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पक्षी प्रकृति में एक मात्र ऐसे जीव हैं जो सभी का मन मोह लेते हैं। इनकी चहचहाहट में अलग ही आनंद का अनुभव होता है। पक्षियों की बात की जाए तो इनमें सबसे लोकप्रिय पक्षी तोता है,और हो भी क्यों न अन्य पक्षियों की तुलना में यह मानव के सबसे ज्यादा करीब जो है, एकमात्र यही पक्षी तो है जो हमसे बात कर सकता है हमारी भाषा को समझ सकता है। विश्व में तोतों की विभिन्न प्रजातियां पायी जाती हैं। कुछ प्रजातियों की आकृति और रंग में समानता के कारण लोगों को भ्रम हो जाता है। ऐसी ही दो प्रजातियां भारत में भी हैं रिंगनेक (Ringneck) और अलेक्जेंड्रिन पैराकीट (Alexandrine Parakeet)। यह दोनों पालतू पक्षियों में सबसे ज्यादा उत्कृष्ट और बुद्धिमान हैं। इनका मात्र बाह्य स्वरूप ही आकर्षक नहीं है। वरन् यह हमारी भाषा के लगभग 200 शब्दों को याद कर सकते हैं और उन्हें बोल सकते हैं जिस कारण ये हमे इतने पसंद आते है।
इन दोनों पक्षियों में इतनी समानता के बाद भी कुछ भिन्नताए होती है:
रिंगनेक: वैज्ञानिकों द्वारा इसे एक छोटे तोते के रूप में अंकित किया गया है। गुलाब के रंग का होने के कारण इसे ‘रोज-रिंगड’(Rose-ringed) तोते के नाम से भी जाना जाता है। यह अपनी लाल हुक(hook) के आकार की चोंच और शारीरिक आकृति के कारण विश्व में पाए जाने वाले अन्य तोतों की तुलना में भिन्न होता है। पूंछ लंबी और आकार छोटा होता है। इसका पूर्ण आकार लगभग 16 इंच का होता है। इस पक्षी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी आंखों में यदि आप देखेंगें तो यह आपको आक्रोश में लगेंगे तथा ऐसा प्रतीत होता है मानों यह कुछ चुराने का प्रयास कर रहे हो। भारतीय रिंगनेक हरे रंग का होता है जिसमें से कुछ में हल्के नीले रंग का भी अंश होता है। इनके पंख और पूंछ में पीले रंग का अंश भी देखा जा सकता है। रिंगनेक में नर और मादा दोनों ही एक समान दिखते हैं, नर के गले में बना छल्ले की आकृति इसे मादा से भिन्न दिखाती है। भारतीय रिंगनेक भारत और अफ्रीका के कुछ हिस्सों का मूल निवासी है।
अलेक्जेंड्रिन पैराकीट: इस तोते का नाम सिकंदर (अलेक्जेंडर द ग्रेट (Alexander the Great)) के नाम पर रखा गया है जिसकी तस्वीर आप सबसे ऊपर दिए गए छवि में देख सकते है। यह पंजाब से इन तोतों को कई यूरोपीय और भूमध्यसागरीय (Mediterranean) देशों में ले गया था। यह तोता भारतीय रिंगनेक से आकार में बड़ा होता है, इसके पंखों का आकार 8 इंच तथा शरीर की आकृति लगभग 23 इंच तक होती है। यह तोता वैसे तो रिंगनेक के समान ही हरा होता है किंतु इसकी गर्दन और नाक पर एक नीले और भूरे रंग की चमक होती है। इसका हरे और पीले रंग का पेट इसे रिंगनेक से भिन्न बनाता है, साथ ही अलेक्जेंड्रिन तोतों के शरीर पर एक बड़ा मेहरून धब्बा होता है। नर के गले में बना छल्ला इसे मादा से भिन्न दिखाता है।
रिंगनेक और अलेक्जेंड्रिन के मध्य अंतर:
अलेक्जेंड्रिन एक अच्छा पालतू पक्षी है। यह बहुत ऊर्जावान होता है तथा कई सारी गतिविधियों में संकलित रह सकता है। यह सभी खाद्य पदार्थों को खा सकता है, जबकि भारतीय रिंगनेक सीमित फल और कुछ चुनिंदा खाद्य पदार्थ ही खाते हैं। भारतीय रिंगनेक के तुलना में अलेक्जेंड्रिन की आयु भी ज्यादा होती है। अलेक्जेंड्रिन रिंगनेक की तुलना में ज्यादा स्पष्ट बोलता है।
सिर्फ बदलती नहीं इंसानों की दुनिया
हम पंछी तो किस्मत के मारे हैं
क्यूंकि, जब पड़ती है किसी शिकारी की नजर
या मारे जाते या पिंजरे में बंद कर दिये जाते हैं
अपनी लोकप्रियता के कारण तोतों का अवैध व्यापार आज इनके लिए खतरा बन गया है। भारत में घरेलू पक्षियों को कैद करके रखना पूर्णतः अपराध है, कानूनी तौर पर इन्हें पूर्णतः संरक्षण प्रदान किया गया है। भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और 1991 के संसोधन में स्वदेशी पक्षियों की सभी 1,200 प्रजातियों को कैद करके रखना या इनका व्यापार करना पूर्णतः प्रतिबंधित है। कानूनों के बावजूद भी आज पक्षियों की लगभग 300 प्रजातियाँ खुलेआम बाजारों में बेची जाती हैं, जिनमें मुनि, मैना, तोता, उल्लू, बाज, मोर और तोते आदि शामिल हैं। भारत में व्यापार किये जाने वाले पक्षियों में 50% तोते हैं।
वैश्विक पशु अधिकार संगठन ‘पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स’ (People for Ethical Treatment of Animals - PETA) ने भारत में पक्षियों को न पालने के विषय में जागरुकता फैलाने के लिए एक नया विज्ञापन अभियान शुरू किया है। इस अभियान को ऑनलाइन (Online) और सोशल नेटवर्किंग साइट्स (Social Networking Sites) के माध्यम से संचालित किया जा रहा है तथा उम्मीद की जा रही है कि यह कॉलेज के समारोहों, संगीत समारोहों और अन्य युवा-संबंधित कार्यक्रमों में लोकप्रिय होगा। यह अभियान पक्षियों को कैद से मुक्त करने और उनके शारीरिक शोषण को रोकने के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर लक्षित है।
पूरे भारत में तो इन पक्षियों के अवैध व्यापार होते ही है परंतु हमारा मेरठ भी कुछ पीछे नहीं है, यहाँ भी पक्षियों पर प्रतिबंध होने के बाद भी पिछले 24 सालों में अवैध पक्षी व्यापार काफी तीव्रता से बढ़ रहा है। मेरठ के थापरनगर में सभी रंगों के जंगली पक्षी अवैध रूप से बेचे जाते हैं। यहां कबूतरों के जोड़े 50 से 100 रुपये में मिल जाते हैं। तोते भी आसानी से कम भाव में मिल जाते हैं। कुछ लोग यहां पक्षियों को खरीदने के लिए आते हैं, जबकि कुछ उन्हें छोड़ने आते हैं। यहां कृत्रिम रंगों में रंगे गये पक्षी भी आसानी से मिल जाते हैं। कबूतर, मैना, तोते, खरगोश और सफेद चूहे आदि सबका व्यापार किया जाता है। पक्षियों का जन्म स्वतंत्रता से उड़ने के लिए हुआ है पिंजरे में कैद होने के लिए नहीं। पक्षियों के लिए उड़ना उतना ही अनिवार्य है जितना हमारे लिए चलना है। इनकी आज़ादी को पिंजरे में कैद करके हम इनपे ज़ुल्म और मानवता का कत्ल कर रहे है।
संदर्भ:
1. https://www.differencebetween.com/difference-between-indian-ringneck-and-vs-alexandrine/A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
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