आइए जानें, उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वालीं प्रमुख श्रम प्रधान फ़सलों के बारे में

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
03-02-2025 09:32 AM
आइए जानें, उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वालीं प्रमुख श्रम प्रधान फ़सलों के बारे में

लखनऊ के नागरिकों, उत्तर प्रदेश का कृषि क्षेत्र, राज्य की अर्थव्यवस्था में एक अहम योगदान देता है और यह भारत के सबसे बड़े कृषि क्षेत्रों में से एक है। कृषि से जुड़े आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कुल अनाज उत्पादन 49,144 हज़ार टन है, जो देश के कुल अनाज उत्पादन का 17.83 प्रतिशत है। लखनऊ सहित उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में, आमतौर पर, उगाई जाने वाली फ़सलों में चावल, गन्ना, दालें, गेहूं, जौ और आलू शामिल हैं।

यहां के किसान, अक्सर ऐसी फ़सलें उगाते हैं, जिनके उत्पादन में अधिक मेहनत लगती है। हालांकि, इन फ़सलों की उच्च गुणवत्ता, बेहतरीन स्वाद और विशेष कटाई की आवश्यकताओं के कारण ये बाज़ार में अच्छी कीमत पर बिकती हैं।

आज, हम 2011 की जनगणना के अनुसार, यू पी में कृषि से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों को समझेंगे। इसके बाद, सालों के दौरान भारत में फ़सलों के हिसाब से श्रमिकों की आवश्यकता के प्रतिशत पर चर्चा करेंगे। यहां, हम उन फ़सलों को भी जानेंगे जिनमें सबसे ज़्यादा और सबसे कम मेहनत लगती है। फिर, हम अपने राज्य में उगाई जाने वाली अधिक-मूल्य और अधिक मेहनत वाली फ़सलों के बारे में जानेंगे। अंत में, हम यू पी-प्रगति कार्यक्रम (UP-Pragati Program) पर चर्चा करेंगे और यह समझेंगे कि यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के छोटे और सीमांत किसानों को कैसे लाभ पहुंचाएगा।

यू पी के एक खेत में गन्ने इखट्टा करती एक महिला | Source : Wikimedia

2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कृषि से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े
⦁    2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 1.8 करोड़ से ज़्यादा कृषि परिवार हैं। राज्य की करीब 59 प्रतिशत लोग अपनी रोज़ी-रोटी के लिए कृषि पर निर्भर हैं (राष्ट्रीय सेवा योजना 2012-13 और जनगणना 2011 के मुताबिक)। इसके अलावा, 55 प्रतिशत ग्रामीण लोग ऐसे परिवारों में रहते हैं जिनके सदस्य या तो कृषि में काम करते हैं या कृषि श्रम के रूप में काम करते हैं।
⦁    उत्तर प्रदेश में कृषि परिवारों की औसत मासिक आय, 2012-13 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (70वें राउंड) के अनुसार, ₹4900 है।  जबकि, पंजाब और हरियाणा में कृषि परिवारों की औसत मासिक आय ₹18,000 और ₹14,400 है। इससे साफ़ पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में किसानों की आय कम है, जो कि कृषि संकट का एक बड़ा कारण है।
⦁    उत्तर प्रदेश में दो प्रमुख मौसमी फ़सल उगाई जाती हैं - ख़रीफ़ और रबी। रबी फ़सल को ज़्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसके लिए ज़्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है। फ़सल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बारिश और सिंचाई की सुविधा ज़रूरी होती है।
⦁    गन्ना, उत्तर प्रदेश की मुख्य व्यावसायिक फ़सल है। यह राज्य के पश्चिमी क्षेत्र के 70 प्रतिशत से ज़्यादा भूमि पर उगाया जाता है। लेकिन, गन्ना किसानों को उनकी फ़सल से अच्छा मुनाफ़ा नहीं मिलता है। मिल मालिकों द्वारा शोषण और बकाया राशि के कारण, किसानों को बहुत परेशानी होती है।
⦁    1990 के बाद से कृषि उत्पादन और उत्पादकता में लगातार कमी आई है। इसके अलावा, कृषि से होने वाली आय भी घट रही है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति ख़राब हो रही है।
⦁    कृषि संकट के प्रमुख कारणों में किसानों का बढ़ता कर्ज़, खेती की लागत का ज़्यादा होना, बार-बार फ़सल का ख़राब होना, और सिंचाई की कमी शामिल हैं। कर्ज़ की वजह से किसानों को फ़सल उगाने में कठिनाई होती है और वे नई तकनीक का इस्तेमाल भी नहीं कर पाते हैं। बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा की कमी और गन्ना किसानों को सही मूल्य न मिलना भी एक बड़ी समस्या है।
 

धान के खेत में काम करता एक किसान | Source : pexels

भारत में फ़सल आधारित श्रम आवश्यकताएँ (%) समय के साथ:

उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली प्रमुख श्रम-प्रधान फ़सलें
गहन कृषि, जिसे इंटेंसिव एग्रीकल्चर (Intensive Agriculture) भी कहा जाता है, खेती का एक तरीका है जिसमें कम ज़मीन पर सबसे ज़्यादा फ़सल उगाने का लक्ष्य होता है। नीचे दी गईं प्रमुख श्रम-प्रधान फ़सलें, उत्तर प्रदेश में उगाई जाती हैं:

1. धान (चावल) - उत्तर प्रदेश में धान, एक प्रमुख श्रम-प्रधान फ़सल है, जो ख़रीफ़ मौसम में उगाई जाती है। इसकी खेती में पानी की अधिक आवश्यकता होती है, और रोपाई, निराई-गुड़ाई तथा कटाई में भारी श्रम लगता है। गोरखपुर और वाराणसी जैसे तराई क्षेत्र, विशेष रूप से धान की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं।

2. गन्ना – यह, हमारे राज्य की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण श्रम-प्रधान फ़सल है। गन्ना उगाने में गहन श्रम की आवश्यकता होती है, जिसमें बीज बोना, सिंचाई, कटाई और परिवहन शामिल हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, खासकर मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर और बागपत, गन्ने की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं, और यह चीनी मिलों के लिए कच्चा माल प्रदान करता है।

3. गेहूं – हालांकि, गेहूँ मुख्य रूप से एक रबी फ़सल है, लेकिन, इसकी कटाई और अनाज की सफ़ाई में श्रमिकों का योगदान अहम होता है। उत्तर प्रदेश गेहूँ उत्पादन में अग्रणी राज्यों में से एक है, और कानपुर तथा इलाहाबाद जैसे क्षेत्र इसकी प्रमुख खेती के लिए जाने जाते हैं।

4. दलहन और तिलहन - हमारे राज्य में दलहन (चना, अरहर, मूंग) और तिलहन (सरसों, तिल) की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है। इन फ़सलों की खेती में निराई, गुड़ाई, और कटाई में किसानों का श्रम बहुत महत्वपूर्ण होता है।

5. सब्ज़ियाँ और फल - उत्तर प्रदेश में सब्ज़ियों और फ़लों की खेती में भी श्रमिकों का बड़ा योगदान है। विशेष रूप से टमाटर, आलू, भिंडी, बैंगन जैसी हरी सब्ज़ियाँ और आम, केला जैसे फल, जिन्हें उगाने, तोड़ने और बाज़ार तक पहुँचाने में मानव श्रम की आवश्यकता होती है।

यू पी प्रगति लेखन | Source : प्रारंग चित्र संग्रह

यू पी -प्रगति (UP-PRAGATI) क्या है और यह उत्तर प्रदेश के छोटे और सीमांत किसानों को कैसे लाभ पहुंचाएगा?
उत्तर प्रदेश ने  यू पी -प्रगति (UP-PRAGATI) नामक एक नया कार्यक्रम शुरू किया है, जो पानी के सही उपयोग और पर्यावरण के लिए कम हानिकारक तरीकों को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है।  इस कार्यक्रम को 2030 वाटर रिसोर्स ग्रुप (2030 Water Resource Group)   बिल एंड मेलिंडा गेट्स  फ़ाउंडेशन (Bill and Melinda Gates Foundation) और कुछ निजी कंपनियों के साथ मिलकर शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य, खेती में पानी का सही तरीके से इस्तेमाल और कम कार्बन वाली तकनीकों को बढ़ावा देना है, ताकि किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सके।

यू पी -प्रगति कार्यक्रम के तहत अगले पाँच सालों में 250,000 हेक्टेयर जमीन पर चावल की सीधी बुआई (Direct Seeding of Rice/ DSR) तकनीक को बढ़ावा दिया जाएगा। इस तकनीक में चावल के बीज सीधे खेतों में बोए जाते हैं, जिससे पानी की बचत होती है और खेती का तरीका भी बेहतर होता है। इस कार्यक्रम से किसानों को अधिक फ़सल और बेहतर परिणाम मिलेगा, जिससे उनकी आय बढ़ेगी।

चावल की सीधी बुआई  
1.) डायरेक्ट  सीडेड राइस (Direct Seeded Rice (DSR)), जिसे ‘ब्रॉडकास्टिंग सीड तकनीक’ भी कहा जाता है, एक पानी बचाने का तरीका है, जिससे धान की बुआई की जाती है।
2.) इस तरीके में, बीज सीधे खेतों में बोए जाते हैं। पारंपरिक तरीके में, जिसमें धान के पौधों को नर्सरी से निकालकर पानी से भरे खेतों में लगाया जाता है, जिससे पानी की बचत होती है।
3.) इस विधि ,में न तो नर्सरी तैयार करने की ज़रूरत होती है और न ही पौधों को स्थानांतरित करने की। किसानों को केवल अपनी ज़मीन को समतल करना होता है और बुआई से पहले एक सिंचाई करनी होती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/9wt7n48j 
https://tinyurl.com/2ubm6es3 
https://tinyurl.com/ynwm5586 
https://tinyurl.com/2p4sdkep 

मुख्य चित्र स्रोत: खेत में दो बैलों के साथ एक किसान (Wikimedia)
 

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