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शर्की सम्राटों के शासन काल में जौनपुर इस्लामी कला, वास्तुकला और शिक्षा का एक महत्वपूर्ण
केंद्रबन गया, एक विश्वविद्यालय का शहर जौनपुर को ईरान (Iran) के शिराज शहर के नाम पर
'शिराज-ए-हिंद' के खिताब से नवाजा गया था। हालांकि सिकंदर लोदी के जौनपुर को जीत लेने के बाद
शर्कीशैली में बनाई गई अधिकांश संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया था, जिसमें से केवल पाँच
मस्जिदें ही बचीं।यह शैली मुख्य रूप से सुल्तान शम्स-उद-दीन इब्राहिम (1402- 36) के तहत बनाई गई
थी। जौनपुर की इस्लामी स्थापत्य कला में कुछ प्रमुख विशेषताओं की पहचान की जा सकती है,
जिन्हें विशिष्ट रूप से पहचाना जा सकता है।
1. प्रवेश द्वार आदि को अधिक सुस्पष्ट करने के लिए अग्रभाग पर बने तोरण एक सामान्य विशेषता है।
2. महराब 'घुमावदार' या 'ट्यूडर' किस्म के होते हैं जिनमें 'फ्लेउर-डी-लिस (एक कुमुद, जिसे सजावटी
डिजाइन या प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता है।)' किनारी होती हैं।
3. निर्माणकर्ता मेहराब को बनाते वक्त उसके वक्रों और आकृति के बारे में निश्चित नहीं होते थे, जिस
वजह से उन्हें देख अन्य इमारतों को बनाने में कुछ मतभेद आते थे।
4. मुख्य रूप से हिंदू राजमिस्त्री और कारीगर स्तम्भों, बीम और दीवारगीर(Bracket - ट्रैबीट(Trabeate))के
निर्माण प्रणाली (जिसका अक्सर उपयोज किया जाता था) के साथ अधिक सहज थे।
5. स्तम्भों में चौकोर अखंड किनारी होते हैं जिनके बीच में पट्टी होती हैं। ऊपर वही पट्टी स्तम्भों के
शिखर को बनाते हैं जिसमें से दीवारगीर के समूह निकलते हैं। ये अपरिष्कृत कार्यान्वयन का अनुभव
कराते हैं।
अब, आइए जौनपुर में शम्स-उद-दीन इब्राहिम के तहत बनाए गए कुछ मुख्य भवन पर एक नज़र डालें:
# अटाला मस्जिद : अटाला मस्जिद का निर्माण शम्स-उद-दीन इब्राहिम ने 1408 ईस्वी में फिरोज शाह
तुगलक द्वारा 30 साल पहले स्थापित की गई नींव पर किया था।यह उल्लेखनीय स्मारक अटाला देवी
मंदिर के स्थल पर बनाया गया था,तथा इसके निर्माण के लिए अटाला देवी मंदिर के साथ-साथ अन्य
मंदिरों के निर्माण सामग्रियों का उपयोग किया गया था, साथ ही यह भविष्य में जौनपुर में अन्य
मस्जिदों के र्निमाण के लिये आदर्श मानी गयी।मस्जिद में 177फीट क्षेत्र का एक वर्गाकार प्रांगण
है जिसके 3 ओर एकांतवास हैं और चौथे (पश्चिमी) तरफ पूजन-स्थान है। संपूर्ण मस्जिद 258 फीट
क्षेत्र का एक वर्ग है।
# खालिस मुखलिस मस्जिद : 1430 ईस्वी में शहर के दो राज्यपालों मलिक खालिस और मलिक
मुखलिस के आदेश पर इस प्रसिद्ध स्मारक को बनवाया गया था। इसे अटाला मस्जिद के समान
सिद्धांतों पर संरचित किया गया था।यह संरचना काफी सरल है तथा इसमें बहुत कम या न मात्र
सजावट मौजूद है।
# जहांगीरी (झाँझरी) मस्जिद :जहांगीरी मस्जिद 1430 ईस्वी में बनाई गई थी।सिकंदर लोधी द्वारा
इस मस्जिद को धवस्थ कर दिया गया था, लेकिन अभी भी इसके बचे हुए केंद्रीय मेहराब को देख
कर और अटाला मस्जिद और जामा मस्जिद की बड़ी लंबाई और चौड़ाई की तुलना में यह मस्जिद
बेहद खूबसूरत है।धनुषाकार स्तम्भ की बारीक आवरण जैसी उपस्थिति इसे इसका नाम देती है। वहीं
धनुषाकार होने के बजाय प्रवेश द्वार को खंभे पर तीन उद्घाटन में बीम और दीवारगीर प्रणाली के
साथ एक मेहराबदार रास्ते में बनाया गया है।
# लाल दरवाजा मस्जिद :यह 1450 ईस्वी में बीबी राजे द्वारा स्थापित करवाया गया था।इस
मस्जिद की वास्तुशिल्पीय शैली अटाला मस्जिद से काफी मिलती है। हालांकि आकार के मामले में
यह अटाला मस्जिद से लगभग 2/3 गुणा छोटा है। और ज़नाना कक्ष का स्थान मस्जिद के मध्य क्षेत्र
में स्थित है। इसके छोटे आकार के कारण मस्जिद के अग्रभाग में केवल केन्द्रीय स्तम्भ को बनाया
गया है, बगल के छोटे स्तम्भ को छोड़ दिया गया है। प्रवेश द्वार मस्जिद के प्रवेश द्वार के स्वरूप
और शैलियों का अनुसरण करते हैं।इतना ही नहीं यह मस्जिद रानी बीबी राजी के महल के लाल
दरवाजे के बगल में ही है। यही वजह है कि इसे लाल दरवाजा मस्जिद कहा जाता है।बीबी राजे ने
सभी स्थानीय मुस्लिम निवासियों के लिए जौनपुर में लाल दरवाजा के आसपास के क्षेत्रों में एक
धार्मिक स्कूल भी स्थापित किया। स्कूल (या मदरसा) का नाम जामिया हुसैनिया था और यह वर्तमान
समय तक मौजूद है।
# जौनपुर में जामी मस्जिद :जामी मस्जिद, (जिसे 'बारी मस्जिद' के नाम से भी जाना जाता है) का
निर्माण वर्ष 1470 ईस्वी में शर्की राजवंश के अंतिम शासक हुसैन शाह के अधीन किया गया
था।जामी मस्जिद उन मस्जिदों से काफी मिलती-जुलती है जो दिल्ली सल्तनत के तुगलक राजवंश के
फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल के दौरान बनाई गई थीं। यह अटाला मस्जिद की कई उल्लेखनीय
विशेषताओं से बड़े पैमाने पर प्रभावित है। संपूर्ण वास्तुकला को 16-20 फीट की ऊंचाई पर एक खंभे
के चौखूँटे निचले भाग पर उठाया गया है। वहीं मस्जिद के प्रवेश द्वार पर दो धनुषाकार, स्तम्भ के
आकार का द्वार दर्शकों के लिए एक राजसी दृश्य प्रस्तुत करता है।सामने के गेट की ओर जाने वाली
लंबी सीढ़ियाँ भी देखने में काफी आकर्षित हैं। यह शर्कियों द्वारा निर्मित मस्जिदों की एक विशिष्ट
विशेषता थी।
जौनपुर की शर्की वास्तुकला तुगलक शैली का एक विशिष्ट प्रभाव रखती है।शर्की वंश के समय
जौनपुर में कला और वास्तुकला की एक अनूठी शैली विकसित हुई थी। यदि सुल्तान सिकंदर लोदी
द्वारा उन इमारतों को नष्ट न किया गया होता तो वे बेहद खूबसूरत होती।
संदर्भ :-
https://bit.ly/35qBVh2
https://bit.ly/3IgaiGf
https://bit.ly/36rsPBg
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर की अटाला मस्जिद को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. अटाला मस्जिद को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. खालिस मुखलिस मस्जिद को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. बजहांगीरी (झाँझरी) मस्जिद को दर्शाता चित्रण (prarang)
5. लाल दरवाजा मस्जिद को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. जौनपुर में जामी मस्जिद को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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