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रॉक-कट वास्तुकला (Rock-cut architecture) या तक्षित-शिला वास्तुकला मूर्तियों‚
इमारतों और संरचनाओं के निर्माण की वह प्रक्रिया है‚ जो ठोस प्राकृतिक चट्टानों
या शिलाओं को खोदकर‚ काटकर व तराशकर की जाती है। यह प्रक्रिया अक्सर ऐसे
स्थानों पर की जाती है‚ जहाँ प्राकृतिक रूप से बड़े आकारों की शिलाएँ मिलती हैं।
ये संरचनाएं इतने बड़े कक्षों के रूप में भी हो सकती हैं‚ जिनमें मानव निवास कर
सकें।
प्राचीन काल में कई धार्मिक स्थल भी इस विधि से बनाए गए हैं‚ जैसे भारत की
एलोरा गुफाओं में कैलाश मंदिर। हालांकि भारत और चीन में‚ गुफा और कंदर शब्द
अक्सर मानव निर्मित वास्तुकला के इस रूप पर लागू होते हैं‚ लेकिन प्राकृतिक
रूप में शुरू हुई गुफाओं और कंदरों को‚ बड़े पैमाने पर परिवर्तित होने पर भी रॉक-
कट वास्तुकला नहीं माना जाता है। हालांकि रॉक-कट संरचनाएं‚ पारंपरिक रूप से
निर्मित संरचनाओं से कई मायनों में भिन्न हैं‚ कई रॉक-कट संरचनाएं‚ पारंपरिक
स्थापत्य रूपों के मुख या आंतरिक भाग को दोहराने के लिए बनाई गई हैं।
आंतरिक सज्जा आमतौर पर नियोजित स्थान की छत से शुरू होकर नीचे की ओर
खुदी हुई होती थी। यह तकनीक नीचे के श्रमिकों पर पत्थर गिरने से रोकती है।
रॉक-कट वास्तुकला का उपयोग मुख्य रूप से तीन चीजें बनाने में किया जाता था;
मंदिर‚ कब्रें और गुफा आवास। प्राकृतिक गुफाएँ स्थानीय निवासियों द्वारा उपयोग
की जाने वाली सबसे प्रारंभिक गुफाएँ थीं। जिनका उपयोग मूल्य निवासियों द्वारा
विभिन्न प्रयोजनों तथा आश्रयों के लिए किया जाता था।
पुरातात्विक साक्ष्यों से व्यक्त होता है‚ कि 6000 ईसा पूर्व‚ मध्यपाषाण काल ने
प्रारंभिक गुफाओं का पहला उपयोग और संशोधन देखा था। शिलाचित्र या रॉक-कट
डिज़ाइनों से अलंकृत लटकती चट्टानें‚ जो रॉक सतहों के उत्कीर्णन‚ नक्काशी‚ और
तक्षण द्वारा बनाई गई थीं‚ ऐसी रॉक गुफाओं के शुरुआती उदाहरण हैं। भारत के
मध्य प्रदेश राज्य में रायसेन जिले में दक्कन पठार की सीमा पर स्थित ‘रतापानी
वन्यजीव अभयारण्य’ (Ratapani Wildlife Santuary) नामक बाघ अभयारण्य के
अंदर भीमबेटका (Bhimbetka) रॉक आश्रय हैं‚ ये शैलाश्रय लगभग सैकड़ों हजारों
वर्ष पूर्व मानव जीवन की व्यवस्थापन तथा भारत में पाषाण युग की शुरुआत को
भी दर्शाता है। यूनेस्को (UNESCO) द्वारा 2003 में इस स्थान को विश्व धरोहर
स्थल के रूप में घोषित किया गया‚ जिसमें कई पाषाण युग के शैल चित्र हैं‚
जिनमें से कुछ 30‚000 वर्ष से अधिक पुराने हैं। इन गुफाओं से नृत्य कला की
प्रारंभिक अभिव्यक्तियाँ भी प्रत्यक्ष होती हैं।
रॉक-कट वास्तुकला‚ भारतीय वास्तुकला के इतिहास में विशेष रूप से महत्वपूर्ण
स्थान रखती है। इसकी संरचनाएं प्राचीन भारतीय कला के प्रतिरूप की सबसे
शानदार कृति पेश करती हैं। अधिकांश रॉक-कट संरचनाएं विभिन्न धर्मों और
धार्मिक गतिविधियों से जुड़ी हुई थीं। शुरुआत में‚ बौद्ध और जैन रॉक-कट
संरचनाएं‚ पूर्व में बिहार और पश्चिम में महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में बनाई गई थीं।
बौद्ध भिक्षुओं द्वारा‚ प्रार्थना और निवास के प्रयोजनों के लिए कई गुफाओं की
खुदाई की गई थी। इसका सबसे अच्छा उदाहरण चैत्य (Chaityas) और विहार
(viharas) हैं। चैत्य एक प्रार्थना कक्ष है तथा विहार एक मठ है। इन रॉक-कट
संरचनाओं के अंदर‚ खिड़कियों‚ बालकनियों तथा द्वारों को विशाल मेहराब के
आकार के उद्घाटन के रूप में उकेरा गया था।
भारतीय रॉक-कट वास्तुकला का सबसे पुराना उदाहरण‚ बराबर गुफाएं (Barabar
caves) हैं‚ जो भारतीय राज्य बिहार में जहानाबाद जिले के मखदुमपुर ब्लॉक में
स्थित हैं। इनमें से कुछ गुफाएं अशोक के शिलालेख हैं‚ जिनमें से अधिकांश मौर्य
साम्राज्य के शासन के दौरान लगभग तीसरी से दूसरी शताब्दी‚ 322-185 ईसा पूर्व
की हैं। महान भारतीय सम्राट अशोक और उनके पोते‚ दशरथ के समय की ये
गुफाएं दो सम्राटों द्वारा की गई धार्मिक सहिष्णुता की नीति की मात्रा बताती हैं
जो बौद्ध थे। यह पहाड़ पर उकेरी गई‚ बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित‚ अधिकतर
बहुमंजिला इमारतें थी‚ जिसमें रहने और सोने के लिए सैन्यवास‚ रसोई तथा
मठवासी स्थान शामिल थे। इनमें से कुछ मठ की गुफाओं में बुद्ध‚ बोधिसत्व और
संतों के मंदिर भी थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया‚ आंतरिक सज्जा अधिक
विस्तृत और व्यवस्थित होती गई‚ सतहों को अक्सर चित्रों से सजाया जाने लगा
था। 7वीं शताब्दी की शुरुआत में एलोरा में हिंदू रॉक-कट मंदिरों का निर्माण शुरू
हुआ‚ ये मंदिर पूरी तरह से त्रि-आयामी इमारतें थीं‚ जो पहाड़ी को काटकर बनाई
गई थीं। उन्हें पूरा करने के लिए कई पीढ़ियों की योजना और समन्वय की
आवश्यकता थी।
रॉक-कट वास्तुकला से संबंधित एक शब्द‚ अखंड वास्तुकला (monolithic
architecture) है‚ जो सामग्री के एक भाग से बने मुक्त-खड़े ढांचे को संदर्भित
करता है। अखंड वास्तुकला रॉक-कट होती है‚ लेकिन अखंड संरचनाएं‚ कंक्रीट जैसी
कृत्रिम सामग्री से भी बनाई जा सकती हैं। दुनिया में सबसे बड़ी अखंड मूर्ति‚
भारतीय राज्य कर्नाटक में श्रवणबेलगोला (Shravanabelagola) में बाहुबली की
गोम्मतेश्वर प्रतिमा (Gommateshwara statue of Bahubali) है‚ जो 983
ईस्वी में ग्रेनाइट के एक खंड से बनाई गई थी। पल्लव राजवंश के वास्तुकारों ने
मंदिरों के समान‚ अखंड संरचनाएं बनाने के लिए रॉक नक्काशी की शुरुआत की।
एक अखंड रॉक-कट मंदिर को राजगीरी या लकड़ी के मंदिरों के आकार में एक ही
विशाल चट्टान से तराशा गया‚ जिसमें दीवारों और अन्य क्षेत्रों में कला और
अभियांत्रिकी के बेहतरीन काम को प्रदर्शित किया गया है। बंगाल की खाड़ी (Bay
of Bengal) के कोरोमंडल तट (Coromandel Coast) पर स्थित महाबलीपुरम
(Mahabalipuram) के पंच रथ (Pancha Rathas) या पांडव रथ (Pandava
Rathas) सबसे उत्कृष्ट वास्तुशिल्प इमारतें हैं‚ जो अखंड भारतीय रॉक कटवास्तुकला का प्रतीक हैं। रथों के आकार की पांच संरचनाएं ग्रेनाइट के पत्थर के
बड़े खंड से बनी 7 वीं शताब्दी की हैं‚ और इसका नाम महान भारतीय महाकाव्य
‘महाभारत’ से पांच पांडव भाइयों और उनकी पत्नी द्रौपदी के नाम पर रखा गया
है। इसे ‘महाबलीपुरम में स्मारकों के समूह’ (‘Group of Monuments at
Mahabalipuram’) के रूप में‚ यूनेस्को (UNESCO) द्वारा‚ अपनी विश्व धरोहर
स्थलों की सूची में सूचीबद्ध किया गया है‚ यह साइट विभिन्न द्रविड़ वास्तुकला
(Dravidian architecture) को प्रदर्शित करती है। एलोरा कैलासनाथर मंदिर
(Ellora Kailasanathar Temple) या कैलाश मंदिर को सबसे विशाल तथा
सदियों पुराने रॉक-कट हिंदू मंदिरों में से एक माना जाता है‚ जिसे दुनिया के सबसे
बड़े रॉक-कट मठ-मंदिर गुफा परिसरों में गिना जाता है और महाराष्ट्र‚ भारत में
यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में चिह्नित किया गया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3kvpbKZ
https://bit.ly/3quLJ2j
https://bit.ly/3Fa1GPl
https://bit.ly/30gH3Cx
चित्र संदर्भ
1. पेट्रास में अल खज़नेह या ट्रेजरी (Al Khazneh or the Treasury in Patras) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. एलोरा गुफाओं में स्थित कैलास मंदिर, दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. डालियान, तुर्की (Dalian, Turkey) (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व) में नदी के किनारे चट्टानों में कटी हुई लाइकियन कब्रों (Lycian tombs) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4.बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) के कोरोमंडल तट (Coromandel Coast) पर स्थित महाबलीपुरम (Mahabalipuram) के पंच रथ (Pancha Rathas) या पांडव रथ (Pandava Rathas), को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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