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मेरठ स्वास्थ्य सेवा का एक केंद्र है और यहाँ कुछ संस्थाओं में लोगों को प्रशामक देखभाल (Palliative Care) और सहायता भी प्रदान की जाती है। भारत में लगभग प्रत्येक वर्ष 6 मिलियन से अधिक लोगों को प्रशामक देखभाल की आवश्यकता होती है, लेकिन ऐसी सेवाओं में कमी के कारण बहुत से लोग इन देखभाल से अछूते रह जाते हैं। प्रशामक देखभाल एक स्वास्थ्य देखभाल विशेषता है जो देखभाल के दर्शन और एक संगठित, अत्यधिक संरचित प्रणाली है जिसमें दुर्बल बीमारी वाले व्यक्तियों की देखभाल करने से लेकर मृत्यु तक और फिर परिवार की देखभाल तक की व्यवस्था है। प्रशामक देखभाल विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो किसी ऐसे रोग से पीड़ित हैं जो काफी गंभीर हो। इस तरह की देखभाल आमतौर पर रोगियों को तनाव और कुछ बीमारियों के लक्षणों से राहत प्रदान करने के लिए होती है और रोगी की मृत्यु के बाद उनके परिवार को शोक से उभारने में मदद करती है। प्रशामक देखभाल प्रशिक्षित चिकित्सकों, विशेषज्ञों और नर्सों द्वारा दी जाती है जो मरीजों को अन्य चिकित्सकों के साथ मिलकर एक अतिरिक्त देखभाल प्रदान करती है। प्रशामक देखभाल रोगी की जरूरतों पर आधारित होती है, न कि रोगी के रोगनिवारण पर। यह किसी भी उम्र में और किसी भी गंभीर बीमारी में किसी भी स्तर पर उपयुक्त होती है और यह उपचार के साथ भी प्रदान की जा सकती है।
प्रशामक देखभाल का लक्ष्य मरीजों को और उनके परिवारों के लिए दुखों को दूर करना और जीवन में सर्वोत्तम गुणवत्ता प्रदान करना है। इस देखभाल की जरूरत कुछ लक्षणों (जैसे, दर्द, अवसाद, सांस की तकलीफ, थकान, कब्ज, मितली, भूख न लगना, नींद न आना और चिंता शामिल हो सकते हैं) में होती है। चिकित्सकों के समूह द्वारा रोगी को दैनिक जीवन के साथ आगे बढ़ने की ताकत हासिल करने में मदद की जाती है। संक्षेप में, ये देखभाल एक व्यक्ति के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करती है। भारत में केवल 1% से 2% लोगों को प्रशामक देखभाल या दर्द प्रबंधन तक पहुँच मिलती है। हालांकि प्रशामक देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम मौजूद हैं, लेकिन वो कुछ ही चिकित्सकों तक पहुँच पाते हैं। दूसरी ओर दर्द प्रबंधन के मामले में मेडिकल छात्रों के लिए कुछ भी नहीं है, जिस वजह से नए चिकित्सकों को इसके बारे में कुछ भी नहीं पता होता है। वहीं भारत में प्रशामक देखभाल की वृद्धि में बाधाएँ बहुत अधिक हैं और इसमें न केवल जनसंख्या घनत्व, गरीबी, भौगोलिक विविधता, ओपियोड (opioid) पर्चे के बारे में प्रतिबंधात्मक नीतियां, आधार स्तर पर कार्यबल विकास, बल्कि सीमित राष्ट्रीय प्रशामक देखभाल नीति और प्रशामक देखभाल में संस्थागत हित की कमी जैसे कारक शामिल हैं। लेकिन इन बाधाओं के बावजूद भी प्रशामक देखभाल भारत में लगभग 20 वर्षों से मौजूद है। बहरहाल, हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि हमने कई बाधाओं को दूर कर दिया है और पिछले दो दशकों में भारत में स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता के संबंध में स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं और नीति निर्माताओं की मानसिकता में उल्लेखनीय बदलाव देखा गया है।
वहीं वर्तमान समय में कोरोनोवायरस (coronavirus) महामारी के तहत स्वास्थ्य प्रणालियाँ तनावपूर्ण हो रही हैं, वहीं जीवन की देखभाल सहित सुरक्षित और प्रभावी प्रशामक देखभाल विशेष रूप से महत्वपूर्ण और कठिन हो जाती है। जहां चिकित्सकों को संसाधनों की कमी के चलते यह तय करना पड़ रहा है कि किस रोगी का इलाज किया जाएं और किसका नहीं, ऐसे में जो रोगी जीवित नहीं रहेंगे उनके लिए उच्च गुणवत्ता वाले प्रशामक देखभाल की आवश्यकता जरूरी हो चुकी है। लेकिन कोरोनोवायरस का कहर इसे और मुश्किल बना रहा है। समय की कमी और स्वास्थ्य पेशेवरों के अतिरिक्त कार्य करने की वजह से उन मरीजों पर ज्यादा ध्यान देने का समय नहीं मिल पा रहा है। साथ ही परिवार के सदस्यों की अनुपस्थिति रोगी के लिए हालातों को और भी अधिक तनावपूर्ण बना रही है। यह परिदृश्य कम-आय और मध्यम-आय वाले देशों में सबसे अधिक जटिल होगा जहां महत्वपूर्ण देखभाल और प्रशामक देखभाल सेवाओं दोनों की कमी सबसे अधिक है। निरंतर समुदाय आधारित प्रशामक देखभाल भी सुरक्षित रूप से करना कठिन है। वहीं जिन रोगियों को इस प्रकार की देखभाल की आवश्यकता होती है उनके लिए कोरोना वायरस एक जोखिम की भांति है। वहीं व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण में कमी और बढ़ती मौतें सामान्य सेवा प्रावधान को प्रभावित कर सकती हैं। साथ ही एक महामारी शारीरिक पीड़ा और मृत्यु के माध्यम से और तनाव, चिंताओं, वित्तीय और सामाजिक अस्थिरता के माध्यम से पीड़ा और प्रबल प्रवर्धक का कारण बनता है। इसलिए इस पीड़ा का उन्मूलन करना प्रतिक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए।
चित्र (सन्दर्भ):
1. ऊपर दिए गए तीनों ही चित्रों में प्रशामक देखभाल को प्रदर्शित किया गया है।, Pxfuel
संदर्भ :-
1. https://getpalliativecare.org/whatis/
2. https://bit.ly/2XMrAGC
3. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3573467/
4. https://bit.ly/2xIOeow
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