चिकनकारी में गांठ या टांके के आधार पर ही चिकन के प्रकार का निर्धारण किया जाता है। चिकन कशीदाकारी मे यदि देखा जाये तो लगभग 40 प्रकार के टांके पाये जाते थे परन्तु वर्तमानकाल में सिर्फ 30 प्रकार प्रयोग में लाये जाते हैं।
सभी प्रकारों को वृहत् रूप से तीन शीर्षों के अन्तर्गत विभाजित किया जा सकता है-
1.समतल टांके
2.उभरे हुये उत्कीर्ण टांके
3.खुले जाफरीनुमा जाली कार्य
चिकनकारी का कार्य इसके हस्तकौशल के कारण ही विशिष्ट और अनूठा है। चिकनकारी वृहत् प्रकार की शैलियों को अपने मे लिये हुये है जैसे की चाँद, धनिया पत्ती या चने की पत्ती आदि का आकार चने की पत्ती और धनिया के पत्ती की तरह होता है तथा इनकी महीन व उत्कृष्ट आकृतियाँ कपड़ों पर बनाई जाती हैं।
चिकनकारी के परम्परागत नाम व उनके प्रमुख टांके निम्नलिखित हैं-
1.टैपची: टैपची में वस्त्र के दाईं ओर चलते हुए टांका का कार्य किया जाता है। इसमें पंखुड़ियों, पत्तियाँ आदि बनाया जाता है। कई बार टैपची का प्रयोग सम्पूर्ण वस्त्र पर बेल-बूटी बनाने के लिए किया जाता है। यह सबसे साधारण चिकन टांका है और प्राय: अन्य सजावट के लिए आधार का कार्य करता है। यह जामदानी के समान प्रतीत होता है और सबसे सस्ता और शीघ्रतम टांका समझा जाता है।
2.पेचनी: टैपची को कई बार अन्य किस्मों पर कार्य करने के लिए आधार के रूप प्रयोग किया जाता है और पेचनी उनमे से एक है। यहाँ टैपची को एक झूलती शाखा का प्रभाव प्रदान करने के लिए इसके ऊपर धागे को गूंथकर ढक दिया जाता है और इसे सदैव कपड़े की दाएं ओर किया जाता है।
3.पश्नी: चिकनकारी के लिये चित्र की रूपरेखा तैयार करने के लिए टैपची पर कार्य किया जाता है तब सूक्ष्म लम्बवत साटिन टांकों से भराव किया जाता है और सुन्दर कार्य के लिए बदला के अन्दर लगभग दो धागों का प्रयोग किया जाता है ऐसे कार्य को पश्नी कहते हैं।
4.बखिया: बखिया सबसे साधारण टांका है और प्राय: इसको छाया कार्य के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है।
बखिया को दो रूप में बाँटा जा सकता है:
(i) उल्टा बखिया: उल्टा बखिया प्रवाह विन्यास के नीचे वस्त्र के दूसरी ओर स्थित होता है। पारदर्शी मसलीन अपारदर्शी हो जाती है और प्रकाश तथा छाया का सुन्दर प्रभाव उत्पन्न करती है।
(ii) सीधी बखिया: सीधी बखिया में अलग-अलग धागों से आर-पार साटिन की सिलाई की जाती है। धागे का प्रवाह वस्त्र की सतह पर स्थित होता है।
5.खटाऊ, खटवा या कटवाः खटाऊ, खटवा या कटवा एक कटाई का कार्य या गोट्टा-पट्टा है- यह सिर्फ एक टांका ही नही है अपितु यह एक तकनीक है।
6.गिट्टी: गिट्टी का कार्य काज और लम्बी साटिन टांकों का संयोजन एक चक्र के समान विन्यास तैयार करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
7.जंजीरा: जंजीरा टांके प्राय: पेचनी या मोटी टैपची के संयोजन सहित एक बाहरी रेखा के रूप में प्रयोग किया जाता है। उपरोक्त टांकों के बाद मोटा या पेंचदार टांकों में निम्नलिखित प्रकार सम्मिलित हैं:
(i)मुर्री: मुर्री में एक अति सूक्ष्म साटिन का टांका जिसमें पहले रेखित टैपची टाँकों के ऊपर एक गाँठ निर्मित की जाती है।
(ii)फंदा: यह मुर्री का छोटा संक्षिप्त रूप है। इसमें गांठें गोलाकार और आकार में बहुत छोटी होती हैं और ये मुर्री की भांति नाशपाती के आकार की नहीं होती हैं। यह एक प्रकार जटिल टांका है और इसके लिए अति उत्तम कौशल की आवश्यकता होती है।
(iii)जालियां: जाली या जाफरियां जो चिकनकारी में तैयार की जाती हैं इस शिल्प की विशिष्ट विशेषता है। छिद्र धागे की कटाई या खिंचाई किए बगैर सूई के हस्तकौशल से निर्मित किए जाते हैं। वस्त्र के धागों को स्पष्ट नियमित छिद्र या जालियां तैयार करने के लिए चौड़ा किया जाता है। इसे अन्य केन्द्रों पर जहाँ जालियां तैयार की जाती हैं धागे को खींचकर बाहर निकाला जाता है।
जाली तकनीक के नाम उनके उत्पति स्थानों के नाम पर आधारित है जैसे कि- मद्रासी जाली, बंगाली जाली- या संभवत: जाली का विशेष नाम उनके सबसे ज्यादा मांग स्थल पर आधारित है। मूल रूप जिसमें जालियां तैयार की जाती हैं ताने और बाने को एक शैली में एक ओर धकेला जाता है। छिद्रों और टांकों की आकृतियां एक जाली से दूसरी जाली में भिन्न होती हैं।
उपरोक्त लिखित प्रकारों के आधार पर ही तीसों टांके आधारित हैं और इन्ही के इर्द गिर्द समस्त टांकों का निर्माण होता है।
1. लखनऊ के चिकन कारीगरों का जीवन: सीमा अवस्थी
2. http://www.hand-embroidery.com/stitches-in-chikankari.html
3. http://beautywmn.com/hi/pages/316994
4. http://beautywmn.com/hi/pages/316994
5. http://www.hand-embroidery.com/stitches-in-chikankari.html
6. http://www.craftclustersofindia.in/site/indexl.aspx?mu_id=3&Clid=152
7. http://www.craftclustersofindia.in/site/indexl.aspx?mu_id=3&Clid=152