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कई दशकों से लोग अपनी वर्तमान परिस्थिति और आवश्यकताओं के आधार पर अपना मूल स्थान छोड़कर नई जगह में जाकर बसते आ रहे हैं। हालांकि 'सुविधाजनक जीवन' की कोई सटीक परिभाषा नहीं हैं, किन्तु सामान्यतः कोई रोजगार के लिए, कोई शिक्षा के बेहतर विकल्प के लिए, कोई व्यापार के लिए तो कोई शुद्ध वातावरण में जीवनयापन करने के उद्देश्य से नए स्थानों पर पलायन करता है। यह देखा गया है कि आधुनिक युग में जब बहुत से काम मशीनों द्वारा कम समय पर और अधिक कुशलता से संपन्न हो जाते हैं, तो ऐसे में अधिकतर लोग ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरों में रहना अधिक पसंद करते हैं।
आवास और शहरी मामलों के केंद्रीय मंत्रालय (The Ministry of Housing and Urban Affairs) द्वारा जारी किए गए सुविधाजनक जीवन निर्वाह सूचकांक (Ease of Living Index) की वार्षिक सूची में महाराष्ट्र राज्य के नवी मुंबई और ग्रेटर मुंबई के साथ पुणे शहर भी सबसे ऊपर है। मंत्रालय द्वारा जारी की गयी इस सूची में सुविधाजनक जीवन के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कुछ मापदंडों को सेट किया गया है। शासन, सामाजिक अवसंरचना, आर्थिक तत्व और भौतिक अवसंरचना इन चार मापदंडों के आधार पर शहरों को श्रेणीबद्ध किया जाता है। यह सूचकांक निम्नवत हैं:
• प्रमाण आधारित दृष्टिकोण को सक्रीय करना ताकि भविष्य के लिए सुगमता से जीवन निर्वाह के लिए निवेश के साधन उपलब्ध हो सकें।
• भारतीय शहरों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए उचित कदम उठाना।
• सतत विकास लक्ष्यों सहित व्यापक विकास परिणामों का निरंतर निरिक्षण करना।
• प्रमुख शक्तियों और क्षेत्रों के आवश्यक सुधार के मुद्दों पर नागरिकों और शहरी निर्णयकर्ताओं के साथ बातचीत के आधार के रूप में कार्य करना।
वर्ष 2018 में, सुगमता से जीवन निर्वाह सूचकांक केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा जारी किए गए। भारत के 111 शहरों की सूची में से पुणे, नवी मुंबई और ग्रेटर मुंबई शीर्ष स्थान पर जबकि राजधानी दिल्ली 65वें स्तर पर थी। सुविधाजनक जीवन, यातायात, शिक्षा के अवसर, आय के साधन और सुरक्षित माहौल आम नागरिकों की प्राथमिकताएं होती हैं। शासन के दृष्टिकोण से, नवी मुंबई, तिरुपति, और करीमनगर (तेलंगाना) शीर्ष तीन शहर थे, आर्थिक कारकों के दृष्टिकोण से चंडीगढ़, अजमेर, और कोटा का नाम सबसे आगे था। सामाजिक बुनियादी ढांचे की श्रेणी में तिरुपति के बाद तिरुचिरापल्ली और नवी मुंबई सबसे ऊपर थे और अंततः ग्रेटर मुंबई, पुणे तथा थाने भौतिक बुनियादी ढांचे की श्रेणी में शीर्ष स्थान पर थे। वहीं दूसरी ओर, सुविधाजनक जीवनयापन के लिए इस सूची के सबसे कम पसंदीदा स्थानों में बिहार, पटना, कोहिमा और सबसे नीचे रामपुर का नाम दर्ज था। इसका प्रमुख कारण यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिल्ली से लगभग 330 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामपुर शहर अच्छे अस्पतालों और विद्द्यालयों के आभाव, बिजली की चोरी, परिवहन सुविधाओं की कमी आदि समस्याओं से जूझ रहा है ।
जीवन निर्वाह करने के उद्देश्य से रामपुर के बुनियादी ढांचे पर नजर डालें तो हमें ज्ञात होता है कि शहर में विद्यालयों की स्थिति अच्छी नहीं है, कूड़ा निस्तारण व्यवस्था भी जर-जर स्थिति में है। परिवहन और चिकित्सा व्यवस्था को भी सुधार की आवश्यकता है। साथ ही यहाँ बिजली की आपूर्ति सबसे खराब स्थिति से गुजर रही है। कई वर्षों में कई शासन-प्रशासन बदले किन्तु शहर की हालत आज भी अपना दयनीय हाल बयां करती है। एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, 3.25 लाख की आबादी वाले इस शहर से 165 टन गंदगी और कचरा हर रोज निकलता है, जिसे स्थानीय लोग या तो पास के घाटमपुर में या शहर के खुले नालों और उपनगरों में फेंक देते हैं अर्थात कूड़ा निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। शहर के मुख्य स्वच्छता अधिकारी के अनुसार 355 स्थायी सैनिटरी श्रमिकों की आवश्यकता होते हुए भी यहाँ 200 से भी कम कर्मचारी कार्यरत हैं। सरकारी अस्पतालों में दो मरीजों पर एक ही बिस्तर की व्यवस्था है। मरीजों का आंकड़ा लगभग 4000 प्रति दिन है, जहां उनकी देखभाल करने के लिए सिर्फ 13 डॉक्टर ही उपस्थित हैं। स्कूलों की हालत देखें तो वहां कक्षाओं का आभाव होने के कारण दो कक्षाओं के छात्रों को एक ही कमरे में बैठना पड़ता है।
सुविधाजनक जीवन निर्वाह के मानक सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) के माध्यम से शहरी क्षेत्रों को बेहतर बनाने के सरकार के प्रयास को मजबूत प्रोत्साहन प्रदान करेंगे। केंद्र और राज्य सरकार दोनों को मिलकर इन सभी बुनियादी समस्याओं का समाधान करने की आवश्यकता है। साथ ही इस बात की भी पुष्टि होनी आवश्यकता है कि सरकार द्वारा लागू की जाने वाली योजनाएँ सुचारू रूप से सम्पूर्ण हों और आवंटित धनराशि का पूरा प्रयोग शहर के विकास कार्यों पर किया जाए। दूसरे राज्यों में लागू सफल व्यवस्था को भी रामपुर शहर में संचालित करना एक अच्छा विचार सिद्ध हो सकता है। साथ ही नागरिकों को भी अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, इसलिए शासन-प्रशासन को भी समय-समय पर जनता का मार्गदर्शन करना आवश्यक है।
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