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यदि विश्व के सबसे अंधकारपूर्ण दिनों की कोई सूची बनाई जाएं तो जापान पर अमेरीका द्वारा परमाणु बम गिराने के अलावा 28 जुलाई 1914 को शायद दूसरे नंबर (Number) पर रखा जाएगा। 28 जुलाई 1914 को भयावह विश्व युद्ध की शुरुआत हुई थी और असंख्य मौतों की वजह बनी थी। ब्रिटिश शासन के अधीनस्थ भारत को भी इसमें जबरन धकेल दिया गया था। वहीं यूरोप (Europe) के यप्रेस के युद्ध (1914-1918) में मेरठ की घुड़सवार सैन्य दल ने भी अपनी भूमिका निभाई थी। यप्रेस (Ypres) के युद्ध में भारतीय सेना की कहानी पर डोमिनिक डेनडोवन (Dominiek Dendooven) द्वारा शोध किया गया है।
7वीं मेरठ डिवीजन (Division) क्षेत्र का गठन क्षेत्र की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए सितंबर 1914 में किया गया और 21 नवंबर 1914 को मूल दल को बदलने के लिए 14वीं (मेरठ) घुड़सवार सेना का गठन किया गया था। वहीं इसे फरवरी 1915 में 4वीं मेरठ घुड़सवार सैन्य दल के रूप में फिर से लॉन्च (Launch) किया गया और इस सैन्य दल ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय डिवीजन में अपनी सेवा प्रदान की थी।
पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना की सहभागिता 6 अगस्त 1914 को शुरू हुई थी। लंदन (London) में युद्ध परिषद द्वारा वायसराय (Viceroy) की सरकार से दो पैदल सेना और एक घुड़सवार सेनादल को मिस्र भेजने का अनुरोध किया था। इस अनुरोध पर दो पैदल सेना को लाहौर डिवीजन (तीसरा भारतीय युद्ध डिवीजन) और मेरठ डिवीजन (7वां भारतीय युद्ध डिवीजन) से चयनित किया गया था। इन दोनों दलों को मिलाकर भारतीय सैन्य दल का गठन किया गया और सिकंदराबाद घुड़सवार सैन्य दल को बाद में जोड़ा गया था।
27 अगस्त 1914 को ब्रिटिश सरकार के निर्णय पर ब्रिटिश अभियान बल(जो पहले ही मॉन्स (Mons) की लड़ाई में भारी नुकसान उठा चुके थे) के सहायक के रूप में भारतीय डिवीजनों को फ्रांस भेजा गया था। इन सैन्य दलों को 19 अक्टूबर को बॉम्बे से पश्चिमी मोर्चे के लिए रवाना किया गया। इसी तरह, 7 वीं मेरठ डिवीजन को अगस्त 1914 में फ्रांस में स्थानांतरित कर दिया गया था।
विश्व युद्ध के दौरान 74,187 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी और बड़ी संख्या में कई लोग घायल हुए थे। वहीं यूरोप में सर्वप्रथम पीड़ित होने वाले भारतीय सैनिक ही थे, जिन्हें खाइयों की भयावहता का सामना करना पड़ा था। साथ ही युद्ध के दूसरे वर्ष में पहुंचने से पहले ही उनके समूहों को मार डाला था और कई जर्मन (German) हमले का खामियाजा भुगत चुके थे। न्यूवे चैपल (Neuve Chapelle) में व्यर्थ की लड़ाई में सैकड़ों लोग मारे गए और चर्चिल (Churchill) के मूर्खता के कारण गैलिपोली (Gallipoli) में 1,000 से अधिक लोग मारे गए। जर्मनी के सहयोगी ओटोमन (Ottoman) साम्राज्य के खिलाफ मेसोपोटामिया में लगभग 700,000 भारतीय सिपाहियों (पैदल सेना के गैर-सरकारी सैनिकों) ने लड़ाई लड़ी, उनमें से कई भारतीय मुसलमानों ने ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा के लिए अपने सह-धर्मवादियों के खिलाफ भी हथियार उठाए थे।
संदर्भ :-
1. https://www.indianembassybrussels.gov.in/pdf/Indian_Army_Ypres.pdfA. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
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