भारतीय किसानों को अधिक दूध के साथ-साथ अतिरिक्त लाभ भी पंहुचा सकती हैं, चारा फसलें

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
25-11-2022 10:49 AM
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भारतीय किसानों को अधिक दूध के साथ-साथ अतिरिक्त लाभ भी पंहुचा सकती हैं, चारा फसलें

दूध आमतौर पर सभी भारतीय घरों में प्रयोग होता है और इसीलिए पशुपालन और जानवरों के आहार-व्यवहार की थोड़ी बहुत जानकारी होना, हम सभी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। क्यों की कहीं न कहीं दुधारू जानवर जो कुछ भी खाते हैं वह दूध, दही या घी आदि के रूप में हमारे शरीर को भी प्रभावित करता है।
चारा फसलें (Forage Crops), पौधों की ऐसी प्रजातियां होती हैं, जो जानवरों को चारे के रूप में खिलाने के लिए उगाई और काटी जाती हैं। भारत में व्यक्तिगत फसल के आधार पर चारे की खेती के तहत कुल 8.3 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल वितरित है। खरीफ फसलों में ज्वार (2.6 मिलियन हेक्टेयर) और रबी फसलों में 1.9 मिलियन हेक्टेयर बरसीम, कुल चारे की फसल वाले क्षेत्र का लगभग 54% हिस्सा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थायी चरागाहों के क्षेत्र में कमी आई है, और यह प्रवृत्ति भविष्य में भी जारी रह सकती है। अत्यधिक चराई के कारण चरागाहों की उत्पादकता भी घट रही है। पिछले 3-4 दशकों से चारा फसलों का क्षेत्र लगभग स्थिर बना हुआ है। ऐसा मुख्य रूप से उचित भूमि कवर डेटा रिपोर्टिंग (/Land Cover Data Reporting) के अभाव के कारण हो रहा है। हालांकि, पिछले वर्षों के दौरान सघन डेयरी उत्पादन प्रणालियों के तहत मिल्क शेड (Milk Shed) के रूप में विकसित किए गए, पेरी-अर्बन क्षेत्रों (Peri-Urban Areas) में चारे की फसलों के क्षेत्र में वृद्धि हुई है, जिसके कारण चारे की भारी मांग को विशाल घास के मैदानों और रेंजलैंड (Rangeland) के माध्यम से पूरा किया जा रहा है। इसकी स्थिति में कोई भी सकारात्मक या नकारात्मक परिवर्तन कई पर्यावरणीय मुद्दों पर प्रभाव डाल सकता है। इसी तरह, पशुधन की आबादी में वृद्धि, जैविक कचरे की उपलब्धता को भी प्रभावित करेगी जो बदले में कृषि उत्पादन को बढ़ावा दे सकती है। हाल ही में भारतीय पशुपालन विभाग, सब्सिडी (Subsidy) के माध्यम से डेयरी किसानों के बीच सामान्य चारा फसलों के साथ-साथ चारे के पेड़ों को बढ़ावा देने का प्रस्ताव लेकर आया है, जिसके अंतर्गत संबंधित अधिकारियों ने पेड़ों के ऐसे पौधे वितरित करने की योजना बनाई है, जिनका उपयोग पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में किया जा सकता है।
विभाग के अनुसार, डेयरी किसानों को एकेशिया ल्यूकोफ्लोआ (Acacia leucophylla), थेस्पेसिया पॉपुलनिया (Thespacia populania), ग्लाइसीरिडिया मैक्युलाटा (Glycyridia maculata), अल्बिजिया लेबेक(Albizia lebeck), एरिथ्रिना इंडिका(Azadirachta indica) और सेस्बानिया ग्रैंडिफ्लोरा (Sesbania grandiflora) जैसे पेड़ प्रजातियों के पौधे के रूप में सब्सिडी दी जाएगी। चारे की कमी होने पर ये पेड़ बहुत फायदेमंद साबित होंगे, खासकर सूखे के दौरान। चारे के पेड़ डेयरी किसानों के लिए उपयोगी हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो बकरी पालते हैं। विभाग के अनुसार डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) में 65 से 70 प्रतिशत लागत, पशुओं को हरे चारे पर ही खर्च हो जाती है। दूध उत्पादन में सुधार के लिए हरा चारा महत्वपूर्ण घटक होता है लेकिन इसके उत्पादन और मांग के बीच बहुत बड़ा अंतर है। इस अंतर को पाटने के लिए राज्य सरकार अपनी सब्सिडी के माध्यम से डेयरी किसानों के बीच बड़े पैमाने पर हरे चारे की खेती को बढ़ावा दे रही है। इन वृक्षों को खेतों की सीमाओं पर भी लगाया जा सकता है। इच्छुक किसान सब्सिडी प्राप्त करने के लिए अपनी याचिकाएं प्रस्तुत करने के लिए अपने क्षेत्रों में सरकारी पशु चिकित्सकों से संपर्क कर सकते हैं। चारे के पेड़ के तौर पर प्रसिद्ध ल्यूकेना ल्यूकोसेफला (Leucaena leucocephala) मध्य अमेरिका का मूल निवासी वृक्ष है।
इसकी 100 से अधिक किस्में ज्ञात हैं, और इन्हें मोटे तौर पर तीन प्रकारों अर्थात् हवाई (Hawaaii) प्रकार, सल्वाडोर (Salvador) प्रकार और पेरू (Peru) प्रकार में वर्गीकृत किया गया है। इनमें से पेरू का उपयोग मुख्य तौर पर चारा उत्पादन में किया जाता है। इसे मैक्सिको, ग्वाटेमाला, होंडुरास और एल साल्वाडोर (Mexico, Guatemala, Honduras and El Salvado) में अपने मूल क्षेत्र के अलावा, ल्यूकेना ल्यूकोसेफला को फिलीपींस, इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, मलेशिया, हवाई, फिजी, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया (Leucaena leucocephala to the Philippines, Indonesia, Papua New Guinea, Malaysia, Hawaii, Fiji, northern Australia) भारत तथा पूर्व और पश्चिम अफ्रीका द्वीपों में पेश और उगाया जाता है। भारत में, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी इसका परीक्षण किया गया है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय का पेड़ है, और इस क्षेत्र के भीतर लगभग 500 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है। यह वर्षा, तापमान, हवा और सूखे में बड़े बदलाव का सामना करने में भी सक्षम होता है। यह अपेक्षाकृत तापमान के प्रति संवेदनशील पेड़ है और ऊंचाई में वृद्धि के साथ वृद्धि की दर घट जाती है।
इसके लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। सर्दियों के दौरान कम तापमान इसकी वृद्धि को सीमित कर देता है, यहां तक ​​कि कभी-कभी हल्का पाला (frost) भी पौधों को ख़राब कर देता है, लेकिन प्रभावित पौधे वसंत में फिर से उग आते हैं। इसकी सबसे अच्छी वृद्धि 600 से 1,700 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में होती है। इसके अंकुर शुरुआत में धीमी गति से बढ़ते हैं और वृक्षारोपण क्षेत्रों की नियमित निराई और पेड़ों की छंटाई भी आवश्यक है।

संदर्भ
https://bit.ly/3EmahzO
https://bit.ly/3UWJ6m5
https://bit.ly/3XlRu09

चित्र संदर्भ
1. फसल काटते किसानों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. चारे की फसल के साथ खड़े किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. भैंसों को चारा देती महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. ल्यूकेना ल्यूकोसेफला (Leucaena leucocephala) मध्य अमेरिका का मूल निवासी वृक्ष है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. घास में पड़े पारे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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