – जलालुद्दीन खिलजी के सैन्य अभियानों का विवरण
- दीवान रानी और ख़िज्र ख़ान – प्रेम कथा
- नुह-सिपिह़र – राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का वर्णन
- ख़ज़ाइन-उल-फुतूह – गद्य में अलाउद्दीन खिलजी की शासन-नीति
- तुगलक़नामा – ऐतिहासिक मसनवी
अमीर ख़ुसरो की ये रचनाएँ न केवल ऐतिहासिक महत्व रखती हैं, बल्कि उनके साहित्यिक कौशल को भी दर्शाती हैं। उनकी लेखनी ने भारतीय उपमहाद्वीप के साहित्य और इतिहास को समृद्ध किया। लफ्ज़ों और सुरों के जादूगर, अमीर ख़ुसरो, पहले ऐसे कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों को अपनी शायरी में खुलकर अपनाया। वे केवल एक लेखक नहीं, बल्कि भाषाओं के संगम के प्रतीक थे! हिंदी, हिंदवी और फ़ारसी में उन्होंने समान अधिकार से लेखन किया। खड़ी बोली के जन्मदाता माने जाने वाले ख़ुसरो की पहेलियाँ और मुकरी आज भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने न केवल भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया, बल्कि उससे प्रेरणा भी ली।
एक बार अपने आध्यात्मिक गुरु, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया को प्रसन्न करने के लिए अमीर ख़ुसरो ने ‘सकल बन’ नामक एक कृति की रचना की थी! आज ‘सकल बन’ सिर्फ़ एक गीत नहीं, बल्कि भक्ति और भावनाओं की अमूल्य विरासत माना जाता है।
कहते हैं, जब हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया अपने भतीजे ख्वाजा तकीउद्दीन नूह के निधन के शोक में डूबे थे, तो उनके अनुयायी उन्हें मुस्कुराते देखने के लिए व्याकुल थे। इसी दौरान, ख़ुसरो ने बसंत पंचमी पर हिंदू महिलाओं को पीले वस्त्र धारण कर, सरसों के फूल चढ़ाते देखा। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि यह भगवान को प्रसन्न करने की एक परंपरा है, तो उन्होंने भी वही किया! वह भी पीले वस्त्र पहने, फूल लिए और ‘सकल बन’ गाते हुए अपने गुरु के सामने पहुंचे। यह देख हज़रत मुस्कुरा उठे। तभी से दरगाह में बसंत पंचमी मनाने की परंपरा शुरू हुई, जहाँ भक्त आज भी पीले वस्त्र पहनकर कव्वाली गाते हैं।
आज, ‘सकल बन’ एक बार फिर संजय लीला भंसाली की ‘हीरामंडी’ में एक गीत के रूप में जीवंत हुआ है। यह गीत केवल धुनों का मेल नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों के संगम, धार्मिक सहिष्णुता और कालातीत कला का प्रतीक है। अमीर ख़ुसरो की विरासत उनकी कविताओं, संगीत और सूफ़ी प्रेम में जीवित है, जो आने वाली पीढ़ियों को जोड़ती रहेगी।
संदर्भ
मुख्य चित्र में अमीर ख़ुसरों की तस्वीर का स्रोत : Wikimedia, Pick-Pik
रामपुर, इस रविवार देखिए, रबींद्रनाथ टैगोर के नाटकों व उपन्यासों पर आधारित चलचित्रों को
ध्वनि 2- भाषायें
Sound II - Languages
04-05-2025 09:12 AM
Rampur-Hindi

रामपुर वासियों, हमारे समाज की शान – श्री रबींद्रनाथ टैगोर, न केवल एक कवि और गीतकार थे, बल्कि एक शानदार उपन्यासकार और नाटककार भी थे। उनके साहित्यिक कृतियों में "गोरा," "चोखेर बाली," और "द होम एंड द वर्ल्ड (The Home and the World)" जैसे प्रसिद्ध उपन्यास शामिल हैं, जो गहरे सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं को उजागर करते हैं। उनके लेखन में अक्सर हमारी सांस्कृतिक पहचान, महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता जैसे मुद्दों के बारे में बात की जाती थी। टैगोर ने कई नाटक, जैसे कि – "डाक घर", "चंडालिका", आदि लिखे हैं। आज, कुछ सुहाने चलचित्रों की एक श्रृंखला के माध्यम से, हम रबींद्रनाथ टैगोर जी के कुछ सबसे उल्लेखनीय उपन्यासों एवं नाटकों का पता लगाएंगे। हम “चंडालिका” नाटक के वीडियो के साथ, लेख की शुरुआत करेंगे। फिर, हम उनके प्रसिद्ध उपन्यास – “द होम एंड द वर्ल्ड” पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम “गोरा” नामक उनके अन्य महान उपन्यास में आपको अंतर्दृष्टि प्रदान करेंगे।
टैगोर के साहित्यिक कार्य -
रबीन्द्रनाथ टैगोर के साहित्यिक कार्य, कविता, गद्य, कथा, नाटक और गीतों सहित एक विशाल और विविध श्रेणियों की शैलियों से पूर्ण हैं। उनका रचनात्मक कार्य, अपनी गहन दार्शनिक अंतर्दृष्टि, भावनात्मक गहराई और मानवीय अनुभवों के अभिनव अन्वेषण के लिए पढ़ा जाता है।
उनके उपन्यास, मनोवैज्ञानिक गहराई और जटिल चरित्र अध्ययनों के लिए जाने जाते हैं। "गोरा" और "द होम एंड द वर्ल्ड” जैसे कार्य, सामाजिक और राजनीतिक गतिशीलता को बदलने के संदर्भ में, पहचान, राष्ट्रवाद और प्रेम के जटिल विषयों का पता लगाते हैं।
एक तरफ़, उनके नाटक सामाजिक मानदंडों, रिश्तों और दार्शनिक दुविधाओं की खोज के लिए उल्लेखनीय हैं। "चित्रा," "राजा", और "डाक घर", उनके कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं, जो एक लेखक के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा को उजागर करते हैं।
रबींद्रनाथ टैगोर के प्रसिद्ध नाटक – चंडालिका के बारे में, आप ऊपर दी गई चलचित्र के माध्यम से जान सकते हैं।
उनका अन्य नाटक – डाकघर, एक अन्य लोकप्रिय नाटक है, जिस पर आधारित वीडियो, आप निम्नलिखित लिंक के उपयोग से देख सकते हैं।
इसके अलावा, नीचे दिया गया चलचित्र आपको, ‘घर और विश्व(द होम एंड द वर्ल्ड)’ इस उपन्यास के बारे में जानकारी प्रदान करेगी।
साथ ही, अगर आपको रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित – गोरा उपन्यास के बारे में अधिक जानना हैं, तो नीचे प्रस्तुत चलचित्र का प्रयोग करें।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yv6zcwaf
https://tinyurl.com/3fyvhntj
https://tinyurl.com/5x5dbrcx
https://tinyurl.com/hb87dbbp
https://tinyurl.com/56xmtyjn
रामपुरवासियों, पारंपरिक और डिजिटल मीडिया की समझ ही बचा सकती है आपको भ्रामक सूचनाओं से!
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
03-05-2025 09:15 AM
Rampur-Hindi

बदलते समय के साथ रामपुर की सरज़मीं पर पत्रकारिता का स्वरूप भी निरंतर बदल रहा है। पहले दौर में ख़बरें गली-चौपालों या अख़बारों के ज़रिए लोगों तक पहुँचती थीं, जिसमें कभी-कभी घंटों या पूरा दिन लग जाता था। लेकिन डिजिटल क्रांति के बाद अब किसी भी ख़बर को धरती के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँचने में केवल चंद सेकंड लगते हैं। रामपुर के बाज़ारों, गलियों और कॉफ़ी हाउसों में लोग अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही ख़बरों पर चर्चा करते दिखाई देते हैं। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म, सोशल मीडिया और तुरंत अपडेट के दौर में अब ख़बरें सिर्फ़ महानगरों तक सीमित नहीं हैं। रामपुर जैसे शहरों में भी लोग ट्विटर (अब X.com) और फेसबुक (Facebook) पर ब्रेकिंग न्यूज़ (Breaking News) से जुड़े रहते हैं। पारंपरिक अख़बार और टीवी चैनल भी अब डिजिटल रिपोर्टिंग (digital reporting) के ज़रिए रियल-टाइम कवरेज (real-time coverage) और इंटरैक्टिव कंटेंट परोसने लगे हैं। हालांकि, इस डिजिटल युग में भ्रामक सूचनाओं (Fake News) का ख़तरा भी बढ़ गया है। ऐसे में रामपुर के लोगों को ख़बर शेयर करने से पहले उस ख़बर के स्रोत की अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल करने की आदत डालनी चाहिए।
इसी मुद्दे को संबोधित करते हुए आज के इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे डिजिटल युग ने रामपुर सहित पूरे देश में पत्रकारिता का चेहरा बदल दिया है। इसके बाद हम नए मीडिया के विकास, उसकी ताक़त और चुनौतियों पर नज़र डालेंगे। अंत में, हम डिजिटल और पारंपरिक मीडिया के प्रभाव का आकलन करते हुए यह समझेंगे कि इसका पत्रकारिता और पाठकों की सहभागिता पर क्या असर हो रहा है।
चलिए सबसे पहले जानने की कोशिश करते हैं कि डिजिटल युग में पत्रकारिता कितनी बदल गई है?
पिछले कुछ दशकों में पत्रकारिता के क्षेत्र में ज़बरदस्त बदलाव देखा गया है। पहले के समय में पत्रकारों का मुख्य उद्देश्य तथ्यों को निष्पक्ष तरीके से पेश करना होता था। वे स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग करते थे और अपनी राय को ख़बरों से अलग रखते थे। लेकिन आज के समय में तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते चलन के साथ ही पत्रकारिता का दायरा भी क़ाफ़ी बढ़ गया है। आज केवल बड़े मीडिया हाउस ही नहीं, बल्कि आम लोग भी ख़बरें साझा कर रहे हैं। नागरिक पत्रकारिता (Citizen Journalism) ने आम लोगों को भी रिपोर्टर (reporter) बना दिया है। लोग घटनाओं की लाइव रिपोर्टिंग (live reporting) करते हैं, वीडियो अपलोड करते हैं और अपनी राय खुलकर व्यक्त करते हैं। एक दशक पहले तक हमारे पास ख़बरों तक पहुचने के लिए केवल पारंपरिक मीडिया ही एक माध्यम हुआ करता था, लेकिन बदलते दौर के साथ आज, डिजिटल मीडिया इसे कड़ी टक्कर दे रहा है!
आइए अब स्पष्ट रूप से समझने की कोशिश करते हैं कि पारंपरिक मीडिया और डिजिटल मीडिया में क्या अंतर है?
पारंपरिक मीडिया क्या है?
पारंपरिक मीडिया उन विज्ञापन और मार्केटिंग तरीकों को कहा जाता है, जिनका इस्तेमाल कई दशकों से हो रहा है। इसके ज़रिए कंपनियाँ संभावित ग्राहकों तक पहुँचती हैं। इसमें शामिल हैं:
- टेलीविज़न विज्ञापन
- रेडियो प्रचार
- प्रिंट मीडिया (अख़बार, पत्रिकाएँ, पोस्टर आदि)
पारंपरिक मीडिया मुख्य रूप से ऑफ़लाइन होता है और बिना इंटरनेट के ज़्यादा लोगों तक पहुँचता है। यह गाँव, कस्बों और उन इलाकों में भी कारगर होता है, जहाँ इंटरनेट की सुविधा सीमित होती है।
चित्र डिजिटल मीडिया क्या है?
डिजिटल मीडिया, को "न्यू मीडिया (New Media)" भी कहा जाता है! इसके तहत इंटरनेट के ज़रिए जानकारी प्रसारित की जाती है। इसमें शामिल हैं:
- सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म (फेसबुक, इंस्टाग्राम, X, यूट्यूब)
- ईमेल मार्केटिंग
- वेबसाइट और ऑनलाइन विज्ञापन
डिजिटल मीडिया तेज़, इंटरैक्टिव और ग्लोबल होता है। इसमें मिनटों में दुनिया भर में जानकारी पहुँचाने क्षमता होती है।
डिजिटल मीडिया और पारंपरिक मीडिया में कुछ प्रमुख अंतर निम्नवत दिए गए हैं:
- लागत-प्रभावशीलता: डिजिटल मीडिया, पारंपरिक मीडिया के मुक़ाबले किफ़ायती साबित होती है। एक ओर जहाँ ऑनलाइन विज्ञापन कम बजट में लाखों लोगों तक पहुँच सकता है। वहीं, टीवी या प्रिंट विज्ञापन महंगे होते हैं और सीमित लोगों तक पहुँचते हैं।
- इंटरैक्टिविटी और जुड़ाव: डिजिटल मीडिया में उपभोक्ता सीधे प्रतिक्रिया दे सकते हैं। सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट और शेयर के ज़रिया ब्रांड और ग्राहकों का सीधा जुड़ाव बनता है।
वहीं, पारंपरिक मीडिया एकतरफ़ा होता है। दर्शक या पाठक तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दे सकते।
- डेटा सटीकता: डिजिटल मीडिया में डेटा को ट्रैक करना आसान होता है। पारंपरिक मीडिया में ऐसा सटीक डेटा मिलना मुश्किल होता है। डिजिटल मीडिया के तहत आप जान सकते हैं:
- कितने लोगों ने विज्ञापन देखा।
- कितनों ने क्लिक किया।
- कितनों ने ख़रीदारी की।
- उपभोक्ता विश्वास: डिजिटल मीडिया पर लोग ब्रांड के बारे में आसानी से जानकारी हासिल कर सकते हैं। ऑनलाइन समीक्षाएँ (reviews) पढ़कर ग्राहक फ़ैसला लेते हैं, जिससे ब्रांड में भरोसा बढ़ता है। पारंपरिक मीडिया में ग्राहकों को फ़ौरन प्रतिक्रिया देने का मौका नहीं मिलता, जिससे भरोसा बनाने में ज़्यादा समय लगता है।
- पहुँच: पारंपरिक मीडिया की पहुँच अक्सर स्थानीय स्तर तक ही होती है। यह उन इलाकों (जैसे गाँव या छोटे शहरों) में असरदार हो सकता है, जहाँ अभी भी इंटरनेट नहीं पंहुचा है। वहीं, डिजिटल मीडिया की पहुँच पूरी दुनियां में होती है। कंपनियाँ दुनिया भर में अपने उत्पाद या सेवाएँ प्रमोट कर सकती हैं।
- फ़ीडबैक और एनालिटिक्स: डिजिटल मीडिया में फ़ीडबैक तुरंत मिलता है। कंपनियाँ लाइक, शेयर, कमेंट और रिव्यू के ज़रिया तुरंत ग्राहकों की राय जान सकती हैं। पारंपरिक मीडिया में सर्वे या ग्राहक कॉल्स के ज़रिया फ़ीडबैक धीरे-धीरे आता है।
आज लोग ख़बरें देखने, पढ़ने और साझा करने के लिए नए और आसान तरीके अपना रहे हैं। इस बदलाव ने न सिर्फ़ मीडिया सामग्री बनाने का तरीका बदला, बल्कि उसे उपभोग करने के तरीके को भी पूरी तरह से बदल दिया है। फेसबुक (Facebook) (2004), यूट्यूब (YouTube) (2005), ट्विटर (अब X.com) (2006) और टम्बलर (Tumblr) (2007) जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स ने रिपोर्टिंग के मायने ही बदल दिए। पहले ख़बरें सिर्फ़ बड़े मीडिया हाउस तक सीमित थीं, लेकिन अब आम लोग भी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। इससे नागरिक पत्रकारिता को बढ़ावा मिला।
लोग अब अपनी आवाज़ सोशल मीडिया पर उठा रहे हैं, जिससे दर्शकों की भागीदारी पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है। 2001 में इंस्टेंट मैसेजिंग (instant messaging) सेवाओं के आने से पत्रकारों का काम क़ाफ़ी आसान हो गया। अब लोग रियल-टाइम (real-time) में संवाद कर सकते हैं, जिससे ख़बरें तेज़ी से फैलती हैं। इसके अलावा, पत्रकारों और दर्शकों के बीच संवाद भी बेहतर हुआ है, जिससे सूचना का आदान-प्रदान अधिक प्रभावी हो गया है।
2002 में सैटेलाइट रेडियो की शुरुआत ने ऑडियो पत्रकारिता का दायरा बढ़ा दिया। अब लोग कहीं भी और कभी भी ऑडियो न्यूज़ सुन सकते हैं। यह ख़बरें पहुंचाने का एक नया और प्रभावी माध्यम बन गया। 2010 में इंस्टाग्राम (Instagram) जैसे फ़ोटो-शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म (photo sharing platform) के आने के बाद पत्रकारों को विज़ुअल स्टोरीटेलिंग (visual story telling) का एक नया ज़रिया मिला। अब ख़बरें सिर्फ़ टेक्स्ट (text) तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि तसवी़रों और वीडियो के ज़रिया ज़्यादा आकर्षक और प्रभावी तरीके से बताई जाने लगीं। डिजिटल क्रांति ने पत्रकारिता को पूरी तरह से बदल दिया है। अब ख़बरें रियल-टाइम में रिपोर्ट होती हैं। इंटरैक्टिव स्टोरीटेलिंग (interactive story telling) के ज़रिया ख़बरों को दर्शकों के लिए और दिलचस्प बनाया जा रहा है।
आने वाले वर्षों में तकनीक और दर्शकों की बदलती पसंद के अनुसार पत्रकारिता भी आगे बढ़ेगी। पत्रकारों को प्रासंगिक बने रहने के लिए नई तकनीकों को अपनाना होगा। हालांकि, इसके साथ ही कई चुनौतियाँ भी हमारे समक्ष खड़ी हुई हैं। आज ख़बरों के नाम पर लोग कई बार अपने हित में एजेंडा भी चलाते हैं। इंटरनेट पर जानबूझकर भ्रामक या पक्षपाती जानकारी फैलाई जाती है। इंटरनेट ने किसी को भी लेखक बनने की ताक़त दे दी है। कोई भी व्यक्ति ब्लॉग या सोशल मीडिया पोस्ट लिखकर दुनिया भर में अपनी राय पहुँचा सकता है। कई बार ये बातें बिना तथ्य-जांच के वायरल हो जाती हैं, जिससे अफ़वाहें और ग़लत जानकारी फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है। इसके साथ ही डिजिटल युग ने पत्रकारों के काम को और मुश्किल बना दिया है। अब उन्हें तेज़ी से बदलते न्यूज़ साइकल के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है। लोगों तक सबसे पहले ख़बर पहुँचाने की होड़ में कई बार रिपोर्टिंग की गहराई और तथ्य-जांच से समझौता हो जाता है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में पत्रकारिता में प्रस्तुति देते हुए गोवा विश्वविद्यालय के छात्र का स्रोत : Wikimedia
नेत्रहीन सूरदास की अमर रचनाएँ, रामपुर के कृष्ण भक्तों को करती हैं भावुक!
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
02-05-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi

हरि पालनैं झुलावै
जसोदा हरि पालनैं झुलावै
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै
मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै
रामपुर की एक शांत दोपहर, मंदिर के प्रांगण से सूरदास के भक्ति गीतों की मधुर धुनें गूंज रही थीं। श्रद्धालु भाव-विभोर होकर कृष्ण के प्रेम में डूबे हुए थे। किसी की आँखें नम थीं, तो कोई मंत्रमुग्ध होकर उन छंदों में खो गया था। न सिर्फ़ रामपुर बल्कि भारत के अधिकांश कृष्ण मंदिरों में ऐसा ही भक्तिमय नज़ारा देखने को मिलता है। सूरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं, राधा के प्रति उनके प्रेम और उनके दिव्य नाटकों को अमर बना दिया। उनके गीत ब्रज और अवधी भाषा में रचे गए हैं, जो प्रेम, भक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण को इतने भावपूर्ण तरीके से व्यक्त करते हैं कि वे श्रोताओं को भाव विभोर कर देते हैं। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में सूर सागर का विशेष स्थान है। इसमें कृष्ण की बाल सुलभ शरारतों, राधा-कृष्ण के मधुर प्रेम और ईश्वरीय ज्ञान का जीवंत चित्रण मिलता है। उनकी कविताओं में सिर्फ़ भक्ति रस ही नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक संदेश भी निहित हैं, जो उन्हें कालजयी बनाते हैं। आज सूरदास जयंती भी है, इसलिए इस अवसर पर हम उनके जीवन, उनकी कृष्ण भक्ति और साहित्यिक योगदान को विस्तार से जानेंगे। हम उनके काव्य की शैली, उसमें इस्तेमाल की गई तकनीकों और भावनात्मक गहराई को समझने का प्रयास करेंगे। साथ ही, यह भी देखेंगे कि उनकी रचनाओं ने भारतीय साहित्य और संस्कृति को किस तरह समृद्ध किया।
सूरदास 16वीं सदी के एक प्रसिद्ध भक्ति कवि और गायक थे, जिनकी रचनाओं में भगवान कृष्ण के प्रति अपार प्रेम और समर्पण झलकता है। उनकी कविताएँ श्री कृष्ण के बाल रूप, उनकी चंचल शरारतों और राधा-कृष्ण के मधुर प्रेम का जीवंत चित्रण करती हैं। सूरदास की ज़्यादातर रचनाएँ ब्रज भाषा में लिखी गई हैं, जो उस समय कृष्ण भक्ति का प्रमुख माध्यम थी। हालाँकि, कुछ रचनाएँ अवधी और अन्य मध्यकालीन हिंदी बोलियों में भी मिलती हैं।
सूरदास नाम का अर्थ "सूर्य का सेवक" होता है। उन्हें ब्रज भाषा काव्य परंपरा का शिखर माना जाता है। ब्रज भाषा, ब्रज क्षेत्र से जुड़ी है, जहाँ कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था। उनकी कविताएँ न सिर्फ़ भक्ति रस में सराबोर हैं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं और प्रेम का भी सुंदर चित्रण करती हैं। सूरदास की रचनाओं में कृष्ण की बाल लीलाओं का मोहक वर्णन मिलता है। उनकी बाल सुलभ शरारतें, गोपियों संग रासलीला और राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंग को सूरदास ने बड़े ही भावपूर्ण अंदाज में प्रस्तुत किया है। उनकी कविताएँ शब्दों के माध्यम से कृष्ण की दिव्य लीलाओं को अमर कर देती हैं।
संत नाभा दास ने "भक्तमाल" में सूरदास की कविताओं की ख़ूब प्रशंसा की है। उन्होंने विशेष रूप से सूरदास की उस अद्भुत कला का उल्लेख किया है, जिसमें वे "हरि की चंचल हरकतों" को बड़ी सुंदरता से शब्दों में ढालते हैं।
हालाँकि सूरदास की अधिकांश रचनाएँ भगवान कृष्ण पर केंद्रित हैं, लेकिन उन्होंने भगवान राम और माता सीता पर भी कृतियाँ रची हैं। फिर भी, उनकी ख़्याति मुख्य रूप से कृष्ण भक्ति कविताओं के कारण ही हुई। सूरदास की रचनाएँ भक्ति रस में डूबी होने के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं, प्रेम और ईश्वर के प्रति समर्पण की गहराई को दर्शाती हैं। यही कारण है कि उनकी कविताएँ आज भी लोगों के हृदय को भाव-विभोर कर देती हैं।
आइए अब आपको सूरदास की सबसे प्रसिद्ध कृति "सूर सागर" से परिचित कराते हैं:
सूरदास हिंदी साहित्य के एक अमूल्य रत्न हैं, जिनकी रचनाएँ आज भी प्रेम और भक्ति का जीवंत प्रतीक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति "सूर सागर" है, जिसे "सूरदास के पद" भी कहा जाता है। यह भगवान कृष्ण को समर्पित लगभग 1,00,000 छंदों का विशाल संग्रह है। इन छंदों में प्रेम और भक्ति की सुंदरतम अभिव्यक्ति देखने को मिलती है, जो हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है।
इन छंदों की ख़ूबियों में शामिल हैं:
- भाषा और शैली: सूरदास ने अपनी रचनाएँ मुख्य रूप से ब्रज भाषा में लिखीं, जो उस समय आम लोगों की भाषा थी। इसी कारण उनकी कविताएँ जन-जन तक आसानी से पहुँच गईं और लोगों के दिलों में बस गईं।
- कृष्ण भक्ति का दिव्य चित्रण: सूरदास की कविताओं में भगवान कृष्ण के जीवन, उनके दिव्य प्रेम और उनके भक्तों की भक्ति का अनूठा चित्रण मिलता है। उनके छंदों में राधा और कृष्ण के पवित्र प्रेम को ख़ास स्थान दिया गया है। सूरदास ने उनके रिश्ते को केवल लौकिक प्रेम नहीं, बल्कि आध्यात्मिक मिलन का प्रतीक माना है, जिससे उनकी कविताएँ और भी भावपूर्ण हो जाती हैं।
सूरदास ने भारतीय त्योहार होली पर भी ख़ूबसूरत रचनाएँ कीं। उनकी प्रसिद्ध कृति "सूर-सारावली" में भगवान कृष्ण को परम सृष्टिकर्ता के रूप में दर्शाया गया है। इस रचना में होली के रंगों में सजीव भक्ति और उत्साह का सुंदर वर्णन मिलता है। इसके अलावा उनकी एक अन्य महत्वपूर्ण रचना "साहित्य लहरी" है, जिसमें सूरदास ने भगवान के प्रति अपनी गहरी भक्ति और समर्पण को व्यक्त किया है। सूरदास की कविताएँ केवल भक्ति का ही नहीं, बल्कि मानवीय भावनाओं और प्रेम का भी सजीव चित्रण करती हैं। यही कारण है कि उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों के हृदय को छू जाती हैं और उन्हें भक्ति और प्रेम में सराबोर कर देती हैं।
सूरदास की रचनाएँ उनकी अद्भुत साहित्यिक प्रतिभा का प्रमाण हैं। वे भावनाओं को इतने सहज और गहरे छंदों में पिरोते थे कि उनकी कविताएँ पढ़ते ही मन भक्तिरस से सराबोर हो जाता है।
सूरदास की रचनाएँ केवल भगवान कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन नहीं करतीं, बल्कि वे भक्त और भगवान के गहरे रिश्ते को भी जीवंत कर देती हैं। उनकी कविताओं में कृष्ण की बाल सुलभ चंचलता, यशोदा का वात्सल्य, गोपियों का प्रेम और उद्धव का ज्ञान – सब कुछ इतनी आत्मीयता से रचा गया है कि पाठक कृष्ण को मानो साक्षात अनुभव करने लगता है।
सूरदास की साहित्यिक शैली की विशेषताएँ निम्नवत दी गई हैं:
भाषा: सूरदास ने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा का प्रयोग किया, जो उस समय की लोकभाषा थी। इससे उनकी कविताएँ लोगों के दिल तक पहुँचीं और अमर हो गईं।
रूपकों का प्रभावशाली उपयोग: आध्यात्मिक भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उन्होंने रूपकों और प्रतीकों का सुंदर प्रयोग किया। कृष्ण और गोपियों का प्रेम, आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक बन जाता है।
भावनात्मक गहराई: उनकी कविताएँ प्रेम, विरह, भक्ति और वात्सल्य से सराबोर हैं। वे मानवीय भावनाओं को इतनी आत्मीयता से व्यक्त करते हैं कि पाठक भावविभोर हो जाता है।
दार्शनिकता का सहज रूप: सूरदास ने गहन दार्शनिक सत्य को भी सरल भाषा में प्रस्तुत किया, जिससे साधारण व्यक्ति भी इसे आसानी से समझ सकता है।
सूरदास की कविताएँ केवल ईश्वर की महिमा का गुणगान नहीं करतीं, बल्कि मानवीय भावनाओं को भी बड़ी आत्मीयता से दर्शाती हैं। उनकी रचनाओं में भक्ति, प्रेम और जीवन का गहरा दार्शनिक संदेश छिपा है, जो पाठक को आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कराता है। सूरदास की कविताओं ने भारतीय साहित्य को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है। उनकी रचनाओं ने भक्ति काव्य को एक नई दिशा दी और कई कवियों और संगीतकारों को प्रेरित किया। उनकी कविताओं में भावनाओं की गहराई और काव्यात्मक सौंदर्य इस कदर समाया हुआ है कि वे भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा बन गई हैं।
सूरदास की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे समय की सीमाओं से परे हैं। साधक, साहित्य प्रेमी या आम पाठक—सभी को उनकी रचनाओं में आध्यात्मिक शांति और प्रेरणा मिलती है। उनकी कविताओं में मानवीय भावनाओं का ऐसा जीवंत चित्रण है, जो हर युग में पाठकों के हृदय को छूता रहा है। सूरदास का जीवन भी ख़ुद में एक प्रेरणा है। उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों को मात देकर यह सिद्ध किया कि मानवीय आत्मा उच्च आदर्शों की खोज में भौतिक सीमाओं को पार कर सकती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia
रामपुर वासियों के लिए सेहत और ताज़गी का बेहतरीन उपाय, स्पार्कलिंग वॉटर
नदियाँ
Rivers and Canals
01-05-2025 09:23 AM
Rampur-Hindi

रामपुर में स्पार्कलिंग पानी की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है, ख़ासकर उन लोगों के बीच जो साधारण पानी की जगह कुछ ज़्यादा ताज़गी भरा और फ़िज़ी विकल्प चाहते हैं। रेस्तरां, कैफ़े और घरों में इसका ख़ूब इस्तेमाल हो रहा है। लोग इसे न सिर्फ़ सीधे पीते हैं , बल्कि मॉकटेल और सोडा जैसे पेय में मिलाकर इसका लुत्फ़ उठाते हैं। साधारण पानी के विपरीत, स्पार्कलिंग पानी में प्राकृतिक या अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) मौजूद होता है, जिससे इसमें हल्के-हल्के बुलबुले बनते हैं। इसकी कुछ किस्मों में खनिज भी होते हैं, जो इसे शक्करयुक्त सोडा की तुलना में एक बेहतर और सेहतमंद विकल्प बनाते हैं। आज के इस लेख में हम यह जानेंगे कि स्पार्कलिंग पानी साधारण पानी से कैसे अलग है। साथ ही, इसके विभिन्न प्रकारों और उनकी ख़ासियतों पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा, हम यह भी समझेंगे कि यह स्वास्थ्य और हाइड्रेशन को कैसे प्रभावित करता है।

स्पार्कलिंग वॉटर क्या है?
स्पार्कलिंग वॉटर (Sparkling Water) भी सामान्य पानी ही होता है, लेकिन इसमें दबाव लगाकर कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) गैस मिलाई जाती है। इससे पानी में हल्का झाग और झुनझुनी वाला एहसास आता है, जो इसे पीने में और भी मज़ेदार बनाता है। कार्बोनेटेड पानी के क्लब सोडा, सोडा वॉटर, सेल्ट्ज़र वॉटर और फ़िज़ी वॉटर जैसे कई रूप होते हैं। शोध बताते हैं कि साधारण पानी और स्पार्कलिंग पानी दोनों ही पाचन के लिए फ़ायदेमंद होते हैं। चूँकि कार्बोनेटेड पानी में गैस होती है, इसलिए यह शरीर में लंबे समय तक ठहरता है, जिससे तृप्ति का एहसास होता है और भूख भी कम लगती है। हालाँकि, यह शरीर में पानी के अवशोषण की गति को थोड़ा धीमा कर सकता है, जबकि साधारण पानी जल्दी अवशोषित हो जाता है।
आइए अब स्पार्कलिंग पानी के स्वास्थ्य लाभों के बारे में विस्तार से जानते हैं:
कार्बोनेटेड पानी के कुछ अतिरिक्त फ़ायदे भी हैं। यह पेट की गैस और अपच जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करता है और कब्ज़ से राहत दिलाने में सहायक होता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार, यह आंतों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और पाचन तंत्र को सक्रिय करता है, जिससे चयापचय दर (Metabolism) भी सुधर सकती है। हालाँकि, अगर आपको एसिडिटी या सीने में जलन की समस्या है, तो स्पार्कलिंग पानी पीने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है, क्योंकि इसकी अम्लीय प्रकृति (Acidic Nature) एसिडिटी को बढ़ा सकती है।
स्पार्कलिंग वॉटर के तीन प्रमुख फ़ायदे
वज़न प्रबंधन में मददगार: यह हाइड्रेशन यानी शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा बनाए रखते हुए वज़न नियंत्रण में अहम भूमिका निभाता है। स्पार्कलिंग वॉटर, हाइड्रेटेड रहने का बेहतरीन तरीक़ा है। इसके अंदर मौजूद कार्बोनेशन पेट को भरा हुआ महसूस कराता है, जिससे बार-बार भूख नहीं लगती और अनावश्यक खाने से बचा जा सकता है।
पाचन में सुधार करता है: शोध बताते हैं कि स्पार्कलिंग वॉटर, मतली, अपच और कब्ज़ जैसी पाचन समस्याओं से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। यह पेट के लिए हल्का और राहत देने वाला विकल्प साबित हो सकता है।
असरदार सफ़ाई एजेंट: स्पार्कलिंग वॉटर केवल पीने के लिए ही नहीं, बल्कि सफ़ाई के लिए भी फ़ायदेमंद होता है। इसका इस्तेमाल आभूषणों, बर्तनों, पैन और यहाँ तक कि जंग हटाने के लिए भी किया जा सकता है। इसमें मौजूद कार्बोनेशन सतह से दाग़ और जंग हटाने में कारगर होता है।
कुल मिलाकर, स्पार्कलिंग पानी न केवल साधारण पानी का एक मज़ेदार विकल्प है, बल्कि यह सेहत के लिए भी कई फ़ायदे देता है। यह हाइड्रेशन बनाए रखने, पाचन सुधारने और सफ़ाई जैसे कामों में मददगार साबित होता है। हालाँकि, जैसा कि हमने पहले भी कहा, जिन लोगों को एसिडिटी की समस्या है, उन्हें इसका इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए।
स्पार्कलिंग वॉटर में कार्बन डाइऑक्साइड गैस होती है। इसका मूल स्रोत या खनिज संरचना चाहे जो भी हो, लेकिन इसमें कोई कैलोरी नहीं होती। इसे आमतौर पर सोडा वॉटर, फ़िज़ी वॉटर या कार्बोनेटेड वॉटर भी कहा जाता है।
इसके कई प्रकार होते हैं, जैसे:
स्पार्कलिंग मिनरल वॉटर (Sparkling Mineral Water): यह पानी प्राकृतिक झरने या बोरहोल से आता है या फिर इसे जलभृत (Aquifer) से निकाला जाता है। यह प्राकृतिक रूप से या कृत्रिम रूप से कार्बोनेटेड हो सकता है और इसमें स्वास्थ्य के लिए लाभकारी खनिज मौजूद होते हैं। इसमें केवल खनिज या ज़ीरो-कैलोरी फ़्लेवर मिलाए जाते हैं, लेकिन यह नियम हर देश में अलग-अलग हो सकता है। यूरोपीय संघ और कई देशों में 'प्राकृतिक मिनरल वॉटर' एक कानूनी रूप से परिभाषित शब्द है। इसके अनुसार, इस पानी में कुछ भी नहीं मिलाया जा सकता और न ही कुछ हटाया जा सकता है। एकमात्र अपवाद यह है कि अगर इसे स्पार्कलिंग बनाना हो, तो इसमें CO₂ मिलाया जा सकता है।
सेल्ट्ज़र वॉटर (Seltzer Water): सेल्ट्ज़र सामान्य पानी होता है जिसे कृत्रिम रूप से कार्बोनेटेड किया जाता है। इसमें कोई अतिरिक्त खनिज नहीं होते, इसलिए इसका स्वाद हल्का और फ़ीका लगता है। कई स्पार्कलिंग वॉटर ब्रांड, जैसे लैक्रोइक्स (LaCroix), इसी तरह के बेस वॉटर का इस्तेमाल करते हैं। हालाँकि, वे ख़ुद को केवल "स्पार्कलिंग वॉटर" के रूप में परिभाषित करते हैं और "सेल्ट्ज़र" की अलग परिभाषा देते हैं।
क्लब सोडा (Club Soda): क्लब सोडा भी सेल्ट्ज़र की तरह ही होता है, लेकिन इसमें खनिज मिलाए जाते हैं। इसमें सोडियम बाइकार्बोनेट (बेकिंग सोडा) और नमक हो सकते हैं, जो कार्बोनेशन से बनी अम्लता को संतुलित करते हैं।
टॉनिक वॉटर (Tonic Water): टॉनिक वॉटर को स्पार्कलिंग वॉटर नहीं माना जाता क्योंकि इसमें मिठास और कुनैन (Quinine) नामक एक कड़वा पदार्थ मिलाया जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/27od7ecf
https://tinyurl.com/29ye7j64
https://tinyurl.com/2dhefqmh
मुख्य चित्र स्रोत : Pxhere
रामपुर नज़र डालें, भारत में शहद उत्पादन के साथ इसके आयात और निर्यात की वर्तमान स्थिति पर
तितलियाँ व कीड़े
Butterfly and Insects
30-04-2025 09:32 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के कई लोगों के लिए शहद उनकी खुराक का एक अहम हिस्सा है। क्या आपको पता है कि भारत में शहद का बाज़ार 2023 में 25.2 अरब रुपए तक पहुँच गया था और 2024 से 2032 तक हर साल इसमें 7.3% की बढ़ोतरी होने का अनुमान है? यानी भारत का शहद बाज़ार 48.6 अरब रुपए तक पहुँच सकता है।
इसके अलावा, भारत ने 2021-22 में 74,413.05 मेट्रिक टन शहद निर्यात किया था, जिससे लगभग 163.77 मिलियन डॉलर की कमाई हुई थी। 2022-23 में यह बढ़कर 190.06 मिलियन डॉलर हो गया। इसके बावजूद, भारत 2023 में 1.93 मिलियन डॉलर का शहद आयात भी करता है, और यह दुनिया का 59वां सबसे बड़ा शहद आयातक है। भारत मुख्य रूप से स्पेन, कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और बांग्लादेश से शहद आयात करता है।
अगर बात करें रोज़गार की, तो 2022 तक भारत में, 12,699 मधुमक्खी पालक राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के तहत पंजीकृत थे, जो 19.34 लाख मधुमक्खी कॉलोनियों का ध्यान रखते हैं।
अब हम जानते हैं कि भारत में शहद उत्पादन की स्थिति क्या है। इसके बारे में जानने के बाद, हम भारत के प्रमुख शहद उत्पादक राज्यों के बारे में चर्चा करेंगे। फिर, हम भारत के शहद निर्यात से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े जानेंगे। इसके बाद, हम देखेंगे कि भारत कितने और किस देशों से शहद मंगवाता है। साथ ही, हम मधुमक्खी पालन क्षेत्र में आने वाली प्रमुख चुनौतियों के बारे में भी बात करेंगे। और अंत में, हम शहद उत्पादन को बढ़ाने के लिए हाल ही में उठाए गए कदमों पर भी चर्चा करेंगे।
भारत में शहद उत्पादन की वर्तमान स्थिति
भारत में हर साल लगभग 1,33,200 मेट्रिक टन (MTs) शहद उत्पादन होता है। अनुमान है कि इस देश में 5 लाख से अधिक किसान और मधुमक्खी पालक शहद उत्पादन में लगे हुए हैं। भारत में शहद के कई प्रकार होते हैं, जैसे यूकेलिप्टस (Eucalyptus), लीची, सूरजमुखी और बहुफूल हिमालयी शहद। उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा शहद उत्पादक राज्य है, जो देश के शहद उत्पादन में 30% से अधिक योगदान करता है। इसके अलावा, गुजरात, पंजाब, बिहार और मध्य प्रदेश भी प्रमुख शहद उत्पादक राज्य हैं।
भारत के शहद निर्यात से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े
भारत से “प्राकृतिक शहद” के निर्यात का मूल्य 2023 में 170 मिलियन डॉलर था। 2022 की तुलना में, 2023 में प्राकृतिक शहद की बिक्री में 25% की गिरावट आई है। निर्यात में 58 मिलियन डॉलर की कमी आई है। भारत से निर्यातित प्राकृतिक शहद का हिस्सा भारत के कुल निर्यात का 0.039% था।
भारत से “प्राकृतिक शहद” के शीर्ष निर्यात गंतव्य (2023)
- यू एस ए (USA) - 83% हिस्सेदारी (143 मिलियन अमेरिकी डॉलर)
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE)- 5.74% हिस्सेदारी (9.81 मिलियन अमेरिकी डॉलर)
- सऊदी अरब (Saudi Arabia)- 1.89% हिस्सेदारी (3.23 मिलियन अमेरिकी डॉलर)
- लीबिया (Libya)- 1.2% हिस्सेदारी (2.05 मिलियन अमेरिकी डॉलर)
- कतर (Qatar) - 1.61 मिलियन अमेरिकी डॉलर
- मोरक्को (Morocco) - 1.37 मिलियन अमेरिकी डॉलर
- बांगलादेश (Bangladesh) - 1.22 मिलियन अमेरिकी डॉलर
- नेपाल (Nepal)- 806 हजार अमेरिकी डॉलर
- कनाडा (Canada) - 799 हजार अमेरिकी डॉलर
- कुवैत (Kuwait) - 774 हजार अमेरिकी डॉलर
भारत कितना शहद आयात करता है?
भारत ने 2019 में 1,988.94 हजार अमेरिकी डॉलर मूल्य का प्राकृतिक शहद आयात किया, जो 351,944 किलोग्राम था।
वर्ष | देश | व्यापार मूल्य (1000 USD) | मात्रा | तादाद की इकाई |
2019 | दुनिया | 1,988.94 | 351,944 | किलोग्राम |
2019 | स्पेन | 1,069.80 | 136,250 | किलोग्राम |
2019 | संयुक्त राज्य अमेरिका | 253.35 | 131,674 | किलोग्राम |
2019 | न्यूज़ीलैंड | 160.44 | 4,542 | किलोग्राम |
2019 | ऑस्ट्रेलिया | 150.41 | 18,290 | किलोग्राम |
2019 | जर्मनी | 90.36 | 10,794 | किलोग्राम |
2019 | यूनाइटेड किंगडम | 66.68 | 7,887 | किलोग्राम |
2019 | फ़्रांस | 52.64 | 5,330 | किलोग्राम |
2019 | कनाडा | 47.72 | 15,000 | किलोग्राम |
2019 | संयुक्त अरब अमीरात | 25.71 | 11,475 | किलोग्राम |
2019 | ग्रीस | 22.14 | 2,067 | किलोग्राम |
2019 | कुवेत | 13.01 | 3,161 | किलोग्राम |
2019 | मेक्सिको | 12.59 | 2,065 | किलोग्राम |
2019 | स्लोवेनिया | 11.99 | 1,900 | किलोग्राम |
2019 | बांग्लादेश | 6.49 | 400 | किलोग्राम |
2019 | किर्गिज़ गणराज्य | 3.71 | 783 | किलोग्राम |
2019 | जापान | 1.26 | 100 | किलोग्राम |
2019 | यमन | 0.51 | 204 | किलोग्राम |
2019 | पोलैंड | 0.07 | 11 | किलोग्राम |
2019 | जॉर्जिया | 0.05 | 11 | किलोग्राम |
भारत के शहद पालन क्षेत्र को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है
- जलवायु परिवर्तन के कारण शहद की मक्खियों का नष्ट होना।
- इसके साथ ही, सर्दी के मौसम ने देश के कई हिस्सों में रस (Nectar) के उत्पादन को प्रभावित किया है।
- हिमालय क्षेत्र में शहद की मक्खियाँ खाने वाले पक्षी (Bee-eaters), सर्दी में बड़े बदलाव के कारण महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में आ गए।
- केवल गन्ना उगाने वाले किसान शहद की मक्खी के प्रकारों के लिए सीमित स्थान छोड़ते हैं, जो मधुमखी पालन क्षेत्र के लिए बुरा संकेत है।
भारत में शहद उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहलकदमियाँ:
- भारत में “हनी मिशन (Honey Mission)” के समर्पित कार्यान्वयन के साथ, शहद उत्पादन में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है। इसे 12 वर्षों में 200 प्रतिशत का इज़ाफ़ा देखा गया है।
- भारतीय सरकार देश के 16 राज्यों में एकीकृत शहद पालन विकास केंद्र स्थापित करने की योजना बना रही है। ये केंद्र आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, कर्नाटका, बिहार, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और उत्तर प्रदेश में होंगे।
- शहद पालन और शहद उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए, खादी और ग्राम उद्योग आयोग (KVIC) ने “एपीएरी ऑन वील्स (Apiary on Wheels)” लॉन्च किया है। इसका उद्देश्य किसानों के श्रम और रखरखाव लागत को कम करना है। यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “ मधु क्रांति (Sweet Revolution)” के दृष्टिकोण की दिशा में उठाया गया है। इस पहल का उद्देश्य 2020 तक भारत की शहद उद्योग की बाज़ार मूल्य को 2,800 करोड़ रुपए तक बढ़ाना है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Flickr, wikimedia
क्या रामपुर के लोग, सजावटी मत्स्य पालन उद्योग का लाभ उठा सकते हैं, और यदि हाँ, तो कैसे ?
मछलियाँ व उभयचर
Fishes and Amphibian
29-04-2025 09:26 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के कई घरों, कार्यालयों और दुकानों में एक्वेरियम (Aquarium) या मछलीघर होते हैं, जो उन स्थानों में आकर्षण और शांति जोड़ते हैं। इन टैंकों में गोल्डफ़िश (Goldfish), बार्ब (Barb), क्लाउनफ़िश (Clownfish), आदि मछलियां होती हैं, जो वास्तव में सजावटी मछली (Ornamental Fish) प्रजातियां हैं। इन्हें विशेष रूप से, उनकी सुंदरता के लिए पाला जाता है। सजावटी मछली पालन (Ornamental Fish Farming) , मछलीघरों और तालाबों के लिए सजावटी मछली प्रजातियों का प्रजनन कराना और पालन है। इसमें वाणिज्यिक व्यापार और पालतू पशु उद्योगों के लिए मछलियों का चयनात्मक प्रजनन, जल गुणवत्ता प्रबंधन और विपणन शामिल है। भारत का सजावटी मछली बाज़ार, 2025 से 2032 के दौरान, 10.12% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर पर बढ़ने का अनुमान है। यह 2024 में 160.12 मिलियन डॉलर से बढ़कर, 2032 में 346.24 मिलियन डॉलर तक बढ़ रहा है। तो आज, चलिए भारत में सजावटी मछली पालन के महत्व को समझें। इसके बाद, हम अपने देश में इस मछली पालन खेती की वर्तमान स्थिति का पता लगाएंगे। इसके अलावा, हम भारत में उच्चतम सजावटी मछली उत्पादक राज्यों पर चर्चा करेंगे। हम अपने देश में उत्पादित, विभिन्न सजावटी मछली प्रजातियों की भी जांच करेंगे। फिर हम, इस व्यवसाय की मुनाफ़ा क्षमता की खोज करेंगे। अंत में, हम भारत में सजावटी इस उद्योगके लिए मौजूद सब्सिडी और क्रेडिट सुविधाओं पर कुछ प्रकाश डालेंगे।
भारत में सजावटी मछली पालन खेती का महत्व:
सजावटी मत्स्य पालन, मीठे और समुद्री पानी की रंगीन मछलियों के प्रजनन और पालन से संबंधित है। हालांकि सजावटी मत्स्य पालन, सीधे भोजन और पोषण सुरक्षा में योगदान नहीं देता है, लेकिन यह ग्रामीण और उप-शहरी आबादी के लिए आजीविका और आय का स्त्रोत प्रदान करता है। विशेष रूप से महिलाओं और बेरोज़गार युवाओं को अंशकालिक गतिविधियों के रूप में, यह उद्योग महत्वपूर्ण आजीविका स्त्रोत प्रदान करता है। भारत में ये उद्योग छोटा, लेकिन जीवंत है, जिसमें काफ़ी वृद्धि की संभावना है। कम उत्पादन लागत और कम समय के भीतर उच्च उत्पादन, तथा स्वदेशी और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में बढ़ती मांग, इस उद्योग के प्रमुख लाभ हैं। हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में सजावटी मछलियों की 400 समुद्री प्रजातियां और 375 मीठे पानी वाली प्रजातियां उपलब्ध हैं।
भारत में सजावटी मछली पालन की वर्तमान स्थिति:
भारत की सजावटी मछली पालन खेती, कुल सजावटी मछली व्यापार में लगभग 1% योगदान दे रही हैं। इन मछलियों का 54 टन की मात्रा पर निर्यात किया जाता है, 2020-21 में जिसका मूल्य 13.08 करोड़ रुपए था। ये आंकड़े मात्रा के संदर्भ में 66.55% और मूल्य के संदर्भ में, 20.59% की वृद्धि दर्ज करते हैं।
कौन से भारतीय राज्य, सजावटी मछली पालन में शामिल हैं ?
केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल, भारत में सजावटी मछली पालन का मुख्य रूप से अभ्यास करते हैं। सजावटी प्रजातियों को, स्वदेशी और विदेशी प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। उत्तर-पूर्वी राज्यों, पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में संभावित तौर पर इन प्रजातियों का उपयोग किया जाता है। भारत का 90% निर्यात कोलकाता से होता है, और उसके बाद क्रमशः मुंबई (8%) और चेन्नई (2%) का स्थान आता है।
भारत में उत्पादित विभिन्न सजावटी मछली प्रजातियां:
उत्तर-पूर्व और दक्षिणी राज्यों में प्रमुख सजावटी मछली प्रजातियां – लोच (Loach), ईल, बार्ब, कैटफ़िश (Catfish) और गोबी (Goby) हैं।
खारे पानी की सजावटी मछली प्रजातियां – मोनोडैक्टाइलस अर्जेंटस (Monodactylus argentus), मोनोडैक्टाइलस सेबा (M. sebae) और स्कैटोफ़ैगस आर्गस (Scatophagus argus), भारतीय खारे जल में आम हैं और उन्हें एकत्र किया जा सकता है। पर्ल-स्पॉट, नारंगी क्रोमिड और भारतीय ग्लासफ़िश एम्बेसिस एस पी. जैसी मछलियों का भी कम खारे पानी में सफ़लतापूर्वक पालन किया गया है। Pearl-spot (Etroplus suratensis) Orange Chromid (E. maculatus) and Indian Glassfish Ambassis sp.
संभावित समुद्री सजावटी मछली प्रजातियां – क्लाउन फ़िश (Clownfish), डैमसेल फ़िश (Damselfish), मूरिश आइडल (Moorish Idol), लायन फ़िश (Lionfish), पैरट फ़िश (Parrotfish), बॉक्स फ़िश (Boxfish) या ट्रंक फ़िश (Trunkfish), मरीन एंजेल्स (Marine Angels), बटरफ्लाई फ़िश (Butterflyfish), क्लीनर व्रास (Cleaner wrasse), कार्डिनल फ़िश, (Cardinalfish) यूनिकॉन फ़िश (Unicornfish), रैबिट फ़िश (Rabbitfish), स्क्विरल फ़िश (Squirrelfish), स्कॉर्पियन फ़िश (Scorpionfish), ब्लेनीस (Blennies), सैंड–स्मेल्ट (Sand smelt) और सीहॉर्स (Seahorse), आदि हैं। भारतीय सजावटी मछली व्यापार, ज़्यादातर, मीठे पानी की मछलियों (90%) से संबंधित है, जिसमें से 98% का पालन किया जाता हैं, और 2% को प्राकृतिक आवासों से पकड़ा जाता है। शेष 10% समुद्री मछलियां हैं, जिनमें से 98% प्रजातियों को प्राकृतिक आवासों से पकड़ा जाता है, और 2% प्रजातियों का पालन किया जाता है। गोल्डफ़िश सबसे अधिक पसंदीदा सजावटी मछली है, और इसलिए इनका पालन भारतीय सजावटी मछली क्षेत्र में व्यापक है।
भारत में सजावटी मत्स्य पालन खेती में मुनाफ़े की क्षमता:
किसान अपनी क्षमता के अनुसार, छोटे से बड़े अलग-अलग पैमाने पर सजावटी मछलियों का उत्पादन शुरू कर सकते हैं। यदि कोई किसान एक छोटी इकाई स्थापित करना चाहता है, तो उसे शेड, मछली फ़ीड और अन्य आवश्यक वस्तुओं पर 50,000–70,000 रुपए खर्च करना होगा। वह इससे 3,000-5,000 रुपए कमा सकता हैं। लगभग 1.25 लाख रुपए के निवेश से, 8,000–9,000 रुपए मासिक आय हो सकती है। यदि कोई 25 लाख रुपए निवेश के साथ, बड़े पैमाने पर ये व्यापार करता है, तो उसकी मासिक आय, 1.25–1.5 लाख रुपए हो सकती है।
सजावटी मत्स्य पालन खेती के लिए भारत में मौजूद सब्सिडी और क्रेडिट सुविधाएं:
हमारी सरकार रंगीन मछली पालन खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी दे रही है। महिलाओं के लिए, 60% सब्सिडी और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana (PMMSY)) के तहत, पुरुषों के लिए 40% सब्सिडी उपलब्ध है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में मीठे पानी की एक्वेरियम मछली का स्रोत : wikimedia
चलिए चलते हैं रामपुर के एक ऐतिहासिक सफ़र पर और समझते हैं यहाँ की वास्तुकला को और गहराई से
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
Colonization And World Wars : 1780 CE to 1947 CE
28-04-2025 09:31 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के नागरिकों, हमारा शहर, ऐतिहासिक वास्तुकला और स्मारकों की समृद्ध विरासत का घर है, जो इसके शाही अतीत और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। क्या आप जानते हैं कि मध्ययुगीन इतिहास के अनुसार, रामपुर दिल्ली क्षेत्र का हिस्सा था, और बदायूँ और संभल ज़िलों के बीच विभाजित था। बाद में, मुगल काल की शुरुआत में, रोहिलखंड की राजधानी बदायूँ से बदलकर बरेली कर दी गई जिससे रामपुर का महत्व और बढ़ गया। रामपुर राज्य (Rampur State), ब्रिटिश शासन के दौरान और उसके बाद भी साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य था। रामपुर राज्य, 15 तोपों की सलामी वाला राज्य था और इसकी स्थापना 7 अक्टूबर 1774 को ब्रिटिश कमांडर अलेक्ज़ेंडर चैंपियन की उपस्थिति में नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान (Faizullah Khan) ने की थी। फैज़ुल्ला खान ने रामपुर में नए किले का निर्माण कराया और इस तरह 1775 में रामपुर शहर की स्थापना हुई। उसके बाद ब्रिटिश संरक्षण के तहत यह एक समृद्ध राज्य बना रहा। तो आइए आज, रामपुर राज्य की उत्पत्ति और इतिहास के बारे में जानते हैं और नवाबों के अधीन, विशेष रूप से सैय्यद मुहम्मद सईद खान (Muhammad Said Khan) के संदर्भ में, रियासत के प्रशासन पर प्रकाश डालते हैं। इसके साथ ही, हम नवाबी युग के दौरान रामपुर की वास्तुकला की विशेषताओं के बारे में जानेंगे। इस संदर्भ में, हम दुर्लभ पांडुलिपियों और ऐतिहासिक ग्रंथों के खजाने रामपुर रज़ा पुस्तकालय के महत्व पर चर्चा करेंगे और रामपुर रज़ा पुस्तकालय की अनूठी वास्तुकला का पता लगाएंगे।
रामपुर राज्य की उत्पत्ति और इतिहास:
रोहिल्ला पठानों के 1772 में मराठों के खिलाफ़ सैन्य सहायता के लिए अवध के नवाब से लिये कर्ज़ को वापस देने से मुकरने पर, 1774-75 का रोहिल्ला युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने नवाबों की सहायता की और जिससे नवाबों ने रोहिल्लाओं को पराजित कर दिया और उनकी पूर्व राजधानी बरेली से खदेड़ दिया। इसके बाद 7 अक्टूबर 1774 को ब्रिटिश कमांडर कर्नल चैंपियन की उपस्थिति में नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान द्वारा रामपुर में रोहिल्ला राज्य की स्थापना की गई। फ़ैज़ुल्ला खान ने रामपुर में नए किले का निर्माण कराया और इस तरह 1775 में रामपुर शहर की स्थापना हुई। पहले नवाब ने शहर का नाम बदलकर अपने नाम पर 'फ़ैज़ाबाद' करने का प्रस्ताव रखा। लेकिन फ़ैज़ाबाद के नाम से जानी जाने वाली कई अन्य जगहें पहले से ही मौजूद थीं, इसलिए नाम बदलकर मुस्तफ़ाबाद उर्फ़ रामपुर कर दिया गया। नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान ने रामपुर पर 20 वर्षों तक शासन किया। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद अली खान (Muhammad Ali Khan) ने सत्ता संभाली, लेकिन 24 दिनों के बाद रोहिल्ला नेताओं ने उनकी हत्या कर दी और गुलाम मुहम्मद खान (Ghulam Muhammad Khan) को नवाब घोषित किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस पर आपत्ति जताई और केवल 3 महीने और 22 दिनों के शासनकाल के बाद गुलाम मुहम्मद खान को हरा दिया। इसके बाद, मुहम्मद अली खान के बेटे अहमद अली खान को नया नवाब बनाया गया। उन्होंने 44 वर्षों तक शासन किया। उनके कोई पुत्र नहीं था, इसलिए गुलाम मुहम्मद खान के पुत्र मुहम्मद सईद खान ने नए नवाब के रूप में पदभार संभाला। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद यूसुफ़ अली खान (Muhammad Yusef Ali Khan) ने सत्ता संभाली। उनका बेटा कल्ब अली खान 1865 में नया नवाब बना। रज़ा अली खान 1930 में आखिरी शासक नवाब बने। 1 जुलाई 1949 को रामपुर राज्य का भारत गणराज्य में विलय कर दिया गया।
नवाबों के अधीन रामपुर रियासत का प्रशासन:
नवाब मोहम्मद सईद खान के शासन के दौरान राज्य के प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार हुआ। उन्होंने न्याय की दीवानी और फ़ौजदारी अदालतों का आयोजन किया और राज्य में सरकार की एक ऐसी प्रणाली शुरू की जो पहले अज्ञात थी। इस शासन प्रणाली से भू-राजस्व संग्रह में सुधार के साथ-साथ उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उनके शासनकाल में एक चौकी और सोलह थानों की स्थापित की गई, अस्तबल, बुग्घी-खाना और मोती मस्जिद जैसी कुछ नई इमारतें बनाई गईं, और अफ़गानपुर के पास और बाग बेनज़ीर के पास जैसी कुछ नई सड़कों का निर्माण किया गया। वह एक उत्कृष्ट विद्वान थे और तिब (यूनानी चिकित्सा) से अच्छी तरह परिचित थे। वह एक कवि और अच्छे गद्यकार थे। नवाब मोहम्मद सईद खान शिया संप्रदाय के अनुयायी थे। उन्होंने कोठी खुर्शीद मंज़िल के पास एक इमाम बाड़ा बनवाया, और सोने और चांदी के अलम और जरीह इमाम बाड़े को भेंट किए।
नवाबों के शासनकाल के दौरान रामपुर की वास्तुकला की विशेषताएं:
रामपुर के शासकों का क्षेत्र की वास्तुकला पर विशिष्ट प्रभाव रहा है। यहां की इमारतें और स्मारक मुगल शैली की वास्तुकला की उपस्थिति का संकेत देते हैं। कुछ इमारतें बहुत पुरानी हैं और समय के साथ इनका बार-बार निर्माण किया गया है। रामपुर का किला यहां की उत्कृष्ट वास्तु कला का एक अच्छा उदाहरण है। इसमें रज़ा पुस्तकालय या हामिद मंज़िल भी है, जो शासकों का पूर्व महल था। इसमें एशिया में प्राच्य पांडुलिपियों का एक बड़ा संग्रह है। इस किले में इमामबाड़ा भी है। इसके अलावा, यहां की जामा मस्जिद, रामपुर में पाई जाने वाली वास्तुकला के बेहतरीन नमूनों में से एक है। यह कुछ हद तक दिल्ली की जामा मस्जिद से मिलती-जुलती है। इसका निर्माण नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान ने करवाया था। इसकी वास्तुकला में मुगल वास्तुकला की छाप स्पष्ट है। मस्जिद में कई प्रवेश-निकास द्वार हैं। इसमें तीन बड़े गुंबद और चार ऊंची मीनारें हैं जिनमें सोने के शिखर हैं। इसमें एक मुख्य ऊंचा प्रवेश द्वार है जिसमें एक अंतर्निर्मित घंटाघर है जिसके ऊपर एक बड़ी घड़ी लगी हुई है जिसे ब्रिटेन से आयात किया गया था। यहां नवाब द्वारा बनवाए गए कई प्रवेश-निकास द्वार हैं, उदाहरण के लिए शाहबाद गेट, नवाब गेट, बिलासपुर गेट आदि।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय का महत्व:
रामपुर रज़ा पुस्तकालय में 17,000 पांडुलिपियों का एक विशाल संग्रह है, जिसमें 4413 चित्रों के साथ 150 सचित्र पांडुलिपियां और लगभग 83,000 मुद्रित पुस्तकें, एल्बम में 5,000 लघु चित्र, सुलेख के 3000 नमूने और 205 ताड़ के पत्ते शामिल हैं। कई दुर्लभ और मूल्यवान ग्रंथ अरबी, फ़ारसी, उर्दू, हिंदी और अन्य भाषाओं में हैं। इस संग्रह में इतिहास, दर्शन, विज्ञान, साहित्य और धर्म सहित कई विषयों पर काम शामिल हैं। इस पुस्तकालय में कई दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रह भी है, जिनमें लघु चित्र, सिक्के और ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की अन्य वस्तुएँ शामिल हैं। इसमें एक संरक्षण प्रयोगशाला है जो इन कलाकृतियों को संरक्षित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए काम करती है कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहें।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय की अनूठी वास्तुकला:
शानदार हामिद मंज़िल की आठ मीनारों में स्थित विश्वप्रसिद्ध रामपुर रज़ा पुस्तकालय भारत में बहुलवाद का एक महान प्रतीक है। पुस्तकालय की मीनार का निचला हिस्सा एक मस्जिद के आकार में बना है; इसके ठीक ऊपर का हिस्सा एक चर्च जैसा दिखता है, जबकि तीसरा हिस्सा एक सिख गुरुद्वारे के वास्तुशिल्प डिज़ाइन को दर्शाता है, और सबसे ऊपरी हिस्सा एक हिंदू मंदिर के आकार में बनाया गया है। समावेशिता की यह भावना लोगों को सद्भाव से रहने के लिए प्रेरित करती रही है। इस इमारत की आंतरिक वास्तुकला, यूरोपीय वास्तुकला से प्रेरित है। इसकी अनूठी वास्तुकला, पूर्ववर्ती रामपुर रियासत की प्रकृति और राजनीति के बारे में एक लंबी कहानी बताती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में रामपुर रज़ा पुस्तकालय से जामा मस्जिद का नज़ारा: स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह
आइए, आनंद लें, धीमी गति में मोर की खूबसूरत प्राकृतिक क्रियाओं और मनमोहक नृत्य का
व्यवहारिक
By Behaviour
27-04-2025 09:10 AM
Rampur-Hindi

मोर, प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। अनेक धार्मिक कथाओं में इन्हें उच्च कोटी का दर्जा दिया गया है। इन्हें मुख्य रूप से अपने पंखों और सुंदर नृत्य लिए जाना जाता है। जब यह अपने जीवंत पंख फैलाते हैं और धीमे, सुंदर कदमों से चलते हैं, तो ऐसा लगता है, मानो जैसे कोई जीवित पेंटिंग सामने हो। इनके रंग प्रकाश में झिलमिलाते हैं और क्षण भर में आस-पास की बाकी सभी चीज़ें फीकी पड़ जाती हैं। रामपुर, जहां प्रकृति चुपचाप अपना विस्तार करती है, में कई लोगों ने खेतों में या पुराने बागों के पास मोर को नाचते देखा है। रंगों भरा यह सुंदर दृश्य, लोगों को लंबे समय तक याद रहता है, जब वे यह दृश्य देख चुके होते हैं। क्या आप जानते हैं कि हमारी पृथ्वी पर मोर की केवल तीन प्रजातियाँ हैं, जिनमें भारतीय मोर (जिसे नीला मोर भी कहा जाता है), हरा मोर (Green peafowl) और कांगो मोर (Congo peafowl) शामिल हैं। नीला मोर, भारतीय उपमहाद्वीप और श्रीलंका (Sri Lanka) के मूल निवासी हैं, जबकि हरा मोर, जिसे जावानीज़ मोर (Javanese peafowl) भी कहा जाता है, दक्षिण-पूर्व एशिया (southeast Asia) में इंडोनेशियाई के जावा द्वीप का मूल निवासी है। दूसरी ओर, कांगो मोर, अफ़्रीका (Africa) के कांगो बेसिन (Congo Basin) का मूल निवासी है। तो आइए, आज हम, कुछ धीमी गति के चलचित्रों के माध्यम से मोरों की खूबसूरत प्राकृतिक क्रियाओं को देखेंगे। साथ ही, हम कुछ ऐसे दृश्यों का आनंद लेंगे, जिनमें इन पक्षियों के पंखों के खुलने, इनके सुंदर नृत्य और इनकी छोटी उड़ानों को दिखाया गया है। इन क्लिप्स के ज़रिए, हम इस पक्षी की चाल, प्रतिक्रिया और इसके अद्भुत रंगों से रूबरू होंगे।
संदर्भ:
संस्कृति 2019
प्रकृति 729