एक अनुभवी योगी, योग की गहराइयों को समझता है !

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एक अनुभवी योगी, योग की गहराइयों को समझता है !

रामपुर के कई निवासियों के लिए, योग, उनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि, योग की शुरुआत, आज से तकरीबन 5000 साल पहले हुई थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, योग को व्यवस्थित रूप से तैयार करने और इसे आम लोगों तक पहुँचाने का श्रेय महर्षि पतंजलि को दिया जाता है? उन्हें "योग के जनक" के रूप में भी जाना जाता है।

महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र नामक छंदों का संग्रह तैयार किया, जिसमें आत्म-साक्षात्कार और ज्ञान प्राप्ति के लिए, योग का अभ्यास करना सिखाया गया है। इन सूत्रों में योग का दार्शनिक आधार दिया गया है, जो आधुनिक योग अभ्यास की नींव माने जाते हैं। पतंजलि के अनुसार, योग, आठ अंगों में विभाजित है, जिसे "अष्टांग योग" भी कहा जाता है।

आज के इस लेख में, हम योग के इस इतिहास और उसकी उत्पत्ति को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे। साथ ही, हम योग सूत्रों के चार अध्यायों या पादों पर चर्चा करेंगे। इसके बाद, हम योग के अंगों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।, इस लेख में हम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि पर चर्चा करेंगे । आइए, इस प्राचीन विद्या की गहराइयों में झांकें और इसे बेहतर ढंग से समझें।

महर्षि पतंजलि की एक प्रतिमा जिसमें वो ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं,जो उनके द्वारा परिभाषित योग के आठ अंगों में से एक है | Source : Wikimedia

पतंजलि के योग सूत्र क्या हैं?

महर्षि पतंजलि को योग सूत्र के प्रवर्तक और संस्थापक माना जाता है। हालांकि, उन्होंने अपनी रचना की सटीक तिथि को स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं किया। लेकिन विद्वानों का मानना है कि, महर्षि पतंजलि, लगभग 200 ईसा पूर्व के आसपास इस पृथ्वी पर रहे थे। इसी समय, उन्होंने योग सूत्र की रचना की, जिसे योग के मूलभूत सिद्धांतों और जीवनशैली का आधार माना जाता है।

हालांकि, उनकी लेखन शैली में भिन्नताएँ देखकर कुछ लोगों ने यह सुझाव दिया कि "पतंजलि" कोई एक व्यक्ति न होकर, 14 विद्वानों की एक परंपरा हो सकती है, जिसे सामूहिक रूप से "पतंजलि" कहा गया हो।

योग सूत्र की उत्पत्ति, प्राचीन परंपराओं में निहित है। इसकी सटीक तिथि पर विद्वानों के बीच मतभेद है। जैसे:

- एक प्रमुख इंडोलॉजिस्ट (Indologist) एडविन ब्रायंट (Edwin Bryant) का मानना है कि, यह रचना चौथी या पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व की है।

- मिशेल डेस्मराइस (Michele Marie Desmarais) जो की एक प्रसिद्ध लेखिका हैं, जो की एक प्रसिद्ध लेखिका हैं, ने, इसे 500 ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच का बताया।

- वुड्स (Woods) नामक एक शोधकर्ता के अनुसार, अधिकांश विद्वानों ने इसकी अवधि 400 ईसा के आसपास मानी है।

पतंजलि के योग सूत्र और अन्य ग्रंथों, जैसे महाभाष्य, में भाषा, व्याकरण और शैली में स्पष्ट अंतर है। महाभाष्य का लेखक भी "पतंजलि" नाम से जाना जाता है, लेकिन इसकी शैली योग सूत्र से बिल्कुल अलग है। इसी कारण, यह बहस लंबे समय से चल रही है कि क्या योग सूत्र वास्तव में पतंजलि की रचना है। यह ग्रंथ आज भी विद्वानों के अध्ययन और चर्चा का विषय बना हुआ है।

आइए, अब योग सूत्र के चार अध्याय (पाद) को समझते हैं:

समाधि पाद: यह अध्याय, ध्यान और आनंद से संबंधित है। इसे योग का अंतिम लक्ष्य माना जाता है। इसमें योग की प्रसिद्ध परिभाषा दी गई है: ‘योग चित्तवृत्ति निरोधः, यानी मन के उतार-चढ़ाव को समाप्त करना ही योग है।”

साधना पाद: यह अध्याय, योग के अभ्यास पर केंद्रित है। इसमें अष्टांग योग (आठ अंगों का मार्ग) का वर्णन है, जो ऐसा जीवन जीने का मार्ग दिखाता है जिससे दुख कम हो सके। पतंजलि बताते हैं कि ध्यान, अंतिम लक्ष्य है, लेकिन इसकी तैयारी के लिए अध्ययन, अनुशासन और भक्ति जैसे अभ्यास आवश्यक हैं। जब हमारा मन भौतिक चीजों में फंस जाता है, तो एक नैतिक जीवन दृष्टिकोण अपनाने से मन स्थिर हो सकता है।

विभूति पाद: यह अध्याय ध्यान के गहरे स्तरों और विशेष शक्तियों की प्राप्ति पर केंद्रित है। ध्यान के परिणामस्वरूप अद्भुत शक्तियाँ हासिल हो सकती हैं। इनमें 'हाथी जैसी शक्ति' या ब्रह्मांड की गहराई समझने की क्षमता शामिल है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि ये शक्तियाँ रूपक हैं या प्राचीन योगियों की वास्तविक उपलब्धियाँ।

कैवल्य पाद: इस अध्याय में, मुक्ति (कैवल्य) का वर्णन है। यह वह स्थिति है, जब आत्मा (पुरुष) भौतिक जीवन (प्रकृति) से मुक्त हो जाती है। यह अंतिम स्वतंत्रता और शांति की स्थिति है।

आइए, अब इन योग सूत्रों में वर्णित योग के अंगों की खोज करते हैं:

1. आसन (योग मुद्राएं): आसन का अर्थ, ‘योग मुद्राओं का अभ्यास’ होता है। पतंजलि ने इसे ऐसे शारीरिक अभ्यास के रूप में सिखाया, जिसे सहजता और आनंद के साथ किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर मुद्रा को धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इस दौरान, मन को सांस पर केंद्रित रखना और एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में शांति से जाना ज़रूरी है। यदि योग को केवल कसरत की तरह किया जाए, तो यह नुकसानदायक हो सकता है। इससे शरीर पर अधिक दबाव पड़ सकता है और चोट लगने की संभावना बढ़ जाती है। योग का उद्देश्य शरीर से जुड़ाव और मन के द्वंद्व को कम करना है। नियमित आसन अभ्यास से शरीर और मन दोनों स्वस्थ होते हैं।
 

Source : Wikimedia

2. प्राणायाम (सांस का नियंत्रण): प्राणायाम का अर्थ, 'सांस को नियंत्रित करना' होता है। योग के सिद्धांतों के अनुसार, सांस हमारे चारों ओर की सूक्ष्म जीवन ऊर्जा से जुड़ने का माध्यम है। जब हम सांस को सचेत रूप से नियंत्रित करते हैं, तो यह जीवन ऊर्जा हमारे शरीर को सक्रिय करती है। इससे हमारा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तनाव पर प्रतिक्रिया देने का तरीका भी बदलता है। प्राणायाम का मूल अनुपात 1:4:2 है। इसमें 1 सेकंड तक सांस अंदर लें (पूरक), 4 सेकंड तक सांस रोकें (कुंभक), और 2 सेकंड तक सांस छोड़ें (रेचक)। उन्नत प्राणायाम में बंधों का समावेश भी होता है। इन तकनीकों को सीखने के लिए किसी अनुभवी योग शिक्षक से सलाह लें।

3. प्रत्याहार (इंद्रियों को वापस लेना): प्रत्याहार का अर्थ, चेतना को बाहरी विकर्षणों से अलग करना होता है। यह ध्यान के अभ्यास की तैयारी का अंतिम चरण है। इस प्रक्रिया में ध्वनि, गंध या दृश्य जैसे संवेदी अनुभवों को बिना किसी प्रतिक्रिया के देखने और उन्हें गुज़रने देने का अभ्यास किया जाता है। यह अभ्यास माइंडफ़ुलनेस (mindfulness) की तरह है, जहां इंद्रियों से जुड़ाव कम किया जाता है।

4. धारणा (एकाग्रता): धारणा योग की आंतरिक यात्रा का पहला चरण है। इसमें साधक अपने ध्यान को पूरी तरह से एक बिंदु, जैसे नाभि या किसी विशेष छवि पर केंद्रित करता है। यह ध्यान अभ्यास दुख से मुक्ति की दिशा में पहला कदम है।

आंध्र प्रदेश के अमरावती में  स्थित ध्यान मुद्रा में बैठे गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा | Source : Wikimedia

5. ध्यान (ध्यान का अभ्यास): ध्यान का अर्थ किसी एक वस्तु पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करना होता है। इसमें साधक अपनी पूरी ऊर्जा और चेतना को केवल एक वस्तु पर केंद्रित करता है और बाकी सब कुछ भुला देता है। जबकि कई लोग ध्यान को सभी विचारों को खाली करने की प्रक्रिया मानते हैं, पतंजलि के अनुसार यह आवश्यक नहीं है। ध्यान की वस्तु कुछ भी हो सकती है, जब तक कि ध्यान स्थिर और केंद्रित रहे।

6. समाधि (पूर्ण एकाग्रता): समाधि, वह अवस्था है, जब ध्यान गहन हो जाता है और साधक अपनी ध्यान की वस्तु के साथ विलीन हो जाता है। इसे ईश्वर या ब्रह्मांड के साथ मिलन के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन पतंजलि ने इसे सिर्फ ध्यान की उच्चतम स्थिति के रूप में समझाया है। इन छह अंगों का अभ्यास जीवन में शारीरिक और मानसिक शांति लाने का मार्ग है। इनसे मन को स्थिरता, शरीर को लचीलापन, और आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/275uayta

https://tinyurl.com/2ahh7zad

https://tinyurl.com/288nj35q

https://tinyurl.com/255mjk8d

मुख्य चित्र का स्रोत : Pxhere

 

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