
आप जब भी लूडो, चेकर्स, मोनोपोली और स्क्रैबल जैसे बोर्ड गेम खेलते या देखते भी होंगे तो आपकी भी बचपन की कई यादें ताज़ा हो जाती होंगी। हम सभी ने बचपन में इन्हें खेलते हुए बहुत समय बिताया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे पुराना खेलने योग्य बोर्ड गेम "रॉयल गेम ऑफ़ उर (Royal Game of Ur)" है? इसकी शुरुआत, प्राचीन मेसोपोटामिया में लगभग 2600 ईसा पूर्व हुई थी। आज के इस रोमांचक लेख में हम इस इस खेल के इतिहास और इसके महत्व को विस्तार से समझेंगे। साथ ही, यह भी जानेंगे कि इसे खेला कैसे जाता है। इसके बाद, हम प्राचीन भारत के प्रसिद्ध बोर्ड गेम्स के बारे में चर्चा करेंगे। इनमें पचीसी, नर्ड, चौपर और चतुरंग जैसे खेल शामिल हैं। हम इनके नियमों और विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे। अंत में, हम दुनिया के सबसे पुराने पासे के बारे में भी रोचक जानकारी प्राप्त करेंगे।
'रॉयल गेम ऑफ़ उर' एक प्राचीन बोर्ड गेम है, जिसकी उत्पत्ति लगभग 2600 ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया में हुई थी। यह खेल कई युगों और संस्कृतियों में लोकप्रिय रहा है। इसकी मौजूदगी के प्रमाण शाही कब्रों और आम भित्तिचित्रों में देखने को मिलते हैं, जो इसके व्यापक प्रभाव और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है।
दिलचस्प बात यह है कि, इस खेल को सिर्फ़ मनोरंजन के रूप में नहीं देखा जाता था। आपको जानकर हैरानी होगी कि, खिलाड़ी इसके परिणामो की व्याख्या देवताओं के संदेशों या भविष्य के संकेतों के रूप में भी करते थे। इससे यह खेल धार्मिक और अंधविश्वासी मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ था।
इसकी खोज सर लियोनार्ड वूली (Sir Leonard Woolley) के द्वारा उर के शाही कब्रिस्तान की खुदाई के दौरान की गई थी। वहां मिले बोर्ड, शिल्पकला का बेहतरीन उदाहरण माने जाते हैं। कुछ बोर्ड साधारण लकड़ी से बने थे, जबकि कुछ को गोले, लाल चूना पत्थर और लापीस लाजुली जैसे कीमती पत्थरों से सजाया गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह खेल उस समय समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान रखता था।
हालाँकि, रॉयल गेम ऑफ़ उर के सभी नियम आज पूरी तरह ज्ञात नहीं हैं। लेकिन कुछ नियमों को 177 ईसा पूर्व के बेबीलोनियन टैबलेट के आधार पर पुनर्निर्मित किया गया है। इस टैबलेट को इट्टी-मर्दुक-बलातु ने लिखा था। इसमें खेल की रणनीति और बोर्ड पर "भाग्यशाली" स्थानों के रूप में रोसेट चिह्नों के उपयोग का वर्णन किया गया है।
यह खेल, दौड़-आधारित प्रणाली पर काम करता है, जहाँ प्रत्येक खिलाड़ी को अपने मोहरों को बोर्ड से हटाने का प्रयास करना होता है। ये खेल टेट्राहेड्रल पासे (Tetrahedral Dice (चार-पक्षीय पासा)) को रोल करने से तय होता है।
इस खेल में भाग्य और कौशल का अनोखा संतुलन नज़र आता है। वास्तव में इसकी सरलता और रणनीति ने इसे हज़ारों वर्षों तक लोकप्रिय बनाए रखा है। भले ही रॉयल गेम ऑफ़ उर के सटीक नियम समय के साथ धुंधले पड़ गए हों, लेकिन इसकी विरासत आज भी जीवित है। यह खेल प्राचीन मेसोपोटामिया समाज और उसकी सांस्कृतिक प्रथाओं की महत्वपूर्ण झलक प्रदान करता है।
आइए अब इस खेल के नियमों को समझते हैं:
1. खेल की शुरुआत:
2. मोहरों की चाल:
आइए, अब एक नज़र प्राचीन भारत के बोर्ड खेलों पर भी डालते हैं:
1) पचीसी (Pachisi): राजाओं और भाग्य का खेल : - पचीसी, एक प्राचीन भारतीय खेल है, जिसे ट्वेंटी- फ़ाइव भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत गुप्त साम्राज्य के समय से हुई थी। इस खेल में खिलाड़ी क्रॉस के आकार के बोर्ड पर अपनी मोहरें चलाते हैं। खेल का लक्ष्य अपने मोहरों को सुरक्षित रखते हुए प्रतिद्वंद्वी की मोहरें पकड़ना होता है।
पचीसी में रणनीति और भाग्य, दोनों की ज़रुरत होती है। इसलिए इसे संपन्न और आम दोनों तरह के लोग पसंद करते थे। भारतीय कथाओं में भगवान राम को इस खेल से जोड़ा गया है। रामायण के अनुसार, उन्होंने वनवास के दौरान पचीसी खेली थी। देवताओं से जुड़ा हुआ होने के कारण भारतीय संस्कृति में इसका गहरा महत्व है। इस खेल को ब्रह्मांड और भाग्य की अवधारणा को समझने का एक प्रतीक माना जाता था।
2) नार्ड (Nard): भारत का प्राचीन बैकगैमौन:- बैकगैमौन, को प्राचीन भारत में नार्ड कहा जाता था! इसे दुनिया के सबसे पुराने बोर्ड गेम में से एक माना जाता है। इसकी उत्पत्ति 5000 साल से भी पहले हुई थी। इसके प्रमाण उपमहाद्वीप के कई पुरातात्विक स्थलों में मिले हैं।
इस खेल में रणनीति और कौशल दोनों की ज़रुरत होती है। खिलाड़ी अपने मोहरों को बोर्ड पर चलाते हैं! उनका लक्ष्य होता है कि अपने प्रतिद्वंद्वी से पहले सभी मोहरों को बाहर निकाल लिया जाए। बैकगैमौन की लोकप्रियता, आज भी बनी हुई है, जो इसके कालातीत आकर्षण को दर्शाती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान शिव को बुद्धिमत्ता और रणनीति का प्रतीक माना जाता है। यह इस खेल में मौजूद गहरी सोच और योजना के पहलू को दर्शाता है।
3) चौपर (Chaupar): राजसीपन और मनोरंजन का खेल:- चौपर , पचीसी और लूडो से मिलता-जुलता खेल है। यह भारतीय परंपराओं और कहानियों में विशेष स्थान रखता है। महाभारत में, पांडव और कौरव इसे खेलते थे। इस खेल में भाग्य और रणनीति का मेल होता है। खेल के खिलाड़ी, क्रॉस के आकार के बोर्ड पर अपनी चाल चलते हैं। पासा फेंककर तय किया जाता है कि आगे क्या कदम उठाना है। प्राचीन कहानियों में चौपर का उल्लेख मिलता है, और आज भी यह कई भारतीय परिवारों में खेला जाता है।
यह खेल न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि एकता और दोस्ती का प्रतीक भी है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण अपने मित्रों के साथ चौपर खेलते थे। यह दर्शाता है कि यह खेल ब्रह्मांड में संतुलन और आनंद से जुड़ा हुआ है।
4) चतुरंग (Chaturanga): शतरंज का पूर्वज:- चतुरंग, एक प्राचीन भारतीय खेल है! इसे आधुनिक शतरंज का पूर्वज माना जाता है। इस खेल में मोहरे सेना के विभिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे पैदल सेना, घुड़सवार और हाथी। इससे वास्तविक युद्ध की रणनीति को समझा जाता था।
चतुरंग, समय के साथ, विकसित होकर शतरंज बन गया और पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुआ। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत का बोर्ड गेम और रणनीतिक सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
धार्मिक मान्यताओं में भगवान विष्णु को चतुरंग से जोड़ा गया है। वे संतुलन और रणनीतिक बुद्धिमत्ता के प्रतीक माने जाते हैं। यह खेल न केवल मनोरंजन था, बल्कि एक बौद्धिक अभ्यास भी था, जो विवेक और धैर्य विकसित करता था।
5) ज्ञान चौपर (Gyan Chaupar) : सीखने और आत्मज्ञान का खेल:- ज्ञान चौपर , जिसे आज साँप और सीढ़ी (Snakes & Ladders) के रूप में जाना जाता है, एक शिक्षाप्रद खेल है। माना जाता है कि जैन भिक्षुओं ने इसे 1000 ईस्वी के आसपास बनाया था। बाद में, भक्ति काल में यह हिंदू और सूफी समुदायों के बीच लोकप्रिय हो गया।
यह खेल, केवल मनोरंजन के लिए नहीं था, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा देने का माध्यम भी था। इसमें जीवन की यात्रा को दर्शाया गया है। सीढ़ियाँ अच्छे गुणों का प्रतीक हैं, जो व्यक्ति को ऊपर उठाती हैं, जबकि साँप बुरे गुणों को दर्शाते हैं, जो नीचे गिराते हैं।
प्राचीन भारत में इसका उपयोग नैतिकता और आत्म-सुधार की सीख देने के लिए किया जाता था। धार्मिक कथाओं में भगवान गणेश को इस खेल से जोड़ा गया है। वे ज्ञान और आत्मज्ञान के प्रतीक माने जाते हैं। यह खेल हमें भारतीय संस्कृति में शिक्षा और बुद्धिमत्ता के महत्व की याद दिलाता है।
आइए, अब दुनिया के सबसे पुराने पासों की खोज पर निकलते हैं!
क्या आप जानते हैं कि दुनियां के सबसे पुराने ज्ञात पासे बर्न्ट सिटी में मिले थे। यह दक्षिण-पूर्वी ईरान का एक पुरातात्विक स्थल है। माना जाता है कि ये पासे बैकगैमन जैसे खेल का हिस्सा थे! इनका समय लगभग 2800 से 2500 ईसा पूर्व के बीच का बताया जाता है।
स्कॉटलैंड के स्कारा ब्रे (Skara Brae) से मिले अस्थि पासों की तिथि 3100-2400 ईसा पूर्व बताई जाती है। वहीं, सिंधु घाटी सभ्यता के प्रसिद्ध नगर मोहनजो-दड़ो की खुदाई में भी टेराकोटा पासे मिले हैं। ये 2500-1900 ईसा पूर्व के माने जाते हैं। खास बात यह है कि, खुदाई में एक ऐसा पासा भी मिला, जिसके विपरीत पक्षों का योग सात था, ठीक वैसे ही जैसे आधुनिक पासों में देखा जाता है। यह दर्शाता है कि प्राचीन सभ्यताओं में भी गणितीय समझ और खेलों की परंपरा उन्नत हुआ करती थी।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/qfvl8bc
https://tinyurl.com/24wubcy2
https://tinyurl.com/28o5jvmf
https://tinyurl.com/27ljdbe7
मुख्य चित्र: रॉयल गेम ऑफ़ उर (Wikimedia)
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