भारतीय संस्कृति में, गहराई तक फैलीं हैं, रंगमच की जड़ें

द्रिश्य 2- अभिनय कला
11-02-2025 09:33 AM
भारतीय संस्कृति में, गहराई तक फैलीं हैं, रंगमच की जड़ें

रंगमंच, भारत की संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहे हैं।मनोरंजन, कहानी सुनाने और शिक्षाप्रद सबक देने में इनका अतुलनीय योगदान रहा है।भारत के पारंपरिक रंगमंच में, "नौटंकी" एक प्रसिद्ध शैली है।इसकी शुरुआत उत्तर भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में हुई थी।नौटंकी अपनी जीवंत प्रस्तुतियों के लिए जानी जाती है।इसमें नाटक, संगीत, नृत्य और रंगीन वेशभूषा का अनोखा मेल होता है, जिससे कहानियाँ प्रस्तुत की जाती हैं।नौटंकी में आमतौर पर लोक कथाएँ, पौराणिक कहानियाँ और नैतिक संदेश शामिल होते हैं।अपने समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास के लिए मशहूर, लखनऊ भी नौटंकी के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। यह शहर, लंबे समय से नौटंकी प्रदर्शनों का प्रमुख केंद्र रहा है।

वर्तमान राजनीति और व्यवस्था पर करारे प्रहार करते, शरद जोशी द्वारा लिखे गए नाटक, 'अंधों के हाथी' का पोस्टर | Source: Wikimedia

आज भी यह कला भारत के कई हिस्सों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, काफ़ी लोकप्रिय है। इसलिए आज के इस लेख में हम भारत में रंगमंच और नाटक की उत्पत्ति पर चर्चा करेंगे। हम इसकी जड़ों को प्राचीन काल तक ले जाकर भारत में नाटक के विभिन्न प्रकारों और क्षेत्रीय व पारंपरिक रंगमंच की विविधता
को समझेंगे।इसके अलावा, हम नौटंकी पर विशेष ध्यान देंगे, जो उत्तरी भारत की एक लोकप्रिय परंपरा है। अंत में, उत्तर प्रदेश में नौटंकी रंगमंच के विकास पर विचार करेंगे।

रंगमंच क्या है?

रंगमंच प्रदर्शन कला का एक रूप है, जिसमें कलाकार किसी विशेष स्थान पर,
आमतौर मंच पर, दर्शकों के सामने लाइव घटनाओं को प्रस्तुत करते हैं।ये घटनाएँ वास्तविक या काल्पनिक हो सकती हैं।भारतीय रंगमंच की शुरुआत दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी।इसका सबसे प्रारंभिक रूप संस्कृत रंगमंच था, जो भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र परआधारित था। कालांतर में, ब्रिटिश शासन के दौरान इस कला का आधुनिकरण हुआ।

भारत में नाटक की परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है, जिसमें विभिन्न शैलियाँ, विषय और क्षेत्रीय विविधताएँ शामिल हैं। 

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नाटकों के कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

1. संस्कृत नाटक: संस्कृत नाटक, भारत के सबसे प्राचीन नाट्य रूपों में से एक है। कालिदास और भास जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों की कृतियों ने इसे विशेष बना दिया। यह नाटक जटिल कथानक, काव्यात्मक भाषा और संगीत व नृत्य के संयोजन पर आधारित होता है। इसमें नाट्यशास्त्र में उल्लिखित नियमों का पालन किया जाता है।

2. लोक नाटक: लोक नाटक भारत की विविध परंपराओं से उपजा है। प्रत्येक क्षेत्र के लोक नाटकों की अपनी विशेषताएँ होती हैं।

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कुछ प्रमुख लोक नाटकों के उदाहरणों में शामिल हैं:

तमाशा (महाराष्ट्र): इसमें नृत्य, संगीत और नाटक का संगम होता है इसके तहत सामाजिक मुद्दों को हास्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

भवई (गुजरात): भवई, अपनी रंगीन वेशभूषा और ऊर्जावान प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध है।इसमें सामाजिक टिप्पणियाँ प्रमुख रहती हैं।

जात्रा (बंगाल): यह एक घूमने वाले दल का प्रदर्शन है, जो पौराणिक कथाएँ और समकालीन मुद्दे प्रस्तुत करता है।

3. यक्षगान: कर्नाटक में उत्पन्न यक्षगान, नृत्य-नाटक का पारंपरिक रूप है इसमें नृत्य, संवाद, संगीत और विस्तृत वेशभूषा का अनूठा समन्वय होता है।यह अक्सर महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों की कहानियों पर आधारित होता है।

4. कूडियाट्टम: केरल का कूडियाट्टम, संस्कृत रंगमंच का सबसे प्राचीन रूप है। इसमें अनुष्ठानिक और शैलीबद्ध प्रदर्शन होते हैं, जो मुख्यतः प्राचीन हिंदू ग्रंथों पर आधारित होते हैं।

5. कठपुतली थियेटर: कठपुतली भारत की पारंपरिक रंगमंच विधा है।

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इसके विभिन्न प्रकार होते हैं:

6. कठपुतली (राजस्थान): रंगीन लकड़ी की कठपुतलियों के माध्यम से लोक कथाएँ और मिथक प्रस्तुत किए जाते हैं।

7. बोम्मलट्टम (तमिलनाडु): चमड़े की कठपुतलियों से महाकाव्यों की कहानियों को छाया थियेटर के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

8. नौटंकी: उत्तर भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय, नौटंकी एक संगीत नाटक है। इसमें जीवंत संगीत, नृत्य और अतिरंजित अभिनय शामिल होता है।इसकी कहानियाँ रोमांस और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित रहती हैं।

इन विविध नाट्य रूपों के माध्यम से भारतीय रंगमंच न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर
भी करता है। नौटंकी उत्तरी भारत का एक प्रसिद्ध ओपेरा थियेटर है। इसमें नृत्य, संगीत, कहानी, हास्य, संवाद, नाटक और बुद्धिमत्ता का अनोखा मिश्रण होता है।यह कला उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में उत्तर प्रदेश में उभरी और बेहद लोकप्रिय हो गई।नौटंकी के नाटक बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किए जाते थे।इसके नायक कुशल अभिनेता और गायक होते थे, जो अपनी अद्भुत प्रतिभा से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते थे

भले ही मंच पर बहुत कम प्रॉप्स का उपयोग होता था, लेकिन अभिनेताओं की कला से दर्शकों को भव्य दृश्य का अनुभव होता था।ये प्रदर्शन खुले मैदान में अस्थायी मंच पर आयोजित किए जाते थे। जब कलाकार अपनी रंगीन वेशभूषा पहनकर प्रदर्शन करते थे, तो सभी आयु वर्ग के लोग मंत्रमुग्ध होकर उन्हें देखते थे।

नौटंकी का पहला ज्ञात केंद्र, उत्तर प्रदेश के हाथरस को माना जाता है। 1910 के दशक तक कानपुर और लखनऊ इसके प्रमुख केंद्र बन गए। इन शहरों ने अपनी-अपनी विशिष्ट शैली विकसित की, जो उनके दर्शकों के अनुरूप थी।

नौटंकी ने साहित्य और परंपरा के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया। इसमें किंवदंतियों, संस्कृत और फ़ारसी रोमांस, और पौराणिक कथाओं की पुनर्व्याख्या शामिल थी। कुछ लोकप्रिय नौटंकियों में राजा हरिश्चंद्र, लैला  मजनूं, शीरीं  फ़रहाद, श्रवण कुमार, हीर रांझा और बांसुरीवाली शामिल थीं। इसके अलावा, पृथ्वीराज चौहान, अमर सिंह राठौर और रानी दुर्गावती जैसे ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित नाटक भी खूब पसंद
किए जाते थे।

लखनऊ और कानपुर के लोगों के लिए, नौटंकी मनोरंजन का मुख्य साधन हुआ करती थी। इसमें न केवल मनोरंजन बल्कि नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक संदेश भी शामिल होते थे। यह कथानक के माध्यम से प्रासंगिक मुद्दों पर प्रकाश डालती थी। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान, नौटंकी ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने अवध क्षेत्र में देशभक्ति और वीरता से भरे नाटकों का मंचन किया और स्वतंत्रता संग्राम में लोगों को प्रेरित किया।

नौटंकी का प्रभाव इतना गहरा था कि जब  मजनूं पहली बार पागलपन के बाद लैला से मिलता था, तो थिएटर में दर्शक भी सिसकियाँ भरते थे। जब फरहाद, शीरीं की कब्र पर अपना सिर पटकता था या सुल्ताना डाकू में सुल्ताना ब्रिटिश पुलिस कमिश्नर को चौंकाता था, तो
दर्शकों में गहरी भावनाएँ जागती थीं। इस कला में अभिनेता और दर्शक के बीच का अंतर मिट जाता था। दोनों के बीच एक गहरा जुड़ाव बनता था, जो इसे और भी प्रभावशाली बनाता था।

स्वांग-नौटंकी प्रदर्शन परंपरा का इतिहास कई सौ साल पुराना है। इस परंपरा का पहला उल्लेख 16वीं शताब्दी में आइन-ए-अकबरी नामक ग्रंथ में मिलता है, जिसे सम्राट अकबर के दरबार के विद्वान अबुल फ़ज़ल ने लिखा था। नौटंकी की जड़ें उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन की भगत और रासलीला परंपराओं तथा राजस्थान के ख्याल से जुड़ी हुई हैं।

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उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में, हाथरस, मथुरा, कानपुर, और लखनऊ नौटंकी प्रदर्शन के प्रमुख केंद्र बन गए। पहला स्वांग उत्तर प्रदेश के हाथरस में इंदरमन द्वारा स्थापित एक अखाड़े में विकसित किया गया। यह अखाड़ा केवल नाटक का मंच नहीं था, बल्कि संगीत, कविता, कुश्ती और शरीर सौष्ठव के अभ्यास का स्थान था। इंदरमन, जो छिपि जाति के कवि थे, ने 1890 के दशक में अपने शिष्यों चिरंजीलाल और गोविंद राम के साथ स्वांग प्रस्तुत करना शुरू किया। इंदरमन के शिष्य नथाराम गौड़, जो दरियापुर गांव के थे, नौटंकी के सबसे प्रतिभाशाली कलाकार बने। वे गायक, नर्तक, संगीतकार और अभिनेता थे। उन्होंने महिला भूमिकाओं को भी बेहतरीन ढंग से निभाया।

1890 के दशक में नथाराम और उनकी मंडली ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन करना शुरू किया।इस मंडली में कई प्रसिद्ध कलाकार शामिल हुए, जैसे विद्याधर, गणेशी लाल, नज़ीर खान,और चुन्नीलाल हाथरसी। संगीत में मोहम्मद नक्कारा, घूरे खान (हारमोनियम), और खैरात मियाँ (ढोलक) जैसे कुशल वादक थे।नथाराम की मंडली ने शहज़ादी नौटंकी नामक स्वांग प्रस्तुत किया, जो पंजाब की एक लोककथा पर आधारित था। यह नाटक कानपुर क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हुआ, और धीरे-धीरे इस शैली को ही नौटंकी कहा जाने लगा।

1910 के दशक तक, कानपुर नौटंकी का प्रमुख केंद्र बन गया और अपनी विशिष्ट शैली विकसित की। इनमें शामिल हैं:

हाथरस शैली: यह शैली स्वांग के करीब रही और हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन पर ज़ोर देती थी। नाटक की शुरुआत ध्रुपद से होती थी, जिसमें गायकों को लगातार तीन-चार मिनट तक स्वर बनाए रखना पड़ता था।

कानपुर शैली: इसमें संवाद, चेहरे के भाव और अभिनय पर अधिक ज़ोर दिया गया।इसका संगीत सरल और मंचीय कला अधिक प्रभावशाली थी।

1930 के दशक तक, नौटंकी एक व्यावसायिक कला रूप में विकसित हो गई।टिकटों की बिक्री ने इसके आर्थिक पक्ष को मज़बूत किया।अखाड़ा प्रणाली की जगह पेशेवर कंपनियों ने ले ली। कंपनियाँ 80 लोगों तक का स्टाफ़ रखती थीं और कलाकारों को मासिक वेतन दिया जाता था।पारसी रंगमंच के प्रभाव से नौटंकी में चित्रित पृष्ठभूमि, पर्दे, भव्य पोशाक और शहनाई व हारमोनियम जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग
शुरू हुआ।

नौटंकी ने आधुनिकता को अपनाते हुए प्रदर्शन की गुणवत्ता और दर्शकों के अनुभव को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।यह न केवल मनोरंजन का साधन बनी, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों का माध्यम भी साबित हुई।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/28scgjcd

https://tinyurl.com/2cwga27p

https://tinyurl.com/29u4dz7r

मुख्य चित्र : मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक प्रसिद्ध कहानी कफ़न की नाट्य प्रस्तुति (Wikimedia)
 

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