चलिए समझें, कैसे आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों की सहायता करती है सार्वजनिक वितरण प्रणाली

आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
07-03-2025 09:27 AM
चलिए समझें, कैसे आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों की सहायता करती है सार्वजनिक वितरण प्रणाली

हमारे देश भारत में, यहां के नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System (PDS)) की महत्वपूर्ण भूमिका है, विशेष रूप से समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए। इस प्रणाली के तहत चावल, गेहूं, चीनी, मिट्टी का तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं का अनुदान दरों पर वितरण करके, देश में भूख की समस्या को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रणाली कई परिवारों की आजीविका का समर्थन करती है। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि कठिन समय के दौरान भी, कमज़ोर आर्थिक वर्ग के लिए बुनियादी आवश्यकताएं सुलभ रहें। हमारे शहर लखनऊ में भी पी डी एस (PDS) के कई वितरण केंद्र हैं। ये केंद्र यह सुनिश्चित करते हैं कि राशन कार्ड (Ration Card) के माध्यम से पात्र लाभार्थियों तक आवश्यक सामग्री की आपूर्ति होती रहे। तो आइए, आज जानते हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली की शुरुआत कैसे हुई और यह समझते हैं कि यह प्रणाली कैसे कार्य करती है और उचित मूल्य की दुकानों के नेटवर्क के माध्यम से चावल, गेहूं और मिट्टी का तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं की खरीद, भंडारण और वितरण में अपनी भूमिका निभाती है। अंत में, हम पी डी एस प्रणाली के महत्व के बारे में जानेंगे।

चित्र स्रोत : Pexels 

सार्वजनिक वितरण का इतिहास:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली देश में खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए सरकार की नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पी डी एस प्रणाली को केंद्रीय और राज्य सरकारों की संयुक्त ज़िम्मेदारी के तहत संचालित किया जाता है। इस प्रणाली के तहत, फूड कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (Food Corporation of India (FCI)) के माध्यम से, राज्य सरकारों को खाद्य अनाज की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है। जबकि, राज्य के भीतर आवंटन, पात्र परिवारों की पहचान, राशन कार्ड संबंधित कार्य और निष्पक्ष मूल्य की दुकानों (Fair Price Shops (FPSs)) आदि जैसे संचालन संबंधी कार्यों की देखरेख की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की है। 

1960 के दशक में पी डी एस प्रणाली: 

पी डी एस प्रणाली की शुरुआत, 1960 के दशक में खाद्य कमी वाले शहरी क्षेत्रों में खाद्य अनाज के वितरण पर ध्यान केंद्रित करने के साथ हुई थी। उस दौरान, पी डी एस के माध्यम से खाद्य अनाज की कीमतों में वृद्धि पर नियंत्रण और शहरी उपभोक्ताओं को भोजन की पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान मिला। 1970 और 1980 के दशक में हरित क्रांति के बाद, इस योजना को ग्रामीण क्षेत्रों और आदिवासी ब्लॉकों तक बढ़ाया गया।

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नई सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Revamped Public Distribution System (RPDS)):

पी डी एस को मज़बूत और सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ, दूर-दराज़, पहाड़ी, दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में, जहां गरीब तबके का एक बड़ा वर्ग निवास करता हो, तक इसकी पहुंच में सुधार करने के लिए दृष्टिकोण के साथ, जून, 1992 में नई सार्वजनिक वितरण प्रणाली लॉन्च की गई। इसमें 1775 ब्लॉकों को कवर किया गया। आरपी डी एस क्षेत्रों में राज्यों को वितरण के लिए खाद्य अनाज की कीमत केंद्रीय मूल्य से 50 पैसे कम रखी गई और प्रति कार्ड 20 किलोग्राम तक राशन जारी किया जाता था। 

लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System (TPDS)):

गरीबों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, जून, 1997 में, भारत सरकार ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली शुरू की। इस योजना के तहत, राज्यों को अनाज के वितरण के लिए गरीबों की पहचान कर, पारदर्शी तरीके से वितरण सुनिश्चित करना आवश्यक था। यह योजना लगभग 6 करोड़ गरीब परिवारों को सालाना लगभग 72 लाख टन खाद्य अनाज का वितरण करके लाभान्वित करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। योजना के तहत, राज्यों द्वारा गरीबों की पहचान 1993-94 के लिए योजना आयोग के राज्य-वार गरीबी अनुमानों के अनुसार किया गया था। राज्यों को खाद्य अनाज का आवंटन अतीत में औसत खपत के आधार पर किया गया। 

अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana (AAY)):

अंत्योदय अन्न योजना का उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे की आबादी के सबसे गरीब क्षेत्रों में भूख को कम करना था। एक राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण में एक कटु सत्य सामने निकलकर आया कि देश में कुल आबादी के लगभग 5% को दिन में दो समय का भोजन प्राप्त नहीं हो रहा था। टीपी डी एस प्रणाली को और अधिक प्रभावशाली बनाने और जनसंख्या की इस श्रेणी के प्रति लक्षित करने के लिए, 'अंत्योदय अन्न योजना' को दिसंबर, 2000 में गरीब परिवारों में भी सबसे गरीब एक करोड़ गरीब परिवारों के लिए लॉन्च किया गया। इस योजना के तहत, राज्यों के भीतर गरीब परिवारों में से एक करोड़ गरीब परिवारों की पहचान करके, उन्हें 2 रुपये प्रति किलोग्राम की अत्यधिक सब्सिडी (subsidy) वाली दर पर खाद्य अनाज प्रदान किया गया। शुरुआत में योजना के तहत प्रति माह 25 किलोग्राम प्रति परिवार अनाज आवंटित किया गया, जिसे बाद में 1 अप्रैल 2002 से प्रति माह 35 किलोग्राम प्रति परिवार तक बढ़ा दिया गया। इस योजना को 2003-04 में 50 लाख ऐसे गरीब परिवारों को जोड़कर विस्तारित किया गया था, जिनकी ज़िम्मेदारी विधवाओं या बीमार व्यक्तियों या विकलांग व्यक्तियों या 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की पर थी। इस वृद्धि के साथ, इस योजना के तहत 1.5 करोड़ अर्थात गरीबी रेखा के नीचे के 23% परिवारों को कवर किया गया।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली:

1.  खाद्य अनाज की खरीद:

  • केंद्र न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price (MSP)) पर किसानों से खाद्य अनाज की खरीद करता है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मूल्य है जिस पर भारतीय खाद्य निगम किसानों से सीधे फसल खरीदता है; आम तौर पर, एम एस पी बाज़ार मूल्य से अधिक होता है।
  • इसका उद्देश्य किसानों को मूल्य सहायता प्रदान करना और उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
  • एम एस पी का निर्धारण 'कृषि लागत और मूल्य आयोग' (Commission for Agricultural Costs and Prices (CACP)) करता है।
  • खरीद दो प्रकार की होती है: केंद्रीकृत खरीद, और विकेंद्रीकृत खरीद।
  • केंद्रीकृत खरीद भारतीय खाद्य निगम द्वारा की जाती है, जहां ए फ सी आई किसानों से सीधे  फ़सलों को खरीदता है। 
  • विकेंद्रीकृत खरीद एक केंद्रीय योजना है, जिसके तहत 10 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ए फ सी आई की ओर से एम एस पी पर खाद्य अनाज की खरीद करते हैं।
  • विकेंद्रीकृत खरीद का उद्देश्य खाद्य स्थानीय अनाज की खरीद को प्रोत्साहित करना है और लंबी दूरी पर राज्यों के लिए अनाज का परिवहन करते समय खर्च को कम करना है।

खरीद से संबंधित समस्याएं:

  • आने वाले सभी अनाज की खरीद की जाती है, भले ही यहां अनाज की अधिकता से खुले बाज़ार में कमी पैदा हो।
  • आवश्यक और मौजूदा भंडारण क्षमता के बीच महत्वपूर्ण अंतर होने के कारण खरीदा जाने वाला अधिकांश अनाज बर्बाद होता है।

2. खाद्य अनाज का भंडारण:

  •  एफ़ सी आई के भंडारण दिशानिर्देशों के अनुसार, खाद्य अनाज आमतौर पर कवर किए गए गोदाम और साइलो में संग्रहीत किया जाता है। अपर्याप्त भंडारण स्थान की स्थिति में,  एफ़ सी आई विभिन्न एजेंसियों जैसे कि केंद्रीय और राज्य वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन, राज्य सरकारी और निज़ी एजेंसियों से स्थान किराए पर लेता है।

भंडारण से जुड़ी समस्याएं:

  • अपर्याप्त भंडारण क्षमता।
  • खाद्य अनाज का खराब होना।

3. खाद्य पदार्थों का आवंटन:

  • केंद्र सरकार पी डी एस के माध्यम से वितरण के लिए एक समान 'केंद्रीय निर्गम मूल्य' (Central Issue Price (CIP)) में राज्य सरकारों को खाद्य अनाज आवंटित करती है।
  • प्रत्येक राज्य में पात्र परिवारों की पहचान करने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार पर है।   राज्यों के भीतर, खाद्य अनाज के आवंटन के अलावा, राशन कार्ड को जारी करने से और उचित मूल्य की दुकानों कामकाज़ का पर्यवेक्षण जैसे कार्य राज्य सरकारों द्वारा किए जाते हैं।
  • बी पी एल और ए ए वाई (AAY) परिवारों के बीच आवंटन पहचाने गए घरों की संख्या के आधार पर किया जाता है। हालांकि, एपीएल परिवारों के लिए आवंटन केंद्रीय पूल में खाद्य अनाज की उपलब्धता के आधार पर किया जाता है।

खाद्य अनाज के आवंटन से संबंधित समस्याएं:

  • लाभार्थियों की गलत पहचान।
  • निष्पक्ष मूल्य की दुकान मालिकों द्वारा खुले बाज़ार में अवैध रूप से खाद्य अनाज बेचने के लिए बड़ी संख्या में फ़र्ज़ी कार्ड बनाए जाते हैं।

खाद्य अनाज का परिवहन:

  • खाद्य अनाज वितरित करने की ज़िम्मेदारी केंद्र और राज्यों के बीच साझा की जाती है। केंद्र, विशेष रूप से  एफ़ सी आई, खाद्य अनाज के अंतरराज्यीय परिवहन से लेकर राज्यों में खरीद से लेकर राज्य गोदामों को अनाज पहुंचाने तक के लिए ज़िम्मेदार है। वहीं, उपभोक्ताओं को खाद्य अनाज का वितरण करना राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है। 

परिवहन से संबंधित समस्याएं:

  • परिवहन के दौरान खाद्य अनाज का रिसाव।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली का महत्व:

  • गरीबी उन्मूलन और सामाजिक कल्याण: यह प्रणाली  कम आय वाले वर्गों के लिए भोजन पर सब्सिडी के माध्यम से बुनियादी पोषण सुनिश्चित करती है। उदाहरण के लिए, 30 जून 2023 तक, पूरे भारत में 5.45 लाख निष्पक्ष मूल्य की दुकानों के माध्यम से 80.1 करोड़ एन  एफ़ एस ए (NFSA) लाभार्थियों को लाभ प्राप्त हुआ।
  • खाद्य सुरक्षा और मूल्य स्थिरीकरण: यह प्रणाली आवश्यक खाद्य पदार्थों तक सस्ती पहुंच सुनिश्चित करती है और कीमतों को स्थिर करती है। उदाहरण के लिए,  मुद्रास्फ़ीति के दौरान, चावल के लिए ₹ 3/किलोग्राम, गेहूं के लिए ₹ 2/किलोग्राम।
  • किसान समर्थन और स्थिर आय: एम एस पी खरीद से किसानों के लिए स्थिर बाज़ार मूल्य सुनिश्चित होता है। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा को गेहूं और चावल के लिए एम एस पी से लाभ होता है।
  • आपातकालीन राहत: यह प्रणाली भोजन की कमी या संकट के दौरान सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करती है। 
  • पोषण संबंधी समर्थन: यह प्रणाली कुपोषण को रोकने में मदद करती है, विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए। 
  • पुनर्वितरण और भोज्य समानता: खाद्य पदार्थों की अधिकता वाले इलाकों से कमी वाले क्षेत्रों में भोजन के पुनर्वितरण से पूरे देश में समान भोजन वितरण सुनिश्चित होता है। जैसे, पंजाब से खाद्य अनाज पूर्वोत्तर भारत भेजा जाता है।
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संदर्भ 

https://tinyurl.com/y64kkvdk

https://tinyurl.com/mvj34u5s

https://tinyurl.com/mn9jp3kb

मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia 

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