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मराठी भाषा में एक कहावत है – ‘आधीं पोटोबा, भाग विठोबा’। अर्थात पहले पेट उसके पीछे भगवान। इसी प्रकार एक और कहावत ‘भूखे भजन न होइ गुपाला’। इसका निर्गमित अर्थ बहुत बड़ा है। पेट यदि भरा है तो सब धर्म-कर्म और भगवान सूझते हैं; परोपकार की भी इच्छा होती है और उसे पूर्ण करने का सामर्थ्य भी प्राप्त होता है; मन सुविचार में प्रवृत्त होता है; उदार भाव उड़ते है; मनुष्य आशावादी बनकर प्रसन्न होता है और दूसरों को भी प्रसन्न करता है।
हिन्दू धर्म में शरीर के सभी अंगों को भिन्न-भिन्न देवताओं को समर्पित माना जाता है। हाथ के देवता इंद्र हैं, पैर के देवता विष्णु हैं, उसी प्रकार पेट के देवता यम माने गये हैं। पेट की ताकत जितनी अधिक होती है, मृत्यु इंसान से उतना ही दूर रहती है। जब तक पेट की शक्ति बनी रहेगी तब तक इंसान पर मृत्यु का वार नहीं हो सकता। हमारा शरीर भी तभी बलवान होता है, जब हमारा उदर अर्थात पेट पूर्ण रूप से काम करे।
आज प्रारंग आपके लिए उदर व्यायाम की एक श्रृंखला लेकर आया है, जिनके द्वारा आप अपने पेट को सम्पूर्ण रूप से तंदुरुस्त रख सकते हैं, आप अपनी पाचन क्रिया से लेकर पेट की लगभग समस्त समस्याओं को ठीक कर सकते हैं।
व्यायाम के प्रकार:-
1. ज़मीन पर एक दरी या साफ़ कपडा (Yoga Mat) बिछायें। उस पर घुटनों को अपने शरीर के सामने रखकर अपने पैरों के तलवों को चित्रानुसार पीछे की ओर ले जायें और दोनों घुटनों को आपस में मिलाकर बैठें। अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों के दोनों ओर रखें हाथ की उँगलियों को मिलाए और उन्हें सीधे जमीन पर रखें, छाती को बाहर की ओर उभारें और पूर्ण श्वास लेकर छाती को धीरे धीरे नीचे की ओर लेते हुए जाँघों से मिलाएं और नाक को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास करें। इस समय दोनों हाथ कोहनियों से अग्रभाग की तरफ मुड़े हुए हों और पार्श्व भाग तलवों पर टिका हुआ हो। इतना करके धीरे धीरे पुन: पूर्ववत अवस्था में आ जायें।
2. पूर्ववत आसन में बैठने के पश्चात दोनों हाथों को घुटनों के समीप न रखकर कमर पर रखें और दाहिने हाथ के पंजे से बायें हाथ का पंजा पकड़कर छाती ऊपर की ओर करें। फिर छाती को धीरे धीरे घुटनों से ओर नाक को जमीन से स्पर्श करने की कोशिश करें। तत्पश्चात धीरे धीरे पूर्व स्थिति में आ जायें।
3. दरी पर सामने पैर फैलाकर और जहाँ तक हो सके उन्हें चौड़ा कर, सीधा रख कर बैठें। दोनों हाथों से पैरों के अंगूठों को पकडे, तदन्तर घुटनों को बिना टेढ़ा किये कमर से झुककर नाक जमीन से लगाने का पर्यटन करें। क्रिया के समय हाथों को कोहनियों से मोड़े और फिर धीरे धीरे पूर्ववत स्थिति में आ जायें।
4. पहले व्यायाम की भांति बैठने के पश्चात दायें पैर को वहां से निकालकर बायीं ओर बायें पैर की जांघ से समकोण बनाते हुए सीधा रखें। हाथ पहले व्यायाम की ही भांति रहेंगे। इसके बाद इसी स्थिति में पहले व्यायाम में की जाने वाली क्रिया को दुहरायें और इसके बाद पुन: प्रारंभिक स्थिति में आ जायें। इसके बाद यही क्रिया बायें पैर के साथ भी करें।
5. चौथे प्रकार की ही सब क्रिया करें, परन्तु हाथ घुटनों की ओर न रखकर जिस ओर पैर फैलाया हो उस ओर घुमाकर सीधा करें ओर छाती को आगे की ओर झुकाते हुए हाथों को पावों के आगे जितना बढ़ा सकें बढायें और सर को घुटनों पर रखें। इसी क्रिया को दोनों तरफ से करें।
6. तीसरे व्यायाम में बताई मुद्रा अनुसार पैर चौड़े फैलाकर बैठें। अनंतर पूर्ण श्वास लेते हुए हाथों को कन्धों की सीध में सीधा करें और हाथों के साथ दायीं ओर शरीर को घुमाएं, शरीर को मुड़ने की वेदना महसूस होने तक घुमाना है। वेदना महसूस होने के पश्चात जिस ओर हाथ मुड़े हुए हैं उसी ओर, जमीन पर हाथ टिकाकर जोर दें। इस क्रिया को करते समय पैर बिल्कुल नहीं हिलना चाहिए, वो ज्यों के त्यों रहना चाहिए। इसके बाद यही क्रिया दूसरी ओर भी करें।
7. पैर चौड़े करके सीधे खड़े रहें। दोनों पैरों के मध्य लगभग एक फुट फासला हो। पूर्ण श्वसन भरते हुए दोनों हाथ कन्धों से सीधी रेखा में ताने। अनंतर कटी के ऊपर का अंग दाहिनी ओर इस तरह घुमाएँ की दाहिना हाथ बायीं ओर कंधे की सीधी रेखा में आ जाये, और बायाँ हाथ कोहनी से मोड़कर पंजा दाहिने कंधे में लगायें। कोहनी कंधे की रेखा में ही होनी चाहिए। फिर यही क्रिया विपरीत दिशा में भी दुहरायें।
8. सातवें व्यायाम में कहे अनुसार खड़े होकर हाथों को ऊपर सीधा करें। अनंतर पूर्ण श्वसन भरते हुए धीरे धीरे पहले दायीं ओर झुककर दाहिने पाँव के पास जमीन पर हाथ रखें और बायाँ हाथ ऊपर वैसे ही खड़ा रखें। घुटनों के जोड़ हिलने नही चाहिए। इसी क्रिया को दूसरी तरफ से भी दुहरायें।
9. हाथों को ऊपर खड़ा करके सीधे खड़े रहें। इसके बाद हाथ नीचे सीधे सामने लाकर आगे की ओर कमर के बल झुककर सर को घुटनों के बीच में लाने का प्रयत्न करें और हाथों से जमीन छुएं, ऐसा करते हुए घुटने नहीं झुकने चाहिए। फिर पूर्व स्थिति में आयें।
10. नौवे व्यायाम के अनुसार हाथ सिर के ऊपर सीधे रखकर खड़े रहें, फिर शरीर को कमर के बल झुकाकर अपने भार को पीछे की ओर ले जायें। हाथों को भी साथ ही पीछे ले जायें। फिर पुन: प्रारंभिक स्थिति में आ जायें।
11. दरी पर सीधे चित्त लेट जाएँ, हाथ दोनों ओर सीधे रखें। पूर्ण श्वसन करते हुए बायाँ पैर और दाहिना हाथ एक साथ सीधे उठाकर पेट की मध्य रेखा में ले आयें और हाथ से पैर को स्पर्श करें। अनंतर पुन: पूर्व स्थिति में आकर दायाँ पैर और बायाँ हाथ उठाकर वैसी ही क्रिया करें। ऐसा करते समय घुटने टेढ़े ना हो।
12. इस व्यायाम के लिए पेट के बल लेट जायें और पीछे की ओर से घुटनों को झुकाकर उनके टखने दोनो हाथों के पंजों से पकडें। इस समय गर्दन और छाती इतनी ऊपर उठी रहे कि शरीर धनुरावस्था में आ जाये। इससे पेट के नल तन जायेंगे। इसी हालत में दोनों ओर आढ़ाध लोटे। ध्यान रहे कि इसे करते समय शरीर में किसी प्रकार का झटका न लगे।
13. सीधे चित्त लेटें घुटनों और जाँघ दोनों को झुकाकर दोनों हाथों से घुटनों के समीप पकडे। इस समय पार्श्वभाग उठा हुआ हो।
14. ग्यारहवें व्यायाम के अनुसार चित्त लेटें। हाथों के अंगूठों को मिलाकर दोनों हाथ सर की तरफ सीधे रखें। अनन्तर धीरे धीरे श्वास लेते हुए घुटनों को बिना झुकाए और शरीर को बिना झटका दिए उठे और हाथ वैसे ही लाकर पैरों के पंजों को छुएं। फिर कमर के बल झुककर घुटनों को बिना मोड़े, घुटनों में नाक लगायें। ऐसा करते हुए पैरों को जमीन से उठाएं और किसी प्रकार ऊपर नीचे न करें। इसके बाद अंगों में बिना झटका दिए हुए पूर्व स्थिति में आये।
15. सीधे चित्त लेटें। हाथ पैर एक दिशा में सीधे रखें। पैरों को घुटनों पर मोडें बिना सीधे ऊपर उठाएं और धीरे धीरे सिर की ओर इतना ले जाएँ कि पेट मुड़े और पैर सिर की तरफ सिर के पीछे की ओर जमीन में लगें। ऐसा करते समय हाथ अपनी जगह से नही हिलने चाहिए। फिर जितनी धीरे पैरों को ऊपर लाया गया है, उतनी ही धीरे पैरों को पूर्वस्थिति में लेकर आयें।
सन्दर्भ:-
1. जालन, घनश्यामदास 1882 कल्याण योगांक गोरखपुर,यु.पी.,भारत गीता प्रेस
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