विभिन्न प्रदर्शन कलाओं में छोटे पैमाने का प्रदर्शन लखनऊ का एक आम दृश्य है। छोटे पैमाने का प्रदर्शन यहां कठपुतली, जादू और नृत्य की स्वदेशी कलाओं के रूप में देखा जा सकता है। इन्हीं कलाओं में माइम एक्ट (Mime Act) या मूक मुखाभिनय भी एक है, जिसे आमतौर पर मूक कला भी कहा जाता है। हम में से बहुत से लोगों ने मूक मुखाभिनय नहीं देखा होगा, लेकिन इशारों की यह कला रंगमंच के सबसे प्राचीन और कठिन कला रूपों में से एक है। इसका उद्देश्य मूक मुखाभिनय कला शैली की क्षमता के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना और दर्शकों को वास्तविक मनोरंजन देना है। यह कला सभी भाषा बाधाओं को पार कर जाती है। यह बातों या संदेशों को इशारों के माध्यम से बताती है। यह वो क्रिया है जो किसी भी शब्द की तुलना में अधिक प्रभावी है क्योंकि मूक इशारों के माध्यम से प्रदर्शन प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें होंठों को हिलाकर, पलकें और भौहों को बढ़ाकर और कई अन्य अभिव्यक्तियों का उपयोग चीजों को बयान करने के लिए किया जाता है।
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मुखाभिनय एक गैर-भाषी कला का रूप है, किसी भी आम आदमी द्वारा बहुत आसानी से समझा जा सकता है। यह नाट्य कला के अन्य रूपों से बहुत अलग है क्योंकि यहां कलाकार बिना किसी संवाद के प्रदर्शन या अभिव्यक्ति करते हैं, तभी हम समझ पाते हैं कि वे क्या करना या कहना चाह रहे हैं। इस कला के रूप में, मेकअप (Makeup) काले और सफेद संयोजन में किया जाता है ताकि दर्शकों को कलाकार के भाव बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई दें।
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भारत में इस कला के बारे में लोगों को अक्सर कम ही जानकारी होती है। अक्सर यह माना जाता है कि मुखाभिनय फ्रांसीसी लोगों द्वारा किया जाने वाला अभिनय है लेकिन वास्तव में यह शैली प्राचीन ग्रीस के सिनेमाघरों में उत्पन्न हुई हालांकि उस समय काफी चीजें भिन्न थी। मुखाभिनय अक्सर दैनिक जीवन के दृश्यों का नाटकीय रूपांतारण है, जिसमें क्रियाओं और इशारों के माध्यम से किसी घटना को समझाया जाता है। यह भाषण और कुछ गीतों को भी समाविष्ट करता है। इस बीच, प्रचलन की विविधताएं प्राचीन आदिवासी, भारतीय और जापानी नाट्य विधाओं में भी अपना रास्ता तलाशती रहीं। इन सभी विधाओं में संगीत और नृत्य की शैली के साथ इशारों और चेहरे की अभिव्यक्ति के माध्यम से संगीत और नृत्य का प्रदर्शन होता है। विशेष रूप से, नकाबपोश रंगमंच की जापानी नोह परंपरा, कई समकालीन फ्रांसीसी सिद्धांतकारों को प्रभावित करती है। चीजें वास्तव में तब शुरू हुईं जब रोमनों ने ग्रीस पर आक्रमण किया और एक लंबी नाटकीय परंपरा को इटली ले आये। 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 16 वीं शताब्दी के अंत तक, यूरोप में मुखाभिनय बेहद लोकप्रिय कॉमेडिया डेल आर्ट (Dell'arte) में समा गया। यह अशाब्दिक संकेतों को अच्छा बनाने और सूक्ष्म भावों को जागृत करने के साथ-साथ कलाकार की याददाश्त और उनकी रचनात्मकता और सटीकता में भी सुधार करता है। भारत के नाट्यशास्त्र में, मुद्रा (हाथों से इशारा) के तहत भूमिका निभाने के बारीक पहलुओं पर चर्चा की गई है। इसलिए, यह अपनी विभिन्न तकनीकों को सही करने के लिए कठोर अभ्यासों की मांग करता है। इस कला में मंच, संगीत और मेकअप के साथ चेहरे के भाव और शरीर की गतिविधियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मुखाभिनय का प्रयोग अन्य भारतीय कला रूपों जैसे कथकली में भी किया जाता है क्योंकि इन कलाओं में भी चेहरे के हाव-भाव तथा शारीरिक मुद्राओं की विशेष भूमिका होती है।
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भारत में मूक मुखाभिनय की परंपरा 3,000 साल से अधिक पुरानी है। इसका वर्णन प्राचीन ग्रंथ, नाट्यशास्त्र में पाया जा सकता है। भारत में माइम कलाकार जोगेश दत्ता को मूक मुखाभिनय व्याकरण के निर्माण का श्रेय दिया जाता है, जो अपने पश्चिमी अवतार से काफी अलग है और इसे हमारे पारंपरिक नृत्य रूपों के प्रभाव से जोड़ा गया है। 1960 के दशक में, हैदराबाद में इरशाद पंजतन और मुंबई में पेंटाल और सदानंद जोशी जैसे लोगों ने भी मूक मुखाभिनय को लोकप्रिय बनाया। 1959 में, जब फ्रांसीसी अभिनेता और माइम कलाकार मार्सेल मार्केयू (Marcel Marceau) कलकत्ता आए, उन्होंने माइम पर अनुसंधान के लिए एक केंद्र की स्थापना की, जिसे आज जोगेश माइम अकादमी के रूप में जाना जाता है, जो मूक मुखाभिनय की 3,000 साल पुरानी कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा है। यह माना जाता है कि इस कला का उपयोग जन संचार के एक बहुत प्रभावी माध्यम के रूप में किया जा सकता है। वर्तमान में, इस कला का उपयोग दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।
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मूक कला का स्वरूप कई वर्षों से गिरावट पर है। माइम शरीर की भाषा पर बहुत महत्व देता है और कलाकारों के लिए शारीरिक रूप से थकाऊ है। माइम कलाकारों का लचीला और फुर्तीला होना आवश्यक है, क्योंकि तब ही दिये जाने वाले संदेश को सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। रंगमंच के अन्य रूपों के विपरीत, माइम के पास कोई लिखित स्क्रिप्ट (Script) नहीं है। प्रकाश और छाया की परस्पर क्रिया माइम का एक अभिन्न हिस्सा है क्योंकि यह सही माहौल बनाने में मदद करता है। माइम प्रदर्शन अक्सर लगभग दो घंटे तक चलता है और कलाकारों के लिए शारीरिक रूप से थकावट भरा होता है। चूंकि यह कला अन्य कला रूपों से अत्यधिक भिन्न है इसलिए इसे प्रकाश में लाना तथा युवाओं को इसके प्रति आकर्षित करना अत्यंत आवश्यक है। आज थिएटर फेस्टिवल (Theater festival) और यहां तक कि कॉर्पोरेट (Corporate) प्रशिक्षण कार्यक्रम मूक अभिनय कला को बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं।
संदर्भ:
https://www.theatreinparis.com/blog/a-history-of-mime-the-most-oh-so-french-of-art-forms
https://www.bbc.com/news/world-asia-india-22949654
https://www.dnaindia.com/lifestyle/report-mime-a-dozen-the-art-form-gains-popularity-in-india-2232944
https://www.telegraphindia.com/culture/people/golden-silence-conversation-with-mime-artist-jogesh-dutta/cid/1690349
https://www.hindustantimes.com/india/mime-artists-enthral-people-in-jaipur/story-4dqmFQ2jQcZba2oQboJQpM.html
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में मुखाभिनय प्रस्तुत करता कलाकार दिखाया गया है। (Flickr)
दूसरे चित्र में मुखाभिनय कलाकार को दिखाया गया है। (Unsplash)
तीसरे चित्र में मंच पर मुखाभिनय प्रदर्शन दिखाया गया है। (Youtube)
चौथे चित्र में राह-कलाकार (स्ट्रीट आर्टिस्ट) मुखाभिनय सज्जा (Makeup) के साथ चित्रित किया गया है। (Pexels)
पांचवे चित्र में मुखाभिनय कलाकार की भाव भंगिमा को प्रस्तुत किया गया है। (Publicdomainpictures)