होली की किंवदंतियों और रंगों के पीछे का मनोविज्ञान, दोनों ही हैं, बेहद रोचक

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
14-03-2025 09:24 AM
होली की किंवदंतियों और रंगों के पीछे का मनोविज्ञान, दोनों ही हैं, बेहद रोचक

अबीर उड़े, गुलाल खिले,

होली के रंग निराले मिलें।

सब मिलकर यूं गीत सुनाएं,

स्नेह-प्रेम के रंग बरसाएं।

हमारे समाज में होली से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ और किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा, कामदेव का बलिदान, और राधा-कृष्ण का दिव्य प्रेम भी शामिल हैं। आज के लेख में, हम इस त्यौहार से जुड़ी कुछ रोचक कहानियों को विस्तार से जानेंगे। इसके बाद, हम होली के विभिन्न रंगों के प्रतीकात्मक अर्थों को समझेंगे। 

होली का त्योहार, न केवल रंगों और उत्सव का प्रतीक है, बल्कि इसके पीछे कई रोचक पौराणिक कथाएँ और किंवदंतियां भी जुड़ी हुई हैं। ये कहानियाँ बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, बलिदान और बुराई के अंत का संदेश देती हैं। 

आइए, इन प्रसिद्ध कथाओं के बारे में जानते हैं: 

होलिका दहन की तैयारी | चित्र स्रोत : Wikimedia 

1. होलिका दहन: बुराई पर अच्छाई की जीत:- यह कहानी, भक्त प्रह्लाद और उसकी राक्षसी चाची होलिका की है। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त थे, जबकि उनके पिता, राजा हिरण्यकश्यप, विष्णु के घोर विरोधी थे। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन असफल रहा।

अंत में, उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे आग में भी नहीं जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की योजना बनाई। लेकिन प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति गहरी आस्था के कारण, वह सुरक्षित बच गया, जबकि होलिका जलकर राख हो गई। यह घटना बुराई पर अच्छाई की विजय और ईश्वर में अटूट विश्वास का प्रतीक है। इसी कारण, होली से एक दिन पहले होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

2. राधा-कृष्ण का शाश्वत प्रेम: भगवान श्री कृष्ण और राधा के प्रेम से जुड़ी एक प्यारी किंवदंती भी होली से संबंधित है। कहा जाता है कि, श्री कृष्ण को अपनी गहरी नीली त्वचा को लेकर चिंता रहती थी, क्योंकि राधा गोरी थीं। एक दिन, उनकी माँ यशोदा ने कृष्ण को सुझाव दिया कि वे राधा पर रंग लगा दें।

इसके बाद, कृष्ण ने रंगों से खेलना शुरू कर दिया और यह एक परंपरा बन गई। वे अपनी प्रिय सखियों के साथ रंगों की होली खेलते थे। यह प्रेम और आनंद का प्रतीक बन गया, जो आज भी होली के रंगों में देखा जाता है।

एक पेंटिंग में दिखाया गया भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म करने का दृश्य  | चित्र स्रोत : Wikimedia 

3. कामदेव का बलिदान: सती के आत्मदाह के बाद, भगवान शिव ने संसार से विरक्त होकर घोर तपस्या में लीन हो गए। उनके इस ध्यान के कारण सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। देवी सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया, लेकिन शिव का ध्यान भंग करना असंभव प्रतीत हो रहा था।

देवी पार्वती के आग्रह पर, प्रेम और कामना के देवता कामदेव ने, शिव के हृदय पर प्रेम-बाण चलाया। इससे शिव का ध्यान भंग हो गया, लेकिन वे अत्यंत क्रोधित हो गए। अपने तीसरे नेत्र से उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया।

बाद में, शिव ने पार्वती को अपनाया और संसार में संतुलन पुनः स्थापित हुआ। दक्षिण भारत में होली का पर्व कामदेव के बलिदान के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भी मनाया जाता है।

4. धुंधी राक्षसी का अंत: बच्चों के बीच लोकप्रिय इस कहानी में धुंधी नाम की एक राक्षसी का उल्लेख मिलता है, जो राजा रघु के राज्य में लोगों को परेशान करती थी। उसे किसी भी अस्त्र-शस्त्र या साधारण उपाय से हराना संभव नहीं था।

हालांकि, उसे बच्चों की शरारतों और शोर से भय लगता था। एक ज्ञानी पुजारी ने सुझाव दिया कि, लड़कों को इकठ्ठा कर उसे डराना चाहिए। बच्चों ने खूब शोर मचाया, हँसे, ढोल बजाए और उछल-कूद की। इससे परेशान होकर धुंधी वहाँ से भाग गई। आज भी होली पर धूमधाम से शोर मचाने और हँसी-मज़ाक करने की परंपरा इसी कथा से जुड़ी हुई मानी जाती है।

कृष्ण के साथ पूतना की 17वीं शताब्दी की एक लकड़ी की मूर्ति | चित्र स्रोत : Wikimedia 

5. पूतना वध: बुराई का अंत: - मथुरा के राजा कंस के बारे में जब यह भविष्यवाणी हुई कि उसका अंत श्रीकृष्ण के हाथों होगा, तो उसने नवजात शिशुओं की हत्या का आदेश दिया। उसने पूतना नामक राक्षसी को भेजा, जिसने जहरीले दूध से कृष्ण को मारने की योजना बनाई। लेकिन बालक कृष्ण ने पूतना का दूध पीते समय उसका जीवन भी चूस लिया और उसे मार डाला। कुछ मान्यताओं के अनुसार, पूतना ठंड और अंधकार का प्रतीक थी और उसका अंत वसंत ऋतु के आगमन का संकेत माना जाता है।

होली केवल रंगों का त्यौहार नहीं है, बल्कि हर रंग के पीछे एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ भी छिपा होता है। ये रंग हमारी भावनाओं, परंपराओं और संस्कृति को दर्शाते हैं। 
आइए, इन रंगों के महत्व को समझते हैं:

चित्र स्रोत : Wikimedia

1. गुलाबी – प्रेम और स्नेह का रंग: गुलाबी रंग, होली के सबसे लोकप्रिय रंगों में से एक है। यह प्रेम, स्नेह और खुशी का भी प्रतीक है। यह रंग, खिले हुए फूलों की सुंदरता को भी दर्शाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण ने राधा के चेहरे पर गुलाबी गुलाल लगाकर अपने प्रेम का इज़हार किया था। यह रंग, राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम और मिलन का प्रतीक माना जाता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia

2. पीला – खुशी और नई शुरुआत का रंग: पीले रंग को शुभता, सकारात्मकता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसे शादियों और धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष स्थान दिया जाता है। यह वसंत के आगमन और नई फ़सल के मौसम को भी दर्शाता है। बंगाल में बच्चे, होली की शुरुआत, भगवान और बड़ों के चरणों में पीला गुलाल अर्पित करके करते हैं। यह रंग, जीवन में आनंद, संतोष और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है।

चित्र स्रोत : Wikimedia

3. हरा – वसंत और नई शुरुआत का रंग: होली का त्यौहार, वसंत के आगमन का संकेत देता है, इसलिए हरा रंग इस पर्व में महत्वपूर्ण होता है। यह केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि रंग मनोविज्ञान के अनुसार भी हरा रंग शांति, संतुलन और प्रकृति से जुड़ा है। रंग विशेषज्ञों के अनुसार, हरा रंग न केवल माँ प्रकृति में बल्कि हमारे जीवन और मन में भी नई शुरुआत की याद दिलाता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia

4. नीला – ईश्वर और अनंतता का रंग: हिंदू धर्म में कई प्रमुख देवी-देवताओं की त्वचा, नीली मानी जाती है, जो अनंतता और गहराई का प्रतीक है। यह रंग, समुद्र और आकाश की असीमितता को दर्शाता है। रंग मनोविज्ञान के अनुसार, नीला रंग, शांति, आत्मचिंतन और स्पष्टता से जुड़ा होता है। भारतीय इतिहास में भी इसका विशेष महत्व है, क्योंकि महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए 'नीले विद्रोह' ने स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी थी। इस दृष्टि से, नीला रंग स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है।

चित्र स्रोत : Wikimedia

5. केसरिया – शुद्धता और साहस का रंग: गहरा पीला-नारंगी रंग, जिसे केसरिया कहा जाता है, हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है। यह रंग, शुद्धता, शक्ति, साहस और आत्मिक उत्थान का प्रतीक माना जाता है। हिंदू साधु-संतों के वस्त्रों, धार्मिक समारोहों में इस्तेमाल होने वाली गेंदे की माला और भारत के राष्ट्रीय ध्वज में यह रंग प्रमुखता से दिखाई देता है। रंग विशेषज्ञों के अनुसार, केसरिया रंग, मनोबल बढ़ाने और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia

6. लाल – जीवन-चक्र और शक्ति का रंग: हिंदू परंपराओं में लाल रंग, अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह जीवन-चक्र के तीन मुख्य पहलुओं – जन्म, विवाह और मृत्यु – का प्रतीक है। यह प्रजनन क्षमता, ऊर्जा, साहस और शक्ति को भी दर्शाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में देवी दुर्गा को लाल रंग से जोड़ा जाता है, जो शक्ति और विजय की प्रतीक हैं। भारत में, विवाह के समय दुल्हनें लाल साड़ी पहनती हैं और विवाहित महिलाएं अपने बालों में लाल सिंदूर लगाती हैं। वहीं, मृत्यु के समय महिलाओं को लाल घूंघट से ढककर अंतिम विदाई दी जाती है। कुल मिलाकर, होली केवल रंगों का खेल नहीं है, बल्कि इन रंगों के माध्यम से हमारी संस्कृति, परंपराएं और भावनाएं व्यक्त होती हैं। प्रत्येक रंग का अपना अनूठा महत्व होता है, जो हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं से जोड़ता है। 

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/57cztffa

https://tinyurl.com/56yaeda8

https://tinyurl.com/ef4e2ted

https://tinyurl.com/2twt35xu


मुख्य चित्र : राधा और श्री कृष्ण होली खेलते हुए (Wikimedia) 

 

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