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मेरठ के विक्टोरिया पार्क के क्षेत्र में नई जेल स्थित थी, यह जेल 1886 तक मेरठ की केंद्रीय जेल रही थी। जैसा की हम सब 1857 के विद्रोह से भली भांती अवगत हैं, यह विद्रोह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, जबकी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक शताब्दी लंबे विरोद्ध की परिणति थी। विद्रोह की यह चिंगारी तब भड़की जब ब्रिटिशों द्वारा एनफील्ड राइफल (जो गोमांस और सुअर की चर्बी से बनी हुई थी) को बिन बताए उपयोग करवाना चाहते थे। हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों को लगा कि अंग्रेज जानबूझकर उनके धर्म को भ्रष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं और इस गतिविधि से भारतीय सिपाहियों में काफी क्रोध उत्पन्न हो गया।
मेरठ में विद्रोह फैलने से पहले ही बंगाल के बैरकपुर में मंगल पांडे शहीद हो गए थे। मंगल पांडे को 29 मार्च 1857 को विद्रोह करने और अपने अधिकारियों पर हमला करने के लिए फांसी दे दी गई थी। वहीं 24 अप्रैल को 85 भारतीय सैनिकों ने एनफील्ड राइफल का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया और 9 मई को इन 85 सैनिकों को बर्खास्त कर दिया गया और 10 वर्ष की सजा सुनाई गई।
10 मई को गर्मी होने के साथ-साथ वहां का माहौल भी काफी गर्म हो गया था और मेरठ में रह रहे यूरोपीय को यह आभास भी नहीं था कि उनके ऊपर कभी भी विपत्ति आ सकती थी। वहीं भारतीय सिपाहियों का एक दल अपने साथियों को सूचित करने के लिए 9 तारीख की रात को ही दिल्ली के लिए रवाना हो गया था। कई भारतीय नौकर ब्रिटिश के घरों में काम के लिए नहीं गए, और हर रविवार की तरह ही इस रविवार को भी कई ब्रिटिश सैनिक और अधिकारी मनोरंजन के लिए सदर बाज़ार चले गए।
लेकिन शाम लगभग 5:30 बजे सदर बाज़ार में एक अफवाह फैल गयी कि ब्रिटिश अनुशासन मेरठ के मूल सैनिकों से अस्त्र-शस्त्र छीनने के लिए आ रहे हैं। यह एक ऐसी प्रमुख चिंगारी थी जिसने मेरठ के निवासियों के साथ-साथ सिपाहियों के दिलों में क्रोध की आग को और भी भड़का दिया। जिससे सिपाहियों और निवासियों द्वारा सदर बाज़ार में उपस्थित हर ब्रिटिश सैनिक और अधिकारी पर हमला करना शुरु कर दिया गया। यहां तक कि सदर कोतवाली की पुलिस द्वारा कई मामलों में बाजार के निवासियों का नेतृत्व किया जा रहा था, जो बिना म्यान की तलवारों के साथ सामने आ रहे थे। तभी वहां मौजूद सिपाहियों ने तुरंत अपनी लाइनों की ओर भागना शुरू कर दिया और वहां से अपने हथियारों को कब्जे में ले लिया गया और घुड़सवार सेना द्वारा अपने घोड़े ले लिए गए।
तभी एक घुड़सवारों का समूह नई जेल की ओर चला गया, जहाँ उनके 85 साथियों को कैद कर लिया गया था। वे शाहपीर के गेट से बाहर निकलकर नई जेल पहुंचे, जहां उन्होंने केवल अपने 85 साथियों को बाहर निकालने के लिए रास्ता बनाया, लेकिन अन्य 800 या अधिक दोषियों को बाहर नहीं निकाला। साथ ही उन्होंने जेलर, उसके परिवार और घर को कोई क्षति नहीं पहुंचाई। वहीं रात के लगभग 2 बजे जेल के आसपास के इलाकों के ग्रामीणों ने जेल में हमला किया और अन्य सभी दोषियों को रिहा कर दिया और जेल को जला दिया गया।
वहीं अगली सुबह तक मेरठ छावनी और शहर के भीतर से यह विद्रोह की आग आसपास के गांवों में फैल गयी थी। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी, ब्रिटिश सैनिक तथा यहां तक की आम नागरिक भी आने वाले कई दिनों तक मेरठ छावनी के यूरोपीय हिस्से से बाहर नहीं जा सकते थे। यहां उन्होंने अपनी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए एक कृत्रिम किले का निर्माण करवाया, जिसे दम दूमा कहा जाता है। मेरठ छावनी में ब्रिटिश सैनिकों और मूल निवासियों के बीच कोई सीधा टकराव नहीं हुआ। यहां तक कि किलेबंदी का कभी उपयोग नहीं किया गया था।
संदर्भ :-
1. https://www.news18.com/news/india/may-10-1857-the-day-the-great-indian-revolt-started- 472955.html
2. http://www.amitraijain.in/eng/meerut-10th-may-1857/
3. पुस्तक का संदर्भ: शर्मा, डॉ. के. डी., पाठक, डॉ. अमित 1857 की क्रांति और मेरठ स्थल और व्यक्ति(2002)
स्कॉलर्स पब्लिकेशन (Scholars Publications) मेरठ कैंट, उत्तर प्रदेश
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