बदलते दौर का बदलता सिनेमा

द्रिश्य 2- अभिनय कला
16-05-2018 02:27 PM
बदलते दौर का बदलता सिनेमा

भारत में हर वर्ष मजदूर दिवस मनाया जाता है, लेकिन श्रमिक वर्ग को लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं। यह आज के युग का एक कड़वा सच है। जीवन को सुधारने और पैसे कमाने के चक्कर में लोग बहुत तेज़ भाग रहे हैं। सरकार भी श्रमिक वर्ग के हित में बहुत कम कार्य कर रही है। हमें यह पता होना चाहिए कि मजदूर ही भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव है। भारतीय सिनेमा ने भी श्रमिक वर्ग के लोगों पर फिल्म बनाना अब छोड़ दिया है। वे बस मनोरंजन वाले विषय के ऊपर फिल्म बनाते हैं। एक समय था जब हिंदी फिल्मों में भारत के मजदूर और किसान के संघर्ष को दर्शाया जाता था। इससे लोग प्रेरणा भी लेते थे मगर आज भारतीय सिनमा केवल उच्च वर्ग के लोगों की पसंद आने वाली फ़िल्में बना रही है। फिल्म निर्माता चेतन आनंद ने ''नीचा नगर'' फिल्म का निर्माण किया था। इस फिल्म के ज़रिये उन्होंने यह दिखलाया कि भारत में गरीबों पर किस तरह से अत्याचार हो रहा है; उन्होंने अमीर और गरीब के बीच फ़ासले को भी दर्शाया। यह फिल्म अन्य फिल्म निर्माता जैसे बिमल रॉय, महबूब खान, एस. एस. वासन और बी. आर. चोपड़ा के लिए एक प्रेरणास्रोत बनीं। ऐसी बहुत सी फ़िल्में बनीं जो मजदूर और किसान के जीवन और संघर्ष को दर्शाती हैं जैसे – ‘दो बीघा ज़मीन’, ‘मदर इंडिया’, ‘पैगाम’ और ‘नया दौर’ आदि। ‘दो बीघा ज़मीन’ ने अकाल पड़ने पर किसानों की स्थिति को दर्शाया तो वहीं फिल्म ‘मदर इंडिया’ ने ऋण लेने के बुरे परिणामों को दर्शाया। ऋण न चुका पाने के कारण आज भी भारतीय किसान ख़ुदकुशी कर रहे हैं।

भारत में मजदूर और गरीब श्रेणी के लोगों की स्थिति को दिखाने के लिए और बहुत सी फ़िल्में निकली जैसे- ‘गंगा जमुना’, ‘फिर सुबह होगी’, ‘जागते रहो’, ‘पैगाम’, ‘शहर और सपना’, ‘मजदूर’ आदि। इन सभी फिल्मों ने भारतीय सामाजिक प्रणाली पर हमला किया, और लोगों को मजदूर की परेशानियों से आगाह करवाया। अगर सिनेमा समाज के लिए एक आइना है तब आज के युग में यह आइना टूट चूका है। पहले केवल भावुक और सामाजिक फ़िल्में बना करती थीं जो लोगों के लिए प्रेरणास्रोत का भी काम किया करती थीं। फिल्म ही एकमात्र जरिया है जिससे लोग अपने आस-पास हो रहे दुष्कर्मों और देश में हो रहे अन्याय को पहचान सकते हैं। हमें भारतीय सिनेमा से यह उम्मीद है कि फ़िर से वैसी ही प्रेरणात्मक फ़िल्में बनने लगें जैसा कि पहले बना करती थीं। फिल्म केवल मनोरंजन के लिए न हो मगर समाज में अच्छाई का सन्देश भी दें।

1. http://www.thehindu.com/entertainment/movies/the-missing-class/article23840495.ece/amp/
पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.