![नौटंकी के प्रदर्शन को जीवंत बना देते हैं, वाद्ययंत्र और वेशभूषा](https://prarang.s3.amazonaws.com/posts/11541_January_2025_678da56bde128.jpg)
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मेरठ के नागरिकों में लोकप्रिय नौटंकी, उत्तर भारत के पारंपरिक रंगमंच का एक अनोखा और जीवंत रूप है। इसे अपनी अनूठी कलात्मक शैली और तकनीकों के अनूठे मिश्रण के लिए जाना जाता है। दर्शकों को प्रभावित करने के लिए, नौटंकी में संगीत, नृत्य, और नाटकीय कहानी का प्रयोग किया जाता है। चमकीले परिधान, भावपूर्ण अभिनय और आकर्षक संवाद नौटंकी के मुख्य आकर्षण होते हैं। कहानी को रोचक और जीवंत बनाने के लिए, हारमोनियम और ढोलक जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता है। ये वाद्ययंत्र, प्रदर्शन में लय और ऊर्जा का संचार करते हैं। नौटंकी केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक कहानियों और परंपराओं को संजोने का भी
महत्वपूर्ण माध्यम है। यह कला, परंपरा के ज़रिए समुदायों को एक साथ जोड़ने का काम करती है। इसलिए, आज के इस लेख में हम नौटंकी में संगीत की भूमिका पर ध्यान देंगे। संगीत, नौटंकी की आत्मा है और इसका कहानी कहने और दर्शकों को जोड़ने में अहम योगदान है। अंत में, हम नौटंकी के विषयों और वेशभूषाओं पर चर्चा करेंगे। इसके जीवंत रंग, आकर्षक परिधान, और अद्भुत कहानियाँ क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहचान को बखूबी दर्शाते हैं।
नौटंकी, उत्तर भारत की एक लोकप्रिय और पारंपरिक रंगमंच शैली है। इसका मुख्य उद्देश्य, लोगों का मनोरंजन करना है। इसकी कहानियाँ और विषय धर्मनिरपेक्ष स्रोतों से ली जाती हैं। इन कहानियों में उत्तर भारत की लोक कथाएँ, अरबी-फ़ारसी प्रेम गाथाएँ, राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश के लोक महाकाव्य, संतों, राजाओं और नायकों की कहानियाँ शामिल हैं। साथ ही, इसमें सामाजिक असमानता और लैंगिक हिंसा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी प्रकाश डाला जाता है।
उन्नीसवीं सदी के अंत में, हाथरस और कानपुर नौटंकी के प्रमुख केंद्र बनकर उभरे। हाथरस में नौटंकी की शुरुआत 1890 के दशक में कवि इंदरमन द्वारा स्थापित एक अखाड़े से हुई। यह शैली संगीत पर अधिक केंद्रित थी और इसमें ध्रुपद जैसे शास्त्रीय हिंदुस्तानी संगीत का समावेश किया गया। 1910 के दशक में, कानपुर ने एक नई शैली विकसित की, जो पारसी रंगमंच से प्रभावित थी। इसमें प्रोसेनियम मंच, पर्दे, संवाद, अभिनय और मंच डिज़ाइन को प्रमुखता दी गई।
संगीत, नौटंकी की आत्मा होता है! नौटंकी एक प्रकार से संगीतमय नाटक ही है, जिसमें कविता और गद्य के साथ नृत्य और संवाद
का सम्मिश्रण होता है। संगीत, इसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। नौटंकी का संगीत शास्त्रीय रागों पर आधारित होता है, लेकिन समय के साथ यह लोकगीतों की ओर विकसित हुआ। प्रत्येक धुन का विशेष चक्रीय मीटर और ताल होता है, जिससे इसे बिना देखे भी पहचाना जा सकता है।
नीचे नौटंकी संगीत की विशेषताएँ दी गई हैं:
- मज़बूत लय और भावपूर्ण गायन।
- ऊँचे स्वरों और त्वरित सजावट का प्रयोग।
- मधुर आरोहण-अवरोहण और अलंकृत ध्वनि रेखाएँ।
नौटंकी में वाद्ययंत्रों का भी अहम स्थान है। इससे संबंधित प्रमुख वाद्ययंत्र नक़्क़ारा है, जो प्रदर्शन की घोषणा और ताल बनाए रखने में मदद करता है। इसकी ध्वनि दूर तक सुनाई देती है। अन्य वाद्ययंत्रों में हारमोनियम, शहनाई, बांसुरी और ढोलक शामिल हैं।
नौटंकी में वार्ताएँ छंदबद्ध पंक्तियों में प्रस्तुत की जाती हैं। इसका प्रमुख छंद दोहा है। अन्य छंदों में चौबोला, चट्टी, और बेहेरे-तवील शामिल हैं। इनमें, चौबोला, चार पंक्तियों का छंद होता है, जिसे स्वतंत्रता से गाया जाता है।
स्वांग या नौटंकी की प्रस्तुति को संगीतमय स्क्रिप्ट कहा जाता है, जिसका अर्थ “संगीत" या “संगीतमय नाटक" होता है। इसमें हिंदी काव्य परंपराएं, जैसे दोहा और चौबोला, तथा उर्दू गद्य की शैलियां, जैसे शेर, कव्वाली और ग़ज़ल का उपयोग किया
जाता है। इनका संयोजन क्षेत्रीय संगीत शैलियों, जैसे दादरा, ठुमरी, सावन, मांड और लावणी के साथ किया जाता है।
संगीत में तीन चक्र और लयबद्ध विभाजन का पालन किया जाता है, जिसे तिहाई कहा जाता है। नौटंकी के एक प्रदर्शन में, गाए गए छंदों और वाद्य संगीत के खंडों का बारी-बारी से उपयोग होता है। इसमें नगाड़ा, शहनाई और हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्रों का प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता है।
नौटंकी की प्रस्तुति की शुरुआत प्रार्थना से होती है। नाटक के दौरान, बीच-बीच में एक “जोकर” हास्यपूर्ण दृश्य प्रस्तुत करता है। यह शब्द सर्कस से लिया गया है, और इसका उद्देश्य दर्शकों को हंसाना और मनोरंजन करना होता है।
नौटंकी में संगीत वाद्ययंत्रों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। अन्य पारंपरिक थिएटरों की तरह, इसमें भी तीखे सुर वाले वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता था। पुराने ज़माने में, नौटंकी के मुख्य वाद्ययंत्रों में, ऊँची आवाज़ वाले रीड के उपकरण शामिल होते थे। इनमें देशी शहनाई, जो ओबो का एक रूप है, और बाद में आयातित शहनाई प्रमुख थी। ताल बनाए रखने के लिए, तेज़ आवाज़ वाले नगाड़े का उपयोग किया जाता था। नगाड़ा, डंडियों से बजाया जाने वाला एक केटलड्रम (
Kettledrum) होता है। इसे अक्सर ढोलक या दूसरे ऊँचे स्वर वाले नगाड़े का सहारा मिलता था।
शहनाई और नगाड़ा, परंपरागत रूप से नौबत नामक पेशेवर समूह का हिस्सा थे। इनका उपयोग सैन्य परेड में नेतृत्व करने और शाही महलों में पहरों की घोषणा के लिए होता था। नौटंकी में, नौबत का एक नया रूप विकसित हुआ। इसे पहले शहर या गांव में जुलूस के दौरान बजाया जाता था। शाम के मनोरंजन की शुरुआत में, जब दर्शक इकट्ठा होते थे, तब इसका प्रयोग शो की घोषणा के लिए होता था।
एक विशिष्ट नौटंकी प्रदर्शन में नगाड़ा, शहनाई और हारमोनियम का बारी-बारी से उपयोग होता है। ये वाद्ययंत्र, गायकों के साथ ऑर्केस्ट्रा (Orchestra) के रूप में काम करते हैं। नगाड़े की तेज़ आवाज़, नौटंकी के वीर और मार्शल चरित्र को दर्शाती है। इसके विपरीत, शहनाई की मधुर और पतली आवाज़ दर्शकों को रोमांटिक और कोमल भावनाओं से जोड़ती है। यह विशेष रूप से नर्तक-अभिनेत्री के चुलबुले अभिनय और नखरों को संकेतित करती है।
नौटंकी में संगीत नाटक प्रायः पद्य रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। इनके साथ इकतारा, हारमोनियम, सारंगी, ढोलक और खड़ताल जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है। इन प्रस्तुतियों में अभिनय और वार्तालाप भी शामिल होते हैं, जो इसे और भी आकर्षक बनाते हैं।
नौटंकी रंगमंच में स्थानीय मिथकों, पात्रों, स्थितियों और धुनों को ध्यान में रखते हुए, विभिन्न मंडलियों ने अपनी प्रस्तुति में बदलाव
किए। इंद्रसभा जैसे साहित्यिक और लोक नाटकों के मेल ने इस विधा को नई ऊँचाई दी। इसकी लोकप्रियता ने लेखकों को प्रेरित किया, जिन्होंने परियों, शैतानों, देवताओं, राजकुमारों, जादूगरों और नर्तकियों के अद्भुत
और काल्पनिक संसार को अपने नाटकों में शामिल किया।
नौटंकी की कहानियाँ बहादुरी, कुलीनता और सच्चे प्रेम को दर्शाती हैं। इसमें घटनाएँ तेज़ गति से चलती हैं। यहाँ राजाओं, रानियों, महल की दासियों, लुटेरों और जमींदारों के साथ देवताओं, जादूगरों और अप्सराओं का मेलजोल एक
अनोखी काल्पनिक दुनिया बनाता है।पृथ्वीराज चौहान, अमर सिंह राठौर, रानी दुर्गावती और पन्ना दाई जैसे ऐतिहासिक पात्रों परआधारित नाटकों ने भी दर्शकों का
दिल जीता।
रामायण, महाभारत, पुराणों, जातक कथाओं, पंचतंत्र और लोककथाओं के अनेक मिथक और किंवदंतियाँ नौटंकी का हिस्सा रहे
हैं। लैला- मजनूं, शीरीं- फ़रहाद, और हीर-रांझा जैसी प्रेम कहानियाँ, जलियाँवाला बाग, सत्य हरिश्चंद्र, और भक्त मोरध्वज जैसे ऐतिहासिक विषय, तथा इंदल हरण और
पूरनमल जैसी लोककथाएँ दर्शकों को लुभाती हैं। वीरतापूर्ण कहानियों में सुल्ताना डाकू और अंधी दुल्हन का नाम प्रमुख है। इसके अलावा, भिखारिन, बहू बेगम, बेटी का सौदा, और भारत दुर्दशा जैसे नाटकों में सामाजिक मुद्दों को भी उठाया गया है।
नौटंकी में वेशभूषा किसी एक निश्चित काल से नहीं ली जाती। राजा हरिश्चंद्र, 17वीं शताब्दी का सुनहरा अंगरखा पहनते हैं, जबकि रानी तारामती आधुनिक साड़ी में दिखाई देती हैं। रोमांटिक नायक, मखमली कोट पहनता है और नायिका साड़ी या रेशमी लहंगा धारण करती है। महिला पात्रों की भूमिकाएँ निभाने वाले पुरुष चमकीला मेकअप करते हैं। उनके चेहरे पर पाउडर, गालों पर लाल बिंदियाँ और चाँद की सजावट होती है। आँखें भेड़ की कालिख से सजाई जाती हैं। नाक की बालियाँ, कान की झुमकियाँ, कंगन और पायल उनकी वेशभूषा में चमक बढ़ाते हैं।
मुंशीजी और जोकर पात्र, अपनी अनोखी वेशभूषा और हास्यप्रद संवादों के लिए प्रसिद्ध हैं। वे बहुरंगी शर्ट, पैच लगी पतलून और फटे बांस के साथ मंच पर आते हैं। उनकी उपस्थिति, दर्शकों को हँसी से भर देती है। कभी-कभी वे टोपी या तुर्की टोपी पहनते हैं। उनकी बेतुकी पोशाक और टिप्पणियाँ नाटक की देरी को मनोरंजक बना देती हैं। इस प्रकार नौटंकी अपने विषय, कहानियों और वेशभूषा के कारण दर्शकों के बीच अनोखी और लोकप्रिय बनी हुई है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2bf288ze
https://tinyurl.com/24mm5pff
https://tinyurl.com/2akuccpv
मुख्य चित्र स्रोत: Wikipedia
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