कथक: लखनऊ के नृत्य का जन्म

द्रिश्य 2- अभिनय कला
06-11-2017 05:58 PM
कथक: लखनऊ के नृत्य का जन्म
कथक का लखनऊ घराना अपने नृत्य प्रदर्शन में नजाकत, अन्दाज एवं अदाकारी के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहाँ अंगों की निकासी (बनावट), चमत्कारिक टुकडे, पाने, आमद तथा लयपूर्ण प्रदर्शनों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। थाट बरतना तथा ठुर्मारेयों को गाकर नृत्य करना यहाँ बहुप्रचलित है। समय के अनुसार हुए परिवर्तनों से कथक नृत्य में आज तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं, जिससे इस नृत्य में नवीनता एवं चमत्कार की वृद्धि हो रही है। लखनऊ घराने की नींव को सुदृढ़ करने में अवध सूबे के नवाब वाजिद अली शाह का अकथनीय योगदान रहा है। यह 15 फरवरी 1847 में अवध के दरबार में गद्दीनशीन हुए थे। वाजिद अली शाह एक कुशल गायक, वादक, नर्तक, निर्देशक, तथा शायर होने के साथ-साथ बड़े कलाप्रिय थे और सभी कलाओं के संरक्षक थे। पहले कथक एकल नृत्य के रूप में ही जाना जाता था। इसमें नाट्य तत्वों का समावेश करके उसे नृत्यनाटिका की ओर लाने का प्रयोगात्मक प्रयास नवाब साहब ने किया। इसी शैली में इन्होंने इंदरसभा को मंचित किया। इन्होंने कथक में ग़ज़ल, ठुमरी एवं दादरा को विशेष स्थान दिलवाया। वाजिद अली ने सौत-उल-मुबारक और गुंच ए रंग आदि क़िताबें लिखीं, जिसमें कथक नृत्य में की जाने वाली 21 गतों का लेखा-जोखा है। स्पष्ट है की लखनऊ इस अति प्राचीन कला की जननी है। लखनऊ और कथक पूर्णत: एकदूसरे से जुड़े हैं। वस्तुत: तहजीब और नजाकत से भरी लखनऊ नगरी का एक विशिष्ट अन्दाज है। कथक नृत्य में दो घराने विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं- लखनऊ घराना तथा जयपुर घराना। लखनऊ घराने के प्रवर्तक श्री ईश्वरी प्रसाद जी इलाहाबाद के इण्डिया तहसील के चुलकुंला ग्राम के निवासी थे। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वप्न में इनको नृत्य ग्रन्थ बनाने की प्रेरणा दी थी। इन्होंने ग्रन्थ-रचना करके उसकी शिक्षा अपने तीनों पुत्र-श्री अड़गू जी, खड़गू जी ओर तुलाराम जी को दी। श्री अड़गू जी ने नृत्य विद्या अपने तीनों पुत्र- श्री प्रकाश, दयाल और हरिलाल जी को दी। इन तीनों भाइयों को लखनऊ के कला प्रेमी नवाब असफ-उद-दौला ने राज्याश्रय अर्थात् प्रोत्साहन दिया। इन तीनों भाइयों ने मिलकर कथक नृत्य को और अधिक दर्शनीय, चमत्कारिक व सुदृढ़ बनाया। श्री बिन्दातीन महाराज ने लगभग 1500 ठुर्मारेयों की रचना की तथा कथक में भाव-सौन्दर्य को बहुत ऊपर उठाया। श्री कालका प्रसाद जी के तीन पुत्र थे-श्री अच्छन महाराज, लच्छु महाराज और शंभू महाराज। इन तीनों ने कथक को ना सिर्फ उत्तर भारत में बल्कि दूर-दूर तक प्रचारित क्रिया। वर्तमान में लखनऊ घराने के श्री बिरजू महाराज जी ने कथक नृत्य को अनेक नए आयाम दिये हैं। 1. दूसरा लखनऊ: नदीम हसन 2. अवध संस्कृति विश्वकोश-2: सूर्यप्रसाद दिक्षित

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