समयसीमा 237
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जीव - जन्तु 275
आज के जौनपुर को देख कर यह अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है कि यह शहर वास्तविकता में प्राग व अन्य कितने ही देशों के समान रहा होगा, यहाँ की गगनचुम्बी मस्जिदें, किला व अनेकों मकबरें यहाँ की पराकाष्ठा व कला को प्रदरिशित करते हैं। भारत में 14वीं शताब्दी का मालवा सबसे उन्नत व महत्वपूर्ण राज्य था परन्तु उसकी तुलना में जौनपुर भारतीय इस्लाम के इतिहास में अधिक महत्वपूर्ण था, जो 1359 में गोमती नदी पर स्थापित हुआ था। फिरोज शाह का हिजड़ा सेनापती और मास्टर ऑफ द एलिफेंट (हाथियों का शहंशाह) जौनपुर का प्रभारी ख्वाजा जहान मलिक सरवर को मलिक एश-शर्क की उपाधि से सम्मानित ने तैमुर के आक्रमण के बाद अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया और इस तरह से जौनपुर सल्तनत की स्थापना हुई। समय के साथ-साथ सरवर के उत्तराधिकारियों ने जौनपुर के प्रभुसत्ता को बढाया और जौनपुर शहर दिल्ली की तुलना में बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो गया और गर्व से शिराज-ए-हिंद कहा जाने लगा। जौनपुर अपने समयकाल में विद्वानों का गढ था तथा यहाँ पर फारसी की शिक्षा-दिक्षा महान शिक्षकों द्वारा दी जाती थी। जौनपुर के सबसे महान विद्वानों में से एक, शिहाबुद्दीन दौलताबादी (1445), मलिक अल-उलमा, जौनपुर में रहते थे। उनकी भारतीय मदरसा में मानक बनने वाली पुस्तक अल-इरशाद, अरबी वाक्य विन्यास अत्यन्त महत्वपूर्ण थी, और उनकी शर्क-ए-हिंद जो की एक टिप्पणी है इब्न मलिक के काफिया की तथा यह भी अरबी व्याकरण पर एक विशिष्ट कार्य व जोड़ है। दौलताबादी ने पजदवी के उसाल ऐ-फिक़्ह पर भी टिप्पणी की और कुरान पर एक फारसी टिप्पणी लिखी, जिसे बह्-ए-मव्वाज कहा जाता है। दौलताबादी काफी हद तक शर्की काल के ज़्यादा निर्णयों को लेने के जिम्मेदार थे। जौनपुर अपने समयकाल में अरबी शिक्षा के लिये जाना जाता था यही कारण है कि यहाँ से कई विद्वान, सूफी संत व कितने ही कला प्रेमी निकले। तैमूर के दिल्ली पर आक्रमण के दौरान जौनपुर सूफी संतो के लिये अपने दरवाजे खोल दिये। फारसी का केन्द्र होने के अन्य कई उदाहरण जौनपुर के मस्जिदों से मिल जाता है जिनपर विशिष्ट रूप से कैलीग्राफी की गयी है। जौनपुर के मस्जिद भारत के मस्जिदों से बिल्कुल भिन्न हैं तथा ये अधिक सुसज्जित हैं इसका प्रमाण झंझरी, अटाला, व बड़ी मस्जिद से मिल जाता है। जौनपुर में शेरशाह शूरी की भी शिक्षा-दिक्षा भी जौनपुर से ही हुई थी। मुगल काल में जौनपुर शिक्षा के केन्द्र के रूप में काबिज़ था और यही कारण है कि अकबर जौनपुर के प्रति एक सम्मान रखता था। फारसी भाषा का विकास जौनपुर में अपने पराकाष्ठा पर हुआ तथा यह यहाँ पर कई स्तरों पर फैला वर्तमान में भी जौनपुर में मदरसा जामिया इमानिया नसीरिया फारसी शिक्षा के लिये जाना जाता है तथा यहाँ पर कितने ही बच्चे फारसी का ज्ञान लेते हैं। चित्र में झंझरी व अटाला पर लिखे फारसी को व उनकी लेखन कला को देखें।
1. इस्लाम इन इंडियन सबकॉन्टीनेन्ट, एनमारे स्किमेल, 40-45 2. इंडियाः सोसाइटी रिलीजन एण्ड लिट्रेचर इन एंसियन्ट एण्ड मेडिवल पीरियड, पब्लिकेशन डिवीज़न
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