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लखनऊ के पूर्वी छोर पर स्थित चिनहट (Chinhat) इलाका, अपनी अनूठी मिट्टी कला के लिए मशहूर है। खासकर, यहाँ की चमकदार टेराकोटा कला ने इसे एक अलग पहचान दी है। एक समय ऐसा भी था जब इस जगह पर 11 से भी ज़्यादा कुम्हार इकाइयाँ मौजूद हुआ करती थीं, जहाँ मिट्टी के बर्तन, सजावटी सामान, तश्तरियाँ, कटोरे और ख़ूबसूरत फूलदान बनाए जाते थे। खासतौर पर, फलों और फूलों के आकार की प्लेटें और कटोरे लोगों के बीच काफ़ी पसंद किए जाते थे। चिनहट, सिर्फ़ एक बाज़ार या कारीगरी का केंद्र नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर भी है। यहाँ के कुशल कारीगर पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस कला को संजोते आए हैं। उनकी बनाई गई चीज़ें न केवल स्थानीय ख़रीदारों को लुभाती हैं, बल्कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को भी आकर्षित करती हैं। इसलिए आज के इस लेख में हम आपको चिनहट की इस अनमोल कला के सांस्कृतिक महत्व, इसकी बारीक तकनीकों और यहाँ बनने वाले खास उत्पादों के बारे में बताएंगे। साथ ही, हम उन कारीगरों की ज़िंदगी पर भी नज़र डालेंगे, जिनकी आजीविका इसी उद्योग पर निर्भर करती है! हम उनकी चिंताजनक स्थिति पर भी विचार करेंगे।
यूं तो लखनऊ शहर अपनी नवाबी शान और मुग़लकालीन विरासत के लिए मशहूर है! लेकिन नवाबों का यह शहर लंबे समय से कला और शिल्प का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। चिनहट की मिट्टी कला इसी समृद्ध परंपरा का हिस्सा है, जो यहाँ के कारीगरों के लिए रोज़गार का एक बड़ा साधन भी है। हालाँकि, आज बाज़ार में मशीन से बनी चीज़ों की भरमार है, फिर भी हाथ से बनी चिनहट की कारीगरी उन लोगों को आकर्षित करती है जो असली हुनर की क़द्र करना जानते हैं।
चिनहट की पॉटरी क्या है?
चिनहट की पॉटरी, ग्लेज़्ड टेराकोटा पॉटरी (Glazed Terracotta Pottery) और सिरेमिक्स (Ceramics) की श्रेणी में आती है। इस इस कला को अपने देसी और मिट्टी जैसे लुक के लिए जाना जाता है। इसकी चमकदार परत (ग्लेज़) आमतौर पर हरे और भूरे रंग की होती है, जबकि डिज़ाइन अक्सर सफ़ेद या क्रीम रंग की सतह पर बनाए जाते हैं। इन बर्तनों को 1180 से 1200 डिग्री सेल्सियस पर पकाया जाता है, जिससे यह मज़बूत और टिकाऊ बनती है। चिनहट में बनने वाले उत्पादों में मग, कटोरे, फूलदान, कप और सॉसर (Saucer) शामिल हैं। खासतौर पर नीले और सफ़ेद रंग में बने खिलौना टी-सेट (Tea Set) काफ़ी लोकप्रिय हैं। इसके अलावा, फूलदान, मग और पत्ते के आकार की प्लेटें भी लोगों को बहुत पसंद आती हैं। कुछ डिज़ाइन ज्यामितीय आकार (Geometric Patterns) में बनाए जाते हैं, जिससे ये कोई साधारण बर्तन नहीं, बल्कि रचनात्मकता, कौशल और कड़ी मेहनत के बेहतरीन नमूने बन जाते हैं।
आइए, अब आपको चिनहट मिट्टी कला की बारीकियों और तकनीक से रूबरू कराते हैं:
चिनहट की मिट्टी के बर्तनों की कला, अपनी खास रंगत और डिज़ाइन के लिए पहचानी जाती है। यहाँ बनने वाले बर्तनों और सजावटी सामानों पर हरे और भूरे रंग का खास चमकीला ग्लेज़ (Glaze) चढ़ाया जाता है। यह ख़ूबसूरत डिज़ाइन सफ़ेद या हल्के क्रीम रंग की मिट्टी पर उकेरी जाती हैं। इन बर्तनों को 1180 से 1200 डिग्री सेल्सियस तक की उच्च तापमान भट्टियों में पकाया जाता है, जिससे वे मज़बूत और टिकाऊ बनते हैं। चिनहट के कारीगर मग, कटोरी, फूलदान, कप, तश्तरी, और खिलौनों के छोटे टी-सेट (Tea Set) जैसे कई उपयोगी और सजावटी सामान बनाते हैं। इनके डिज़ाइनों में अक्सर ज्यामितीय आकृतियाँ (Geometric Patterns) देखने को मिलती हैं, जो यहाँ के कारीगरों की निपुणता और मेहनत का प्रमाण हैं।
मज़े की बात यह है कि चिनहट के कुम्हारों को कभी औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला। उन्होंने मौजूदा डिज़ाइनों को देखकर, आकृतियों और पैटर्न में सुधार करके और ग्राहकों की प्रतिक्रिया को शामिल करके सीखा। महिलाओं ने पेंटिंग में सहायता करके और नए डिज़ाइन बनाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चिनहट की यह पारंपरिक मिट्टी कला, न केवल लखनऊ की पहचान है, बल्कि यह भारतीय हस्तकला की समृद्ध धरोहर को भी दर्शाती है।
चिनहट पॉटरी को बचाने के लिए तत्काल मदद क्यों ज़रूरी है?
लखनऊ के चिनहट में एक समय, मिटटी के बर्तनों का बड़ा केंद्र हुआ करता था। यहाँ बनने वाले चमकीले टेराकोटा फूलदान (Terracotta Vase) , डिनर सेट (Dinner Set) और प्लांटर्स (Planters) दूर-दूर तक मशहूर थे। 1957 में स्थापित इस फ़ैक्ट्री (Factory) ने कई कारीगरों को रोज़गार दिया, लेकिन लगातार घाटे की मार झेलने के बाद 1994 में इसे बंद कर दिया गया। आज, यह जगह सिर्फ़ कुछ निजी मालिकों को किराए पर दी जाती है, जो बुनियादी मिट्टी के बर्तन बनाकर किसी तरह अपना गुज़र-बसर कर रहे हैं।
चिनहट के कुम्हारों की कमाई कितनी होती है ?
एक समय में यह जगह कला प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी, लेकिन अब यहाँ काम करने वाले कारीगर बेहद मुश्किल हालात में जी रहे हैं। पहले जो कलाकार अपने हुनर से शानदार मिट्टी के बर्तन बनाते थे, वे अब बिना किसी छुट्टी के, महज़ 5000 रुपये महीने की मामूली कमाई पर काम करने को मजबूर हैं। इसके अलावा, यहाँ पर फ़ैक्ट्रियों (Factories) के आस-पास कूड़े के ढेर और गंदगी ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया है। स्थानीय दुकानदारों और कारीगरों का कहना है कि इस कला को बचाने के लिए, सरकार की ओर से कोई ठोस मदद नहीं मिली है । उत्पादों पर भारी करों के साथ-साथ कच्चे माल और कोयले की कमी के कारण कई कारीगरों ने इस पेशे को छोड़ दिया। इन चुनौतियों के कारण कई परिवारों का पारंपरिक व्यवसाय अब लगभग ख़त्म होने की कगार पर है।
क्या चिनहट पॉटरी को नया जीवन मिल सकता है ?
अगर सरकार और स्थानीय प्रशासन, इस ऐतिहासिक कला को बचाने के लिए क़दम उठाएं—जैसे करों में छूट, कारीगरों को अनुदान और बेहतर कामकाजी माहौल—तो यह उद्योग फिर से अपनी पहचान बना सकता है। चिनहट की यह कला, सिर्फ़ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत भी है, जिसे बचाना हम सभी की ज़िम्मेदारी है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/26vdhhsc
https://tinyurl.com/2b68wjuz
https://tinyurl.com/2ylmom9p
https://tinyurl.com/2dccb273
https://tinyurl.com/27srvv6q
https://tinyurl.com/276hehdz
मुख्य चित्र स्रोत: Pickpik
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