क्या अलग-अलग पहचान है ऋषि, मुनि, तपस्वी, योगी और संन्यासी की

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
19-09-2018 01:35 PM
क्या अलग-अलग पहचान है ऋषि, मुनि, तपस्वी, योगी और संन्यासी की

सामान्यतः लोग ऋषि, मुनि, तपस्वी, योगी और संन्यासी की परिभाषा या अर्थ एक ही समझते हैं, जो कि संसार की सब मोह माया त्याग कर, लोगों को ज्ञान बांटता चले, और जनमानस की भलाई के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दे। जिनके जटा-जूट हो, रूद्राक्ष की माला डाली हो या जिसके पास कमंडल हो और बड़ी-बड़ी दाढ़ी मूंछ हो। परंतु ऐसा नहीं है। आईए जानते हैं हिंदू और जैन परंपरा में धार्मिक गुरूओं (ऋषि, मुनि, तपस्वी, योगी और संन्यासी) का वर्गीकरण:


ऋषि:


‘ऋषि’ वैदिक-संस्कृत भाषा का शब्द है। यह शब्द अपने आप में एक वैदिक परंपरा का भी ज्ञान देता है। ऋषि का स्थान तपस्वी और योगी की तुलना में उच्चतम होता है। अमरसिंहा द्वारा संकलित प्रसिद्ध संस्कृत समानार्थी शब्दकोश में सात प्रकार के ऋषियों का उल्लेख है: ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि और राजर्षि। वैदिक काल में ये सात प्रकार के ऋषिगण होते थे। वहीं अमरकोष अन्य प्रकार के संतों (संन्यासी, परिव्राजक, तपस्वी, मुनि, ब्रह्मचारी, यती इत्यादि) से ऋषियों को अलग करता है।

हमारे पुराणों में सप्त ऋषि- केतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ठ तथा भृगु हैं। ऐसी ही एक सप्त ऋषि की सूची संध्यावन्दनम में भी प्रयोग की जाती है, जिसमें सप्त ऋषि अत्रि, भृगु (ऋषि भृगु चित्र में दर्शाए गए हैं), कौत्सा, वशिष्ठ, गौतम, कश्यप और अंगिरस हैं और दूसरी सूची के अनुसार कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नी, भारद्वाज सप्त ऋषि है।


मुनि:

‘मुनि’ शब्द का अर्थ मौन (शांति) है अर्थात जो थोड़ा या कम बोलते हैं उन्हें मुनि कहा जाता है। अर्थात एक ऋषि या साधु, विशेष रूप से मौन को पूरा करने की शपत लेते हैं, या जो बोलते भी हैं तो वो बहुत कम बोलते हैं, एक मुनि कहलाते हैं। एक वे भी मुनि होते हैं जो हमेशा ईश्‍वर (नारायण) का जाप करते हैं या भगवान का ध्यान करते हैं जैसे कि नारद मुनि।

मुनी मंत्रों का मनन करते हैं और अपने चिंतन से ज्ञान के एक व्यापक भण्डार की उत्पत्ति करते हैं। वे शास्त्रों का लेखन भी करते हैं। कर्म साधना के माध्यम से आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले मुनियों में से सबसे प्रमुख मुनि वेदव्यास (उन्होंने वेद को चार भागों में विभाजित किया तथा वे महाभारत और अठारह पुराणों के लेखक हैं) और महर्षि वाल्मिकी (उन्होंने रामायण की रचना की थी) हैं। ऊपर दिया गया चित्र मुनि वेदव्यास का है। एक बौद्ध भिक्षु भी अनिवार्य रूप से मुनि ही होते हैं। उनके लिए भगवान उनमें ही बसते हैं, उनका हृदय ही सब कुछ है।


संन्यासी:

‘संन्यासी’ वह है जो त्याग करता है। त्यागी ही संन्‍यासी है। संन्यासी बिना किसी संपत्ति के एक अविवाहित जीवन जीता है तथा योग ध्यान का अभ्यास करता है या अन्य परंपराओं में, अपने चुने हुए देवता या भगवान के लिए प्रार्थनाओं के साथ भक्ति, या भक्ति ध्यान करता है। हिन्दू धर्म में संन्‍यासियों को तीन भागों में बांटा गया है:

1. परिव्राजक: वह संन्यासी जो सदा भ्रमण करता रहे जैसे शंकराचार्य (शंकराचार्य को ऊपर चित्र में दर्शाया गया है), रामानुजाचार्य व अन्य।
2. परमहंस: यह संन्यासी की उच्चतम श्रेणी है। इसके अंतर्गत शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, रामकृष्ण परमहंस और अन्य आते हैं।
3. यती: यह शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘वह जो उद्देश्य की सहजता के साथ प्रयास करता है’। इसके उदाहरण यती शंकराचार्य, यती रामानुजाचार्य, यती पूज्य राघवेंद्र और अन्य हैं।


तपस्वी:

‘तपस्वी’ यह शब्द संस्कृत भाषा के तपस्या से लिया गया है, इसका शाब्दिक अर्थ ‘ऊष्मा’ से है, इसमें एक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, शारीरिक और मानसिक प्रलोभनों से बचने में अनुशासन और कष्ट-सहिष्णुता के लिये धैर्य और संयम की आवश्यकता पड़ती है। इस शब्द का उल्लेख सबसे पुराने संदर्भ ऋग्वेद- 8.82.7, बौधायन- धर्म शास्त्र, कात्यायन- श्रोत-सूत्र, पाणिनि- 4.4.128 आदि में पाया गया है, जहां इसका अर्थ दर्द या पीड़ा से संबंधित है।

तपस्या पतंजलि के योग सूत्रों में वर्णित नियमों (स्वयं नियंत्रण का पालन) में से एक है। तपस्या का मतलब एक आत्म-अनुशासन या तपस्या में स्वेच्छा से शारीरिक तीव्र इच्छा को रोकना और सक्रिय रूप से जीवन में एक उच्च उद्देश्य की प्राप्ति करना होता है। तपस्या के माध्यम से, एक योगी आध्यात्मिक विकास की ओर एक मार्ग का समाशोधन कर सकता है तथा नकारात्मक ऊर्जा के संचय को रोक सकता है।

हिंदू, सिख और जैन धर्म में भिक्षु और गुरु तपस्या के माध्यम से भगवान की शुद्ध भक्ति करते हैं तथा धार्मिक जीवनशैली का अभ्यास करते हैं और मोक्ष, या आध्यात्मिक मुक्ति पाने के साधन के रूप में अभ्यास करते हैं।

प्राचीन हिंदू पुराणों में कई तपस्वियों का वर्णन मिलता है जैसे विश्वामित्र (जिन्हें ऊपर दिए चित्र में दर्शाया गया है) हजारों सालों से एक ब्राह्मणी श्री गुरु वशिष्ठ के बराबर बनने के लिए भारी तपस्या, उपवास और ध्यान करते हैं, तथा भागीरथ एक प्राचीन भारतीय राजा थे, जिन्होंने गंगा नदी को धरती पर लाने के लिये तपस्या की थी।


योगी:

शिव-संहिता पाठ योगी को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो जानता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड अपने शरीर के भीतर स्थित है, और योग-शिखा-उपनिषद दो प्रकार के योगियों का वर्णन करता है: पहले वो जो विभिन्न योग तकनीकों के माध्यम से सूर्य (सूर्या) में प्रवेश करते हैं और दूसरे वो जो योग के माध्यम से केंद्रीय नलिका (सुषुम्ना-नाड़ी) तक पहुंचते हैं तथा अमृत का सेवन करते हैं। योग के सन्दर्भ में नाड़ी वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। योग में यह माना जाता है कि नाड़ियाँ शरीर में स्थित नाड़ीचक्रों को जोड़ती हैं।

योगी शब्द पुरुष के लिये प्रयोग किया जाता है, जो व्यायाम करते हैं, या योग में महारत हासिल करते हैं। योगिनी शब्द महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाता है।

कुछ योगी:
श्री अरविन्द घोष
गौड़पाद
स्वामी योगानंद गिरि
स्वामी रामदेव
स्वामी सच्चिदानंद
स्वामी शिवानंद
स्वामी राम तीर्थ (ऊपर दिए गए चित्र में दर्शाए गए)
स्वामी महेश योगी
स्वामी परमहंस योगानंद और कई अन्य।

संदर्भ:
1. https://in.answers.yahoo.com/question/index?qid=20091107011709AA4lR8r
2. https://ipfs.io/ipfs/QmXoypizjW3WknFiJnKLwHCnL72vedxjQkDDP1mXWo6uco/wiki/Rishi.html
3. https://www.quora.com/What-is-the-difference-between-Rishi-and-Muni
4. https://goo.gl/YXk9cc

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.