![टीकाकरण और इसकी जानकारी से कम किए जा सकते हैं, सर्वाइकल कैंसर के बढ़ते मामले](https://prarang.s3.amazonaws.com/posts/11586_January_2025_6792fdbc238fe.jpg)
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भारत में, हर साल, लगभग 123,907 महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा या सर्वाइकल कैंसर (Cervical cancer) के नए मामले सामने आते हैं और लगभग 77,348 महिलाओं की इससे दुखद मृत्यु हो जाती है। भारत की महिलाओं में, स्तन कैंसर के बाद, सर्वाइकल कैंसर, दूसरा सबसे आम कैंसर है। भारत में इस कैंसर के निदान में एक समस्या, विशेष किटों की कमी है। जनवरी 2025 में एक दैनिक पत्र में छपी एक खबर के अनुसार, लखनऊ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (Community Health Centres (CHCs)) में इन किटों की उपलब्धता की कमी के कारण, महिलाओं को या तो अपनी किट खरीदनी पड़ती है या निजी स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में निदान कराना पड़ता था। दुर्भाग्य से, दोनों विकल्प अत्यंत महंगे थे। तो आइए, आज भारत में सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित महिलाओं के आंकड़े के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम इस कैंसर के कारणों और लक्षणों के बारे में समझेंगे। हम इस बात पर भी प्रकाश डालेंगे कि भारतीय महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर के मामले अधिक आम क्यों होते जा रहे हैं और हमारे देश में इस प्रकार के कैंसर के लिए परीक्षण किटों की कमी क्यों है। अंत में, हम कुछ तरीकों के बारे में जानेंगे जिनके माध्यम से हम भारत में सर्वाइकल कैंसर के इलाज से संबंधित प्रमुख समस्याओं से निपट सकते हैं।
भारत में कैंसर से पीड़ित महिलाओं की संख्या:
वैश्विक कैंसर वेधशाला (Global Cancer Observatory, (GLOBOCAN)) 2020 के अनुसार, भारत में, 18.3% (123,907 मामले) प्रतिवर्ष की दर के साथ सर्वाइकल कैंसर, दूसरा सबसे आम कैंसर है और 9.1% की मृत्यु दर के साथ मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। 'राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम' के अनुसार, स्तन और सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में होने वाले सबसे आम कैंसर हैं। भारत में महिलाओं में होने वाले सभी कैंसरों में से 6-29% सर्वाइकल होते हैं। भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के पापुमपारे जिले में सर्वाइकल कैंसर की घटना दर एशिया में सबसे अधिक (27.7) है। कैंसर के अधिकांश रोगियों में स्तन (57.0%), सर्वाइकल (60.0%), सिर और गर्दन (66.6%), और पेट (50.8%) के कैंसर का पता उन्नत चरण में ही चला।
देश में कैंसर से संबंधित संक्षिप्त आंकड़े:
जनसंख्या (मिलियन) | 1360 |
20-29 आयु वर्ग की महिला जनसंख्या (मिलियन) | 137.8
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30-59 आयु वर्ग की महिला जनसंख्या (मिलियन) | 230.5
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एचपीवी प्रसार (%) | 2.3% - 36.9% |
सर्वाइकल कैंसर की घटना दर (प्रति 100,000) | 18.7
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सर्वाइकल कैंसर की घटना दर (आयु-मानकीकृत, प्रति 100,000) | 18.0
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सर्वाइकल कैंसर से मृत्यु दर (प्रति 100,000) | 11.7
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सर्वाइकल कैंसर से मृत्यु दर (आयु-मानकीकृत, प्रति 100,000) | 11.4
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स्क्रीनिंग की उपलब्ध/अनुशंसित विधि | वी आई ए (VIA) |
स्क्रीनिंग का प्रकार | समयानुवर्ती |
सर्वाइकल कैंसर के कारण:
सर्वाइकल कैंसर, वह कैंसर है, जो गर्भाशय ग्रीवा की सतह पर शुरू होता है। यह तब होता है जब गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाएं, कैंसरपूर्व कोशिकाओं में बदलने लगती हैं। इस कैंसर के लगभग सभी मामलों में, ह्यूमन पेपिलोमावायरस (Human papillomavirus (HPV)) संक्रमण, मुख्य कारण होता है। एच पी वी, एक वायरस है जो यौन संपर्क से फैलता है।
सर्वाइकल कैंसर के चेतावनी संकेत:
सर्वाइकल कैंसर के लक्षण:
प्रारंभिक चरण में सर्वाइकल कैंसर के लक्षण आमतौर पर दिखाई नहीं देते हैं और इसका पता लगाना कठिन होता है। सर्वाइकल कैंसर के पहले लक्षण विकसित होने में समय लग सकता है। इसके मुख्य लक्षणों में शामिल हैं:
1. पानी जैसा या खूनी योनि स्राव, जो भारी हो सकता है और उसमें दुर्गंध हो सकती है।
2. सहवास के बाद, मासिक धर्म के बीच या रजोनिवृत्ति के बाद योनि से रक्तस्राव।
3. सहवास के दौरान दर्द (डिस्पेर्यूनिया (dyspareunia))।
यदि कैंसर आस-पास के ऊतकों या अंगों में फैल गया है, तो इसके निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
1.मूत्र त्याग में कठिनाई या दर्द, कभी-कभी मूत्र में खून भी आता है।
2.दस्त, या मलत्याग करते समय आपके मलाशय में दर्द या रक्तस्राव।
3.वज़न और भूख में कमी, शीघ्र थकान का अनुभव।
4.बीमार महसूस करना,
5.पैरों या पीठ में हल्का दर्द या सूज़न।
6.पेट दर्द।
भारत में सर्वाइकल कैंसर के मामलों में वृद्धि के कारण:
भारत में सर्वाइकल कैंसर के मामलों में वृद्धि का एक प्राथमिक कारण, इसके निवारक उपायों के बारे में जागरूकता और शिक्षा की कमी है। भारत में अधिकांश लोगों को एच पी वी वायरस के बारे में जानकारी नहीं है, जो सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण है। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी और नियमित जांच और टीकों के महत्व की सामान्य अज्ञानता के कारण निदान में देरी और उच्च मृत्यु दर होती है। इसके अलावा, निम्न एवं मध्यम वर्ग की महिलाओं के लिए स्वास्थ्य देखभाल, विशेष रूप से नियमित जांच और एच पी वी टीकाकरण जैसे निवारक उपचार प्राप्त करना अक्सर मुश्किल होता है। अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे और ग्रामीण क्षेत्रों में धन की कमी ने समस्या को बढ़ा दिया है, जिससे शीघ्र निदान और उपचार अधिक कठिन हो गया है।
सर्वाइकल कैंसर एक कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों और नीतियों का अपर्याप्त कार्यान्वयन भी है। स्क्रीनिंग सुविधाओं और टीकाकरण तक पहुंच सीमित है और अक्सर भारत की जनसंख्या के अनुरूप जागरूकता अभियानों की कमी है। भारत में सर्वाइकल कैंसर की बढ़ती घटनाओं को संबोधित करने के लिए, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को मज़बूत करने, केंद्रित शैक्षिक पहलों के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने और निवारक देखभाल तक पहुंच की सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता है।
भारत में सर्वाइकल कैंसर के लिए, परीक्षण किटों की कमी क्यों है:
भारत में, परीक्षण सुविधा स्थापित करने की उच्च एकमुश्त लागत को ध्यान में रखते हुए प्राथमिक एच पी वी स्क्रीनिंग को लागू करना कठिन है, जिसमें उपकरण और उपभोग्य सामग्रियों और किटों की आवर्ती लागत शामिल है। स्व-नमूना प्रदर्शन पर एक हालिया समीक्षा में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि किफ़ायती परीक्षण उपकरणों की कमी, प्रशिक्षण के लिए वित्तीय सहायता, और स्क्रीनिंग और फॉलो-अप में सहायता के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को नियोजित करना सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रम के स्व-नमूनाकरण के विस्तार में संभावित बाधाएं हैं।
भारत में सर्वाइकल कैंसर के इलाज में आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए उपाय:
सामुदायिक सशक्तिकरण: कैंसर के बारे में जागरूकता की कमी, व्यक्तिगत मान्यताएं, कलंक और चिकित्सा देखभाल के साथ पिछले नकारात्मक अनुभव लोगों को कैंसर स्क्रीनिंग केंद्रों पर जाने से हतोत्साहित करते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा अभियान, स्वयं सहायता समूह (self help groups) और कैंसर से बचे लोगों की भागीदारी से, कैंसर पीड़ित लोगों में विश्वास उत्पन्न हो सकता है।
उचित परीक्षण: वर्तमान में, भारत में सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग, 'एसिटिक अम्ल के साथ दृश्य निरीक्षण' (Visual Inspection with Acetic Acid (VIA)) परीक्षण के माध्यम से होती है। वी आई ए स्क्रीनिंग की लागत, कम होती है। इसके लिए, एक ही दौरे पर मरीज़ों की जांच और इलाज संभव है जिससे कैंसर का शीघ्र निदान और इलाज होने से मृत्यु दर में कमी आती है। इस कारण यह परीक्षण एक बिंदु के रूप में आदर्श है।
एचपीवी परीक्षण के लिए स्व-नमूनाकरण: पश्चिम बंगाल के एक जनसंख्या समूह अध्ययन में बताया गया है कि, बेसलाइन पर बिना किसी घाव के एच पी वी पॉज़िटिव तीन चौथाई से अधिक महिलाएं एक साल तक दोबारा परीक्षण के लिए नहीं लौटीं, जब ऐसा करने की सलाह दी गई थी। एच पी वी परीक्षण के लिए स्व-नमूना लेने से शर्मिंदगी, यात्रा की दूरी और लागत, और अस्पतालों का दौरा करने के डर की बाधाओं को दूर करने में मदद मिलती है।
स्वदेशी तकनीक: पोर्टेबल कोल्पोस्कोप, थर्मल एब्लेटर और एच पी वी परीक्षण किट जैसे स्वदेशी नवाचार, स्क्रीनिंग को और अधिक सुविधाजनक बना रहे हैं। हाल ही में, कई सरकारी अस्पतालों और सरकार-सूचीबद्ध परीक्षण केंद्रों में, एक कार्ट्रिज-आधारित न्यूक्लिक एसिड प्रवर्धन परीक्षण (Nucleic acid amplification test (NAAT)) प्रणाली वितरित की गई है। मुफ़्त निदान सेवा योजना के तहत, ज़िला/उपज़िला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर न्यूक्लिक एसिड प्रवर्धन परीक्षण की शुरूआत से भी एच पी वी परीक्षण की सुविधा मिल सकती है।
एच पी वी टीकाकरण: संयुक्त राज्य अमेरिका और स्वीडन के अनुभव से पता चला है कि, एच पी वी टीकाकरण, सर्वाइकल कैंसर की जांच को आसान बनाता है। बाल चिकित्सा अकादमी और टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह ने 10-12 वर्ष की लड़कियों के लिए एच पी वी वैक्सीन की दो और 15 वर्ष और अधिक आयु की लड़कियों के लिए तीन-खुराक की शुरूआत का समर्थन किया है। हाल ही में, 'सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया' (Serum Institute of India) द्वारा विकसित और डब्ल्यू एच ओ (WHO) द्वारा समर्थित एक चतुःसंयोजी वैक्सीन की एकल-खुराक एच पी वी टीकों से टीकाकरण की लागत में काफ़ी कमी आई है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/429bz5f2
मुख्य चित्र: महिलाओं में एच पी वी (Human Papillomavirus) के कारण होने वाला गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर (Wikimedia)
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