लखनऊ वासियों, क्या आपने कभी सोचा है कि, पैसा नकद के रूप में, कैसे अस्तित्व में आया है? कागज़ी मुद्रा, मनुष्य के चार महान आविष्कारों में से एक है। ये आविष्कार, कागज़ बनाना, छपाई, बारूद और दिशा सूचक यंत्र हैं। प्राचीन चीन ने इस कागज़ी मुद्रा का नेतृत्व किया। हालांकि, 7वीं शताब्दी तक, वहां के तांग राजवंश के राज्य में, व्यापारियों ने कागज़ का उपयोग, आज प्रचलित प्रॉमिसरी नोट(Promissory notes) जैसा नहीं किया था। तो आइए, आज कागज़ी मुद्रा और इसके इतिहास के बारे में विस्तार से जानें। हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि, कागज़ी मुद्रा की क्या आवश्यकता थी, और चीन के लोगों ने इसे सबसे पहले कैसे पेश किया। फिर, हम 13वीं शताब्दी के दौरान, सोंग राजवंश द्वारा निर्मित, दुनिया के पहले बैंक नोटों के बारे में बात करेंगे। साथ ही, हम पता लगाएंगे कि, यह कागज़ी मुद्रा यूरोप तक कैसे पहुंची, और इसे दुनिया भर में कैसे अपनाया गया। अंत में, हम, डे ला रुए(De la Rue) के बारे में जानेंगे, जिसे अक्सर, ‘दुनिया का धन मुद्रक’ कहा जाता है।
वास्तव में, कागज़ी मुद्रा की आवश्यकता इसलिए थी कि, चीन में सदियों से तांबे के सिक्कों का उपयोग किया जा रहा था। ये सिक्के गोलाकार होते थे, और उनके केन्द्र में एक छेद होता था। इस छेद के कारण, सिक्कों को रस्सी के माध्यम से पिरोकर, उन्हें एक साथ बांधा जा सकता था। यदि कोई व्यापारी अमीर था, तो उसे यह रस्सी, लाद के ले जाने के लिए बहुत भारी थी। इसलिए, सिक्कों को किसी ऐसे व्यक्ति के पास छोड़ दिया जाता था, जिस पर उन्हें भरोसा था। वह व्यक्ति, उन्हें एक कागज़ी रसीद देता था, जिसमें जमा की गई राशि के बारे में लिखा होता था।
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कुछ सदियों पहले, कुछ मामलों में सिक्कों की आवश्यकता के स्थान पर, कागज़ी मुद्रा का चलन आया था। इस प्रकार, विश्व के कुछ पहले बैंक नोट, चीन के सोंग राजवंश द्वारा निर्मित किए गए थे। 11वीं शताब्दी तक, सोंग राजवंश के दौरान, जियाओज़ी(Jiaozi) (बैंकनोट का एक रूप), जिसे दुनिया का पहला कागज़ी धन माना जाता है, आधिकारिक तौर पर मुद्रित और जारी किया गया था। साथ ही, वर्ष 960 के आसपास, तांबे की कमी थी, जिससे सिक्के बनाए जाते थे। इसलिए, सरकार ने पहले बैंक नोट जारी किए और जल्द ही कागज़ी मुद्रा छापने के आर्थिक लाभ स्पष्ट हो गए।
अगली कुछ शताब्दियों में, कागज़ी मुद्रा का विचार, चीन की अर्थव्यवस्था में इतना केंद्रीय हो गया कि, सोंग शासन ने बैंक नोट छापने के लिए, विभिन्न शहरों में कारखाने स्थापित किए। परंतु, वर्ष 1265 और 1274 के बीच, यह रुझान बदल गया, जब सोंग राजवंश ने एक राष्ट्रीय कागज़ी मुद्रा मानक जारी किया। कागज़ी मुद्रा, तब वहां मज़बूती से स्थापित हो चुकी थी।
एक तरफ़, 1260 ईस्वी के दौरान, चीन का युआन राजवंश, अपने सिक्कों से कागज़ी मुद्रा की ओर बढ़ गया। रेशम मार्ग के साथ, एशिया की यात्रा करने वाले वेनिस(Venice) के व्यापारी, खोजकर्ता और लेखक – मार्को पोलो(Marco Polo) ने, लगभग 1271 ईस्वी में चीन का दौरा किया था। तब तक, चीन के सम्राट के पास मुद्रा आपूर्ति और इसके विभिन्न मूल्यवर्ग पर अच्छी पकड़ थी।
16वीं शताब्दी तक, यूरोप के कुछ हिस्सों में मुद्रा के रूप में, धातु के सिक्कों का ही उपयोग किया जाता था। फिर, नए क्षेत्रों के यूरोपीय औपनिवेशिक अधिग्रहण ने, कीमती धातुओं के नए स्रोत प्रदान किए, और यूरोपीय देशों को अधिक मात्रा में सिक्के ढालने में सक्षम बनाया।
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चूंकि, यूरोप और उनके उत्तरी अमेरिकी उपनिवेशों के बीच, जहाज़ परिवहन में काफ़ी समय लगता था, इन उपनिवेशों में अक्सर ही नकद खत्म हो जाता था । इस कारण, फिर से वस्तु विनिमय प्रणाली का रास्ता अपनाने के बजाय, औपनिवेशिक सरकारों ने आईओयू(IOU)(ऋण स्वीकार करने वाले अनौपचारिक दस्तावेज़) जारी किए, जिनसे, मुद्रा के रूप में कारोबार किया जा सकता था । इसका पहला उदाहरण, 1685 में कनाडा(Canada) से था, जब सैनिकों को फ़्रांस से सिक्कों के बजाय, नकद के रूप में, गवर्नर द्वारा हस्ताक्षरित प्ले कार्ड(Playing cards) जारी किए गए थे।
वर्तमान समय में, डे ला रुए, एक प्रिंटिंग कंपनी है, जो दुनिया के लगभग आधे केंद्रीय बैंकों के साथ, उनकी मुद्रा नोटों पर काम करती है। यह कंपनी, नोटों के डिज़ाइन, उन्हें जालसाज़ी से बचाने के लिए सुरक्षा सुविधाएं विकसित करना और उन्हें प्रिंट करने पर ध्यान देती है। इससे यह दुनिया में, मुद्रा की सबसे बड़ी वाणिज्यक प्रिंटर बन जाती है।
कई छोटे देश , अपने धन का उत्पादन, डे ला रुए जैसे बाहरी स्त्रोतों से करते हैं। इस तरह, यह कंपनी, ब्रिटिश पाउंड(Pound), फ़िजी(Fiji) और बारबेडस (Barbados) के डॉलर, क़तर (Qatar) के रियाल(Riyal), श्रीलंकाई रुपये और दर्जनों अन्य मुद्राएं छापती है।
डे ला रुए के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य निम्नलिखित हैं:
१. एक अनुमान के अनुसार, डे ला रुए, दुनिया भर में हर साल, 170 बिलियन बैंकनोट जारी हैं।
२. राष्ट्रीय मुद्रा प्रेस की तुलना में, हर वर्ष , डे ला रुए जैसी निजी कंपनियों द्वारा 18-20 बिलियन बैंक नोट मुद्रित किये जाते हैं है।
३. डे ला रुए, हर साल, 6 अरब तक बैंकनोट छापती है।
४. आज, विश्व में मुद्रा जारी करने वाले 169 प्राधिकारी हैं।
दूसरी ओर, विश्व की कुछ सबसे कीमती मुद्राएं निम्नलिखित हैं:
1.) कुवेती दिनार (Kuwaiti Dinar): कुवेती दिनार, दुनिया की सबसे कीमती मुद्रा है। 1 कुवैती दीनार के लिए, 272.76 भारतीय रुपये मिलते हैं। कुवेत, सऊदी अरब(Saudi Arabia) और इराक(Iraq) के बीच स्थित है, जो पेट्रोलियम का अग्रणी वैश्विक निर्यातक है। इसी निर्यात से यह अपनी अधिकांश संपत्ति अर्जित करता है।
2.) बहरेनी दिनार (Bahraini Dinar): 1 बहरेनी दिनार की कीमत 222.15 भारतीय रुपये होती है। कुवैत की तरह, यह देश भी अपनी अधिकांश संपत्ति, तेल और गैस निर्यात से अर्जित करता है।
3.) ओमानी रियाल(Omani Rial): 1 ओमानी रियाल की कीमत 216.94 भारतीय रुपये है। ओमान भी, तेल और गैस का एक प्रमुख निर्यातक है।
4.) जॉर्डिनियन दिनार (Jordinian Dinar): 1 जॉर्डिनियन दिनार के लिए, 117.83 भारतीय रुपये मिलते हैं। जॉर्डन, तेल और गैस निर्यात पर कम निर्भर है, और सुस्त आर्थिक विकास एवं बढ़ते कर्ज़ से जूझ रहा है।
5.) ब्रिटिश पाउंड: ब्रिटिश पाउंड दुनिया की पांचवीं सबसे कीमती मुद्रा है | 1 ब्रिटिश पाउंड, 108.38 भारतीय रुपये के बराबर है। पाउंड को पहली बार 1400 के दशक में पेश किया गया था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/dnv54fwj
https://tinyurl.com/5ddjdswn
https://tinyurl.com/u5c2nv4w
https://tinyurl.com/3r74svph
चित्र संदर्भ
1. भारतीय कागज़ी मुद्रा में आए ऐतिहासिक परिवर्तन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, pixels)
2. बीच में छिद्र वाले चीनी सिक्के को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. पचपन स्पैनिश डॉलर के नोट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. बैंक नोट मुद्रण संयंत्र की ऐतिहासिक पट्टिका को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)