समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 943
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
गंदगी से होने वाले रोग न जाने हर साल कितने लोगों की जिंदगी छीन लेते हैं। यह केवल हमारे देश की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या है जिससे निपटने के लिये पूरे विश्व के देश अलग-अलग विधियों को खोज रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी और 2019 तक स्वच्छ भारत बनने का सपना देखा था। स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने में सबसे पहले यदि किसी क्षेत्र ने योगदान दिया है तो वह छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर है।
इस क्षेत्र ने कूड़े-कचरे का निवारण करने के लिये ऐसे मॉडल (Model) को अपनाया जिससे क्षेत्र से कचरे का नामो-निशान मिट गया और लोगों के लिये रोज़गार के नये अवसर भी खुल गये। आइये जानते हैं अंबिकापुर का स्वच्छता मॉडल क्या है और मेरठ को इसकी ज़रुरत क्यों महसूस हुई।
अंबिकापुर स्वच्छता मॉडल सॉलिड एंड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (Solid and Liquid Resource Management System) अर्थात ठोस अथवा तरल कूड़े के निपटान की तर्ज पर काम करता है। इसमें कचरे को इकट्ठा करने पर इसे 20 जैविक और 17 अजैविक भागों में बांटा जाता है। प्राप्त जैविक कचरे में खाने योग्य कचरे को गाय, मुर्गी और बत्तखों को खिला दिया जाता है। इन जानवरों से दूध और अंडे प्राप्त होते हैं जो अतिरिक्त आय का साधन बनते हैं। बाकि के बचे कार्बनिक (Carbonic/ कार्बन युक्त) कचरे को खाद बनाने के लिये कम्पोस्ट यार्ड (Compost Yard) में पहुंचा दिया जाता है। दूसरी ओर अजैविक कचरा जैसे कागज, गत्ता, धातु और प्लास्टिक (Plastic) को 17 श्रेणियों में बांट दिया जाता है। इस अलग-अलग कचरे को पहले धोया और साफ़ किया जाता है।
सफाई के बाद इसे सुखाया जाता है, फिर कचरे को अलग-अलग बोरों में भरा जाता है जिसके बाद बोरों का वजन कर इन्हें तृतीयक पृथकीकरण के लिये भेज दिया जाता है। यहाँ साफ़ कचरे को 156 उप श्रेणियों में बांटा जाता है जिसमें प्लास्टिक को 22 भागों, प्लास्टिक आइटम (31), धातु (5), रबड़ आइटम (Rubber Item) (8), बोतल (15), कागज (13), कार्डबोर्ड (9) श्रेणियों में बांटा जाता है। इसके बाद इन सब को अलग-अलग बोरों में डाला जाता है और उनका वज़न कर बेचने के लिये भेज दिया जाता है। यह सारा काम मॉडल सॉलिड एंड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (सी.एल.आर.एम.) सेंटर्स (Model Solid and Liquid Resource Management System Centres) में किया जाता है।
सी.एल.आर.एम. सेंटर्स बनाने के लिये उन क्षेत्रों का चुनाव किया जाता है जिन पर कचरे को फेंका जा रहा हो या उस जमीन पर कब्ज़ा किया हो। इससे सी.एल.आर.एम. सेंटर बनाने के लिये क्षेत्र में अलग से ज़मीन की जरूरत नहीं पड़ती है। सी.एल.आर.एम. सेंटर पर सी.सी.टी.वी. कैमरे से नजर रखी जाती है। हर घर से कचरा इकट्ठा करने के लिये हर सुबह 7 बजे और शाम 3 बजे तीन महिलाओं का एक रिक्शा या स्वचालित रिक्शा लेकर लोगों के घरों में जाते हैं जहाँ पर पहले से हर-घर में हरा और लाल डब्बे में कूड़ा रखा हुआ रहता है।
कूड़े को किस तरह से रखना है यह लोगों को बताया गया होता है और लोग बताये हुए तरीके से ही हरे डब्बे में गीला कूड़ा रखते हैं और लाल डब्बे में सूखे कूड़े को रखते हैं जिसे सी.एल.आर.एम. सेंटर की महिलायें आकर रिक्शे में बने गीले और सूखे भाग में डाल देती हैं। इस मॉडल से कचरे का निवारण करने से अंबिकापुर निगम का पैसा तो बचा ही, साथ ही वहां कई नए रोज़गार के अवसर भी खुल गये। एक रिपोर्ट के मुताबिक जहाँ कूड़ा बीनने और उसे डंपिंग यार्ड (Dumping Yard) तक पहुंचाने तक में निगम को हर महीने 5 से 5.5 लाख रुपये लगते थे, सी.एल.आर.एम. मॉडल के कारण पैसा लगने की बजाय निगम के पास उल्टा पैसे आने लगे हैं।
मेरठ में 1000 टन कूड़ा रोज़ जिले के तीन क्षेत्रों में फेंका जाता है। मेरठ का कूड़ा शहर के बाहर जिन साइट्स (Sites) पर फेंका जाता है, उसके आसपास गाँव बसे हुए हैं और इस कारण वहां रहने वाले लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मेरठ प्रशासन ने पिछले वर्ष इस समस्या से निपटने के लिये अंबिकापुर स्वच्छता मॉडल को अपनाने का विचार भी किया था, परन्तु इसे पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए नागरिकों के भी काफी योगदान की होगी। साथ ही नागरिकों को कचरा सम्बंधित शिक्षा भी देनी होगी। यदि आज हर मेरठवासी यह ठान ले कि हमें अपने शहर को साफ़ बनाकर इसे पूरे देश के लिए एक उदाहरण बनाना है, तो खुले में कचरे का अस्तित्व हम मिटा सकते हैं।
संदर्भ:
1.https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/composting-must-for-all-public-facilities-generating-more-than-100kg-garbage/articleshow/65861781.cms
2.https://bit.ly/2pPssYQ
3.https://swachhindia.ndtv.com/swachh-survekshan-2018-chhattisgarhs-ambikapur-waste-management-success-story-19837/
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.