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हमारे प्रिय लखनऊवासियों, आपको यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं होगा कि लखनऊ के कई नागरिकों ने अपने जीवन में कम से कम एक बार हज (Hajj) किया होगा। हज, मक्का, सऊदी अरब (Mecca, Saudi Arabia) की एक वार्षिक इस्लामी तीर्थयात्रा है, जो उन मुसलमानों के लिए अनिवार्य है जो इसे वहन कर सकते हैं। इसमें तवाफ़, सई और अराफ़ात के मैदान में इबादत करने जैसी रस्में शामिल हैं। ये सभी रस्में, विश्वास, एकता और भक्ति का प्रतीक हैं। हज के दौरान यात्री उन लाखों मुस्लिम लोगों के जुलूस में शामिल होते हैं, जो हज की यात्रा के लिए मक्का जाते हैं। साथ ही साथ, अपनी यात्रा के दौरान, वे कई इस्लामिक अनुष्ठान भी करते हैं। इसमें प्रत्येक पुरुष, एक सफ़ेद कपड़ा (इहराम) धारण करता है, जो सिला हुआ नहीं होता है। फिर हज यात्री, काबा के चारों ओर सात बार वामावर्त परिक्रमा करते हैं। वे काबा की कोने की दीवार पर लगे अल हजर अल अस्वद (al-Ḥajar al-Aswad) नामक एक काले पत्थर को चूमते हैं तथा सफ़ा (Safaa) और मरवा (Marwah) की पहाड़ियों के बीच सात बार आगे-पीछे तेज़ गति से चलते हैं। इसके बाद, वे ज़मज़म के कुएं से पानी पीते हैं। हज यात्री, अराफ़ात पर्वत के मैदानों में पूरी रात जागते हैं और मुज़दलीफ़ा (Muzdalifah) के मैदान में एक रात बिताते हैं। वे तीन खंभों पर पत्थर फेंककर शैतान को प्रतीकात्मक रूप से पत्थर मारते हैं। मवेशियों की बलि देने के बाद, पुरुषों को या तो अपने सिर मुंडवाने या बाल कटवाने होते हैं और महिलाओं को अपने बालों के सिरे कटवाने होते हैं। इसके बाद, चार दिवसीय वैश्विक त्यौहार ईद-अल-अज़हा (Eid al-Adha) का जश्न मनाया जाता है। तो आइए, आज कुछ चलचित्रों की मदद से हम हज और इससे संबंधित महत्वपूर्ण स्थानों और इसके दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करें। हम हज यात्रा से सम्बंधित कुछ पुराने चलचित्रों, जो कि 1928, 1956 और 1970 के हैं, पर भी एक नज़र डालेंगे। इसके अलावा, हम 1940 के दशक के दौरान, मदीना के तीर्थ स्थलों जैसे अल मस्ज़िद नवबी (Al Masjid an Nabawi) के कुछ ऐतिहासिक दृश्य भी देखेंगे। इसके अलावा, हम यह भी जानेंगे कि लगभग 100 साल पहले, मदीना शहर, कैसा हुआ करता था।
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