सफ़लता की राह पर अग्रसर है, भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
13-02-2025 09:40 AM
सफ़लता की राह पर अग्रसर है, भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

क्या आप जानते हैं कि, वर्तमान में भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य, लगभग 8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार मूल्य का 2% हिस्सा है। देश की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 2033 तक बढ़कर, 44 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है, जो वैश्विक बाजार का 7-8% हिस्सा होगा। भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हमारे शहर लखनऊ का भी अहम योगदान है। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि, लखनऊ, 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (Indian Space Research Organization (ISRO)) और इसके 'टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क' (Telemetry, Tracking and Command Network (ISTRAC)) के माध्यम से, अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़ा हुआ है। लखनऊ में इंटीग्रल यूनिवर्सिटी का 'मानव संसाधन विकास केंद्र' भी है, जिसने अंतरिक्ष अनुसंधान परियोजनाओं पर इसरो के साथ सहयोग किया है। तो आइए, आज भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति के बारे में विस्तार से जानते हैं और देखते हैं कि, हमारे देश की अर्थव्यवस्था को अंतरिक्ष उद्योग से कैसे लाभ हुआ है। इसके बाद, हम इस बारे में बात करेंगे कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों और अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश से आम जनता को कैसे लाभ हुआ है। इसके साथ ही, हम इस बात पर कुछ प्रकाश डालेंगे कि, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी हमारे देश के निर्माण उद्योग को कैसे मदद कर सकती है। अंत में, हम भारत के सबसे सफ़ल अंतरिक्ष मिशनों के बारे में जानेंगे।
भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति की खोज:

2014 से 2024 के बीच, भारतीय अंतरिक्ष उद्योग ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 60 बिलियन डॉलर का योगदान दिया है, जिसके अगले 10 वर्षों में 131 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। 'भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम रिपोर्ट' के अनुसार, अंतरिक्ष उद्योग के तहत भारत में अब तक 96,000 प्रत्यक्ष नौकरियां और 4.7 मिलियन अप्रत्यक्ष नौकरियां उत्पन्न हुई हैं। भारत, अब दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था है। 2024 तक, भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य लगभग 8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का 2% -3% हिस्सा है, इसके 2025 तक, 6% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर पर 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत का लक्ष्य, अगले दशक तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 10% हिस्सेदारी हासिल करना है। इसरो दुनिया की छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है और इसके प्रक्षेपण मिशनों की सफलता दर उच्च है। भारत में 400 से अधिक  निजी अंतरिक्ष कंपनियाँ हैं। 'भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र' (IN-SPACe) की स्थापना के साथ, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप की संख्या 2020 में 54 से बढ़कर वर्तमान में 200 से अधिक हो गई है।


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का लोगो | Source : Wikimedia

भारत के अंतरिक्ष उद्योग ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था को कैसे लाभ पहुँचाया है:

यूरोपीय परामर्श  फ़र्म नोवास्पेस (Novaspace) के अनुसार, भारतीय अंतरिक्ष उद्योग द्वारा अर्जित प्रत्येक डॉलर के लिए $2.54 के गुणक प्रभाव से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है, एवं भारत का अंतरिक्ष उद्योग कार्यबल देश के व्यापक औद्योगिक कार्यबल की तुलना में 2.5 गुना अधिक उत्पादक है, जबकि इसरो की स्थापना के बाद से पिछले 55 वर्षों में इसमें निवेश की गई पूरी राशि नासा के वार्षिक बजट से भी कम है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जहां 2024 में, 'चीन राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन' (China National Space Administration (CNSA)) और नासा (NASA) का वार्षिक बजट क्रमशः 18 अरब डॉलर और 25 अरब डॉलर से अधिक है, वहीं इसकी तुलना में, इसरो का वार्षिक बजट लगभग 1.6 अरब डॉलर है।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश से समाज को किस प्रकार लाभ हुआ है:

रोज़गार सृजन: अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश से, इसरो द्वारा सीधे तौर पर, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों को प्रत्यक्ष रोज़गार दिया गया है और अप्रत्यक्ष रूप से उपग्रह निर्माण और डेटा विश्लेषण जैसे संबंधित उद्योगों में अवसर उत्पन्न हुए हैं।

आर्थिक लाभ: इसरो के अनुमान के अनुसार, अंतरिक्ष अभियानों में निवेश से खर्च की गई राशि का लगभग 2.54 गुना रिटर्न मिला है। नोवास्पेस की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि, 2014 और 2024 के बीच, भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र ने कर राजस्व में 24 बिलियन डॉलर का योगदान दिया है। इसके अलावा, इसरो के उपग्रह संचार, मौसम पूर्वानुमान और नेविगेशन से विभिन्न क्षेत्रों को लाभ होता है और आर्थिक उत्पादकता बढ़ती है।

कृषि विकास: इसरो के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, जैसे रिसोर्ससैट और कार्टोसैट से, फ़सल स्वास्थ्य, मिट्टी की नमी और भूमि उपयोग की निगरानी करके कृषि विकास को बढ़ावा मिला है, जिससे किसानों को सूचित निर्णय लेने और उत्पादकता में सुधार करने में मदद मिलती है।

आपदा प्रबंधन और संसाधन योजना: सैटेलाइट, आपदा प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करते हैं, जिससे प्राकृतिक आपदाओं पर समय पर प्रतिक्रिया संभव हो पाती है। इसरो अपने पूर्वानुमान के आधार पर प्रतिदिन लगभग 8 लाख मछुआरों की मदद करता है और 1.4 अरब भारतीयों को उपग्रह-आधारित मौसम पूर्वानुमानों का लाभ मिलता है।

शहरी नियोजन और बुनियादी ढाँचा विकास: उच्च-रिज़ॉल्यूशन उपग्रह छवियां, शहरी मानचित्रण, यातायात प्रबंधन और बुनियादी ढाँचे की निगरानी में सहायता करती हैं। यह डेटा, शहरों को भूमि उपयोग को अनुकूलित करने, सार्वजनिक सेवाओं में सुधार करने, और स्थायी शहरी विकास में योगदान करने की अनुमति देता है।

युवाओं के लिए प्रेरणा और शिक्षा का स्रोत: चंद्रयान और मंगलयान जैसी इसरो की उपलब्धियां, छात्रों को प्रेरित करती हैं। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से संबंधित शैक्षिक पहल विज्ञान और प्रौद्योगिकी में रुचि को और बढ़ाती है।

चंद्र अन्वेषण और वैज्ञानिक उन्नति: चंद्रयान मिशन से चंद्र अन्वेषण के क्षेत्र में भारत की क्षमताओं का प्रदर्शन हुआ है और राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा मिला है। इसके साथ ही, इसने वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में योगदान दिया है।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: 300 से अधिक विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च करके, इसरो  वैश्विक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में एक नेता के रूप में उभर कर आया है, जिससे वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देते हुए भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ावा मिला है। मंगलयान जैसे अंतरिक्ष अभियानों के लिए इसरो का कम लागत वाला दृष्टिकोण भारत को अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक आकर्षक भागीदार बनाता है।

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पी एस एल वी-सी 54 (PSLV 54) का प्रक्षेपण | Source : Wikimedia

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का निर्माण उद्योग के लिए महत्व:

रिमोट सेंसिंग (Remote Sensing): सैटेलाइट छवियों और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS), प्रौद्योगिकियों से निर्माण स्थलों के सटीक सर्वेक्षण और मानचित्रण की अनुमति मिलती है। इस तकनीक का उपयोग पर्यावरणीय स्थितियों की निगरानी करने, स्थान की उपयुक्तता का मूल्यांकन करने और निर्माण प्रक्रिया के दौरान प्रगति का प्रबंधन और ट्रैक करने के लिए किया जा सकता है।

संचार: सैटेलाइट संचार से निर्बाध वास्तविक समय संचार और डेटा स्थानांतरण की सुविधा मिलती है, विशेष रूप से दूरस्थ या दुर्गम स्थानों में, जिससे समन्वय और दक्षता में सुधार हो सकता है।

3डी प्रिंटिंग और स्वचालन: अंतरिक्ष अन्वेषण से स्वचालन और रोबोटिक प्रणालियों के साथ-साथ, 3डी प्रिंटिंग प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा मिला है। इन प्रौद्योगिकियों को निर्माण प्रक्रियाओं को स्वचालित , श्रम आवश्यकताओं को कम , सुरक्षा बढ़ाने और अपशिष्ट को कम करने के लिए पृथ्वी पर लागू किया जा सकता है।

सौर ऊर्जा: अंतरिक्ष में विश्वसनीय, हल्के विद्युत स्रोतों की आवश्यकता से प्रेरित सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी में प्रगति से निर्माण उद्योग को भी लाभ हो सकता है। उच्च दक्षता वाली सौर ऊर्जा प्रणालियों को इमारतों में एकीकृत किया जा सकता है, जिससे उनकी स्थिरता में सुधार होगा।

पृथ्वी अवलोकन डेटा: सैटेलाइट डेटा का उपयोग, बाढ़, भूस्खलन और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी और निगरानी के लिए किया जा सकता है। इस जानकारी से सुरक्षित स्थानों पर निर्माण की योजना बनाने या ऐसी घटनाओं का सामना करने के लिए, इमारतों को डिज़ाइन करने में मदद मिल सकती है।

जी पी एस और जी एन एस एस सिस्टम (GPS and GNSS Systems):  अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिए विकसित की गई ये प्रणालियाँ, सटीक स्थिति, नेविगेशन और समय के लिए आवश्यक हैं। निर्माण में, इनका उपयोग भूमि सर्वेक्षण, मशीन नियंत्रण और बेड़े प्रबंधन के लिए किया जाता है।

विद्युतरोधन प्रौद्योगिकियां (Insulation Technologies): अंतरिक्ष में अत्यधिक तापमान की स्थिति के कारण, उन्नत विद्युतरोधन सामग्री और तकनीकों का विकास हुआ है। इनका उपयोग, पृथ्वी पर इमारतों की ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों के कारण, अत्यधिक टिकाऊ और हल्की सामग्री का विकास हुआ है। इन सामग्रियों का उपयोग निर्माण में ऐसी इमारतें बनाने के लिए किया जा सकता है जो अधिक लचीली और कुशल हों।

इसरो के सफ़ल मिशन:

1969 में, अपनी स्थापना के बाद से इसरो ने कई बार भारत को गौरवान्वित किया है। यहां इसरो की कुछ प्रमुख और सफ़ल उपलब्धियां दी गई हैं:

Source : Wikimedia

1. आर्यभट्ट, 1975: महान भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट (Ayabhatta) के नाम पर नामित, आर्यभट्ट उपग्रह पहला भारतीय उपग्रह था। यह पूरी तरह से भारत में निर्मित, डिज़ाइन और असेंबल किया गया था, जिसका वज़न, 360 किलोग्राम से अधिक था। इस उपग्रह को 19 अप्रैल, 1975 को रूस के 'वोल्गोग्राड लॉन्च स्टेशन' से सोवियत कॉसमॉस-3एम (Cosmos-3M) रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था। 

2. भारतीय राष्ट्रीय सैटेलाइट प्रणाली (इनसैट) श्रृंखला, (Indian National Satellite System (INSAT)) Series, 1983): पहली बार, 1983 में लॉन्च की गई, इनसैट श्रृंखला ने भारत के दूरसंचार क्षेत्र में एक क्रांति ला दी। नौ परिचालन संचार सैटेलाइट के साथ, इनसैट प्रणाली, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार सैटेलाइट प्रणालियों में से एक है। इनसैट प्रणाली, टेलीविज़न प्रसारण, उपग्रह समाचार एकत्रीकरण, सामाजिक अनुप्रयोग, मौसम पूर्वानुमान, आपदा चेतावनी और खोज और बचाव गतिविधियाँ प्रदान  करती है।

3. जीसैट श्रृंखला (GSAT Series): 'जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट' (Geosynchronous Satellite), भारत में निर्मित संचार उपग्रह हैं। इन उपग्रहों का उपयोग, मुख्य रूप से डिजिटल ऑडियो, डेटा और वीडियो प्रसारण के लिए किया जाता है। इसरो द्वारा लॉन्च किए गए कई जीसैट उपग्रहों में से 18 अभी भी चालू हैं।

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड पर जी एस एल वी एम के III (GSLV Mk III) पर चंद्रयान 2 का मॉड्यूल | Source : Wikimedia

4. चंद्रयान-1 (Chandrayaan-1 2008): यह चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन था। 22 अक्टूबर 2008 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया यह मिशन, सबसे बड़ी वैज्ञानिक सफलताओं में से एक साबित हुआ क्योंकि, इस यान ने चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति का पता लगाया। चंद्रयान-1 के  ज़रिए ही दुनिया को चंद्रमा पर पानी के बारे में पता चला।

मंगल ऑर्बिटर मिशन | Source : Wikimedia

5. मंगल ऑर्बिटर मिशन (Mars Orbiter Mission (MOM)), 2014: मंगल ऑर्बिटर मिशन के साथ, भारत अपने पहले प्रयास में मंगल पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया। यह देश का पहला अंतरग्रहीय मिशन भी था। मंगलयान को 5 नवंबर 2013 को श्रीहरिकोटा से पी एस एल वी – C25 (PSLV-C25) रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था। इसके साथ, इसरो मंगल ग्रह की कक्षा में अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक लॉन्च करने वाली चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई।

6. चंद्रयान-3: चंद्रयान-2 के बाद, चंद्रयान-3, अपनी सफलता के साथ,  रूस, अमेरिका और चीन के बाद चंद्रमा पर उतरने वाले दुनिया के चार विशिष्ट देशों में से एक बन गया है। यह न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक प्रमुख ऐतिहासिक घटना है। इस मिशन के साथ, भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/bddwpswy

https://tinyurl.com/muxne59p

https://tinyurl.com/bdfeykbh

https://tinyurl.com/bp5wu6mt

मुख्य चित्र: पी एस एल वी (PSLV) 7842 के पूर्ण आकार का हीट शील्ड (Wikimedia)

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