रामपुर समझें, उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध हाइड्रोपॉनिक और एरोपॉनिक खेती के बीच अंतरों को

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रामपुर समझें, उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध हाइड्रोपॉनिक और एरोपॉनिक खेती के बीच अंतरों को

रामपुर के लोगों, क्या आप जानते हैं कि हाइड्रोपॉनिक एक तरीका है जिसमें पौधों को मिट्टी के बजाय पौष्टिक पानी में उगाया जाता है। पौधों की जड़ें, इस पानी में डुबोई जाती हैं या फिर उन्हें एक दूसरे पदार्थ जैसे पर्लाइट (perlite) या कंकड़ के सहारे रखा जाता है। यह खेती का तरीका उत्तर प्रदेश के कई शहरों में बहुत लोकप्रिय हो रहा है, जैसे बरेली, मुज़फ़्फ़रनगर, हापुड़, आगरा, नोएडा और गोरखपुर में। 

आज हम समझेंगे एरोपॉनिक और हाइड्रोपॉनिक खेती में क्या फर्क है। फिर, हम जानेंगे कि यह खेती का तरीका कैसे काम करता है। इसमें हम खेती के अहम हिस्सों के बारे में बात करेंगे, जैसे बढ़ने वाला पदार्थ, एयर पंप, नेट पॉट्स आदि। इसके बाद हम हाइड्रोपॉनिक खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों के बारे में भी जानेंगे, जैसे पी एच (pH) मीटर, टी डी एस (TDS) मीटर, ग्रो लाइट्स। आखिर में, हम सीखेंगे कि क्यों हाइड्रोपॉनिक खेती भारत में हाल के सालों में ज़्यादा लोकप्रिय हो रही है। 

हाइड्रोपॉनिक खेती | चित्र स्रोत : Wikimedia 

एरोपॉनिक और हाइड्रोपॉनिक खेती में अंतर

पहलूएरोपॉनिक खेतीहाइड्रोपॉनिक खेती
पोषक तत्व पहुंचाने की विधिपौधों की जड़ों पर पोषक तत्वों से छिड़काव किया जाता है।

पौधे या तो पूरी तरह पानी में डूबे रहते हैं या समय-समय पर पानी का प्रवाह दिया जाता है।

 

डिजाइन और कार्यप्रणाली

 

यह खेती पूरी तरह नियंत्रित और बंद वातावरण में होती है,

 जहां फ़सलें हवा में लटकी रहती हैं।

यह खेती भी नियंत्रित और बंद वातावरण में होती है, 

जहां पौधे पोषक तत्वों से भरपूर पानी वाले कंटेनरों में उगाए जाते हैं।

पौधों की वृद्धि और स्वास्थ्य

 

पौधे एक सील किए गए वातावरण में उगते हैं, 

जिससे बैक्टीरिया का खतरा कम होता है। जड़ें हवा में लटकी रहती हैं, 

जिससे ऑक्सीजन का बेहतर अवशोषण होता है।

पौधे एक सील किए गए वातावरण में उगते हैं, 

जिससे बैक्टीरिया का खतरा कम होता है। 

जड़ें सीधे पोषक तत्वों से भरपूर घोल के संपर्क में रहती हैं, 

जिससे तेज़ी से बढ़ने में मदद मिलती है।

हाइड्रोपॉनिक्स कैसे काम करता है ?

हाइड्रोपॉनिक सिस्टम इतने कारगर होते हैं क्योंकि ये तापमान और पीएच संतुलन जैसी पर्यावरणीय परिस्थितियों पर पूरी तरह नियंत्रण रखने की सुविधा देते हैं और पौधों को अधिक से अधिक पोषक तत्व और पानी प्रदान करते हैं। यह प्रणाली एक सरल सिद्धांत पर काम करती है – पौधों को वही चीज़ दें जिसकी उन्हें ज़रूरत है, और जब ज़रूरत हो, तब दें।

हाइड्रोपॉनिक इस प्रणाली में हर पौधे की ज़रूरत के अनुसार पोषक तत्वों का घोल तैयार किया जाता है । इसमें यह भी तय किया जाता है कि पौधों को कितनी रोशनी मिले और कितनी देर तक मिले। पी एच स्तर को भी मापा और बदला जा सकता है। इस तरह के पूरी तरह नियंत्रित माहौल में पौधों की वृद्धि बहुत तेज़ी से होती है। 

हाइड्रोपॉनिक्स प्रणाली | चित्र स्रोत : Wikimedia

 जब पौधों के लिए सही माहौल बनाया जाता है, तो कई जोखिम कम हो जाते हैं। खुले मैदानों और बागीचों में उगने वाले पौधे कई समस्याओं का सामना करते हैं, जैसे कि मिट्टी में मौजूद फ़फ़ूंद, जो बीमारियाँ फैला सकती हैं। खरगोश जैसे जानवर फ़सलों को नष्ट कर सकते हैं और टिड्डियों का झुंड एक ही दिन में खेतों को बर्बाद कर सकता है। हाइड्रोपॉनिक खेती इन सभी समस्याओं को खत्म कर देती है।

मिट्टी में उगने वाले पौधों को उसकी कठोरता का सामना करना पड़ता है, लेकिन हाइड्रोपॉनिक्स में ऐसा नहीं होता, जिससे पौधे जल्दी बड़े होते हैं। साथ ही, इसमें कीटनाशकों की ज़रूरत नहीं पड़ती, जिससे फल और सब्ज़ियाँ ज़्यादा सेहतमंद और उच्च गुणवत्ता वाली होती हैं। जब कोई रुकावट नहीं होती, तो पौधे तेज़ी से और स्वस्थ तरीके से बढ़ते हैं।

भारत में हाइड्रोपॉनिक खेती के प्रमुख तत्व

1.) ग्रोइंग मीडिया (Growing Media): हाइड्रोपॉनिक खेती में पौधे मिट्टी के बजाय एक खास माध्यम (ग्रोइंग मीडिया) में उगाए जाते हैं, जो पौधे को सहारा देता है और उसकी जड़ों को मज़बूती से पकड़कर रखता है। यह मीडिया मिट्टी का विकल्प होता है, लेकिन खुद से कोई पोषण नहीं देता। इसके बजाय, यह नमी और पोषक तत्वों को सोखकर पौधों तक पहुंचाता है। कई ग्रोइंग मीडिया, पी एच-सामान्य (pH-neutral) होते हैं, जिससे पोषक घोल का संतुलन बिगड़ता नहीं है। हाइड्रोपॉनिक खेती के लिए कई प्रकार के मीडिया उपलब्ध हैं, जिनका चुनाव उगाए जाने वाले पौधे और सिस्टम के आधार पर किया जाता है। ये ऑनलाइन और स्थानीय नर्सरी व गार्डनिंग स्टोर्स (gardening stores) में आसानी से मिल जाते हैं।

2.) एयर स्टोन्स और एयर पंप्स (Air Stones and Air Pumps): अगर पौधों की जड़ें लंबे समय तक पानी में डूबी रहें और उन्हें पर्याप्त ऑक्सीजन न मिले, तो वे सड़ सकती हैं। इसलिए, एयर स्टोन्स का उपयोग किया जाता है, जो पोषक तत्वों से भरपूर पानी में छोटे-छोटे ऑक्सीजन के बुलबुले छोड़ते हैं। यह न केवल पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं, बल्कि पोषक तत्वों को भी पूरे घोल में समान रूप से फैलाने में मदद करते हैं। हालांकि, एयर स्टोन्स खुद ऑक्सीजन नहीं बनाते, इसलिए इन्हें एक बाहरी एयर पंप से जोड़ना पड़ता है। ये उपकरण आमतौर पर एक्वेरियम में भी इस्तेमाल किए जाते हैं और किसी भी पेट स्टोर (pet store) पर आसानी से मिल सकते हैं।

3.) नेट पॉट्स (Net Pots): नेट पॉट्स, जालीदार गमले होते हैं, जिनमें हाइड्रोपॉनिक पौधे लगाए जाते हैं। इनकी जालीदार संरचना की वजह से पौधों की जड़ें किनारों और निचले हिस्से से बाहर निकल सकती हैं, जिससे उन्हें ज़्यादा ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं। पारंपरिक मिट्टी या प्लास्टिक के गमलों की तुलना में नेट पॉट्स बेहतर जल निकासी प्रदान करते हैं, जिससे पौधे स्वस्थ तरीके से बढ़ते हैं।

2015 में बेल्जियम पैवेलियन एक्सपो (Belgium Pavilion Expo) में रोटरी हाइड्रोपोनिक खेती का प्रदर्शन | चित्र स्रोत : Wikimedia 

भारत में हाइड्रोपॉनिक खेती के ज़रूरी उपकरण

1.) पी एच (pH) मीटर: हाइड्रोपॉनिक खेती में पौधों को सही पोषण देने के लिए पानी का पी एच बैलेंस बनाए रखना बहुत ज़रूरी होता है। पी एच मीटर की मदद से हम पानी का पी एच स्तर नाप सकते हैं और ज़रुरत के हिसाब से उसे ठीक कर सकते हैं। हर पौधा एक खास पी एच में ही अच्छे से बढ़ता है, इसलिए इसे समय-समय पर चेक करना ज़रूरी है।

2.) ई सी/ टी डी एस (EC/TDS) मीटर: पानी में कितने पोषक तत्व घुले हुए हैं, यह जानने के लिए ई सी/ टी डी एस मीटर का इस्तेमाल किया जाता है। इससे यह पक्का किया जाता है कि पौधों को सही मात्रा में पोषण मिल रहा है, जिससे उनकी ग्रोथ अच्छी हो सके।

3.) ग्रो लाइट: अगर आप हाइड्रोपॉनिक खेती घर के अंदर कर रहे हैं, तो पौधों को सूरज की रोशनी के बिना भी बढ़ाने के लिए ग्रो लाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है। ये लाइट्स वैसे ही काम करती हैं जैसे सूरज की रोशनी, जिससे पौधे अच्छी तरह बढ़ सकें। ज़्यादातर एल ई डी (LED) या एच आई डी (HID) लाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि ये ज़्यादा असरदार होती हैं।

चित्र स्रोत : flickr

भारत में हाइड्रोपॉनिक खेती क्यों तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है

  1. घर के पास उगाए गए ताज़ा खाने की मांग - आजकल लोग सेहत को लेकर ज़्यादा जागरूक हो गए हैं, इसलिए वे ताज़ा और बिना केमिकल वाले फल-सब्ज़ियां खाना पसंद कर रहे हैं। कुछ लोग खुद उगाने लगे हैं, तो कुछ लोकल किसानों से खरीदना पसंद कर रहे हैं।
  2. नई तकनीकों की मदद - अब खेती में नए और स्मार्ट तरीके आ गए हैं, जिससे हाइड्रोपॉनिक सिस्टम को चलाना आसान और सस्ता हो गया है। ऑटोमेशन और कंट्रोल सिस्टम्स की वजह से इसमें ज़्यादा मेहनत भी नहीं लगती।
  3. सालभर खेती और बेहतर  खाद्य आपूर्ति - हाइड्रोपॉनिक खेती से पूरे साल फ़सल उगाई जा सकती है। साथ ही, इसमें पानी और खाद की भी कम ज़रूरत होती है। इससे लोगों को बिना किसी रुकावट के ताज़ी सब्ज़ियां और फल मिलते रहते हैं।
  4. बदलती खाने की आदतें - पहले भारत में अनाज ज़्यादा उगाया जाता था, लेकिन अब लोग विदेशी फल-सब्ज़ियां भी खाना पसंद कर रहे हैं, जैसे कि बेरीज़, केसर, शिमला मिर्च, ज़ूकीनी और पत्तेदार सब्ज़ियां। हाइड्रोपॉनिक सिस्टम की मदद से इन्हें बिना मौसम की टेंशन लिए आसानी से उगाया जा सकता है।
  5. पैसे लगाने के नए मौके - हाइड्रोपॉनिक खेती शुरू करने में शुरुआत में काफ़ी खर्चा आता है, लेकिन अब इसमें निवेश बढ़ रहा है। सरकार भी ऐसी नई तकनीकों को बढ़ावा दे रही है और कई स्टार्टअप्स इस फील्ड में उभर रहे हैं।
  6. नई कंपनियों की एंट्री - अब कई स्टार्टअप्स (Startups) और कंपनियां लोगों को, हाइड्रोपॉनिक  खेत सेटअप करने और चलाने में मदद कर रही हैं। ये कंपनियां, जानकारी भी देती हैं और “ फ़ार्मिंग ऐज़ ए सर्विस” (Farming as a Service) जैसी सुविधाएं भी देती हैं, जिससे खेती करना और आसान हो गया है।
  7. कम फ़सल बर्बाद होती है - चूंकि हाइड्रोपॉनिक   पूरी तरह से निगरानी में होते हैं, इसलिए फ़सल ख़राब होने का खतरा बहुत कम होता है। साथ ही, फ़सल जल्दी बिक जाती है, जिससे बर्बादी भी नहीं होती।
  8. खाने की  गुणवत्ता और ट्रेसबिलिटी - ये  खेत शहरों के पास बनाए जाते हैं, जिससे फल और सब्ज़ियां सीधे ग्राहकों तक पहुंचाई जा सकती हैं। इससे लोग आसानी से पता कर सकते हैं कि उनका खाना कहां से आ रहा है और कितना ताज़ा है।

 संदर्भ: 

https://tinyurl.com/yw5br5cy 

https://tinyurl.com/5fdctwdc 

https://tinyurl.com/mun73usd 

https://tinyurl.com/286bff3m 

मुख्य चित्र: बाईं तरफ़ हाइड्रोपॉनिक और दाईं तरफ़ एरोपॉनिक खेती (Wikimedia) 
 

 

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