दुनिया की शीर्ष 8 लौह और इस्पात उत्पादन कंपनियों में शामिल है, भारत की टाटा स्टील

नगरीकरण- शहर व शक्ति
07-02-2025 09:32 AM
दुनिया की शीर्ष 8 लौह और इस्पात उत्पादन कंपनियों में शामिल है, भारत की टाटा स्टील

पिछली कुछ शताब्दियों में, वैश्विक अर्थव्यवस्था, तेज़ी से बढ़ी है और इस विकास में, लौह और इस्पात उद्योग की अपरिहार्य भूमिका रही है। जैसे-जैसे देश अपने शहरी परिदृश्य और औद्योगिक क्षमताओं का विस्तार कर रहे हैं, स्टील और लोहे की मांग बढ़ती जा रही है। इस्पात और लौह उद्योग वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है, जो निर्माण, विनिर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करता है। लौह अयस्क से बना स्टील, पुलों और इमारतों से लेकर वाहनों और मशीनरी तक सब कुछ बनाने के लिए आवश्यक है। आज यह उद्योग उत्पादन प्रौद्योगिकी में प्रगति और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ, पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करते हुए आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए विकसित हो रहा है। इस्पात और लौह उद्योग, न केवल आर्थिक विकास का समर्थन करता है, बल्कि दुनिया भर में औद्योगिक विकास के भविष्य को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तो आइए आज, भारत में लौह एवं इस्पात उद्योग के इतिहास और समय के साथ इसके विकास के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम भारत और दुनिया की प्रमुख और सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनियों के बारे में भी जानेंगे। अंत में, हम देखेंगे कि कैसे लोहे और इस्पात ने औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा दिया और आधुनिक उद्योगों को आकार देने में मदद की।

भारत में लौह और इस्पात उद्योग का इतिहास:

भारत में लोहे और इस्पात का उत्पादन, 300 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था। इस समय के दौरान, भारत में 'कुप्या' नामक पच्चर के आकार की भट्ठी जैसे पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके गढ़वा लोहे का उत्पादन किया जाता था। इस लोहे को आसानी से बनाया जा सकता था और इस प्रकार यह उपकरण, हथियार और कीलें बनाने के लिए उपयुक्त था। 400 ईसवी के आसपास बना दिल्ली का लौह स्तंभ प्राचीन भारत में उत्पादित लोहे का एक बेहतरीन उदाहरण है। मध्यकाल में गढ़वा लोहे की तकनीक का और अधिक विकास हुआ। बड़े-बड़े हथौड़ों का उपयोग करके बड़े पैमाने पर गढ़ाव लोहे उत्पादन किया जाने लगा।

ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत में लौह और इस्पात उद्योग में  ज़बरदस्त बदलाव देखे गए। पहली आधुनिक धमन भट्टी 1804 में एमहर्स्ट स्ट्रीट (Amherst Street), कलकत्ता में स्थापित की गई। हालाँकि, इसकी उत्पादन लागत अधिक थी और उत्पादित लोहा निम्न गुणवत्ता का था। 1879 में बंगाल में स्टार वर्क्स आयरन  फ़ाउंड्री में धमन भट्टी और संलोडन प्रक्रम का उपयोग करके पहली बार लोहे का सफलतापूर्वक उत्पादन किया गया। 19वीं सदी के अंत में, बंगाल आयरन वर्क्स और अन्य बड़े संयंत्रों की स्थापना के साथ भारत में लौह और इस्पात उद्योग में तेज़ी से विकास हुआ।

अलवर, राजस्थान में तांबा और लौह खनन का दृश्य |  Source : Flickr

'टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड' (Tata Iron and Steel Company Limited) , जिसे आज टाटा स्टील के नाम से जाना जाता है, को 1907 में भारत में पहले एकीकृत इस्पात संयंत्र के रूप में शामिल किया गया। कंपनी ने 1911 में स्टील का उत्पादन शुरू किया। इससे भारत में आधुनिक एकीकृत लौह और इस्पात उद्योग की शुरुआत हुई। 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में लौह और इस्पात उद्योग में कई विकास हुए। इस्पात उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 'इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी' और 'मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स' जैसे बड़े इस्पात संयंत्र स्थापित किए गए। इस समय तक, आयात की तुलना में लोहे की उत्पादन लागत अधिक थी। इसके अलावा, उत्पादित अधिकांश स्टील की गुणवत्ता भी तुलनात्मक रूप से निम्न श्रेणी की थी। इसलिए रक्षा और औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए अधिक विशिष्ट इस्पात उत्पादों का आयात करना पढ़ता था।

स्वतंत्रता के बाद, भारत में लौह और इस्पात उद्योग में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता अधिक स्पष्ट हो गई। सरकार द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए अहम कदम उठाए गए। पूर्व सोवियत संघ और अन्य देशों की सहायता से कई बड़े सार्वजनिक उद्योग जैसे बोकारो, भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर, स्थापित किए गए थे। इन उद्योगों ने 1980 के दशक के अंत तक भारत को इस्पात के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारत में लौह और इस्पात उद्योग में 1990 के दशक की शुरुआत में और अधिक सुधार और उदारीकरण देखा गया। इस उद्योग में एस्सार स्टील, इस्पात इंडस्ट्रीज़ और जे एस डब्ल्यू स्टील जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियों का प्रवेश हुआ हुआ। आज भारत दुनिया के सबसे बड़े इस्पात उत्पादकों में से एक है। यह उद्योग हज़ारों लोगों को रोज़गार देता है और इसका खनन, मशीनरी और बुनियादी ढांचे जैसे अन्य क्षेत्रों से मज़बूत संबंध है। नवाचार और आधुनिक प्रौद्योगिकी के परिणाम स्वरूप आज भारतीय इस्पात कंपनियां  उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात का उत्पादन करने में सक्षम हैं। आज इस्पात उत्पादन भी तेज़ी से पर्यावरण-अनुकूल और ऊर्जा कुशल होता जा रहा है।

जमशेदपुर में टाटा स्टील प्लांट | Source : Wikimedia

भारत में प्रमुख लौह और इस्पात संयंत्र:

भारत के कुछ प्रमुख लौह और इस्पात उद्योग नीचे दिए गए हैं -

1. टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (Tata Iron and Steel Company (TISCO)): 

यह भारत का सबसे पुराना इस्पात संयंत्र है। इसकी स्थापना 1907 में झारखंड के जमशेदपुर   ज़िले में हुई थी। इस कंपनी में 1911 में स्टील का उत्पादन शुरू किया गया था। इस कंपनी के लिए हेमेटाइट लौह अयस्क झारखंड की नाओमुंडी खदानों और मयूरभंज, ओडिशा की बादामपहाड़ खदानों से प्राप्त किया जाता है। इस कंपनी में रेलवे के पहिये, उच्च श्रेणी के स्टील, बार, बोल्ट, स्टील कास्टिंग, एक्सल और टिनप्लेट बनाने के लिए एसिड स्टील का उत्पादन किया जाता है।

2. इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (Indian Iron and Steel Company (IISCO)): 

इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (1918) और स्टील कॉरपोरेशन ऑफ़ बंगाल (1927) को 1952 में एक साथ विलय करके इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (IISCO) का गठन किया गया था।   आई आई एस सी ओ के तीन अलग-अलग इस्पात संयंत्र हैं जो पश्चिम बंगाल में कुल्टी, हीरापुर और बर्नपुर में स्थित हैं।   आई आई एस सी ओ को लौह अयस्क की आपूर्ति झारखंड की गुआ खदानों और ओडिशा के मयूरभंज से की जाती है। इसके लिए कोयला झरिया जिले के रामनगर खदानों से आता है। 

टाउनशिप से देखा गया पुराना आई आई एस सी ओ (IISCO) प्लांट |  Source : Wikimedia

3. विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड (Visveswaraya Iron and Steel Limited ( VISL)):

'विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील प्लांट' की स्थापना 1923 में कर्नाटक के भद्रावती में की गई थी, पहले इसे 'मैसूर आयरन एंड स्टील लिमिटेड' के नाम से जाना जाता था। 1962 में केंद्र सरकार ने इस संयंत्र को अपने अधीन ले लिया। इस संयंत्र को कर्नाटक की कुद्रेमुख और बाबा बुदान पहाड़ियों से उच्च श्रेणी के लौह अयस्क की आपूर्ति होती है। 

4. दुर्गापुर आयरन एंड स्टील प्लांट (Durgapur Iron and Steel Plant):

दुर्गापुर आयरन एंड स्टील प्लांट की स्थापना ब्रिटेन के सहयोग से 1956 में दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान की गई थी। यह संयंत्र पश्चिम बंगाल के बर्धमान  ज़िले के दुर्गापुर में स्थित है। इस संयंत्र में 1962 में उत्पादन शुरू किया गया था। इस संयंत्र को झारखंड के सिंहभूम और ओडिशा की केंदुझार खदानों से लौह अयस्क, झरिया और रानीगंज से कोयला, बालाघाट से   मैंगनीज़ (Manganese) और दामोदर नदी से पानी की आपूर्ति होती है। 

5. भिलाई आयरन एंड स्टील प्लांट (Bhilai Iron and Steel plant):

भिलाई लौह एवं इस्पात संयंत्र की स्थापना 1959 में रूस के सहयोग से छत्तीसगढ़ के दुर्ग  ज़िले में दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान की गई थी। इस संयंत्र के लिए लौह अयस्क की आपूर्ति दल्ली-राजहरा की खदानों से होती है और कोयले की आपूर्ति कोरबा  कोलफ़ील्ड से।

6. राउरकेला आयरन एंड स्टील प्लांट (Rourkela Iron and Steel plant):

दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान, 1959 में ओडिशा के सुंदरगढ़  ज़िले में जर्मन सरकार के सहयोग से राउरकेला आयरन एंड स्टील प्लांट की स्थापना की गई थी। इसके लिए मयूरभंज से लौह अयस्क, बोकारो और झरिया कोयला क्षेत्र से कोयला, कोयल नदी से जल, और हीराकुंड बांध से जल विद्युत की आपूर्ति होती है।

विश्व की सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनियाँ:

यहां दुनिया की शीर्ष 8 सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनियों की सूची दी गई है:

Source : Wikimedia

1. आर्सेलरमित्तल (ArcelorMittal):

आर्सेलरमित्तल, जो 60 से अधिक देशों में परिचालन करती है, का मुख्यालय एवेन्यू डे ला लिबर्टे, लक्ज़मबर्ग (Avenue de la Liberte, Luxembourg) में है। इसका गठन, 2006 में आर्सेलर और मित्तल स्टील के विलय से हुआ था। कंपनी में 232,000 कर्मचारी हैं और यह कंपनी दुनिया के 10% स्टील का उत्पादन करती है।

2. निप्पॉन स्टील और सुमितोमो मेटल कॉर्पोरेशन (Nippon Steel and Sumitomo Metal Corporation (NSSMC)):

निप्पॉन स्टील और सुमितोमो मेटल कॉर्पोरेशन (NSSMC) का निर्माण 2012 में निप्पॉन स्टील और सुमितोमो मेटल के सहयोग से किया गया था।  एन एस एस एम सी, दुनिया भर में दूसरी सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनी है। यह कंपनी लगभग 83,000 कर्मचारियों के साथ 15 देशों में फैली हुई है। यह कंपनी, निर्माण, ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग, ऊर्जा, संसाधन और रेलवे जैसे क्षेत्रों के लिए स्टील उपलब्ध कराती है।

3. हेबै आयरन एंड स्टील ग्रुप (Hebei Iron and Steel Group):

हेबै आयरन एंड स्टील ग्रुप कंपनी लिमिटेड को वर्ष 2008 में निगमित किया गया था। इस कंपनी का मुख्यालय शिजियाझुआंग, चीन में है। इस कंपनी की क्षमता प्रति वर्ष 30 मिलियन टन स्टील है, जिससे यह कंपनी चीन में सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनी है।

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4. बाओस्टील (Baosteel):

बाओस्टील दुनिया भर में सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनियों में से एक है। बाओस्टील ग्रुप कॉर्पोरेशन की स्थापना 1978 में हुई थी और इस इसका मुख्यालय पुडोंग, शंघाई, चीन में है। इसमें 130, 401 कर्मचारी कार्यरत हैं और यह विशेष स्टील, स्टेनलेस स्टील, कार्बन स्टील जैसे स्टील उत्पादों का उत्पादन करती है जिन्हें 40 से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है।

5. वुहान आयरन एंड स्टील ग्रुप (Wuhan Iron and Steel Group):

वुहान आयरन एंड स्टील ग्रुप कॉर्पोरेशन का मुख्यालय वुहान, चीन में है। इस कंपनी की स्थापना वर्ष 1958 में हुई थी। 

6. पोहांग आयरन एंड स्टील कंपनी (Pohang Iron and Steel Company (Posco):

'पोहांग आयरन एंड स्टील कंपनी', जिसे आम तौर पर, पॉस्को कहा जाता है, की स्थापना वर्ष 1968 में हुई थी। इसका मुख्यालय दक्षिण कोरिया के पोहांग में स्थित है। यह कंपनी पोहांग और ग्वांगयांग में स्थित दुनिया की दो सबसे बड़ी मिलों का संचालन करती है जो संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 33.7 मिलियन टन स्टील का उत्पादन करती है। 

7. जियांग्सू शगांग (Jiangsu Shagang):

जियांग्सू शगांग चीन के शीर्ष पांच इस्पात उत्पादकों में से एक है। यह हैंगजियागांग, जियांग्सू, चीन में स्थित है, इसका गठन 1975 में हुआ था। यह कंपनी सालाना लगभग 18 मिलियन टन लोहे का उत्पादन करती है।

8. टाटा स्टील ग्रुप (Tata Steel Group):

भारत का टाटा स्टील ग्रुप की स्थापना 1868 में जमशेदजी टाटा ने की थी। टाटा कंपनी दुनिया भर में 581,470 से अधिक लोगों को रोज़गार देती है।

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लौह और इस्पात उद्योग ने, औद्योगिक क्रांति को कैसे बढ़ावा दिया:

18वीं सदी के अंत में, इंग्लैंड में, औद्योगिक क्रांति के दौरान, जेम्स वॉट द्वारा भाप इंजन के आविष्कार के बाद, एक मशीन की सहायता से धमन भट्टी में हवा को प्रवाहित किया जा सकता था। इससे लोहे का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो गया। हालाँकि, अठारहवीं सदी के मध्य तक,लौह उद्योग गिरावट की राह पर था। लौह श्रमिकों को लौह अयस्क को गलाने के लिए कोयले की आवश्यकता होती थी, लेकिन लकड़ी की कीमत अधिक होने के कारण कोयले की आपूर्ति बेहद कम थी। इससे एक औद्योगिक समस्या उत्पन्न हो गई। अब एक ऐसी विधि की आवश्यकता थी जिसके द्वारा उच्च मात्रा में लोहे को एक साथ गलाया जा सके। इसके लिए, लकड़ी के कोयले (charcoal) के स्थान पर कोयले का उपयोग किया गया।  19वीं शताब्दी के दौरान, लोहा गलाने की प्रक्रिया के लिए ईंधन के रूप में लकड़ी के कोयले की जगह कोक के उपयोग से काफ़ी बदलाव आया। लौह अयस्क को लौह और फिर इस्पात में परिवर्तित करने के लिए कोक कहीं बेहतर सामग्री साबित हुई। कोक का उपयोग लागत प्रभावी था और इसकी आपूर्ति भी पर्याप्त मात्रा में थी। इस परिवर्तन ने लौह और इस्पात उद्योग में क्रांति ला दी।

हालाँकि, लौह और इस्पात उद्योग में कोक के उपयोग से कई नई तकनीकी समस्याओं का भी उदय हुआ, जैसे कोयले में सल्फ़र की उच्च सांद्रता होती है, जो अन्य अशुद्धियों के साथ मिलकर लोहे को भंगुर बना देती है। स्टील लोहे की तुलना में अधिक मज़बूत और कम भंगुर होता था, लेकिन इसे बनाना अधिक कठिन था। इससे और भी नये आविष्कारों के विकास को प्रोत्साहन मिला।

Source : Wikimedia

1856 के आसपास, हेनरी बेसेमर ने भट्ठी के विभिन्न डिजाइनों को आज़माकर लोहे में मौजूद कार्बन को जलाने के लिए प्रयोगों की एक श्रृंखला आयोजित की। अपने काम में एक बिंदु पर, उन्होंने देखा कि स्टील बनाते समय उन्हें पिघले हुए लोहे को गर्म करने या ईंधन की आपूर्ति करने की आवश्यकता नहीं थी: कच्चे लोहे में मौजूद 4% कार्बन जलने पर और फूंक मारने पर स्वतः ऊष्मा उत्पन्न करता है। भट्ठी से निकाले जाने के बाद पिघली हुई धातु के माध्यम से हवा निकलती है, जिससे धातु गर्म और तरल रहती है और साथ ही कार्बन की मात्रा भी कम हो जाती है। इससे बेसेमर प्रक्रिया का आविष्कार हुआ। इन महत्वपूर्ण प्रगतियों से लौह और इस्पात उद्योग निरंतर फलने-फूलने लगा। विशेष रूप से रेलवे में, स्टील के उपयोग से अत्यंत सुधार देखा गया। इस प्रकार स्टील पर स्विच करने से परिवहन क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आया। इससे इस्पात या परिवहन पर निर्भर कई अन्य विनिर्माण गतिविधियाँ तेज़ी से बढ़ीं। इस प्रकार, लोहे और इस्पात उद्योग ने प्रभावी ढंग से औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा दिया। कोयले और लौह अयस्क की बड़ी आपूर्ति के कारण यूरोप और विशेष रूप से ब्रिटेन इस क्रांति की धुरी बन गए।

 

संदर्भ

https://tinyurl.com/yc55dmeu

https://tinyurl.com/yw7xrbhk

https://tinyurl.com/56kxcyaw

https://tinyurl.com/3a28bat5

मुख्य चित्र स्रोत : Wikipedia) 

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