![उत्तर प्रदेश के वार्षिक लौकी उत्पादन में, हमारा मेरठ देता है, एक महत्वपूर्ण योगदान](https://prarang.s3.amazonaws.com/posts/11536_January_2025_678cec7c3c981.jpg)
लौकी एक ऐसी सब्ज़ी है, जो अपने हल्के स्वाद और प्रभावशाली स्वास्थ्य लाभों के लिए जानी जाती है। लौकी को विभिन्न भारतीय भाषाओं में लौकी, सोरकाया, दूधी और घिया के नाम से भी जाना जाता है। भारत की गर्म जलवायु और मिट्टी की स्थिति, लौकी उगाने के लिए अत्यंत उपयुक्त है। भारत, दुनिया में लौकी उत्पादकों में अग्रणी है। वर्ष 2023-24 में, भारत में 3.77 मेगाटन लौकी का कुल उत्पादन हुआ था, जिसमें हमारे राज्य, उत्तर प्रदेश ने 176.9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 545.29 किलोटन लौकी का उत्पादन करके, 14.42% का योगदान दिया। लौकी उत्पादन में, उत्तर प्रदेश, भारत में तीसरे स्थान पर है। राज्य में वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर, मेरठ और लखनऊ प्रमुख लौकी उत्पादक क्षेत्र हैं। हमारे शहर मेरठ में भी लौकी उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण सब्ज़ियों में से एक है। तो आइए, आज भारत में लौकी की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं और इसके लिए उपयुक्त मिट्टी, बुआई का समय, बीज दर, सिंचाई आवश्यकताओं आदि के बारे में समझते हैं। इसके साथ ही, हम यह सीखेंगे कि लौकी को कैसे लगाएं और खेती के दौरान इसकी सुरक्षा कैसे करें। अंत में, हम भारत के कुछ सबसे बड़े लौकी उत्पादक राज्यों के बारे में जानेंगे।
मिट्टी:
लौकी को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। हालांकि, इसे बलुई दोमट (Sandy Loam Soil) से दोमट मिट्टी में उगाने पर सर्वोत्तम परिणाम मिलता है।
भूमि की तैयारी:
लौकी की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार भूमि का उपयोग किया जाता है। मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए जुताई के बाद हैरो से खेती की जाती है।
बुआई का समय एवं तरीका:
लौकी की बुआई का उपयुक्त समय, फ़रवरी-मार्च, जून-जुलाई तथा नवम्बर-दिसम्बर माह है। दो पंक्तियां के बीच की दूरी, 2.0-2.5 मीटर और पौधे की दूरी 45-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसके बीज 1-2 सेंटीमीटर गहराई में बोये जाते हैं।
बीज दर एवं बीज उपचार:
एक एकड़ भूमि के लिए, 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बीज को मिट्टी जनित फफूंद से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम बाविस्टिन (Bavistin) से उपचारित करना चाहिए।
उर्वरक:
लौकी की अच्छी उपज के लिए, प्रति एकड़ भूमि में, 20-25 टन की दर से फ़ार्म यार्ड खाद (Farm Yard Manure (FYM)) डालें। 60 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया के रूप में 28 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से नाइट्रोजन की उर्वरक खुराक का प्रयोग करना चाहिए। 14 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से, नाइट्रोजन की पहली खुराक, बुआई के समय दी जाती है इसी दर से, नाइट्रोजन की दूसरी खुराक पहली तुड़ाई के समय दी जाती है।
सिंचाई:
फ़सल को बुआई के तुरंत बाद तत्काल सिंचाई की आवश्यकता होती है। ग्रीष्म ऋतु में 6-7 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है तथा वर्षा ऋतु में यदि आवश्यक हो, तो सिंचाई की जाती है। कुल मिलाकर 9 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
खरपतवार नियंत्रण:
खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए पौधे की वृद्धि की प्रारंभिक अवस्था में 2-3 बार गुड़ाई की आवश्यकता होती है। उर्वरक प्रयोग के समय निराई-गुड़ाई का कार्य किया जाता है।
रोपण प्रक्रिया:
पौधे का संरक्षण:
कीटों से:
फल मक्खियां (बैक्टोसेरा कुकुर्बाइटे (Fruit flies (Bactocera cucurbitae)): फल मक्खियां फल के आंतरिक ऊतकों को खातीं हैं, जिससे फल समय से पहले गिर जाते हैं और प्रभावित फल पीले पड़ जाते हैं और सड़ जाते हैं। इस मक्खी को नियंत्रित करना कठिन है क्योंकि इसके कीड़े फल के अंदर होने के कारण कीटनाशकों के सीधे संपर्क में नहीं आते हैं।
नियंत्रण: इनके प्यूपा को नष्ट करने के लिए, बीज बोने से पहले गड्ढों में कार्बेरिल 10% डीपी डालें। प्यूपा को बाहर निकालने के लिए मिट्टी को तोड़ना और सूखी पत्तियों द्वारा गड्ढे में मिट्टी को जलाना भी प्रभावशाली उपाय है। फल मक्खी को बढ़ने से रोकने के लिए किसी भी संक्रमित फल को हटा दें। फलों को पॉलिथीन/कागज़ के कवर में ढकने से मक्खियों को फलों के अंदर अंडे देने से रोकने में मदद मिलती है।
एपिलाचना बीटल (Epilachna beetle (Epilachna spp.)): पीले रंग के ये कीट, पत्तियों और कोमल पौधों के हिस्सों को बड़े चाव से खाते हैं, जिससे पत्तियों में केवल शिराओं का जाल रह जाता है। इनकी अधिक संख्या होने पर, यह कीट गंभीर रूप से पत्तियों को नष्ट कर देता है और उपज को कम कर देता है।
नियंत्रण: पत्तियों पर लगने वाले अंडे और कीटों को हटा दें और नष्ट कर दें। कार्बारिल 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें।
रोगों से:
डाउनी मिलड्यू (स्यूडोपेरोनोस्पोरा क्यूबेंसिस (Downy mildew (Pseudoperonospora cubensis)): यह रोग होने पर पत्तों की सतह पर रुई जैसी सफ़ेद फ़फ़ूंद दिखाई देती है। बरसात के मौसम में यह रोग गंभीर हो जाता है।
नियंत्रण: प्रभावित पत्तियों को पूरी तरह से हटा दें और नष्ट कर दें। नीम या किरियथ 10% घोल का छिड़काव करें। यदि रोग का प्रकोप अधिक हो, तो मैंकोज़ेब के 0.2% के घोल का छिड़काव करना उपयोगी रहेगा।
पाउडरी मिलड्यू (एरीसिपे सिकोरेसीरम (Powdery mildew (Erysiphe cichoracearum): यह रोग होने पर पत्तियों और तनों पर छोटे, गोल, सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। धब्बे तेज़ी से बड़े होते जाते हैं और आपस में जुड़ जाते हैं, जिससे पत्ती की ऊपरी सतह पर सफ़ेद पाउडर जैसा द्रव्यमान दिखाई देने लगता है। अत्यधिक संक्रमित पत्तियां पीली हो जाती हैं और बाद में सूखी और भूरी हो जाती हैं। पुरानी पत्तियों के बड़े पैमाने पर समय से पहले झड़ने से उपज में कमी आती है।
नियंत्रण: डिनोकैप के 0.05% घोल का छिड़काव करके रोग पर नियंत्रण रखें।
मोज़ेक (Mosaic): मोज़ेक रोग होने पर पत्तियां हरितहीन एवं शिराएँ पीली और मोटी हो जाती हैं। प्रारंभिक अवस्था में संक्रमित पौधे बौने रह जाते हैं और उपज बहुत कम हो जाती है। यह वायरस, वाइटफ़्लाई (Whitefly) नामक एक कीट से फैलता है।
नियंत्रण: डाइमेथोएट के 0.05% घोल का छिड़काव करके रोगवाहकों को नियंत्रित करें। प्रभावित पौधों और सहायक मेज़बानों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। कीटनाशक/कवकनाशी के प्रयोग के कम से कम 10 दिन बाद ही कटाई की जानी चाहिए। पकाने से पहले फलों को पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए।
भारत में शीर्ष 10 लौकी उत्पादक राज्य:
बिहार: लौकी उत्पादन में, बिहार भारत में प्रथम स्थान पर है। 2023-24 में, बिहार ने 4,44.5 वर्ग किलोमीटर के कृषि क्षेत्र में, 654.09 किलोटन लौकी का उत्पादन किया। भारत में उत्पादित कुल लौकी में बिहार का योगदान 17.30% है। बिहार में प्रमुख लौकी उत्पादक ज़िले नालंदा, वैशाली, पटना और मुज़फ़्फ़रपुर हैं।
मध्य प्रदेश: भारत के लौकी उत्पादन में, मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है। 2023-24 में, मध्य प्रदेश में 303 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 549.19 किलोटन लौकी का उत्पादन किया गया, जो भारत के कुल लौकी उत्पादन का 14.53% है। लौकी की खेती के लिए प्रसिद्ध प्रमुख ज़िलों में इंदौर, भोपाल, जबलपुर और धार शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश: भारत के लौकी उत्पादन में, उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में, 2023-24 में, 176.9 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 545.29 किलोटन लौकी का उत्पादन किया, जो भारत के कुल लौकी उत्पादन में 14.42% का योगदान है। वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर, मेरठ और लखनऊ, यहाँ के प्रमुख लौकी उत्पादक क्षेत्र हैं।
पंजाब: पंजाब, भारत का चौथा प्रमुख लौकी उत्पादक राज्य है। पंजाब ने, 2023-24 में 155.9 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 317.68 किलोटन लौकी का उत्पादन किया, जो भारत के कुल लौकी उत्पादन में 8.40% का योगदान है। यहाँ, लौकी के मुख्य उत्पादक क्षेत्र, लुधियाना, अमृतसर, जालंधर और होशियारपुर हैं।
गुजरात: भारत के लौकी उत्पादन में, गुजरात पांचवें स्थान पर है। गुजरात ने 2023-24 में, 205.7 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 316.55 किलोटन लौकी का उत्पादन किया। भारत के कुल लौकी उत्पादन में, गुजरात का योगदान 8.37% है। यहाँ, के मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र, आनंद, सूरत और राजकोट हैं।
हरियाणा: भारत के लौकी उत्पादन में हरियाणा छठे स्थान पर है। हरियाणा में, 2023-24 में 202.3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 309.09 किलोटन लौकी का उत्पादन किया गया। भारत के कुल लौकी उत्पादन में हरियाणा का योगदान 8.17% है। मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र सोनीपत, करनाल और हिसार हैं।
पश्चिम बंगाल: भारत के लौकी उत्पादन में पश्चिम बंगाल सातवें स्थान पर है। पश्चिम बंगाल में, 2023-24 में, 219 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में, 237.69 किलोटन लौकी का उत्पादन किया गया। भारत के कुल लौकी उत्पादन में, पश्चिम बंगाल का योगदान 6.28% है। पश्चिम बंगाल में मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र, नादिया, मुर्शिदाबाद और हुगली हैं।
छत्तीसगढ: भारत के लौकी उत्पादन में, छत्तीसगढ़ आठवें स्थान पर है। छत्तीसगढ़ में 2023-24 में 132.4 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में कुल 234.15 किलोटन लौकी का उत्पादन हुआ। भारत के कुल लौकी उत्पादन में, छत्तीसगढ़ का योगदान 6.19% है। मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र, रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग हैं।
ओडिशा: भारत के लौकी उत्पादन में, ओडिशा नौवें स्थान पर है। राज्य में 2023-24 में 108.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 149.42 किलोटन लौकी का उत्पादन हुआ। भारत के कुल लौकी उत्पादन में ओडिशा का योगदान 3.95% है। ओडिशा में मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र गंजम, खुर्दा, कटक और संबलपुर हैं।
असम: भारत के लौकी उत्पादन में, असम दसवें स्थान पर है। इस राज्य में, 2023-24 में 38.2 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 65.57 किलोटन लौकी का उत्पादन हुआ। भारत के कुल लौकी उत्पादन में असम का योगदान 1.73% है। मुख्य लौकी उत्पादक क्षेत्र कामरूप, नागांव, डिब्रूगढ़, कछार और जोरहाट हैं।
इसके अलावा, भारत के अन्य राज्यों जैसे झारखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, त्रिपुरा आदि में भी लौकी की खेती की जाती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Pexels
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