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विश्व की सबसे पुरानी मदिरा सम्भवतः बियर है और इसका प्रमाण इतिहास में मेसोपोटामिया(mesopotamia) और प्राचीन मिस्र की सभ्यताओं से भी मिलता है। बियर अन्य मदिराओं की अपेक्षा काफ़ी कम समय में तैयार हो जाती है और अपेक्षाकृत सस्ती भी होती है। पर आश्चर्य कि बात ये है कि 1830 के दशक मे मेरठ में बनती थी देसी बियर जिसको लोग मिस्टर भोले बियर (Mr. Bhole beer) के नाम से जानते थे।
मेरठ मे बनती ये देसी बियर यूरोपीय सैनिकों को बहुत आकर्षित करती थी, यहाँ तक की कई ब्रिटिश और यूरोपीय अखबारों और पत्रिकाओं में इसकी प्रशंसा भी की गई थी। कैंट में ज्यादातर रम, और ब्रांडी का सेवन बियर के साथ ही होता था। कैंट के अंदर पुरुषों को भुगतान के अनुसार मदिरा का सेवन करने की अनुमति थी।परंतु इसके नकारात्मक प्रभाव ये पड़ा कि अफ़सर नशे के कारण अपने कर्तव्य नहीं निभाते थे इसलिए मेरठ कैंट में भोले बियर का सेवन प्रचलित होने लगा। मेरठ कि ये देसी बियर स्वाद मे बढ़िया, पौष्टिक तथा सेहत को नुकसान न पहुचाने वाली थी। भोले बियर का उपयोग सामान्य रूप से संतुलित पुरुषों द्वारा किया जाता था और इसके उपभोक्ताओं में बेहोशी के बहुत कम मामले सामने आए थे।
ऊपर दिया गया चित्र भोले की झाल का वर्तमान चित्र है ।
लेकिन 1839 मे ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के डॉक्टर, जॉन मरे (John Murray) ने अपनी रिपोर्ट ‘ऑन द टोपोग्राफी ऑफ़ मेरठ’ (On the topography of Meerut) मे कैंट के अंदर इस बियर के सेवन पर रोक लगा दी और साथ ही इसके सेवन के प्रभावों पर नकारात्मक रूप से टिप्पणी भी की थी। वहीं फ़ॉलस्टफ(Falstaff) का कहना था कि
यह बियर खट्टी, अत्यधिक गैस वाली और पेट व स्वास्थ्य में विपरीत असर डालने वाली थी।
पर क्या आपने कभी सोचा कि भोला बियर के मिस्टर भोले के नाम पे ही तो भोले कि झाल का नाम नही पड़ा। हम जानते है मेरठ के पास सिसोला खुर्द नामक एक गाँव है जो अपनी मशहूर भोले कि झाल के लिए जाना जाता है। यह केवल एक सैर-सपाटे की ही जगह न होकर शहरवासियों के लिए गंगाजल और बिजली परियोजनाओं का विकल्प भी है। भोले की झाल को सलावा की झाल के नाम से भी जाना जाता है। इस नहर पर डैम भी बनाया गया है जिससे बड़े स्तर पर शहर की बिजली आपूर्ति की जा रही है। मेरठ से गुज़रती हुई ऊपरी गंगा नहर परियोजना के बारे में और अधिक आप हमारी प्रारंग की इस लिंक पर क्लिक करें।संदर्भ :-
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