आइए नज़र डालें, भारत में वैदिक शिक्षा के प्रसार में, दयानंद सरस्वती की भूमिका पर

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
26-01-2025 09:27 AM

मेरठ के कई नागरिक, दयानंद सरस्वती से भली-भांति परिचित होंगे। दयानंद सरस्वती, एक हिंदू दार्शनिक और आर्य समाज के संस्थापक थे। आर्य समाज के माध्यम से उनका उद्देश्य, एक नया धर्म स्थापित करना नहीं, बल्कि प्राचीन वेदों की शिक्षाओं को फिर से स्थापित करना था। 1876 में उन्होंने अपने कथन "भारतीयों के लिए भारत" के साथ, स्वराज का आह्वान किया। स्वराज का आह्वान करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। उनकी शिक्षाओं ने सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, लाला लाजपत राय और राम प्रसाद बिस्मिल सहित कई स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया। उन्हें अक्सर भारत में वैदिक शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है। दयानंद सरस्वती, वैदिक शिक्षा के प्रबल समर्थक थे, जिसे वे समाज के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए आवश्यक मानते थे। उन्होंने पूरे भारत में कई स्कूल और गुरुकुल (पारंपरिक वैदिक स्कूल) स्थापित किए, जहाँ छात्रों को आधुनिक विषयों के साथ-साथ वेदों के सिद्धांत भी पढ़ाए जाते थे। स्वामी दयानंद सरस्वती के सपने को साकार करने के लिए, 1886 में डी ए वी (दयानंद एंग्लो वैदिक)  विद्यालयों की स्थापना की गई थी। पहला डी ए वी  विद्यालय, लाहौर में स्थापित किया गया था, जिसके प्रधानाध्यापक महात्मा हंसराज थे। उन्होंने वैदिक दर्शन, ‘त्रैतवाद’ का भी विकास किया, जो ब्रह्मांड के निर्माण की व्याख्या करता है। तो आइए, आज हम, इन चलचित्रों के माध्यम से गणतंत्र दिवस के अवसर पर दयानंद सरस्वती, उनके कार्यों और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के बारे में जानें। फिर हम, यह भी जानेंगे कि, उन्होंने आर्य समाज की स्थापना कैसे की। इसके अलावा, हम उनके द्वारा विकसित वैदिक दर्शन, त्रैतवाद के बारे में भी जानेंगे, जो ब्रह्मांड के निर्माण की व्याख्या करता है।  फिर हम, बॉलीवुड के प्रसिद्ध गीतकार मनोज मुंतशिर द्वारा दयानंद सरस्वती को श्रद्धांजलि के रूप में लिखी गई कविता का चलचित्र देखेंगे।  

 

संदर्भ

https://tinyurl.com/5n7vmkk9

https://tinyurl.com/476ca43b

https://tinyurl.com/bdzd2wd2

https://tinyurl.com/yp96zpd9

https://tinyurl.com/yvs9bdju     

 

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