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हमारे मेरठ में 1892 में स्थापित, मेरठ कॉलेज (Meerut College), भारत में एक प्रसिद्ध संकाय, अभिनव शैक्षिक संस्थान और एक प्रमुख अनुसंधान विश्वविद्यालय है, जहां छात्रों के अकादमिक प्रदर्शन के साथ, बौद्धिक जिज्ञासा और रचनात्मकता को निखारा जाता है। इस कॉलेज की स्थापना, ब्रिटिश शासन काल के दौरान डब्ल्यू.के. बोनौड (W.K. Bonnoud) द्वारा की गई थी। तो आइए, आज 19वीं सदी में भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए ब्रिटिश समर्थन की शुरुआत के बारे में जानते हैं और अंग्रेज़ों की सहायता अनुदान प्रणाली के नियमों को समझने का प्रयास करते हैं। इसके साथ ही, हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि सहायता अनुदान प्रणाली की कार्यप्रणाली की समीक्षा और निगरानी कैसे की जाती थी। अंत में, हम 19वीं शताब्दी के दौरान, उत्तर प्रदेश में निर्मित कुछ प्रतिष्ठित कॉलेजों के बारे में जानेंगे।
भारतीय शिक्षा के लिए ब्रिटिश समर्थन की शुरुआत:
1813 में संसद द्वारा 20 वर्षों के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के चार्टर को नवीनीकृत किए जाने के बाद, कंपनी को साहित्य के पुनरुद्धार, प्रचार एवं प्रोत्साहन और ब्रिटिश क्षेत्रों में विज्ञान की शुरूआत और प्रचार के लिए, प्रति वर्ष 100,000 रुपये खर्च करना आवश्यक था। इससे शिक्षा के पारंपरिक रूपों को समर्थन मिला। 1813 में, त्रावणकोर के तत्कालीन ब्रिटिश रेजिडेंट कर्नल जॉन मुनरो (John Munro) और सीरियन चर्च के एक विद्वान भिक्षु पुलिककोटिल डायोनिसियस द्वितीय (Pulikkottil Dionysius II) के अनुरोध पर, त्रावणकोर की रानी गौरी पार्वती बाई ने कोट्टायम, त्रावणकोर में एक थियोलॉजिकल कॉलेज (Theological College) शुरू करने की अनुमति दी। रानी ने कर मुक्त 16 एकड़ संपत्ति, 20,000 रूपये और निर्माण के लिए आवश्यक लकड़ी प्रदान की। इस कॉलेज की आधारशिला 18 फरवरी 1813 को रखी गई और इसका निर्माण 1815 तक पूरा हुआ। प्रारंभ में इसे कोट्टायम कॉलेज कहा जाता था। इस कॉलेज को केरल में "अंग्रेजी शिक्षा शुरू करने वाला पहला स्थान" और 1815 में ही अंग्रेजों को शिक्षक के रूप में नियुक्त करने वाला पहला स्थान माना जाता है। बाद में, इसे सीरियन कॉलेज के नाम से भी जाना जाने लगा। यहां छात्रों को धार्मिक विषयों के साथ-साथ मलयालम के अलावा अंग्रेजी, हिब्रू, ग्रीक, लैटिन, सिरिएक और संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी।
भारत में सहायता अनुदान प्रणाली के नियम:
सहायता अनुदान प्राप्त करने वाले विद्यालयों के लिए पात्रता शर्तें:
सहायता अनुदान प्रणाली की कार्यप्रणाली की समीक्षा:
1892-93 से 1896-97 के दौरान, सहायता अनुदान प्रणाली की कार्यप्रणाली को शिक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया। इसके नियमों को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। हालांकि, इस प्रणाली का मुख्य दोष शैक्षिक तरीकों को रूढ़िबद्ध करने और प्रत्येक विद्यालय में मूल्यांकन के एक ही पैमाने को लागू करने की प्रवृत्ति थी। इसने विद्यालयों को अपनी रुचि या स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार विकसित होने से रोक दिया। इसके अनुसार, हाल ही में शुरू हुए विद्यालयों को नियमों का सख्ती से पालन करना आवश्यक था, जबकि लंबे समय से स्थापित विद्यालयों को नियमों में कुछ छूट दी गई, जिससे उन्हें पहले की तुलना में अधिक स्वतंत्रता मिल सके। उनका अनुदान, तीन से पांच साल की अवधि के लिए कुछ गारंटी पर तय किया जा सकता था। वार्षिक समीक्षा के आधार पर ऐसे संस्थानों के लिए अनुदान की वृद्धि को मूल्यांकन के लिए एक बेंचमार्क के रूप में नहीं अपनाया जाता था, क्योंकि इससे उनके काम का सही निर्णय नहीं हो पाता था। इसलिए इंस्पेक्टरों द्वारा निरीक्षण और विश्वविद्यालय एवं विभागीय परीक्षाओं के परिणाम पर अनुदान तय करने से कुछ विद्यालयों पर निराशाजनक प्रभाव पड़ा। इस प्रकार उन विद्यालयों के लिए, जो लंबे समय से उच्च स्थान पर थे और कार्यात्मक और वित्तीय रूप से स्थिर थे, सहायता अनुदान तय करने के लिए मूल्यांकन का एक अलग पैमाना प्रस्तावित किया गया था।
19 वीं शताब्दी के दौरान निर्मित प्रतिष्ठित कॉलेज:
मेरठ कॉलेज:
मेरठ कॉलेज का परिसर, 106 एकड़ में फैला हुआ है, और इसका शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों का एक समृद्ध इतिहास है। एक संस्था के रूप में, मेरठ कॉलेज, ज्ञान को आगे बढ़ाने और दुनिया भर में सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए प्रतिबद्ध है। इस संकाय में 184 पूर्णकालिक उच्च प्रशिक्षित शिक्षक और लगभग 456 पी एच डी (PhD) अनुसंधान विद्वान हैं, जो अकादमिक विकास के लिए निरंतर कठिन परिश्रम करते हैं। यहां के बुनियादी ढाँचे में अच्छी तरह से सुसज्जित कक्षाएँ, प्रयोगशालाएँ, एक केंद्रीय पुस्तकालय, 10 विभागीय पुस्तकालय, 31 प्रयोगशालाएँ, 87 अध्ययन कक्ष और दो सभागार शामिल हैं।
मेरठ कॉलेज का समृद्ध इतिहास, वर्ष 1888 से शुरू हुआ जब यहां के संस्थापक डब्ल्यू.के. बोनौड (W.K. Bonnoud) ने उच्च शिक्षा के लिए एक केंद्र की कल्पना की। 70 छात्रों और मुट्ठी भर शिक्षकों के साथ, संस्थान ने स्नातक कार्यक्रम के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्धता ली। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी मेरठ कॉलेज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके कई छात्रों और शिक्षकों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, कॉलेज अक्सर क्रांतिकारियों के लिए एक बैठक स्थल के रूप में कार्य करता था। अपनी मामूली शुरुआत से लेकर उत्तर भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का एक बड़ा उदाहरण स्थापित करने तक, मेरठ कॉलेज की यात्रा देश में उच्च शिक्षा के विकास को दर्शाती है।
मुइर सेंट्रल कॉलेज:
इलाहाबाद की सबसे प्रभावशाली इमारतों में से एक, मुइर सेंट्रल कॉलेज (Muir Central College) की स्थापना, 1872 में उत्तर पश्चिमी प्रांतों के लेफ़्टिनेंट गवर्नर और स्कॉटिश प्रशासक विलैम मुइर (Willaim Muir) ने की थी। इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा सुविधाओं में कमी को भांपकर, उन्होंने मुइर सेंट्रल कॉलेज शुरू करने का फैसला किया। 9 दिसंबर 1873 को भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड नॉर्थब्रुक (Lord Northbrook) ने इस कॉलेज की आधारशिला रखी। 1912 में लेफ़्टिनेंट -गवर्नर सर जॉन हेवेट (Sir John Hewett) ने यहां यूनिवर्सिटी सीनेट हॉल खोला। 1921 तक इस कॉलेज को एक स्वतंत्र दर्जा प्राप्त था, जिसके बाद इसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विलय कर दिया गया और अब यह विश्वविद्यालय का मुख्य केंद्र है।
इस कॉलेज की इमारत में लगभग 61 मीटर ऊँची एक मीनार है, जो मिर्ज़ापुर से लाए गए बलुआ पत्थर से बनी है, जिसके अंदर संगमरमर और मोज़ेक से बना फ़र्श है। इस इमारत में एक चतुर्भुज के आकार में ऊंचे और सुंदर मेहराब हैं। अंदर, टावर के नीचे, शानदार गुंबद वाला एक ऊंचा हॉल है। ये कॉलेज अपने प्राकृतिक इतिहास, संग्रहालय, अपने बेहतरीन टैक्सिडर्मि नमूनों के लिए जाना जाता है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: मेरठ में स्थित चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (Wikimedia)
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