
नारी है शक्ति, नारी है जान,
नारी के दम से रौशन ये जहान।
सीता में धैर्य, गीता में ज्ञान,
झाँसी की रानी में वीरों का मान।
हर साल, 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) के रूप में मनाया जाता है! यह दिन, महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। इस दिन को खासतौर पर तीन रंगों—बैंगनी, हरा और सफ़ेद—से जोड़ा जाता है! ये रंग, इस दिवस के गहरे अर्थ को दर्शाते हैं। आज के इस लेख में, हम इस खास दिन की शुरुआत और इसके इतिहास के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही हम यह भी समझेंगे कि इसे मनाने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है। इसके बाद, हम उन रंगों के महत्व पर चर्चा करेंगे जो इस दिन का प्रतीक हैं। फिर, नज़र डालेंगे कि दुनियाभर में इसे किस तरह मनाया जाता है। आखिर में, हम भारत के कुछ ऐसे स्थलों के बारे में जानेंगे, जो नारीत्व की उपलब्धियों को समर्पित हैं।
आइए, सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की उत्पत्ति और इतिहास को समझते हैं:
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (IWD) की उत्पत्ति, 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी। इसका आधार, महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई और श्रमिक आंदोलनों से जुड़ा था, जो उस समय यूरोप और उत्तरी अमेरिका में जोर पकड़ रहे थे।
सबसे पहले, 28 फ़रवरी 1909 को न्यूयॉर्क शहर (New York City) में "महिला दिवस" मनाया गया, जिसे सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ अमेरिका ने आयोजित किया था। इसके बाद, 1910 में कोपेनहेगन (Copenhagen) में हुए अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में जर्मनी की महिला प्रतिनिधियों ने हर साल "एक विशेष महिला दिवस" मनाने का सुझाव दिया। हालांकि, तब इसकी कोई तय तारीख नहीं थी
1911 में, यूरोप के कई देशों में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के तहत प्रदर्शन और आयोजन किए गए। आगे चलकर, 1917 की रूसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका को सम्मान देने के लिए व्लादिमीर लेनिन ने 1922 में 8 मार्च को आधिकारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया। इसके बाद, समाजवादी और साम्यवादी देशों में भी इसे इसी तारीख को मनाया जाने लगा।
1977 में, संयुक्त राष्ट्र ने इसे अपनाया और बढ़ावा दिया, जिससे यह एक वैश्विक दिवस बन गया। आज, इस दिन को महिलाओं के अधिकारों, समानता और सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है।
आखिर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्यों ज़रूरी है ?
क्या आपको पता है कि हर मिनट 28 लड़कियों की उनकी मर्जी के बिना शादी कर दी जाती है? आज भी दुनिया में 25 करोड़ से ज्यादा महिलाएँ ऐसी हैं जिनकी शादी 15 साल की उम्र से पहले कर दी गई थी। इनमें से कई लड़कियों की शादी उनकी इच्छा के खिलाफ हुई। इसका सबसे बड़ा कारण पितृसत्तात्मक सोच है, जो लड़कियों को सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित मानती है। इस सोच के कारण उनकी शिक्षा और भविष्य को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है।
महामारी ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया। यूएन विमेन के मुताबिक, कोविड-19 के कारण 2030 तक 1 करोड़ और लड़कियों के बाल विवाह का शिकार होने की आशंका है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर तीन में से एक महिला अपने जीवन में कभी न कभी शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करती है। महामारी के दौरान तो स्थिति और भी खराब हो गई। लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा इतनी बढ़ी कि यूएन ने इसे 'छाया महामारी' (Shadow Pandemic) कहा।
लड़कियों की शिक्षा का फ़ायदा सिर्फ उन्हें ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को होता है। पढ़ी-लिखी लड़कियाँ बेहतर रोज़गार, बेहतर स्वास्थ्य और सुरक्षित भविष्य हासिल कर सकती हैं। लेकिन जब उन्हें पढ़ने नहीं दिया जाता, तो बाल विवाह, मानव तस्करी और गरीबी जैसी समस्याएँ बढ़ जाती हैं।
यूएन विमेन की रिपोर्ट के अनुसार, महामारी से पहले जो शरणार्थी लड़कियाँ स्कूल में थीं, उनमें से आधी अब कभी स्कूल नहीं लौटेंगी। उप-सहारा अफ्रीका में तो 10 लाख लड़कियाँ सिर्फ गर्भवती होने के कारण स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो सकती हैं।
हालांकि, अच्छी खबर यह है कि दो-तिहाई विकासशील देशों में अब प्राथमिक शिक्षा में लड़कों और लड़कियों के बीच समानता आ चुकी है। स्वास्थ्य क्षेत्र में 70% महिलाएँ कार्यरत हैं, लेकिन नेतृत्व में उनकी संख्या अभी भी कम है! कोविड-19 महामारी ने हमें यह सिखाया कि हमारी स्वास्थ्य सेवाएँ महिलाओं के बिना अधूरी हैं। इस क्षेत्र में 70% कार्यबल महिलाएँ हैं, लेकिन जब बात नेतृत्व के पदों की आती है, तो वहाँ पुरुषों का दबदबा रहता है।
इसके अलावा, महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम वेतन मिलता है। एक और चौंकाने वाली बात यह है कि जब महामारी आई, तो सुरक्षा उपकरण (PPE) पुरुषों के साइज़ के हिसाब से बनाए गए थे, जिससे फ्रंटलाइन पर काम करने वाली महिलाएँ ज्यादा ख़तरे में आ गईं।
तो क्या हमें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की ज़रुरत है?
जब तक महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिलता, जब तक वे हिंसा, भेदभाव और अन्याय से सुरक्षित नहीं होतीं, तब तक महिला दिवस की ज़रुरत बनी रहेगी। यह सिर्फ एक दिन का जश्न नहीं, बल्कि समानता, सुरक्षा और सम्मान की लड़ाई का एक आंदोलन है!
क्या आप जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (IWD) के भी अपने खास रंग होते हैं? इसकी आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक बैंगनी, हरा और सफ़ेद इस दिन के प्रतीकात्मक रंग हैं, और हर रंग की अपनी खास पहचान है—
इन रंगों की शुरुआत 1908 में यूनाइटेड किंगडम के "विमेंस सोशल एंड पॉलिटिकल यूनियन" (Women's Social and Political Union (WSPU)) से हुई थी। यह संगठन ब्रिटिश मताधिकार आंदोलन की एक उग्रवादी शाखा थी, जिसकी स्थापना, 1903 में एमेलिन पंकहर्स्ट (Emmeline Pankhurst) ने मैनचेस्टर में की थी। WSPU और नेशनल यूनियन ऑफ़ विमेन सफरेज सोसाइटीज (NUWSS) मिलकर महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उस समय ब्रिटेन में 1832 से महिलाओं को वोट देने का हक नहीं था।
महिला मताधिकार आंदोलन में सफ़ेद रंग को खास अहमियत मिली थी। उस समय विरोधी लोग सफ़्रैगिस्ट महिलाओं को "मर्दाना" और "बदसूरत" कहते थे। इस गलत धारणा को तोड़ने के लिए, आंदोलन की महिलाएं सफ़ेद कपड़े पहनकर परेड में शामिल होती थीं। सफ़ेद पोशाकें स्त्रीत्व और शुद्धता का प्रतीक मानी जाती थीं और आंदोलन की गंभीरता को दर्शाती थीं।
दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कैसे मनाया जाता है ?
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस सिर्फ जश्न मनाने का नहीं, बल्कि महिलाओं के संघर्ष और उपलब्धियों को याद करने का दिन है।
चलिए, आपको भारत की उन खास जगहों की सैर पर ले चलते हैं, जो नारीत्व की उपलब्धियों को दर्शाती हैं। ये स्थल, न केवल महिलाओं की शक्ति और योगदान की गवाही देते हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी समृद्ध बनाते हैं।
1. गुजरात: देवी शक्ति और विरासत का संगम:- गुजरात का धार्मिक और सांस्कृतिक, माहौल स्त्री ऊर्जा को समर्पित कई मंदिरों और स्मारकों से भरा हुआ है। यहाँ देवी शक्ति को सृष्टि की रक्षक और पोषक माना जाता है।
नर्मदा माता मंदिर: करीब 150 साल पुराने इस मंदिर की दिव्यता और शांति भक्तों को आध्यात्मिक सुकून देती है।
2. मदुरई: देवी मीनाक्षी और इतिहास का नगर:- तमिलनाडु के मदुरई शहर की सांस्कृतिक विरासत बेहद खास है।
3. शिलांग: मातृसत्तात्मक समाज की मिसाल: - शिलांग की खासियत, इसका मातृसत्तात्मक समाज है, जहाँ महिलाएँ परिवार और समुदाय में फैसले लेने की पूरी आज़ादी रखती हैं।
यहाँ की महिलाएँ सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहद सशक्त हैं।
4. कोलकाता: कला, संस्कृति और शक्ति का प्रतीक: - कोलकाता, अपने सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ महिलाओं ने मूर्तिकला, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में गहरी छाप छोड़ी है।
इन ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा, न सिर्फ भारत की समृद्ध संस्कृति से परिचय कराती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि नारी शक्ति का सम्मान हमारी परंपरा का अहम हिस्सा है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/267bvtjl
मुख्य चित्र स्रोत : pixahive
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.