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रामपुर के नागरिकों, आप इस बात से सहमत होंगे कि सिलिकॉन (silicon) हमारी ज़िंदगी में बहुत ज़रूरी है। यह आधुनिक तकनीक और चीज़ों को बनाने में काम आता है। स्मार्टफ़ोन (smartphone), कंप्यूटर (computer), सोलर पैनल (solar panel) और काँच जैसी चीज़ों में सिलिकॉन का इस्तेमाल होता है। सिलिकॉन इलेक्ट्रॉनिक सर्किटों (electronic circuits) में इस्तेमाल होता है, जिससे चीज़ें तेज़ और अच्छी होती हैं। इसके अलावा, यह काँच और सीमेंट जैसी चीज़ों को मज़बूत और टिकाऊ भी बनाता है। जब आप मोबाइल (mobile) का इस्तेमाल करते हैं, टेलीविज़न (television) देखते हैं, या सौर ऊर्जा का उपयोग करते हैं, तो आप सिलिकॉन से जुड़े होते हैं। सिलिकॉन बनाने के लिए सिलिका नामक पदार्थ का इस्तेमाल होता है, जो रेत और क्वार्ट्ज में पाया जाता है। इसे प्रोसेस करके सिलिकॉन तैयार किया जाता है, जिसे बहुत सारी चीज़ों में इस्तेमाल किया जाता है।
आज हम सिलिकॉन के बारे में और जानेंगे, और देखेंगे कि यह माइक्रोचिप्स (microchips) बनाने में कैसे काम आता है। फिर हम यह भी समझेंगे कि सिलिकॉन, सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रॉनिक्स (semiconductor electronics) में क्यों इतना इस्तेमाल होता है और इसकी खासियत क्या है। इसके बाद हम जानेंगे कि 2023 में दुनिया के सबसे बड़े सिलिकॉन उत्पादक कौन से देश हैं। आख़िर में, हम यह देखेंगे कि भारत सिलिकॉन कहां से मंगवाता है और इसका सेमीकंडक्टर उद्योग में क्या योगदान है।
सिलिकॉन क्या है और इसे माइक्रोचिप्स के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाता है ?
सिलिकॉन, पृथ्वी के बाहर के छिलके में पाया जाने वाला दूसरा सबसे आम तत्व है, पहला ऑक्सीजन है। लगभग सभी माइक्रोचिप्स (microchip) बहुत शुद्ध सिलिकॉन से बनती हैं।
ये एक रासायनिक तत्व है, जो उन माइक्रोचिप्स को बनाने के लिए ज़रूरी है, जो हम रोज़ इस्तेमाल करते हैं, जैसे मोबाइल फोन, कंप्यूटर, और यहां तक कि स्व-चालित गाड़ियों (self driving cars) में भी। यह खास इसलिए है क्योंकि सिलिकॉन सेमीकंडक्टर होता है, यानी यह बिजली को कुछ खास हालात में ही बहने देता है। इसकी कम कीमत और आसानी से बनने की वजह से, सिलिकॉन सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाला सेमीकंडक्टर है।
सिलिकॉन कैसे तैयार किया जाता है?
चिप्स बनाने के लिए सिलिकॉन सबसे पहले खास तरीके से खदान से निकाला गया सिलिका रेत से बनता है। इसमें बहुत ही कम मात्रा में गैर-सिलिकॉन के तत्व होते हैं—कम से कम 99.9999999% शुद्ध। इसे बनाने के लिए सिलिका (silica) रेत को बहुत गर्म किया जाता है, जिससे यह सिलिकॉन की एक किस्म में बदल जाता है जिसे “मेटलर्जिकल ग्रेड सिलिकॉन” (Metallurgical Grade Silicon) (MG-Si) कहते हैं। फिर इसे और भी शुद्ध करके “इलेक्ट्रॉनिक ग्रेड सिलिकॉन” (Electronic Grade Silicon) (EG-Si) बनाया जाता है, जो चिप्स बनाने के लिए इस्तेमाल होता है।
चिप्स बनाने की प्रक्रिया में, सिलिकॉन के बड़े टुकड़े, जिन्हें “बाउल्स” या “सिलिकॉन क्रिस्टल” (Silicon crystal) कहते हैं, बनाए जाते हैं। फिर इन्हें गर्म करके सिलिकॉन के पतले-पतले टुकड़ों, यानी वेफ़र्स (wafers) में बदला जाता है। वेफ़र्स आम तौर पर 300 मिमी (12 इंच) व्यास के होते हैं और इनमें 148 चिप्स रहते हैं, जिनका आकार 20 मिमी x 20 मिमी होता है।
वेफ़र्स की सतह को बहुत अच्छे से पॉलिश किया जाता है, ताकि इनमें कोई दरार या ख़राबी न हो। इन वेफ़र्स का इस्तेमाल सेमीकंडक्टर बनाने के उपकरणों में भी किया जाता है, जैसे वाफर को उकेरने वाले उपकरणों में, ताकि सिलिकॉन के अलावा कोई और चीज वाफर पर न लगे और वह साफ रहे।
सिलिकॉन का सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रॉनिक्स में इतना अधिक उपयोग क्यों होता है?
सिलिकॉन एक कंप्यूटर का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। कंप्यूटिंग में कम प्रतिरोधकता आवश्यक होती है, और सिलिकॉन अर्धचालकों के लिए सबसे सामान्य रूप से उपयोग किया जाने वाला पदार्थ है। इसके अलावा, सिलिकॉन एक बहुत ही स्थिर तत्व है, और यह उच्च तापमान पर आसानी से नहीं टूटता। उच्च तापमान का विरोध करने की क्षमता इसे सेमीकंडक्टर बनाने के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाती है। सिलिकॉन सोलर पैनल्स (Solar Panels) और अन्य उपकरणों में भी इस्तेमाल होता है, जो इसे सौर ऊर्जा के लिए एक अच्छा विकल्प बनाता है।
सिलिकॉन, पृथ्वी पर दूसरा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है, जो पृथ्वी की क्रस्ट का लगभग 28% हिस्सा है। यह दुनिया में सबसे आम धातु है। सिलिकॉन को प्रोसेस और शुद्ध करना बहुत आसान होता है, जो इसे सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए आदर्श बनाता है। इसकी उच्च शुद्धता और एकल क्रिस्टल संरचना, इसे इलेक्ट्रॉनिक घटकों के लिए आकर्षक विकल्प बनाती है। इसके अन्य लाभों में इसकी तुलनात्मक रूप से कम कीमत और आसानी से खींचने की क्षमता शामिल है।
इसके अलावा, सिलिकॉन को वेफ़र में बदलना भी बहुत आसान होता है, और इसके निर्माण की प्रक्रियाएँ अब अधिक पर्यावरण के अनुकूल होती जा रही हैं। यह पानी, एसिड (acid), और भाप से कम प्रभावित होता है, और इसकी रासायनिक प्रकृति इसे उच्च तापमान वाले सेटिंग्स में अधिक विश्वसनीय बनाती है।
चूंकि सिलिकॉन में सेमीकंडक्टिंग गुण होते हैं, इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स में व्यापक रूप से किया जाता है। इसे ऊर्जा क्षेत्र में भी इस्तेमाल किया जाता है, जहां यह सोलर पैनल और फोटोवॉल्टिक कोशिकाओं का एक महत्वपूर्ण घटक होता है। चूंकि यह बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध है, सिलिकॉन को प्राप्त करना अपेक्षाकृत आसान है। हालांकि, प्राकृतिक रूप से इसे शुद्ध करना कठिन होता है, इसलिए इसे इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए उपयुक्त बनाने के लिए इसे मानव-निर्मित प्रोसेसिंग से गुज़रना पड़ता है।
2023 में दुनिया के सबसे बड़े सिलिकॉन उत्पादक देश
सिलिकॉन को विभिन्न उद्योगों जैसे सेमीकंडक्टर्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और निर्माण के लिए एक बेहद उपयोगी तत्व माना जाता है। इसका खनन और प्रसंस्करण मुख्य रूप से सिलिका-सम्पन्न चट्टानों या बालू से किया जाता है, जिसमें विभिन्न खनन तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
सिलिकॉन उत्पादन, कुछ प्रमुख देशों में केंद्रित है, जिनमें चीन (China) सबसे आगे है, जो 6,600 हज़ार मेट्रिक टन सिलिकॉन का उत्पादन करता है। रूस (Russia) 620 हज़ार मेट्रिक टन के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि ब्राज़ील (Brazil) 390 हज़ार मेट्रिक टन के साथ तीसरे स्थान पर है। नॉर्वे (Norway) 340 हज़ार मेट्रिक टन का योगदान देता है, जो अपनी समृद्ध खनिज भंडार और उन्नत परिष्करण प्रौद्योगिकी से लाभान्वित होता है। आइसलैंड (Iceland) और कज़ाकिस्तान (Kazakhstan) क्रमशः 130 हज़ार मेट्रिक टन और 125 हज़ार मेट्रिक टन उत्पादन करते हैं, जबकि फ़्रांस (France) वैश्विक उत्पादन में 110 हज़ार मेट्रिक टन का योगदान देता है। मलेशिया (Malaysia) और भूटान (Bhutan) प्रत्येक 80 हज़ार मेट्रिक टन का योगदान करते हैं। भारत, हालांकि कम उत्पादन करता है, फिर भी 60 हज़ार मेट्रिक टन के साथ वैश्विक सिलिकॉन बाजार में एक भूमिका निभाता है।
अन्य प्रमुख सिलिकॉन उत्पादक देशों में स्पेन, पोलैंड, ऑस्ट्रेलिया, यूक्रेन और कनाडा शामिल हैं।
भारत में सिलिकॉन आयात आँकड़े
भारत ने 2023 में, 99.99% या उससे अधिक शुद्धता वाले सिलिकॉन का आयात, कुल 8.68 मिलियन डॉलर की कीमत में किया, जिसका कुल वज़न 835,940 किलोग्राम था। इनमें से अधिकांश आयात चीन से आए, जिनकी कुल मात्रा 825,000 किलोग्राम थी। मलेशिया ने 10,800 किलोग्राम सिलिकॉन सप्लाई किया, जबकि हांगकांग (Hongkong), चीन से केवल 3 किलोग्राम आया। अमेरिका (USA) से भारत ने 119 किलोग्राम, जबकि स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) और यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) ने क्रमशः 12 किलोग्राम और 7 किलोग्राम सिलिकॉन सप्लाई किया। इन आयातों से यह साफ़ है कि भारत में उच्च-शुद्धता वाले सिलिकॉन की आपूर्ति में चीन की प्रमुख भूमिका है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: सिलिकॉन का एक टुकड़ा और उससे निर्मित एलेक्ट्रॉनिक उत्पाद (WIkimedia)
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