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बेटी को मत समझो कभी भी भार,
यही हैं सबके जीवन का आधार।
लखनऊ के नागरिक इस तथ्य से अवगत हैं कि, भारत के विधायी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व, कुल संख्या का लगभग 15% है। दूसरी ओर, स्वीडन(Sweden), नॉर्वे(Norway) और दक्षिण अफ़्रीका(South Africa) जैसे देशों की राष्ट्रीय विधायिकाओं में, महिलाओं का प्रतिनिधित्व 45% से अधिक है। ‘महिला आरक्षण अधिनियम, 2023’, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली की विधान सभा में, महिलाओं के लिए, सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें आरक्षित रखने का निर्देश देता है। इसमें, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें भी शामिल हैं। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि, बेगम कुदसिया ऐजाज़ रसूल (Begum Qudsia Aijaz Rasul)(2 अप्रैल 1909 – 1 अगस्त 2001), भारत की संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला थीं, जिन्होंने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया था। तो आज, भारत के विधायी निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति के बारे में बात करते हैं। फिर, हम महिला आरक्षण विधेयक, 2023 के उद्देश्य और सीमाओं के बारे में जानेंगे। उसके बाद, हम बेगम कुदसिया ऐजाज़ रसूल के जीवन, कार्य और उपलब्धियों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम भारत के संविधान के निर्माण में, उनके योगदान का पता लगाएंगे।
भारत के विधायी निकायों में महिला प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति:
संविधान(128वां संशोधन) विधेयक बिल, 2023, 19 सितंबर 2023 को लोकसभा में पेश किया गया था। इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में, महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
विधेयक के पारित होने के बाद से, लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर, वर्तमान लोकसभा में 15% हो गया है। वर्तमान में, 15% लोकसभा सांसद और 13% राज्यसभा सांसद महिलाएं हैं।
लोकसभा में 10 से अधिक सीटों वाली पार्टियों में, भारतीय जनता दल(बीजेडी) के 42% सांसद और तृणमूल कांग्रेस(टी एम सी) के 39% सांसद महिलाएं हैं। साथ ही, राज्यसभा में कांग्रेस की, 17% सांसद महिलाएं हैं।
टी एम सी और बी जे डी (Bhartiya Janta Dal (BJD)) ने सबसे महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। 10 या अधिक सांसदों वाली पार्टियों में, महिलाओं के जीतने की संभावना पुरुषों की तरह ही थी। किसी भी राज्य की विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20% से अधिक नहीं है। 18% महिला विधायकों के साथ, छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व है, जबकि, हिमाचल प्रदेश में सिर्फ़ एक महिला विधायक है। और मिज़ोरम में एक भी महिला विधायक नहीं है।
महिला आरक्षण विधेयक, 2023 क्या है?
1.) विधेयक में संसद के निचले सदन, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधान सभा में, महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू करने का प्रावधान है।
2.) विधेयक को इसके अधिनियमन के बाद आयोजित, पहली जनगणना के बाद परिसीमन की कवायद के बाद लागू करने का प्रस्ताव है।
3.) यह लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
4.) यह आरक्षण, 15 वर्ष की अवधि के लिए प्रदान किया जाएगा। हालांकि, यह संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित तिथि तक जारी रहेगा।
5.) महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें प्रत्येक परिसीमन के बाद बदली जाएंगी, जैसा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
विधेयक का उद्देश्य:
1.) राजनीतिक व्यवस्था में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के मुद्दे को संबोधित करना।
2.) महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना।
3.) लिंग भेदभाव का उन्मूलन करना।
4.) नीति निर्माण का दायरा बढ़ाना।
5.) महिलाओं के आत्म-प्रतिनिधित्व और आत्मनिर्णय के अधिकार को बढ़ावा देना।
विधेयक की सीमा:
1.) योग्यता आधारित प्रतिस्पर्धा का अभाव।
2.) शिक्षित और योग्य व्यक्ति राजनीतिक अवसर खो सकते हैं।
3.) निर्वाचित महिलाएं कठपुतली के रूप में कार्य कर सकती हैं, और वास्तविक शक्ति का आनंद पुरुष सदस्य उठा सकते हैं।
4.) परिसीमन प्रक्रिया के कारण, विधेयक के अधिनियमित होने में देरी हो सकती है।
बेगम ऐजाज़ रसूल का परिचय:
बेगम ऐजाज़ रसूल का जन्म, मालेरकोटला में एक राजसी परिवार में हुआ था। उनकी शादी, एक युवा ज़मीनदार, नवाब ऐजाज़ रसूल (Nawab Aijaz Rasul) से हुई थी। वह संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं।
भारत सरकार अधिनियम, 1935 के साथ, बेगम और उनके पति, मुस्लिम लीग में शामिल हो गए और उन्होंने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया। 1937 के चुनाव में, वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए चुनी गईं। 1952 में, वे राज्य सभा के लिए चुनी गईं और उन्होनें 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य रहीं।
संविधान सभा में बेगम ऐजाज़ रसूल भूमिका:
भारत के विभाजन के साथ, मुस्लिम लीग के केवल मुट्ठी भर सदस्य ही, भारत की संविधान सभा में शामिल हुए। बेगम ऐजाज़ रसूल को संविधान विधान सभा में, प्रतिनिधिमंडल का उपनेता और विपक्ष का उपनेता चुना गया। जब पार्टी नेता – चौधरी खलीक़ुज़्ज़मां (Chaudhry Khaliquzzaman), पाकिस्तान चले गए, तो बेगम ऐजाज़ ने मुस्लिम लीग के नेता के रूप में उनकी जगह लीं, और अल्पसंख्यक अधिकार मसौदा उपसमिति की सदस्य बन गईं।
बेगम ऐजाज़ रसूल ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटों की मांग को, स्वेच्छा से छोड़ने के लिए मुस्लिम नेतृत्व के बीच आम सहमति बनाने में, महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मसौदा समिति की एक बैठक में, अल्पसंख्यकों के अधिकार से संबंधित चर्चा के दौरान, उन्होंने मुसलमानों के लिए ‘अलग निर्वाचन क्षेत्र’ रखने के विचार का विरोध किया। उन्होंने इस विचार को ‘एक आत्म-विनाशकारी हथियार’ के रूप में उद्धृत किया, जो अल्पसंख्यकों को हमेशा के लिए बहुसंख्यकों से अलग कर देता है। 1949 तक, जो मुस्लिम सदस्य अलग निर्वाचन क्षेत्रों को बनाए रखने की इच्छा रखते थे, वे बेगम की अपील को स्वीकार करने के लिए आगे आए।
बेगम ऐजाज़ रसूल का विचार केंद्र, भारत के लिए एक समावेशी ढांचा बनाने पर था। बेगम ऐजाज़ रसूल ने अल्पसंख्यक अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास किया कि, अल्पसंख्यकों की ज़रूरतों को संविधान में शामिल किया जाए। नए राष्ट्र के लिए, एक समावेशी ढांचे को बढ़ावा देने में उनका योगदान आवश्यक था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/rkr9uhz7
https://tinyurl.com/mtbkexsn
https://tinyurl.com/4hypdmb5
https://tinyurl.com/3ejbv82x
https://tinyurl.com/4afmxjnp
चित्र संदर्भ
1. बेगम कुदसिया ऐज़ाज़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
2. प्रियल भारद्वाज (14 सितंबर 1985 को जन्मीं) एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं जो जुलाई 2021 से भाजपा महिला मोर्चा, दिल्ली प्रदेश, भारत की वर्तमान उपाध्यक्ष हैं। उनको संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ग्रामीण भारत की महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. बेगम ऐज़ाज़ रसूल की एक तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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