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भारत में दशहरा उत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है तथा सदैव यह बात ध्यान में रखने के लिए यह पर्व सदियों से पूरे देश में मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म के अनुसार इस दिन भगवान राम ने रावण का वध करके उसके पापों का अंत किया। दशहरे के साथ नवरात्रि के पर्व का भी समापन किया जाता है जिसमें देवी दुर्गा द्वारा राक्षस महिषासुर की हत्या का स्मरण किया जाता है। विभिन्न राज्यों में दशहरा उत्सव को क्षेत्र और संस्कृति के आधार पर भिन्न-भिन्न रूपों से मनाया जाता है। आप पूरे देश में जहां भी जायेंगे वहां आपको दशहरा का एक अलग रूप देखने को मिलेगा जहां इसे मनाने की विधियां भी भिन्न-भिन्न हैं। तो चलिए जानते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में यह पर्व किस प्रकार से मनाया जाता है।
कोलकाता, दुर्गा पूजा:
कोलकाता में दशहरा के दिन दुर्गा पूजा का विशाल और भव्य आयोजन किया जाता है। रंगीन पंडाल सजाये जाते हैं तथा स्वादिष्ट और पवित्र व्यंजन बनाये जाते हैं। यहां नृत्य समारोह का आयोजन भी किया जाता है। कोलकाता में दुर्गा पूजा का आनंद लेना जीवन भर के किसी सुखद अनुभव से कम नहीं है।
मैसूर दशहरा
मैसूर का दशहरा भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह शहर विशेष रूप से इसी कार्य के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी चामुंडेश्वरी (जिसे दुर्गा भी कहा जाता है) ने राक्षस महिषासुर का वध किया था और यह प्रतिष्ठित आयोजन आज तक बहुत भव्यता के साथ मनाया जाता है। सैन्य प्रदर्शन, सांस्कृतिक प्रदर्शन और एथलेटिक (Athletic) प्रतियोगिता इस उत्सव का एक भाग हैं। मैसूर महल को शानदार ढंग से सजाया जाता है।
अहमदाबाद दशहरा
गुजरात में भी दशहरा का यह पर्व नवरात्री के रूप में मनाया जाता है। पूजा में लोग आपको गरबा करते दिख जायेंगे। यह उत्सव पूरे नौ दिन तक चलता है। जिसमें लोग डांडिया लेकर एक दूसरे के साथ गरबा नृत्य करते हैं तथा पारम्परिक पोशाक पहनते हैं।
कुल्लू दशहरा
हिमाचल के कुल्लू में, दशहरे का त्यौहार 7 दिनों के लिए बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। मुख्य रूप से भगवान रघुनाथ की पूजा पर केंद्रित, यहां स्थित ढालपुर मैदान में भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है। उत्सव के लिए मुख्य मैदान में स्थानीय देवी-देवताओं की मूर्तियों को लेकर ग्रामीणों के साथ एक विशाल जुलूस निकलता है। इन दिनों पूरी कुल्लू घाटी बहुत उज्ज्वल और रंगीन दिखती है।
दिल्ली दशहरा
देश की राजधानी दिल्ली दशहरा को शानदार ढंग से मनाती है। भगवान राम द्वारा रावण की हार की प्रतिकृतियां शहर के चारों ओर मैदानों, सड़कों आदि पर बनायी जाती है। विजयादशमी तक के नौ दिनों के दौरान आपको शहर के सभी मंदिर खूबसूरती से सजे हुए दिखाई देंगे जहां चारों ओर आप धार्मिक संगीत भी सुन सकेंगे। लगभग हर नुक्कड़ पर रामलीला का मंचन भी किया जाता है।
पंजाब दशहरा
पंजाब के लोग देवी शक्ति का सम्मान करके दशहरा मनाते हैं। उनमें से अधिकांश नवरात्रि के पहले सात दिनों तक उपवास करते हैं जिसके बाद रात भर का जगराता रखा जाता है। इसके आठवें दिन जिसे अष्टमी कहा जाता है, को यहां नौ कन्याओं को जिमाया जाता है तथा उन्हें भोग लगाकर उपवास तोड़ा जाता है।
तमिलनाडु दशहरा
तमिलनाडु के लोग इस खूबसूरत त्यौहार को विशेष रूप से देवी लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती की पूजा करके मनाते हैं। विवाहित महिलाएं एक-दूसरे के घरों में जाती हैं और उपहार के रूप में कुमकुम, चूड़ियाँ, नारियल, सुपारी आदि का आदान-प्रदान करती हैं।
हैदराबाद का बथुकम्मा:
निज़ामों का शहर दशहरा को एक सुंदर त्यौहार के रूप में मनाता है जो देवी गौरी को समर्पित है। इस त्यौहार को ‘बथुकम्मा’ कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘हे माँ, प्रकट हो’। यह त्यौहार तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
चेन्नई का बोम्मई कोलु:
चेन्नई में दशहरा समारोह गलियों में शानदार ढंग से दिखाई देता है। क्योंकि इन दिनों देवी दुर्गा को राक्षस महिषासुर से लड़ते हुए, रामायण के विभिन्न घटनाक्रमों और महाभारत के दृश्यों की जीवंत झांकी निकाली जाती है। यह परंपरा केवल प्राचीन लोककथाओं पर ध्यान केंद्रित नहीं करती है, बल्कि स्थानीय शादी की रस्मों, समकालीन नायकों (जैसे ओलंपिक विजेता) और नवाचार और रचनात्मकता के अन्य प्रदर्शनों का भी सम्मान करती है।
महाराष्ट्र दशहरा
महाराष्ट्र में लोग इस दिन अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं, एक-दूसरे को बधाई देते हैं और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। मराठी इस दिन विशेष सजावटी सामान तैयार करते हैं क्योंकि यह त्योहार सर्दियों के आगमन का भी प्रतीक है। इस दिन नए कार्यों का शुभारम्भ किया जाता है तथा नए घर, वाहन और उपकरण भी खरीदे जाते हैं।
इसी प्रकार अन्य स्थानों पर भी यह त्यौहार भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। माना जाता है कि वर्ष 1610 में, वाडियार शासन के तहत सबसे पहली बार नवरात्री का ऐसा आयोजन किया गया था जिस रूप में आज किया जाता है। इतिहासकारों का कहना है कि उस समय के शासक राजा वाडियार ने एक शाही फरमान सुनाया कि उनके उत्तराधिकारियों द्वारा बिना किसी रुकावट के यह आयोजन भव्य तरीके से हर साल मनाया जाना चाहिए। राजा वाडियार के उत्तराधिकारियों ने उनके कदमों का अनुसरण करके माता चामुंडेश्वरी की पूजा करने के लिए 10 दिवसीय कार्यक्रमों का आयोजन किया। 17वीं सदी के दरबारी कवि गोविंद वैद्य की पांडुलिपि में 1647 में नरसरज वोडेयर के अंतर्गत आयोजित किये गये इस नवरात्रि समारोह को सफलतापूर्वक अर्जित किया गया है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2VlZ7nV
2. https://www.treebo.com/blog/dussehra-celebration-in-india/
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.pexels.com/photo/bengal-bengali-durga-puja-festival-713606/
2. https://www.flickr.com/photos/chubbychandru/albums/72157625784745999
3. https://en.wikipedia.org/wiki/File:Mysore_palace_night_view.jpg
4. https://bit.ly/2oc0Akz
5. https://www.flickr.com/photos/publicresourceorg/27327655211
6. https://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/thumb/d/df/Karaga1.JPG/1280px-Karaga1.JPG
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