ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं! लट्टू को रस्सी पे लपेटूं और दुनिया को घुमाऊं!। डॉ. निशा माथुर
द्वारा लिखी गयी इन पंक्तियों में "लट्टू" (Bambaram) नामक एक ऐसे खिलौने की चर्चा है, जो हिंदुस्तान के हर वर्ग के बच्चों में खासा लोकप्रिय है। आज भी यदि हम लट्टू का चित्र देखें या नाम ही सुन ले तो हमारे मन बचपन की सुनहरी यादों और नए रोमांच से भर जाता है। लट्टू का खेल आज भी पूरे रोमांच के साथ बच्चों में खेला जाता है। और उतना ही लोकप्रिय है, जितना आज से कई दशक पहले था।
लट्टू लकड़ी से बना हुआ एक गोलाकार संरचना वाला खिलौना होता है, जिसमें सिरे की ओर एक नुकीली कील लगी होती है। जिसका नुकीला सिरा ज़मीन की तरफ होता है। जब सूत अथवा किसी अन्य तरह की डोर को गोल लट्टू में लपेटा जाता है, तथा एक झटके के साथ डोर को पीछे खींचा जाता है, तब कील का नुकीला सिरा जमीन में टकराता है, और लट्टू पूरी तेज़ी के साथ घूमने लगता है। कई बार लट्टू को पहले हाथ में घुमाया जाता है। और झटके के साथ ज़मीन पे छोड़ा जाता है।
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लट्टू प्रायः लकड़ी का बना होता है। आजकल अन्य प्रकार की धातुओं से बने लट्टू भी बाजार में उपलब्ध हैं। इसमें अलग-अलग प्रकार की रंगीन धारियां होती है, जो की लट्टू को घुमाने बेहद आकर्षक लगती हैं। और खेल में एक नया रोमांच भर देती हैं। यह खेल बच्चों में बेहद लोकप्रिय है। जिसका भी लट्टू ज़मीन में अधिक समय तक घूमता है, उसे इस खेल में विजेता घोषित किया जाता है। यह कितनी देर घुमेगा ये उसकी गुणवत्ता और खेलने वाले के अनुभव पर निर्भर करता है।
लट्टू पुरातत्वविदों द्वारा पूरे विश्व के खोजे गए सबसे प्राचीनतम खेलों में से एक है। लट्टू का वर्णन 3500 ईसा पूर्व. इराक के शहरों में हुयी। इराक आज से लगभग 6000 साल पहले प्राचीन कवि (Homer) की कविताओं में मिलता है।
समय के साथ-साथ इसके बनावट में रचनात्मकता बढ़ती गयी लट्टू को और ज़्यादा आकर्षक तथा अधिक देर तक घूमते रहने के लिए संशोधित किया गया। आजकल इसे बेहद आधुनिक रूप दे दिया गया है यह हवा में बिना किसी आधार के भी लम्बे समय तक घूमता रहता है।
बदलते स्थानो के आधार पर इन्हें अलग-अलग नामों के साथ जाना जाने लगा। कर्नाटक और तमिल में इसे बम्बाराम ( Bambaram), हिंदी तथा उर्दू भाषा में इसे लट्टू (Lattu), तथा आंध्र प्रदेश में इसे बोंगराला आता (Bongaralu Aata in Andhra Pradesh),बंगाली में लतीम, से सम्बोधित किया जाता है।
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लट्टू का खेल भारत के हर आयु वर्ग में बेहद प्रचलित है। बच्चे इसको बड़े ही उत्साह के साथ खेलते हैं। बड़े-बूढ़े शर्त लगाते है। आज भी यह खेल भारत में काफी जाना-माना है। परन्तु आज से लगभग दो दशक (20 साल पहले) यह बेहद ऊंचे स्तर पर लोकप्रिय था। देश के हर गली नुक्कड़ पर आसानी से लट्टु के खिलाडियों का झुंड देखने को मिल जाता था। देश में कई जगह पर स्वदेशी लट्टू बनाये जाते थे। यहाँ तक की लोग घरों में इनको स्वनिर्मित भी करते थे। आज भी लोग बनाते है, परंतु दुर्भाग्यवश नवीनतम तकनीक और आधुनिक खिलौनों की भीड़ में लट्टू का खेल कही विलुप्त सा होने लगा है। आज की नयी पीढ़ी इस बेहद अनोखे और असामान्य खेल से अनभिज्ञ है। ऑनलाइन गेम और आधुनिक खिलौने आज पूरी तरह से हमारे प्राचीनतम खेल "लट्टू" पर हावी हो चुके हैं। युवा पीढ़ी इस खेल में अनुभव होने वाले असामान्य रोमांच से वंचित है। परन्तु आज भी भारत के कई पारंपरिक गावों में यह खेल उत्साह के साथ खेला जाता है। शहरों में भी यह थोड़ा बचा हुआ है। समय के साथ हर वस्तु और संस्कृति का विकास होता है, लट्टु की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। समय के साथ यह और तेज़ गति से तथा लम्बे समय तक घूमने वाला बन गया। वर्तमान में इसका नवीनतम स्वरूप स्पिनर(Spinner) पूरी दुनिया में सुप्रसिद्ध है। स्पिनर लट्टू का सबसे आधुनिक स्वरूप है। स्पिनर को अंगूठे और हाथ की किसी अन्य उंगली के बीच में रखा जाता है, तथा जोर से घुमाया जाता है। यह भी लट्टू के समान भौतिक नियमों पर आधारित है। देखने में यह बेहद रोमांचक लगता है और युवाओं में खासा लोकप्रिय है। आज समय तेज़ गति से बदल रहा है, हमारे खेल बदल रहे हैं। नयी तकनीके हमारे दैनिक जीवन पर हावी हो रही है। हमें अपने संस्कृति से जुड़े खेलों से भी जुड़ा रहना चाहिए। और समय के साथ संतुलित विकास करना चाहिए।
संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Bambaram
https://bit.ly/3smMOqP
https://bit.ly/31eEWMr
https://bit.ly/3d2WOiO
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र लट्टू को दर्शाता है। (विकिपीडिया)
दूसरी तस्वीर में बच्चों को लट्टू के साथ खेलते हुए दिखाया गया है। (विकिपीडिया)
तीसरी तस्वीर में आधुनिक लट्टू का चित्रण दिखाया गया है। (विकिपीडिया)