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भारत, प्लास्टिक प्रदूषण में दुनिया का सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया है, जो कुल वैश्विक प्लास्टिक कचरे का लगभग 21% हिस्सा बनाता है। हाल के वर्षों में, प्लास्टिक प्रदूषण हमारे शहर लखनऊ में भी, एक बढ़ता हुआ मुद्दा बन गया है। शहर के विस्तार और अधिक लोगों द्वारा प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग करने के साथ, लखनऊ में प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़ गई है। यह कचरा पर्यावरण, जानवरों और यहां तक कि, हमारे स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है। बढ़ती जागरूकता के बावजूद, शहर और देश में प्लास्टिक का व्यापक रूप से उपयोग जारी है, जिस कारण इससे उत्पन्न होने वाले कचरे को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है।
आज हम, ‘वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट सांख्यिकी (Global Plastic Waste Statistics)’ के बारे में बात करेंगे, जिसमें यह दर्शाया जाएगा कि, कैसे प्लास्टिक कचरा दुनिया भर में एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। फिर, हम ‘भारत प्लास्टिक अपशिष्ट सांख्यिकी’ को देखेंगे। आगे, हम प्लास्टिक के प्रकारों और वे पर्यावरण को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं, इस पर चर्चा करेंगे। हम प्लास्टिक के इतिहास का भी पता लगाएंगे, एवं देखेंगे कि, इसके निर्माण से लेकर कैसे इसका उपयोग हर क्षेत्र में फ़ैल गया। अंत में, हम प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि और रोज़मर्रा के उत्पादों में, इसके बढ़ते उपयोग के बारे में बात करेंगे।
वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट सांख्यिकी-
1.दुनिया में प्रति वर्ष 400 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है।
2.अमेरिका, हर साल 42 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करता है, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा कचरा उत्पादन है।
3.हर साल 8 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक, महासागरों में प्रवेश करता है।
4.समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण, 2040 तक 29 मिलियन मीट्रिक टन तक बढ़ने की राह पर है।
5.हर साल 1 लाख जानवर, प्लास्टिक में फ़ंसने से मर जाते हैं।
6.मनुष्य हर सप्ताह, किसी तरह 5 ग्राम प्लास्टिक निगलता है।
7.प्लास्टिक 2030 तक, अमेरिका में कोयले की तुलना में अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करेंगे।
8.कोविड-19 काल ने, समुद्र में 25,900 टन प्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ा दिया है।
भारत प्लास्टिक अपशिष्ट सांख्यिकी-
एक अध्ययन से पता चला है कि, भारत, दुनिया के सबसे बड़े प्लास्टिक प्रदूषणकर्ताओं में से एक है, जो कुल वैश्विक प्लास्टिक कचरे का लगभग 21% हिस्सा प्रदाता है। सालाना 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होने के साथ, इस पर्यावरणीय आपदा में, भारत का योगदान पूरे क्षेत्रों की तुलना में सबसे बड़ा है।
इस चौंका देने वाले आंकड़े में, 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा कुप्रबंधित होता है, और हर साल पर्यावरण में फ़ैल जाता है। हमारे देश का योगदान, नाइजीरिया (Nigeria) – 3.5 मिलियन टन, इंडोनेशिया (Indonesia) – 3.4 मिलियन टन और चीन (China) – 2.8 मिलियन टन, जैसे अन्य प्रमुख प्रदूषकों से काफ़ी अधिक है।
प्लास्टिक के प्रकार एवं वे हमारे पर्यावरण को कैसे प्रभावित करते हैं-
हम अपने दैनिक जीवन में, रोज़ाना पी ई टी प्लास्टिक का उपयोग करते हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से सोडा, पानी व दवा के जार, घरेलू सफ़ाई उत्पादों और कुछ अन्य उत्पादों के लिए पैकेजिंग के रूप में किया जाता है। इनमें पी ई टी प्लास्टिक का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, क्योंकि उनमें ऑक्सीजन को कंटेनर में प्रवेश करने से रोकने की क्षमता होती है। ऑक्सीजन, कोई उत्पाद खराब कर सकता है, अतः इस प्रकार के प्लास्टिक का उपयोग ज़रूरी है। यह प्लास्टिक, सबसे आम तौर पर पुनर्नवीनीकरण की जाने वाली सामग्रियों में से भी एक है।
2. एच डी पी ई/उच्च घनत्व पॉलीएथिलीन (HDPE/High-Density Polyethylene):
एच डी पी ई प्लास्टिक, आमतौर पर अपारदर्शी होता है, और इसका उपयोग दूध, मोटर, तेल, शैंपू, कंडीशनर और अन्य प्रसाधन सामग्री के कंटेनरों में किया जाता है। वे टाइप 1 प्लास्टिक (Type 1 plastics) की तुलना में, अधिक मज़बूत और अपेक्षाकृत अधिक स्थिर होते हैं। इस कारण, इन प्लास्टिक का अक्सर पुनर्नवीनीकरण भी किया जाता हैं। इन प्लास्टिकों का भोजन और पेय पदार्थों के लिए पुन: उपयोग तभी किया जा सकता है, यदि इन्हें शुरू में, उसी उद्देश्य के लिए प्रयुक्त किया गया हो।
3. पी वी सी/पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC/Polyvinyl Chloride)-
पी वी सी प्लास्टिक, एक कठोर प्लास्टिक है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से पाइप और टाइल्स में प्लंबिंग के लिए किया जाता है। इसका उपयोग खिलौनों, डिटर्जेंट, खाना पकाने के तेल की बोतलों, फुलाए जाने वाले गद्दे और कुछ अन्य उत्पादों में किया जाता है। पी वी सी सबसे जहरीला प्लास्टिक है, और इसे बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला रसायन – विनाइल क्लोराइड भी, घातक है। इस प्लास्टिक संस्करण का उपयोग करने से रिसाव हो सकता है। इस रिसाव में, बिस्फेनॉल ए (Bisphenol A), थेलेट्स (Phthalates), सीसा (Lead), डाइऑक्सिन (Dioxins), पारा (Mercury) और कैडमियम (Cadmium) जैसे विभिन्न प्रकार के विषैले प्रदूषक हो सकते हैं, जिन्हें व्यापक रूप से कैंसर जनक माना जाता है। इस प्रकार के प्लास्टिक को पुनर्चक्रण में भी, शायद ही कभी स्वीकार किया जाता है।
4. एल डी पी ई/कम घनत्व पॉलीथीन (LDPE/Low-Density Polyethylene)-
कम घनत्व वाले प्लास्टिक, प्लास्टिक के सबसे टिकाऊ और लचीले रूप हैं, जिन्हें संसाधित करना आसान और सस्ता है। एल डी पी ई प्लास्टिक का उपयोग शॉपिंग बैग, क्लिंग रैप्स, निचोड़ने योग्य बोतलें और कुछ अन्य उत्पादों में किया जाता है। यद्यपि एल डी पी ई प्लास्टिक सुविधाजनक मानव उपयोग के लिए आदर्श है, लेकिन इसे पुनर्चक्रित करना लगभग असंभव है। इस प्रकार, इनका कचरा अक्सर लैंडफ़िल में समाप्त हो जाता है।
5. पी पी/पॉलीप्रोपाइलीन (PP/Polypropylene):
पॉलीप्रोपाइलीन प्लास्टिक में उच्च गलनांक होता है, और इसका उपयोग गर्म भोजन और माइक्रोवेव योग्य भोजन को संग्रहीत करने की क्षमता के लिए किया जाता है। उनकी टिकाऊ प्रकृति के कारण, उनका उपयोग दही के कंटेनरों, सिरप और प्रिस्क्रिप्शन बोतलों में भी किया जाता है। गर्मी प्रतिरोध और स्थायित्व जैसे कई अद्भुत गुणों की पेशकश के बावज़ूद, इस प्लास्टिक का पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है, और यह मानव उपयोग के लिए अनुकूल नहीं है।
6. पी एस/पॉलीस्टाइरीन (PS/Polystyrene):
पॉलीस्टाइरीन प्लास्टिक, एक प्राकृतिक रूप से पारदर्शी थर्मोप्लास्टिक (Thermoplastic) है, जो एक विशिष्ट ठोस प्लास्टिक के साथ-साथ कठोर फ़ोम सामग्री के रूप में भी उपलब्ध है। जब विभिन्न रंगों, एडिटिव्स (Additives) या अन्य प्लास्टिक के साथ इसे मिलाया जाता है, तो इस प्लास्टिक का उपयोग उपकरण, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, खिलौने, बागवानी के बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक्स (electronics) आदि बनाने के लिए किया जाता है।
दुर्भाग्य से, इन प्लास्टिकों को अक्सर पुनर्चक्रित नहीं किया जाता है, और ये कभी भी पूरी तरह से नष्ट नहीं होते हैं। पॉलीस्टाइरीन प्लास्टिक भी कैंसर जनक है, और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हुआ है।
प्लास्टिक का इतिहास-
प्लास्टिक शब्द का मूल अर्थ, “लचीला और आसानी से आकार देने वाला” होता है। अब यह आमतौर पर, पॉलिमर (Polymer) नामक सामग्रियों की एक श्रेणी को संदर्भित करता है, जिनमें अणुओं की लंबी श्रृंखलाएं होती हैं। यह अनूठी विशेषता ही प्लास्टिक को स्थायित्व और विशिष्ट तापमान एवं दबाव में, किसी भी कल्पनीय आकार में ढालने की क्षमता प्रदान करती है।
पहले पॉलिमर का आविष्कार, 1869 में जॉन वेस्ली हायत (John Wesley Hyatt ) द्वारा किया गया था। उन्होंने कपास के रेशों का उपचार करके, एक ऐसा प्लास्टिक बनाने का तरीका खोजा, जिसे कछुआ, सींग, लिनन और हाथी दांत जैसे प्राकृतिक तत्वों की नकल करते हुए, विभिन्न आकारों में बनाया जा सकता है। कई दशकों तक, पॉलिमर केवल प्राकृतिक सामग्रियों से बनाए जाते थे। फिर 1907 में, लियो बेकलैंड (Leo Baekeland) ने बेकेलाइट (Bakelite) का आविष्कार किया, जो पहला पूर्ण कृत्रिम प्लास्टिक था। इसका उपयोग विद्युत इंसुलेटर, रेडियो और टेलीफ़ोन आवरण, बरतन, गहने, पाइप स्टेम, बच्चों के खिलौने और आग्नेयास्त्रों में किया गया था। लेकिन यह प्लास्टिक के इतिहास की शुरुआत मात्र है।
चूंकि प्लास्टिक पहली बार 1800 के दशक में विकसित हुआ था, इसलिए, यह चिकित्सा, परिवहन, प्रौद्योगिकी, पैकेजिंग, निर्माण, खेल और अवकाश, कृषि और विनिर्माण सहित हर विनिर्माण क्षेत्र को लाभान्वित करने के लिए आगे बढ़ा है। प्लास्टिक ने तकनीकी प्रगति, डिज़ाइन समाधान और वित्तीय बचत को जन्म दिया है। इस तथ्य के ख़िलाफ़ बहस करना कठिन है कि, प्लास्टिक ने हमारे जीवन को आसान, सुरक्षित और अधिक आनंददायक बनाने में मदद की है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद और फिर 1960 और 1970 के दशक के दौरान, प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ। तब उपभोक्ता, पारंपरिक सामग्रियों को बदलने के लिए प्लास्टिक चाहते थे, क्योंकि वे सस्ते, बहुमुखी, स्वच्छतापूर्ण और विभिन्न रूपों में निर्माण करने में आसान होते हैं। लोगों ने कारों में स्टील, पैकेजिंग में कागज़ और कांच एवं फ़र्नीचर में लकड़ी की जगह, प्लास्टिक को चुना। हालांकि, वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन में तीव्र वृद्धि, 1950 के दशक तक नहीं हुई थी। अगले 70 वर्षों में, प्लास्टिक का वार्षिक उत्पादन लगभग 230 गुना बढ़कर, 2019 में 460 मिलियन टन हो गया है। यहां तक कि, पिछले दो दशकों में ही, वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन दोगुना हो गया है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: विविध प्रकार के प्लास्टिक के विवध उत्पादों का समूह (Wikimedia)
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