रामपुर, आइए जानें, कैसे हिमालयी शहद मधुमक्खियां, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को संभालती हैं

तितलियाँ व कीड़े
17-03-2025 09:24 AM
रामपुर, आइए जानें, कैसे हिमालयी शहद मधुमक्खियां, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को संभालती हैं

हिमालयी शहद मधुमक्खी (Himalayan giant honey bee), जो पोषक तत्वों से समृद्ध शहद उत्पादन के लिए जानी जाती है, लंबे समय से पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय आजीविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। रामपुर से नज़दीक स्थित  हिमालयी क्षेत्रों में ये मधुमक्खियां आम हैं। ये मधुमक्खियां, पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर जंगलों, कृषि और जैव विविधता का समर्थन करती हैं। हालांकि, आज वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक कीटनाशक के उपयोग और निवास स्थान के विनाश के कारण उनकी आबादी लगातार घट रही है। जंगली फूलों और घोंसला बनाने योग्य स्थानों के नुकसान ने, उनका जीवन कठिन बना दिया है। इससे शहद उत्पादन और प्रकृति संतुलन, दोनों को खतरा है। इसीलिए, न केवल शहद के लिए, बल्कि, स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने और अनगिनत पौधों एवं पशु प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए, आज इन मधुमक्खियों की रक्षा करना आवश्यक है। 

आज, हम हिमालयी शहद मधुमक्खी के बारे में जानेंगे। फिर हम, इस मधुमक्खी के जीवन चक्र को समझेंगे। इसके बाद, हम उनकी आबादी में गिरावट के पीछे मौजूद कारणों पर चर्चा करेंगे, जिसमें उनके निवास स्थान की हानि, जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियां मुख्य है। अंत में, हम परागण और जैव विविधता संरक्षण में मधुमक्खियों के महत्व को उजागर करेंगे। हम पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने और खाद्य उत्पादन का समर्थन करने में, उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर अतः ज़ोर देंगे।

हिमालयी शहद मधुमक्खी का परिचय-

यद्यपि हिमालयी शहद मधुमक्खी – एपिस लेबोरिओसा स्मिथ (Apis laboriosa Smith), दुनिया की सबसे बड़ी शहद मधुमक्खी प्रजाति है, इनका बहुत ही कम अध्ययन किया गया है। इनका वितरण, ज़्यादातर दक्षिणी एशिया के हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में केंद्रित है। यह प्रजाति, एपिस डोर्सटा (Apis Dorsata) के साथ, उप जीनस (Genus) – मेगापिस (Megapis) की सदस्य है। हिमालयी शहद मधुमक्खी को अतः, 1980 तक एपिस डोर्सटा (Apis dorsata) की उप-प्रजाति माना जाता था। लेकिन, फिर सकागामी (Sakagami) ने एपिस लेबोरिओसा को एक अलग प्रजाति के रूप में वर्णित किया, जिसे बाद में आनुवंशिक अनुक्रमण द्वारा समर्थित किया गया था। एपिस लेबोरिओसा, आमतौर पर चट्टानों पर एकल मधुकोष के साथ एक बड़ा खुला घोंसला बनाती है। 

एपिस डोर्सटा नामक शहद की मधुमक्खियों का छत्ता | चित्र स्रोत : Wikimedia 

हिमालयी शहद मधुमक्खी का जीवन चक्र-

अन्य सभी शहद मधुमक्खी प्रजातियों की तरह, हिमालयी शहद मधुमक्खी भी हालमिटैबलस  (Holometabolous) कीड़े हैं। ये निम्नलिखित जीवन चरणों के साथ, एक पूर्ण मेटामोर्फ़ोसिस(Metamorphosis) प्रक्रिया से गुजरते हैं – अंडा, लार्वा (Larva ), प्यूपा (Pupa) और वयस्क। एपिस लेबोरिओसा के विकास के बारे में विवरण, हालांकि काफ़ी हद तक अज्ञात हैं, क्योंकि, इनके घोंसले या मधुकोश तक अध्ययन के लिए पहुंचना मुश्किल है। 

१.अंडा: एक शहद मधुमक्खी का जीवन तब शुरू होता है, जब एक मोम कोष में रानी मधुमक्खी द्वारा अंडे दिए जाते हैं। इन अंडों से, तीन दिनों के बाद लार्वा निकलते हैं।

२.लार्वा: अपने अंडे से भोजन ग्रहण करने के बाद, लार्वा, भोजन और देखभाल के लिए अब श्रमिकों पर निर्भर होते है। एक स्वस्थ लार्वा, कोष में अंग्रेज़ी अक्षर – सी (C) जैसा आकार लेता है, जिससे वह कोष के नीचे स्थित तरल भोजन प्राप्त करता है। जब छह दिनों के बाद लार्वा थोड़ा बड़ा होता है, तब यह श्रमिकों को एक रासायनिक संदेश भेजता है कि, कोष मोम के साथ लेपित करने के लिए तैयार है।

३.प्यूपा: यह एक भोजन रहित जीवन चरण है, जब प्यूपा 11 दिनों तक पूर्ण रूप से शांत रहता है। प्रत्येक दिन, प्यूपा, अपनी लार्वा विशेषता खोता है, और अधिक वयस्क सुविधाओं को प्राप्त करता है।

४.वयस्क मधुमक्खी: जब प्यूपा पूरी तरह से वयस्क बन जाता है, तो यह कोष से निकलता है, रेंगता है, और कॉलोनी के काम में, अन्य मधुमक्खियों के साथ विचरण व काम करने लगता है।

सिक्किम राज्य के ऊर्ध्वाधर चट्टानी हिमालय क्षेत्र में एपिस लेबोरिओसा की एक छत्ते जैसी कॉलोनी। चित्र स्रोत : Wikimedia 

हिमालयी शहद मधुमक्खी की जनसंख्या में गिरावट के कारण-

दुनिया भर में, मधुमक्खी पालकों ने ‘कॉलोनी पतन विकारों’ के कारण, मधुमक्खी के छत्तों में एक महत्वपूर्ण नुकसान को देखा है। “कॉलोनी पतन विकार (Colony collapse disorder)(CCD)”, शहद मधुमक्खी की आबादी में कमी के कारण हैं। मानव आबादी ने वैश्विक स्तर पर, मधुमक्खी आवासों को नुकसान पहुंचाया है। 

कॉलोनी पतन विकार(CCD), वह घटना है, जो तब होती है, जब एक कॉलोनी में कार्यकर्ता मधुमक्खियों की बहुसंख्यक आबादी या तो खो जाती है, या अकेले रानी पर काम छोड़ने हेतु फ़रार हो जाती है। यह विकार, मधुमक्खियों के लिए लंबे समय में एक गंभीर खतरा पैदा करता है। पिछले अध्ययनों ने बताया है कि, कॉलोनी पतन विकार के विभिन्न मामलों के कारण, पिछले पांच वर्षों में कई मधुमक्खी कालोनियों में काफ़ी कमी आई हैं। सर्दियों के मौसम में, छत्तों की संख्या एवं दर से, इन किटों की जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है। 

•निर्माण गतिविधियां – 

ठोस सामग्री का उपयोग करके मनुष्यों की मानवजनित गतिविधियां, तेज़ी से औद्योगिकीकरण और निर्माण, अधिक प्रदूषण मधुमक्खियों की घटती आबादी के मुख्य कारण हैं।

•कीटनाशक और भारी धातुएं-

भारत कृषि प्रधान देश है। अतः किसान अपनी फ़सल को बचाने के लिए, अतिरिक्त कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं। कीटनाशकों का   उपयोग, परागण एजेंटों (agents) के जीवन चक्र को प्रभावित करता है, जिसमें मधुमक्खियां विशेष रूप से प्रभावित हैं। कीटनाशकों के अंश, मधुमक्खी उत्पादों में प्रवेश कर सकते हैं, और उन्हें खपत के लिए अयोग्य बना सकते हैं।

•मधुमक्खी के दुश्मन-

अन्य कीट व बीमारियों सहित विभिन्न तनावों के कारण, हर साल  इनके छत्तों की बड़ी संख्या क्षतिग्रस्त हो जाती है, जो अंततः मधुमक्खी पालन उद्यम को नुकसान पहुंचाती है।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

परागण और जैव विविधता संरक्षण के लिए मधुमक्खियों का महत्व-

परागण, पौधों को शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पादों की तुलना में 40-140 गुना अधिक लाभ देता है, और शहद मधुमक्खियां इस प्रक्रिया में 60-68% योगदान देती हैं।  ये कीट, विभिन्न प्रकार की फ़सलों में परागण करने के लिए ज़िम्मेदार  होते हैं । हिमालयी शहद मधुमक्खी जैसी  भारतीय मधुमक्खियां, वास्तव में, अन्य की तुलना में दो से तीन गुना अधिक प्रभावी परागणकर्ता हैं।

भोजन के संदर्भ में, मधुमक्खियां, कभी भी पौधों और जानवरों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती हैं, लेकिन परागण के माध्यम से, वे फ़सल उत्पादन को बढ़ावा दे सकती  हैं । अंततः वे खाद्य सुरक्षा में योगदान कर सकती हैं। इस प्रकार, खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता संरक्षण के दृष्टिकोण से, शहद मधुमक्खी मनुष्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं। 

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/mpptwaae

https://tinyurl.com/mts3ebcz

https://tinyurl.com/yc3cdyks

https://tinyurl.com/2rc756et

मुख्य चित्र: हिमालयी शहद मधुमक्खी (Wikimedia) 

पिछला / Previous

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.