लखनऊ के प्रसिद्ध मलाई पनीर का स्वाद, इन शानदार सूक्ष्मजीवों के बिना फ़ीका ही रह जाता !

कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल
24-03-2025 09:30 AM
लखनऊ के प्रसिद्ध मलाई पनीर का स्वाद, इन शानदार सूक्ष्मजीवों के बिना फ़ीका ही रह जाता !

गर्मियां शुरू होते ही नवाबों के शहर लखनऊ में छाछ और लस्सी जैसे कई अन्य किण्वित उत्पादों की माँग कई गुना बढ़ जाती है! इसके अलावा लखनऊ में पनीर से बनने वाले कई व्यंजन तो शहर की पहचान माने जाते हैं! इसलिए हम सभी को उन सूक्ष्मजीवों से ज़रूर अवगत होना चाहिए जिनकी बदौलत, किण्वित खाद्य और पेय पदार्थों का निर्माण संभव हो पाता है। ये छोटे-छोटे जीव हमारी रोज़मर्रा के कई पसंदीदा खाद्य पदार्थों के उत्पादन में मदद करते हैं। जैसे कि बैक्टीरिया (bacteria) और यीस्ट (yeast) का उपयोग दही और पनीर से लेकर ब्रेड (bread) और अचार का स्वाद, बनावट और गुणवत्ता को सुधारने के लिए किया जाता है। ये जीव, भोजन के किण्वन में भी सहायक होते हैं। 

छाछ | चित्र स्रोत : Wikimedia

पेय उद्योग में भी इनकी भूमिका अहम साबित होती है। छाछ, सिरका और दूसरे किण्वित पेय बनाने में ये नन्हे जीव महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इस प्रकार सूक्ष्मजीव न केवल स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि भोजन को संरक्षित करने और उसके पोषण मूल्य को बेहतर बनाने में भी सहायक होते हैं। इसलिए आज के इस लेख में हम डेयरी किण्वन में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (Lactic Acid Bacteria) की भूमिका पर चर्चा करेंगे। ये बैक्टीरिया दही, पनीर और अन्य किण्वित डेयरी उत्पादों के उत्पादन में मदद करते हैं। इसके बाद, हम सोया सॉस (soy sauce) के निर्माण में किण्वन की प्रक्रिया को समझेंगे और जानेंगे कि सूक्ष्मजीव सोयाबीन को किस तरह तोड़कर उसमें गहरा स्वाद विकसित करते हैं। अंत में, हम यीस्ट की भूमिका पर नज़र डालेंगे। यीस्ट, वाइन (wine) और ब्रेड उत्पादन में महत्वपूर्ण होता है। यह शर्करा को किण्वित कर वाइन में अल्कोहल(alcohol) बनाता है और ब्रेड को फूलने में मदद करता है।

पनीर का उत्पादन | चित्र स्रोत : Wikimedia

आइए शुरुआत, डेयरी किण्वन (दही, पनीर) के निर्माण में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया की भूमिका को समझने के साथ करते हैं: 

डेयरी उत्पाद, प्रोटीन के प्रमुख स्रोत माने जाते हैं। किण्वन (fermentation) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो दूध को संरक्षित करने में मदद करती है। बिना किण्वन के दूध जल्दी खराब हो सकता है। 

लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया, दूध में मौजूद शर्करा ( लैक्टोज़) (lactose) को लैक्टिक एसिड में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) एक उप-उत्पाद के रूप में बनता है। बैक्टीरिया के विकास और विभाजन के लिए दूध को हल्के तापमान (लगभग 25 डिग्री सेल्सियस) पर गर्म किया जाता है। 

पनीर बनाने के लिए दूध में 'रेनेट' (Rennet) नामक एंज़ाइम (enzyme) मिलाया जाता है। यह दूध को जमाने और एक साथ चिपकाने में मदद करता है। इसके बाद अतिरिक्त तरल को अलग कर दिया जाता है। इस चरण में पनीर या क्वार्क (Quark) जैसे ताज़े पनीर ठंडा करके खाने के लिए तैयार किए जाते हैं। 

कुछ पनीर को और अधिक समय तक सूखने दिया जाता है। पकने की प्रक्रिया से गुज़रने से उनका स्वाद और बनावट विकसित होती है। कुछ पनीर को लंबे समय तक पकने दिया जाता है, जिससे उनमें विशिष्ट गंध और स्वाद आ जाता है। 

स्टार्टर कल्चर | चित्र स्रोत : Wikimedia

बड़े पैमाने पर पनीर उत्पादन में 'स्टार्टर कल्चर' (Starter culture) का उपयोग किया जाता है। स्टार्टर कल्चर दूध में विशेष बैक्टीरिया मिलाने की एक विधि होती है। हालांकि, कई पनीर ऐसे भी होते हैं जो दूध में स्वाभाविक रूप से मौजूद बैक्टीरिया पर निर्भर करते हैं। बैक्टीरिया का प्रकार जानवरों की नस्ल और क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होता है, जिससे विभिन्न प्रकार के पनीर को उनकी विशेष पहचान मिलती है। 

लंबे समय तक पकने वाले पनीर में एक 'द्वितीयक सूक्ष्मजीव समुदाय' विकसित होता है। यह समुदाय पनीर के प्रोटीन पर जैव रासायनिक प्रक्रियाएँ करता है, जिससे स्वाद और बनावट में विशेष बदलाव आते हैं। उदाहरण के लिए, 'ब्लू चीज़' (Blue Cheese) को एक विशेष प्रकार की फफूंदी (मोल्ड) से पकाया जाता है, जिस कारण इस में नीला रंग आता है। कुछ यूरोपीय देशों में पनीर को 'चूना पत्थर की गुफ़ाओं' में पकाया जाता है। इन गुफ़ाओं में मौजूद प्राकृतिक सूक्ष्मजीव पनीर को विशिष्ट स्वाद और गंध प्रदान करते हैं। 

चित्र स्रोत : Wikimedia

आइए, अब दही बनाने की प्रक्रिया को समझते हैं:

  • दही बनाने की प्रक्रिया भी पनीर के समान ही होती है। लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया दूध के लैक्टोज को एसिड में बदल देते हैं। इससे दूध का पी एच (pH) कम हो जाता है, और वह गाढ़ा होकर दही में बदल जाता है।  
  • ' योगर्ट ' (Yogurt) शब्द की उत्पत्ति तुर्की भाषा के एक शब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ 'गाढ़ा करना या जमाना' होता है। इतिहासकार मानते हैं कि भारत में '6000 ईसा पूर्व' से दही  बनाई जा रही है।  
  • पनीर की तरह ही, अलग-अलग प्रकार के दूध में मौजूद बैक्टीरिया दही को उसका विशिष्ट स्वाद देते हैं। इस कारण विभिन्न स्थानों पर बनने वाला दही थोड़ा अलग स्वाद और बनावट का हो सकता है।
पारंपरिक कोरियाई सोया सॉस | चित्र स्रोत : Wikimedia

आइए, अब सोया सॉस बनाने की किण्वन प्रक्रिया को समझते हैं: 

पारंपरिक सोया सॉस बनाने के लिए चार मुख्य सामग्री (सोयाबीन, गेहूं, नमक और पानी) की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा ‘किण्वन’ होता है। सोया सॉस जितनी अधिक अवधि तक किण्वित होता है, उसका स्वाद उतना ही गहरा और समृद्ध हो जाता है। उच्च गुणवत्ता वाला सोया सॉस तैयार करने में कई महीनों या वर्षों तक का समय लग सकता है।

प्रारंभिक चरण: सबसे पहले, सोयाबीन को भाप में पकाया जाता है। गेहूं को भूनने के बाद उसे कुचला जाता है। फिर इन दोनों को मिलाकर एक मिश्रण तैयार किया जाता है। इस मिश्रण में एक विशेष प्रकार का मोल्ड (आमतौर पर Aspergillus oryzae या Aspergillus sojae) मिलाया जाता है। इस चरण में मिश्रण को "कोजी" कहा जाता है।

कोजी को लकड़ी की ट्रे पर फैलाकर 2-3 दिनों के लिए किण्वन के लिए छोड़ दिया जाता है। इस दौरान स्टार्च (starch) सरल शर्करा में, प्रोटीन अमीनो एसिड (Amino acid) में और तेल फ़ैटी एसिड (Fatty acid) में परिवर्तित हो जाते हैं। इन्हीं अमीनो एसिड में से एक ग्लूटामिक एसिड(Glutamic acid) होता है, जो परमेसन चीज़ (Parmesan cheese) और मशरूम में भी पाया जाता है और सोया सॉस को उसका विशिष्ट उमामी स्वाद देता है।

किण्वन के दौरान मिश्रण से गर्मी उत्पन्न होती है, जिसे नियंत्रित करना आवश्यक होता है। इसलिए, कोजी को समय-समय पर मिलाया जाता है ताकि तापमान संतुलित बना रहे। पारंपरिक शराब बनाने वाली कुछ ब्रुअरीज(Brewery) में तापमान और नमी को नियंत्रित करने के लिए एयर वेंट, हीटर और वॉटर बॉइलर का उपयोग किया जाता था।

ब्राइन किण्वन (अगला चरण): इसके बाद कोजी में नमक और पानी मिलाकर मोरोमी नामक मिश्रण तैयार किया जाता है। इसमें स्टार्टर कल्चर भी मिलाया जाता है, जिसमें लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया और खमीर होते हैं। ये सूक्ष्मजीव किण्वन के दूसरे चरण को पूरा करने में मदद करते हैं।

पुरानी और स्थापित ब्रुअरीज़ में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया और खमीर के विशेष स्ट्रेन विकसित किए जाते हैं, जो सोया सॉस को उसकी अनूठी सुगंध और स्वाद प्रदान करते हैं। यही कारण है कि वाइन और पनीर की तरह, हर सोया सॉस का स्वाद इस बात पर निर्भर करता है कि वह कहाँ और किस वातावरण में बना है।

परिष्करण ( अंतिम चरण): कई महीनों या वर्षों के किण्वन के बाद, मोरोमी एक गाढ़े, चिपचिपे मिश्रण में बदल जाता है, जिसमें खमीरी और तीखी सुगंध होती है। फिर इस मिश्रण को कपड़े से ढके कंटेनरों में दबाकर छाना जाता है, जिससे कच्चा सोया सॉस प्राप्त होता है।

बोतल में भरने से पहले, कच्चे सोया सॉस को उच्च तापमान पर गर्म करके पाश्चुरीकृत किया जाता है। यह प्रक्रिया इसे सुरक्षित बनाती है और इसके स्वाद को संतुलित करती है। इसके बाद, इसे बोतलबंद कर बाज़ार में बेचा जाता है।

इस तरह, महीनों या वर्षों की मेहनत और प्राकृतिक किण्वन से उच्च गुणवत्ता वाला सोया सॉस तैयार होता है, जो स्वाद में गहरा, सुगंध में समृद्ध और उपयोग में बहुपयोगी होता है।

ताज़ी ब्रेड | चित्र स्रोत : Wikimedia

आइए, अब एक नज़र वाइन और ब्रेड उत्पादन में यीस्ट की भूमिका पर भी डालते हैं: 

बीयर, वाइन और ब्रेड बनाने में यीस्ट (खमीर) बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल शर्करा को अल्कोहल और कार्बन डाइऑक्साइड में बदलता है, बल्कि इसके स्वाद, सुगंध और बनावट को भी प्रभावित करता है। इन उत्पादों की गुणवत्ता में यीस्ट का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

वाइन बनाने में यीस्ट का कार्य बीयर उत्पादन से मिलता-जुलता है, लेकिन इसमें कुछ अलग विशेषताएँ भी होती हैं। अंगूर में स्वाभाविक रूप से शर्करा होती है, जो यीस्ट की सहायता से किण्वित होकर वाइन में बदल जाती है। वाइन निर्माण में मुख्य रूप से सैकरोमाइसिस सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiae) यीस्ट का उपयोग किया जाता है, हालांकि अन्य प्राकृतिक यीस्ट भी इस प्रक्रिया में योगदान देते हैं।

वाइन बनाने की प्रक्रिया अंगूर को कुचलने और उनका रस निकालने से शुरू होती है। इस रस को "मस्ट" कहा जाता है। इसके बाद इसे किण्वन टैंकों में रखा जाता है, जहाँ यीस्ट सक्रिय होता है। यीस्ट, चाहे स्वाभाविक रूप से अंगूर की खाल पर मौजूद हो या अलग से जोड़ा गया हो, वह मस्ट में मौजूद शर्करा का उपभोग ज़रूर करता है। इस प्रक्रिया में अल्कोहल, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य स्वाद देने वाले तत्व उत्पन्न होते हैं।

वाइनमेकर किण्वन की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं। वे तापमान और ऑक्सीजन स्तर को संतुलित रखते हैं, क्योंकि ये कारक वाइन के स्वाद और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। किण्वन पूरा होने के बाद, वाइन को परिपक्व होने के लिए रखा जाता है, जिससे उसका स्वाद और विशेषताएँ और निखरती हैं।

ब्रेड उत्पादन में यीस्ट की क्या भूमिका होती है ?

ब्रेड बनाने में भी यीस्ट की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है, लेकिन इसकी प्रक्रिया वाइन उत्पादन से अलग होती है। ब्रेड में यीस्ट एक उठाने वाले एजेंट के रूप में कार्य करता है, जो आटे को फूलाने और उसकी बनावट को हल्का व नरम बनाने में मदद करता है।

ब्रेड निर्माण में सबसे अधिक सैकरोमाइसिस सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiae) यीस्ट का उपयोग किया जाता है। जब यीस्ट को आटे में मिलाया जाता है, तो यह आटे में मौजूद शर्करा को खाकर कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करता है। यह गैस आटे के अंदर छोटे-छोटे बुलबुले बनाती है, जिससे ब्रेड हल्की और फूली हुई बनती है। इस प्रक्रिया को "प्रूफिंग" कहा जाता है, और यह ब्रेड की सही बनावट के लिए आवश्यक होती है।

ब्रेड बनाने में तापमान और समय का विशेष ध्यान रखा जाता है। बेकर (बेकरी में काम करने वाले) यीस्ट की गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए तापमान को संतुलित रखते हैं। जब आटा पूरी तरह फूल जाता है, तो इसे ओवन में बेक किया जाता है। उच्च तापमान के कारण यीस्ट नष्ट हो जाता है, और ब्रेड की संरचना स्थायी रूप से सेट हो जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान ब्रेड का सुनहरा कुरकुरा क्रस्ट बनता है।

राई ब्रेड (Rye bread) | चित्र स्रोत : Wikimedia

यीस्ट का योगदान केवल ब्रेड को फूलाने तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि यह स्वाद और सुगंध में भी योगदान देता है। किण्वन के दौरान उत्पन्न होने वाले अल्कोहल और अन्य कार्बनिक यौगिक ब्रेड को उसका विशिष्ट स्वाद और मनमोहक खुशबू देते हैं।

चाहे वाइन हो या ब्रेड, यीस्ट इन दोनों के उत्पादन में एक अदृश्य लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह केवल किण्वन प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है, बल्कि स्वाद, सुगंध और बनावट को भी प्रभावित करता है। इस कारण, वाइनमेकर और बेकर दोनों ही यीस्ट की गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं, ताकि उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार किए जा सकें।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/2s4jkyrj

https://tinyurl.com/mu2rv6ey

https://tinyurl.com/3ej9kcvp

मुख्य चित्र: मलाई पनीर और उनमें मौजूद सूक्ष्मजीव (flickr, wikimedia) 

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